केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) अपने गुंडों को ‘शहीद’ घोषित कर उनके नाम पर स्मारक बना रही है। माकपा ने नौ वर्ष पहले बम बनाने के दौरान विस्फोट में मारे गए अपने दो कार्यकर्ताओं के नाम पर जो स्मारक बनाया है, वह लोगों के पैसे से बना है। 22 मई, 2024 की शाम को पार्टी सचिव एमवी गोविंदन ने इस स्मारक का उद्घाटन किया। इसे लेकर माकपा भाजपा सहित अन्य विपक्षी दलों के निशाने पर है।
6 जून, 2015 को कोलावल्लूर थानाक्षेत्र के चेट्टकंडी में एक पहाड़ी पर माकपा के शैजू और सुबीश देसी बम बना रहे थे, तभी एक बम फट गया। इसमें दोनों की मौत हो गई थी, जबकि माकपा के चार वरिष्ठ कार्यकर्ता गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उन दिनों यह इलाका राजनीतिक हिंसा के लिए कुख्यात था। माकपा के गुंडे आए दिन भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले करते थे।
दिलचस्प बात यह है कि बम विस्फोट में अपने कार्यकर्ताओं की मौत के बाद पार्टी ने उनसे पल्ला झाड़ लिया था। माकपा के तत्कालीन राज्य सचिव कोडियेरी बालाकृष्णन ने बयान जारी किया था कि बम विस्फोट में मारे गए लोगों का उनकी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं था। लेकिन उनके दावे के बावजूद कन्नूर के तत्कालीन जिला सचिव पी. जयराजन दोनों के अंतिम संस्कार में गए। बाद में पार्टी ने दोनों को ‘शहीद’ बताते हुए उनका स्मारक बनाने के लिए सार्वजनिक धन संग्रह किया। कन्नूर के कई गांवों में आज भी माकपा कार्यकर्ताओं की याद में स्मारक के तौर पर कंक्रीट के बने खंभे देखे जा सकते हैं।
अभी गत 5 अप्रैल को लोकसभा चुनाव प्रचार के बीच पनूर में इसी तरह बम बनाते समय विस्फोट हुआ था, जिसमें माकपा कार्यकर्ता शेरिल मारा गया, जबकि तीन अन्य घायल हो गए थे। बताया गया कि लोकसभा चुनाव में अराजकता फैलाने के लिए माकपा बम बना रही है। घटना के तुरंत बाद माकपा के राज्य सचिव ने कहा कि बम बनाने वालों से पार्टी का कोई संबंध नहीं है। लेकिन पार्टी के स्थानीय नेता अपने कार्यकर्ता को श्रद्धांजलि देने उसके घर पहुंच गए।
बहरहाल, भाजपा और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) ने माकपा के इस कदम का पुरजोर विरोध किया है। कांग्रेस नेता और पूर्व गृह मंत्री तिरुवंचूर राधाकृष्णन ने कहा कि माकपा पाखंडी पार्टी है। वह कहते कुछ है और करती कुछ और है। पहले तो पार्टी ने कहा कि विस्फोट में मारे गए लोगों से उसका कोई संबंध नहीं है, लेकिन बाद में बाद में उन्हें ‘शहीद’ बना देती है। अब, एक बार फिर माकपा ने अपने दोहरेपन से यह साबित कर दिया है कि वह पाखंडी पार्टी है।
वहीं, माकपा नेता पी. जयराजन ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाला है। इसमें उन्होंने बम बनाने के दौरान मारे गए कार्यकर्ताओं का स्मारक बनाने के फैसले को सही ठहराते हुए लिखा, “शहीद हमेशा शहीद होते हैं।” जयराजन ने कहा कि उनकी पार्टी कार्यक्रम को आगे बढ़ाएगी। इतिहास को खारिज नहीं किया जा सकता। यदि कोई ऐसा करने का प्रयास करेगा तो इतिहास उसे माफ नहीं करेगा।
इधर, राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता वीडी सतीशन ने कहा कि माकपा केरल के शांतिप्रिय लोगों को चुनौती दे रही है। उन्होंने कहा, “यदि गोविंदन समारोह (स्मारक उद्घाटन) में भाग लेते हैं, तो उनके खिलाफ मामला दर्ज किया जाना चाहिए।”
कांग्रेस नेता ने कहा कि माकपा का यह कृत्य दर्शाता है कि वह राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाने के लिए बम निर्माण को प्रोत्साहित कर रही है। साथ ही, उन्होंने कहा कि ‘शहीदों’ की सूची में पनूर विस्फोट (अप्रैल 2024) में मारे गए व्यक्ति को शामिल नहीं किया जाएगा। लेकिन वास्तविकता यह है कि माकपा जरूरत पड़ने पर अपना रुख बदल सकती है।
माकपा के राज्य सचिव गोविंदन के उस बयान को याद कीजिए, जिसमें मीडिया को उन्होंने बताया कि पनूर विस्फोट में डीवाईएफआई के जिन तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया, वे ‘जीवन रक्षक मिशन’ के लिए वहां गए थे। प्रश्न है कि बम बनाने के दौरान विस्फोट में मारे गए लोग कानूनी तौर पर अपराधी ही कहे जाएंगे न, लेकिन उन्हें ‘शहीद’ बताना और उनका स्मारक बनाकर क्या माकपा लोकतंत्र का अपमान नहीं कर रही है? पार्टी उन्हें शहीद कैसे कह सकती है? क्या पार्टी यह साबित करना चाहती है कि उसके गुर्गे शांति को बढ़ावा देने के लिए बम बनाते हैं? माकपा से इन सवालों के जवाब की उम्मीद बेमानी है।
बता दें कि आमतौर पर माकपा के गुंडे हमेशा दूसरी पार्टियों और संगठनों, खासकर रा.स्व.संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं व नेताओं पर हमले करते हैं। राज्य में होने वाली सभी राजनीतिक झड़पों में माकपा एक सामान्य कारक है। माकपा बनाम रा.स्व.संघ/भाजपा, माकपा बनाम कांग्रेस, माकपा बनाम इंडियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल), माकपा बनाम आरएसपी या अन्य दल और यहां तक कि माकपा बनाम भाकपा, जो माकपा के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) का दूसरा सबसे बड़ा घटक है, तो समझ में आता है। लेकिन माकपा ही माकपा का दुश्मन बन जाए तो?
इस संदर्भ में कासरगोड की घटना बहुत रोचक है। यहां माकपा कार्यकर्ताओं ने अपने ही नेताओं पर बम फेंके।
दरअसल, 20 मई को कासरगोड जिले में कंजांगड के अम्बालाथारा में पार्टी का एक कार्यक्रम था। माकपा के स्थानीय सचिव और नेता गृह संपर्क के लिए आए थे। रिपोर्ट के अनुसार, रात 9 बजे हत्या के मामले में आरोपी रतीश ने उन पर बम फेंके। नेताओं ने भाग कर अपनी जान बचाई। बाद में उन्होंने बम फेंकने वाले माकपा कार्यकर्ताओं को जमकर पिटाई की थी। एक प्रत्यक्षदर्शी अमीना ने बताया कि जिस समय हमला हुआ, वहां बच्चे भी मौजूद थे। रतीश ने जब स्थानीय सचिवों अनूप, बाबूराज और डीवाईएफआई के जोनल सचिव अरुण बालाकृष्णन पर विस्फोटक फेंके, तब वे गृह संपर्क के लिए शमीर के घर पहुंचे। अनूप की शिकाय त पर पुलिस ने रतीश और समीर के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया है।
पुलिस का कहना है कि बीते कुछ समय से अम्बालाथारा क्षेत्र में माकपा में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। लेकिन पार्टी नेतृत्व हमेशा की तरह यही कह रही है कि माकपा ने 2018 में ही रतीश से नाता तोड़ लिया था, क्योंकि उसके ड्रग माफिया से संबंध थे। रथीश पुरानी रंजिश को लेकर ही उसने माकपा नेताओं पर हमला किया।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि जब माकपा कार्यकर्ता पार्टी के खिलाफ जाते हैं या आलोचना भी करते हैं तो नेतृत्व यही रुख अपनाता है और कहता है कि लंबे समय से वे पार्टी में नहीं हैं या वे बुरी संगत में हैं वगैरह-वगैरह। वास्तव में यह पार्टी के अंदरुनी झगड़ों को छिपाने का एक छलावा है। 4 मई, 2012 को विद्रोही सीपीएम नेता जब टी.पी. चन्द्रशेखरन की बेरहमी से हत्या की गई थी, तब भी माकपा ने उन पर भ्रष्टाचार सहित कई आरोप लगाए थे।
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