देहरादून। उत्तराखंड के जनजाति आरक्षित क्षेत्र जौनसार बावर का एक चौंकाने वाला मामला सामने आ रहा है। यहां पुरटाड ग्राम में बाहर से आए मुस्लिम वन गुज्जरों के नाम जमीन बंदोबस्ती में दर्ज हो गई है। इससे स्थानीय जनजातीय लोगों में गुस्सा पनप रहा है। यह मामला दो साल से सरकार के सामने उठाया जाता रहा। जानकारी के मुताबिक सामाजिक संगठन रुद्रसेना देव भूमि फाउंडेशन उत्तराखंड इस मुद्दे को हर जगह उठा रहा है।
ये मामला सबूतों के साथ सामने रखा गया है। जिसमें वन गुज्जरों के नाम बंदोबस्त -1983 में जमीन दर्ज हो गई, जबकी ये मैदानी क्षेत्र से पहाड़ी क्षेत्र में ग्रीष्मकालीन में अपने मवेशी लेकर जाते थे, तथा शरद ऋतु में मैदानी क्षेत्र में आ जाते थे।
रुद्र सेना ने खुलासा किया कि साहिया चकराता शिमला व मसूरी चकराता शिमला तथा कालसी क्वानु हटाल वाले रास्ते के प्रयोग की अनुमति नहीं है, इसके बाद घुमंतू वन गुज्जर के यहां स्थाई होने का कोई अन्य विकल्प नहीं रह जाता। इस नियम के तहत जौनसार बावर क्षेत्र में सभी वन गुज्जर अवैध रूप से रह रहे थे। उन्होंने दून अधीक्षक वन विभाग द्वारा म्युटिनी रिकार्ड भी पेश किया।
जौनसार बावर को 1967 में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला तथा गैर जौनसारी के नाम यहां की सरकारी या गैर सरकारी जमीन नहीं हो सकती। यह अवैध जमीन नामकरण का खेल 1967 के बाद ही शुरू हुआ तथा तत्कालीन खान पटवारी ने बंदोबस्त अधिकारी को गुमराह करते हुए अवैध रूप से रह रहे वन गुज्जरों के नाम साजिश के तहत बड़ा भू-भाग बिना किसी खरीद के बन्दोबस्त 1983 में नाम दर्ज करवा दिया। जबकि जौनसारी जनजाति का वाजिब उल अर्ज नियम के तहत एक खत(पट्टी) की जमीन दूसरे खत के नाम नहीं लग सकती फिर कैसे बाहर से आए घुमंतू वन गुज्जर के नाम दर्ज करवाई की गई।
इस मामले में स्थानीय कांग्रेस की राजनीति भी तुष्टिकरण की जैसे रही है। कांग्रेस की हरीश रावत सरकार ने वन गुज्जरों को हरिद्वार के मिट्टी बेड़ी में पट्टे आवंटित किए। इन लोगों में से भी कुछ लोग हैं जिन्होंने सरकार को एफिडेविट दिया कि उनके पास कोई भी जमीन नहीं है, यहां भी बड़ा घपला नजर आता है। दो वर्ष पहले रुद्रसेना के संयोजक राकेश उत्तराखंडी ने इस मामले को गहराई से देखा और जब इसकी खसरे खतौनी निकाली गई तो क्षेत्र के लोग सहम गए। आखिर इतनी बड़े भू-भाग में इतना बड़ा घपला कैसे हो गया और यहां जनजातीय क्षेत्र में मुस्लिम लोगों का कब्जा कैसे हो गया ?
राकेश उत्तराखंडी बताते हैं कि समय रहते सरकार ने यदि जौनसार बावर की जमीन को इन वन गुज्जरों से वापस नहीं ली तो आने वाले समय में जौनसार बावर अपनी संस्कृति, आस्था तथा सभ्यता को खो देगा । कई गांव में जनसंख्या असंतुलन हो चुका है। पुरटाड गाँव में 30 ब्रह्ममण परिवार थे तथा एक वन गुज्जर था। वहां 33 वन गुज्जर के परिवार हो गये तथा ब्राह्मण परिवार 30 रह गए हैं। सुनीर गांव में 18 हिंदू परिवार थे। वहां पहले 1 वन गुज्जर था आज 42 वन गुज्जर परिवार और 18 हिंदू परिवार हैं। ऐसे ही करीब आठ गांव में डेमोग्राफी चेंज हो चुकी है।
रुद्र सेना का ये भी कहना है कि साजिश के तहत कब्रिस्तान के लिए जगह-जगब वन विभाग चकराता की जमीन कब्जाई गई है। इसमें कालसी आमबाग में 70 बीघा जमीन, त्युनी के नजदीक चांदनी रोड पर 30 बीघा जमीन व हनोल मंदिर के निकट शिव ढांग के नीचे 50 बीघा जमीन में कब्रिस्तान बनते जा रहे हैं। पिछले दो साल में क्षेत्रीय लोगों की रोक-टोक के कारण कालसी कब्रिस्तान के पक्के कब्रिस्तान को कालसी वन प्रभाग ने ध्वस्त कर दिया था और अब वन विभाग कालसी नर्सरी बनाने के लिए तैयारी कर रही है।
त्यूनी तहसील में दर्जनों ऐसी शिकायतें हैं जोकि जौनसारी जनजाति के लोगों ने ये कहते हुए दी हैं कि उनकी जमीन पर वन गुज्जरों ने कब्जा किया है। लगातार अवैध कब्जों की शिकायत त्यूनी उप जिलाधिकारी को दी जा रही है। आरोप है कि क्षेत्रीय राजनीतिक दबाव के कारण ये मामला ठंडे बस्ते में है। पिछले साल रुद्रसेना देवभूमि उत्तराखंड द्वारा बड़ी मात्रा में हनोल मंदिर में धर्म सभा की गई थी, जिसमें भारत के सात अखाड़ों के महामंडलेश्वर व सैकड़ों संतों ने उपस्थिति दर्ज कराई थी। काफी हद तक वहां के अवैध मदरसों का ध्वस्तीकरण हुआ लेकिन अवैध कब्जा अभी भी नहीं हट पाए हैं। ग्राम समाज की एक हजार बीघा जमीन कब्जा की गई है। अब वन गुज्जर इस ताक में हैं कि आने वाले समय में बन्दोबस्त के समय उनके नाम जमीन चढ़ जायेगी ।
जिन वन गुज्जरों ने ग्राम पंचायत की भूमि पर मकान बनाए थे , 2022 स्वामित्व अधिकार में भी जमीन दर्ज किए जाने के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं।
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