देहरादून । उत्तराखंड में यूपी से लगे उत्तराखंड के गांव, कस्बे, शहर, नदियां,नाले अतिक्रमण की चपेट में हैं और ये जनसंख्या असंतुलन की समस्या पैदा कर रहे हैं। उत्तराखंड सरकार ने एक बार फिर जून माह में सत्यापन अभियान और अतिक्रमण हटाने के लिए मन बना लिया है। सीएम पुष्कर सिंह धामी के हालिया बयान इस और इशारा करते हैं कि इस बारे में कोई बड़ी कार्ययोजना बनी है।
उत्तराखंड में यूपी से लगे इलाकों में पिछले कुछ सालों में,सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करके वहां अवैध रूप से मकान बना लिए गए हैं और अब ये जमीन दस दस रु के स्टांप पेपर पर भी बिकने लगी है। ये अतिक्रमण ज्यादातर मुस्लिम आबादी ने किया हुआ है। जिसकी वजह से राज्य में जनसंख्या असंतुलन की समस्या खड़ी हो गई है और इससे राज्य के सनातन धार्मिक मूल स्वरूप भी बिगड़ रहा है।
सीएम धामी के निर्देश पर पिछले साल जो अतिक्रमण हटाओ अभियान शुरू किया गया था वो अधिकांशतः वन भूमि पर था, जहां करीब पांच हजार एकड़ सरकारी वन विभाग की जमीन को अवैध कब्जों से मुक्त करवाया गया था, 536 अवैध मजारों को भी ध्वस्त किया गया और 34 मंदिर भी हटाए गए थे।
अब एक बार फिर से सीएम धामी ने बयान जारी कर कहा है कि उत्तराखंड में सत्यापन अभियान शुरू किया जाएगा। ये बात भी कहने की है कि देवभूमि उत्तराखंड, कट्टर इस्लामिक एजेंसियों की कार्यस्थली बनता जा रहा है।
दारुल उलूम देवबंद के गजवा ए हिंद को लेकर जारी किए गए फतवे को लेकर देश में एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के निर्देश पर सहारनपुर के डीएम और एसएसपी को इस संदर्भ में एफआईआर दर्ज करने के लिए कहा गया है, डीएम सहारनपुर ने एसएसपी को इस बारे में रिपोर्ट दर्ज करने के लिए पत्र प्रेषित कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि गजवा-ए-हिंद (भारत पर आक्रमण) को वैध करार के जवाब पर इस्लामी शिक्षण संस्था दारुल उलूम दस वर्ष बाद सवालों के घेरे में आ गया है। वेबसाइट के माध्यम से दिए गए फतवे को आधार बनाकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने इसे राष्ट्र विरोधी बताते हुए डीएम सहारनपुर और एसएसपी को जांच कर कार्रवाई के आदेश दिए हैं। बृहस्पतिवार को देवबंद एसडीएम अंकुर वर्मा और सीओ अशोक सिसोदिया ने दारुल उलूम प्रबंधन से इस संबंध में पूछताछ भी की।
दरअसल, वर्ष 2015 में दारुल उलूम की वेबसाइट पर किसी व्यक्ति ने गजवा-ए-हिंद को लेकर जानकारी मांगी थी। जिस पर दारुल उलूम ने अपने जवाब में पुस्तक सुन्नत-अल-नसाई का हवाला दिया था। कहा था कि गजवा-ए-हिंद को लेकर इसमें पूरा एक अध्याय है। बाल संरक्षण आयोग ने कहा कि यह देश विरोधी है, क्योंकि इसमें गजवा-ए-हिंद को इस्लाम के नजरिए से जायज बताया गया है। मामले में आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने डीएम और एसएसपी को पत्र लिखकर कार्रवाई करने को कहा।
क्या है गजवा ए हिंद?
जानकर बताते है कि गजवा-ए-हिंद’ का संधि विच्छेद करके इसका अर्थ समझें तो युद्ध को गजवा कहा जाता है। काफिरों (गैरमुस्लिमों) को युद्ध में हराने की प्रक्रिया को ‘गाज़ी’ कहा जाता है। यहां हिंद का मतलब हिन्दुस्तान यानी भारत है। इसलिए जब कोई मुस्लिम देश या संगठन हिंदुस्तान में इस्लाम को स्थापित करने का अभियान चलाते तो उसे गजवा ए हिंद कहा जाता है। पिछले साल यूपी उत्तराखंड एटीएस द्वारा गजवा ए हिंद से जुड़े सात आतंकियों को गिरफ्तार भी किया था।
उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रही मुस्लिम आबादी
भारत में उत्तराखंड में, असम के बाद सबसे तेजी से मुस्लिम आबादी बढ़ रही है, उत्तराखंड में हर दस साल में दो फीसदी मुस्लिम आबादी बढ़ रही थी जो अब ढाई से तीन प्रतिशत हो रही है, देखने में ये बहुत थोड़ी लगती है, लेकिन इसको दूसरी नजर से देखेंगे तो उत्तराखंड में ये आबादी सत्रह प्रतिशत से अधिक तक हो गयी है और अब ये समस्या दूसरी दृष्टि से समझे कि चार मैदानी जिलों, उधमसिंह नगर, नैनीताल हरिद्वार और देहरादून में ये आबादी पैंतीस फीसदी तक और कहीं और भी ज्यादा हो गई है । जानकारी में आया है कि यूपी से लगे उत्तराखंड के इन चारों जिलों में तबलीगी जमात मरकज का अभियान अपनी पूरी तेजी पर है। जिसकी वजह से उत्तराखंड में डेमोग्राफी चेंज समस्या साफ दिखलाई देने लगी है।
कथित रूप से कहा जा रहा है कि गजवा ए हिंद की योजना है यूपी के मैदानी इलाकों से जुड़े इस क्षेत्र और सीमावर्ती राज्यो में अपनी आबादी के जरिए अपनी गतिविधियों को विस्तार देना है। एक जानकारी के मुताबिक गजवा ए हिंद के जरिए जमीयत संस्थाओं ने कुछ अपने लक्ष्य निर्धारित किए हैं।
उत्तराखंड में कैसे कैसे हो रहे हैं षड्यंत्र?
राज्य वन भूमि और सरकारी भूमि परअवैध कब्जे करना, मुस्लिम संगठनों का पहला लक्ष्य रहा है। खनन नदियों के किनारे मुस्लिम आबादी ने अवैध रूप से कब्जे कर लिए हैं, वन भूमि यहां तक की कोर जोन के जंगलों में भी मुस्लिम गुज्जरों ने सैकड़ों हेक्टेयर भूमि कब्जा ली है, रेलवे, पीडब्ल्यूडी, की जमीनों पर अवैध मजारें-मस्जिदें-मदरसे आखिर कैसे खड़े हो गए?
देहरादून में ही विनोबा भावे ट्रस्ट की भूदान जमीन पर, गोल्डन फॉरेस्ट, यहां तक कि देहरादून से लगी जंगल नदी बरसाती नाले की जमीनों पर अवैध कब्जे करने में मुस्लिम संगठनों ने योजनाबद्ध तरीके से काम किया है।
गौर करे उत्तराखंड के हर कैंट एरिया शहर में एक मजार बनी हुई है , इसके अलावा हर बैराज पुल , रेलवे स्टेशन के पास, दून अस्पताल, राजभवन कैंट एरिया ,तीर्थ नगरी हरिद्वार ऋषिकेश और अन्य संवेदनशील स्थानो पर भी मजारें बनी हुई हैं, स्मरण होगा कि मुस्लिम समुदाय ने टिहरी झील के आसपास तक मस्जिद मजार बना दी थी।
जब ये मजारे, मस्जिदें और मदरसे बन रहे थे तब किसी ने इस पर गौर नही किया होगा किंतु अब इनकी सैकड़ों में संख्या को देख ऐसा लगता है कि ये कहीं ” गजवा ए हिंद” की योजना का हिस्सा तो नहीं?
हाईवे और सड़कों पर कब्जे
उत्तराखंड में जितने भी नेशनल हाईवे हैं या प्रमुख सड़कें हैं इनपर बिजनौर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, पीलीभीत रामपुर जिले और कहीं कहीं तो असम से आए मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अवैध कब्जे किए हुए हैं। हाल ही में आसन बैराज के पास, पछुवा देहरादून में उत्तराखंड जल विद्युत परियोजना कार्यालय से नौ सौ से ज्यादा अवैध कब्जेदारों को नोटिस दिए गए हैं, जिनमे 714 मुस्लिम परिवार हैं। ये सभी मुस्लिम लोग यूपी के सहारनपुर जिले से यहां आकर बस गए, यहां से जब प्रशासन ने अतिक्रमण हटाया तो यहां बनी मस्जिदों मदरसों को छोड़ दिया गया। अभियान के एक माह बाद ये अतिक्रमणकारी फिर से धार्मिक स्थलों की आड़ लेकर बसने लगे हैं।
देहरादून जिले के हालात सबसे खराब
जिला देहरादून में एक सौ सत्तर मस्जिदें, सत्तर मजारें अवैध रूप से बनी हुई हैं। सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी का अतिक्रमण पछुवा दून में हुआ है। जिनमें से पचास के करीब मजारें उत्तराखंड सरकार के बुल्डोजर ने ध्वस्त कर दी हैं। बावजूद इसके अभी और मजारें शेष हैं। गौरतलब ये भी है कि जब मुस्लिम सिवाय खुदा के कहीं और सजदा नहीं करते तो फिर ये मजारें किसके लिए बनाई गईं। स्वाभाविक है सरकार की जमीनों पर अवैध कब्जे करने की नियत से बनाई गईं और यहां अंधविश्वासी हिंदू लोगों की आड़ लेकर अपने अवैध कब्जे बढ़ाए जा रहे हैं।
गौर करने की बात है कि तख्त डाल कर नारियल बेचने वाले मुस्लिम योजनाबद्ध तरीके से मुख्य सड़क और अस्पताल जैसे संवेदनशील स्थानों के बाहर काबिज हैं और इन्हें तख्त के पीछे झोपड़ी डालकर बिठाया गया है। रोड पर नगर प्रशासन जहां पार्किंग की पट्टी लगाती है और फुटपाथ पर वहां मुस्लिम लोग फल सब्जी आदि के ठेले लगाकर बैठ चुके हैं, जबकि पालिका निगम का ये नियम या प्रावधान है कि ये ठेले पहिए के द्वारा चलायमान रहेंगे कहीं काबिज नहीं होंगे, किंतु इन्होंने सड़कों को कब्जा लिया है।
जमीनों के दस्तावेजों में हेर-फेर
उत्तराखंड सरकार को हाल ही में देहरादून जिले की जमीनों के दस्तावेजों में हेर-फेर करने की साजिश का पता चला है जिसके बाद से सीएम पुष्कर सिंह धामी ने एक विशेष जांच दल गठित किया है। दरअसल उत्तराखंड बनने से पहले देहरादून सहारनपुर कमिश्नरी का हिस्सा था, राज्य बनने के बाद सहारनपुर में ही जमीनों के दस्तावेज पड़े रहे जिन्हे देहरादून की डीएम सोनिका खुद लेकर यहां आई और जब उनका डिजिटल काम शुरू हुआ तो इस साजिश का पर्दाफाश हुआ। जानकारी के मुस्लिम भू माफिया सहारनपुर से देहरादून आकर यहां की जमीनों के मालिकों को भू दस्तावेजों में बदलाव कर धमकाते थे कि ये जमीन उनकी हैं। ऐसे प्रकरणों के सामने आने पर धामी सरकार ने सख्त रुख अपनाया है।
बाजार कारोबार पर कब्जे
जमातों में आने वाले मुस्लिम युवाओं को इस बात के लिए प्रेरित किया जाता है कि वे लोहे, प्लास्टिक, मशीन, मोबाइल, बार्बर, जहाज और डॉक्टरी के कारोबार करें। गौर कीजिए लोहे का कारोबार कभी हिंदू वंचित समाज के लोग किया करते थे अब सब काम मुस्लिम कर रहे हैं, मशीन रखना और चलाने में मिस्त्री कारीगरों एक लंबी सूची है जिसपर ये मुस्लिम काबिज हो चुके हैं। प्लास्टिक कबाड़ को रीसाइकिल करने में ये मुस्लिम हावी हैं, अब और महत्वपूर्ण बात कि हर शहर में प्राइम लोकेशन पर मुस्लिम महंगा किराया देकर दुकानें खोल चुके हैं। यहीं से लव जिहाद के मामले शुरू हो रहे हैं।
सनातन नगरी हरिद्वार में हरी चादर
गंगा सनातन तीर्थ नगरी हरिद्वार के कुंभ क्षेत्र को छोड़कर हर तरफ मुस्लिम आबादी ने योजनाबद्ध तरीके से अपने पांव पसार लिए हैं। हरिद्वार से दो किमी बाहर निकलते ही, मस्जिदों और मदरसों की भरमार दिखती है, आखिर ये पिछले कुछ सालों में कैसे पनप गए? हरिद्वार जिले में मुस्लिम आबादी 35 फीसदी से अधिक हो चुकी है, जिसने सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य ही बदल डाला है।
क्या है लव जिहाद का अभियान का सच?
उत्तराखंड में मुस्लिम युवा हिंदू और ईसाई लड़की को प्रेम जाल में फंसाकर लव जिहाद करते हैं और कन्वर्जन करवा कर निकाह का दबाव डालते हैं। पिछले दस पंद्रह सालों में मैदानी ही नहीं पहाड़ी जिलों से भी लव जिहाद के मामले सामने आए हैं। नाम बदल कर उत्तराखंड गरीब परिवारों की लड़कियों को बरगला कर भगा ले जाने और उनका धर्म परिवर्तन कराने के मुकदमे पुलिस में दर्ज हुए हैं। इसके पीछे तबलीगी सोच ये कहती है हिंदू लड़की का कन्वर्जन करवा कर एक हिंदू पीढ़ी को खत्म कर देना है।
जमात के और भी हैं लक्ष्य?
देवभूमि उत्तराखंड में मुस्लिम समुदाय को जमात के जरिए ये निर्देश हैं कि हर साल प्रत्येक बालिग मुस्लिम व्यक्ति 5000 रु जकात, प्रत्येक व्यक्ति को जमात, हर घर से एक मौलवी, प्रत्येक लड़की को इस्लामिक शिक्षा, दावत ए इस्लाम (अपने घर लाकर रोजाना दो हिंदुओ को दावत, दावत में मांस परोसना), मुस्लिम युवकों को गैरों से निकाह, हर जुम्मे की नमाज और नमाज के दौरान हाजिरी रजिस्टर भरने जैसे लक्ष्य दिए गए हैं।
उत्तराखंड है यूपी सूबे के अधीन
उत्तराखंड अभी यूपी सूबे के साथ है जिसका मुख्यालय लखनऊ में है। यूपी सूबे में नौ हल्के हैं, मेरठ हल्के में सहारनपुर, देहरादून, हरिद्वार ,रुड़की, जिला है। हल्के के नीचे मरकज थिया तहसील है। हर तहसील की मस्जिदों में जो हाजिरी रजिस्टर रखे हुए हैं उनकी रिपोर्ट कंप्यूटर डाटा के जरिए सूबे तक जाती है। इन्ही सूचनाओं के आधार पर अगले लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं। गौर करने वाली बात है कि आखिर किस जमीनी स्तर पर योजनाबद्ध तरीके से उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी के पांव पसारने का षड्यंत्र चल रहा है।
पुरेला हल्द्वानी विकासनगर की घटनाएं
पुरेला में लव जिहाद की घटना का हिंदू संगठनों ने विरोध किया। इसके बाद देहरादून में मुस्लिम संगठनों ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की। उससे मालूम होता है कि मस्जिदों से जमात की क्या भूमिका है,? इसी तरह से विकासनगर क्षेत्र में लव जिहाद, कांवड़ पर पथराव की घटना के दौरान जिस तरह से इस्लामिक नारे लगाए गए उससे पुलिस प्रशासन की नींद भी टूटी है। हल्द्वानी बनभूलपुरा अतिक्रमण मामले में जिस तरह से मुस्लिम संगठन सक्रिय हुए उससे ये संकेत मिलता है कि उत्तराखंड में मुस्लिम सेवा संगठन, भीम आर्मी और अन्य संगठनों के पीछे जमात की एक बड़ी भूमिका है।
उत्तराखंड में गजवा ए हिंद की गतिविधियों की पुष्टि
2022 साल में दस अक्टूबर को यूपी और उत्तराखंड एटीएस ने गजवा ए हिंद से जुड़े सात आतंकियों को गिरफ्तार किया था। जिनमें से दो उत्तराखंड से पकड़े गए थे। एटीएस ने सहारनपुर से लुकमान,आलिम,हरिद्वार से अली नूर, मुद्दसिर, देवबंद से कामिल,शामली से शहजाद और झारखंड से नवाजिश को पकड़ कर पूछताछ की थी और उत्तराखंड पुलिस प्रशासन से सूचनाएं साझा की थी। जिसमें ये बात सामने आई थी कि इन आरोपियों ने उत्तराखंड में गजवा ए हिंद के लिए युवाओं को बरगलाने का काम किया था।
क्या कहती है धामी सरकार ?
सीएम धामी कहते है हमारी सरकार ने अतिक्रमण हटाओ अभियान में हजारों एकड़ जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त कराया है और ये अभियान आगे भी जारी रहेगा। चुनाव परिणाम आने के बाद इस पर हमारी सरकार एक बार फिर से प्रभावी कार्रवाई करने जा रही है।
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