टापू देश मालदीव के राष्ट्रपति जिस चीन को अपना आका मानकर धौंस दिखा रहे थे, बड़े बड़े बोल बोल रहे थे, वही अब ड्रैगन की झिड़की सुन चारों खाने चित दिख रहे हैं। अभी तीन महीने पहले वह सब जगह कहते फिर रहे थे कि चीन उनके देश को दिया कर्जा घटा देगा और लौटाने को ज्यादा वक्त भी देगा, अब इस बात पर मुंह छुपाने को मजबूर कर दिए गए हैं। चीन ने साफ कह दिया है कि कर्ज की एक पाई नहीं छोड़ेगा और न ही लौटाने की मियाद ही बढ़ाएगा।
राष्ट्रपति जिनपिंग कितने चतुर हैं, यह शायद मालदीव के राष्ट्रपति को अच्छे से समझ आ गया होगा। अपने चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने चीन की शह में आकर बड़े बड़े बोल बोले थे और भारत को लेकर विशेष तौर पर आंखें तरेरने की हिमाकत की थी, अब वही चीन की असली मंशा समझ गए होंगे।
मालदीव का राष्ट्रपति बनने के फौरन बाद मोहम्मद मुइज्जू चीन गए थे और वहां से बड़े बड़े आश्वासन लेकर लौटे थे। अपने जनवरी के एक भाषण में मुइज्जू ने यह कहा था कि उन्हें चीन से यह आश्वासन मिल गया है कि मालदीव को दिया कर्ज लौटाने के लिए वे मियाद बढ़ा देंगे। लेकिन कल मालदीव में चीन की राजदूत वान लिक्सिन ने मुइज्जू के हाथों के तब तोते उड़ा दिए जब उन्होंने उनसे स्पष्ट शब्दों में कहा कि न चीन कर्ज कम करेगा, न मियाद बढ़ाएगा।
चीन का कर्ज शिकंजा कोई नई चाल नहीं है। वह कई छोटे देशों को अपने इस शिकंजे में फंसा चुका है। विकास परियोजनाओं के नाम पर वह आसानी से कर्ज देता रहा है और बदले में उन देशों की अर्थव्यवस्था को ही ऐसा चूना लगाता है कि वे घुटनों पर आ जाती हैं। श्रीलंका और पाकिस्तान उसके इस पैंतरे के ताजा शिकार हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन ऐसी शर्तों पर कर्ज देता है जो कोई बहुत कड़ी नहीं मालूम देतीं लेकिन शुरू में किए गए उसके मीठे वादों का स्वाद वक्त के साथ कड़वा होता जाता है और वह कर्जदार देश को कंगाली की कगार पर ला छोड़ता है। कहीं मालदीव चीन के इस पैंतरे का ताजातरीन शिकार तो नहीं हो रहा? इस बात के कई दिनों से कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं मालदीव पाकिस्तान की राह न चल पड़े। मालदीव की तरह जिन्ना का देश भी कम्युनिस्ट ड्रैगन को अपना आका मानता आ रहा है।
अब चीनी राजदूत की सपाट बातों से मालदीव को जो तगड़ा झटका लगा है उसे समझने में ही टापू देश मालदीव को हफ्तों लग जाएंगे। चीन का साफ साफ यह कहना कि मालदीव ने जो उससे कर्ज लिया है उसे घटाने या मिसाद बढ़ाने का सवाल ही नहीं उठता, मालदीव को उसकी हैसियत जता देगा। जबकि टापू देश तो विस्तारवादी चीन से यह अर्ज कर रहा था कि वह उसे कर्जे के जाल से आजाद होने में मदद करे।
अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए बड़ी ठसक से चीन जाने वाले राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने बीजिंग से लौटकर बयान दिया था कि चीन ने वादा किया है कि कर्ज चुकाने के लिए और वक्त दिया जाएगा। लेकिन अब चीनी राजदूत को सपाट बयान उन्हें साल रहा होगा। आंकड़ों की बात करें तो इस साल की तीसरी तिमाही में चीन के बैंक को मालदीव को 8.1 अरब मालदीवियाई रुपये देने थे।
मालदीव की राजधानी माले में कार्यरत चीनी राजदूत ने यह बात बयान जारी करके कही है कि कर्ज में कोई फेरबदल नहीं किया जाएगा। इस बारे में चीन के दूतावास में एक संवाददाता सम्मेलन किया गया था। इसी में राजदूत वांग ने बताया कि चीन फिलहाल कर्ज की शर्तों में कोई बदलाव करने के बारे में नहीं सोच रहा है।
वांग ने यह भी कहा कि दूसरे विकल्पों के बारे में सोचा तो जा रहा है, लेकिन बदलाव करने से मालदीव को आगे की परियोजनाओं के लिए कर्ज लेने में दिक्कतें आ सकती हैं। मालदीव की हालत यहां तक खराब है कि पूर्ववर्ती चीन समर्थक अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल में निवास परियोजनाओं के लिए जो कर्ज लिया गया था उसे अभी तक लौटाया नहीं जा सका है।
अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए बड़ी ठसक से चीन जाने वाले राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने बीजिंग से लौटकर बयान दिया था कि चीन ने वादा किया है कि कर्ज चुकाने के लिए और वक्त दिया जाएगा। लेकिन अब चीनी राजदूत को सपाट बयान उन्हें साल रहा होगा। आंकड़ों की बात करें तो इस साल की तीसरी तिमाही में चीन के बैंक को मालदीव को 8.1 अरब मालदीवियाई रुपये देने थे।
चीन से उलट भारत ने अपने प्रति शत्रुभाव पाले मालदीव की भरपूर मदद ही की है। अभी हाल में भारत आए मालदीव के विदेश मंत्री मूसा जमीर के अनुरोध पर भारत ने अपनी ओर से उसे दिए कर्ज की मियाद तत्काल बढ़ा दी थी। भारत की विदेश नीति पड़ोसी देशों के प्रति मित्रवत व्यवहार करने वाली ही रही है।
टिप्पणियाँ