पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू और कश्मीर के मुजफ्फराबाद शहर में जो प्रदर्शन और प्रतिरोध हुए, वह पाकिस्तान के सात दशक के आर्थिक व सांस्कृतिक शोषण के विरुद्ध सुलगती चिंगारी की एक झलक भर है। ये विरोध इस क्षेत्र में पाकिस्तान के अवैध कब्जे को चुनौती देते हैं। कई स्थानों पर भारतीय ध्वज वहां के लोगों के लिए प्रेरणा बना है।
जान की परवाह किए बिना लोग सुरक्षाबलों से भिड़ गए। इसमें 70 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए और कई प्रदर्शनकारियों को फौज उठा कर ले गई। पाकिस्तान ने एक साथ उठे हजारों विरोध के स्वरों को दबाने का पूरा प्रयास किया। सुरक्षाबलों ने गोलियां चलार्इं, विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले नेताओं को गिरफ्तार किया और प्रदर्शन से जुड़ी खबरों पर भी पाबंदी लगाई, फिर भी सत्ता को चुनौती देने वाली आवाजों को सरकार दबा नहीं सकी।
ये प्रदर्शन जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र के समूचे अवैध कब्जे वाले हिस्से में पाकिस्तान विरोधी भावनाओं की शृंखला की एक कड़ी भर हैं, जो वर्षों से हुंजा, स्कार्दू, नागर से लेकर मीरपुर-मुजफ्फराबाद तक फैले हुए हैं। 2023 से गिलगित-बाल्टिस्तान में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जो जनवरी 2024 से तीव्र हो गए हैं। इससे पहले पाकिस्तान गुपचुप तरीके से ऊपरी हुंजा के खनिज सम्पन्न क्षेत्र चीन को लीज पर देने की फिराक में था, तब मई 2022 में स्थानीय लोगों ने व्यापक विरोध प्रदर्शन किया था।
पाकिस्तान ने शौकत कश्मीरी, मुमताज खान सहित कई लोगों को गिरफ्तार कर यातनाएं दीं। यहां तक कि गिलगित-बाल्टिस्तान के पर्यटन मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को भी फौज ने सार्वजनिक तौर पर पीटा। इससे पहले अक्तूबर 2020 में हजारों लोगों ने जब फौज द्वारा गायब किए गए बाबा जान, नवाज नाजी, अब्दुल हमीद खान सहित 13 लोगों की रिहाई की मांग को लेकर कराकोरम हाइवे जाम किया था, तब भी फौज ने गोलियां चलाई थीं। इसमें कई स्थानीय नेता मारे गए थे। सितंबर-अक्तूबर 2021 में अलीबाद और मुर्तिजाबाद जैसे छोटे शहरों में विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं।
अधिक्रांत क्षेत्र के लोग पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली और राजनीतिक अस्थिरता से अवगत हैं। साथ ही, भारत की आर्थिक और सैन्य शक्ति के प्रति उनमें विश्वास बढ़ा है। ‘दुनिया का आखिरी उपनिवेश’ कहे जाने वाले पीओजेके की जनता का पाकिस्तान बरसों से शोषण करता आ रहा है, वह उन्हें मूलभूत सुविधाएं तक नहीं देता है। यही नहीं, 1970 के दशक में पंजाब और उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत से सुन्नी मुसलमानों को लाकर इस क्षेत्र में उन्हें बसा कर जनसांख्यिक परिवर्तन कर रहा है।
स्थानीय भाषा-बोली, लिपि, जंगलों और परंपराओं को नष्ट कर लोगों को जड़ों से काटने की भी कोशिश की जा रही है। सुन्नी कट्टरपंथियों के जरिए पाकिस्तान शीना, बालती, खोवारी जैसी उन्नत भाषाओं और लिपियों के साथ शिया, नूरबख्शी, इस्माइली जैसे अन्य उपासना प्रतीकों को भी नष्ट करवा रहा है। अपहरण, हत्या, कैद और जबरन भूमि कब्जे की घटनाएं तो फौज के लिए आम बात हैं। इसके अलावा, क्षेत्र के अधिकांश सैन्य-प्रशासनिक पदों पर पंजाब के लोगों का कब्जा है। यह सब पाकिस्तान सरकार की शह पर हो रहा है।
यह अधिक्रांत क्षेत्र कभी अंतरराष्ट्रीय व्यापार का केंद्र था, लेकिन पाकिस्तान के अवैध कब्जे के बाद स्थानीय लोगों से व्यापार और रोजगार के अवसर छीन कर उन्हें गरीबी और निराशा की ओर धकेल दिया गया। अब पाकिस्तान की नजर क्षेत्र की खनिज संपदा पर है। गिलगित-बाल्टिस्तान आदेश-2018 पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को किसी भी उद्देश्य के लिए इस क्षेत्र की भूमि को भी अधिग्रहित करने का अधिकार देता है। क्षेत्र में अवैध तरीके से वनों की कटाई हो रही है और बड़े पैमाने लकड़ी की तस्करी हो रही है।
इस कारण जंगल तेजी से सिकुड़ रहे हैं। यही नहीं, पाकिस्तान सरकार बिना पूर्व सूचना के सीमित कृषि योग्य भूमि भी कब्जा लेती है। अधिक्रांत क्षेत्र में जल के अनेक स्रोत हैं, जिनका पानी झीलों, नदियों में जमा किया जा रहा है। चीन की मदद से पाकिस्तान ने मीरपुर, मुजफ्फराबाद और गिलगित-बाल्टिस्तान में दीमेर- भाशा, बुंजी, मंगला जैसे कई बांध बनाए हैं। गिलगित-बाल्टिस्तान के पानी से पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों में जलापूर्ति की जा रही है, जबकि स्थानीय नगरीय आबादी को पाइपलाइन से मात्र 40 प्रतिशत जल की मिलता है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि पाकिस्तान ने जो बांध बनाए हैं, वे भूकंपीय जोन में पड़ते हैं। मंगला बांध का ही उदाहरण लें। इस बांध के निर्माण से लगभग 280 गांव, मीरपुर और दादियाल जैसे बड़े शहर डूब गए, जिससे लगभग 1,10,000 लोग विस्थापित हो गए। अब वह बांध की ऊंचाई बढ़ा रहा है। यही स्थिति गिलगित-बाल्टिस्तान में निर्माणाधीन दीमेर-भाषा बांध की है, जिससे लाखों लोग बेघर हो जाएंगे। पाकिस्तान बांध बनाकर अपने हिस्से में उजाला लाने के लिए अधिक्रांत भू-भाग के लोगों के जीवन को अंधेरे में झोंक रहा है। स्कार्दू, गिलगित, मुजफ्फराबाद जैसे बड़े शहरों को 24 घंटे में मुश्किल से 2 घंटे के लिए बिजली मिलती है, वह भी अधिक कीमत पर। बिजली से होने वाली पूरी कमाई भी पाकिस्तान ही रखता है।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के पास गिलगित-बाल्टिस्तान के कथित रूप से चुने हुए मुख्यमंत्री या तथाकथित आजाद कश्मीर के प्रधानमंत्री को हटाने का अधिकार है। क्षेत्र में रोजगार नहीं होने के कारण लाचारी में युवाओं को पाकिस्तान फौज भर्ती होना पड़ता है, जहां उन्हें भारत के विरुद्ध भड़काया जाता है। अधिक्रांत क्षेत्र के आम लोगों की तो छोड़िए, गिलगित-बाल्टिस्तान के ‘मुख्यमंत्री’ खालिद खुर्शीद आने सीमित प्रशासनिक अधिकारों पर शिकायत करते हैं कि पाकिस्तान सरकार ने इस वर्ष 45 यूटिलिटी स्टोर्स (किराने की दुकानों) की संख्या घटाकर 21 कर दी है। इसके कारण आम लोगों को राशन नहीं मिल पा रहा है।
बीते 30 वर्ष में पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को आतंकवाद की नर्सरी बना दिया है और इसके जरिये भारत के खिलाफ एक छद्म युद्ध लड़ रहा है। लगभग सभी सक्रिय आतंकी समूहों के प्रशिक्षण शिविर मीरपुर-मुजफ्फराबाद क्षेत्र में हैं, जिन्हें पाकिस्तान सिर्फ प्रश्रय ही नहीं देता, बल्कि उनका इस्तेमाल यहां शिया या गैर-सुन्नी समुदायों को प्रताड़ित करने के लिए भी करता है। गिलगित-बाल्टिस्तान में शिया-सुन्नी संघर्ष इसका ज्वलंत उदाहरण है, जो 80 के दशक से चला आ रहा है, जिसमें लाखों स्थानीय लोग मारे जा चुके हैं।
दिलचस्प बात यह है कि 1956, 1962 और 1973 के पाकिस्तानी संविधान में पीओजेके का कहीं उल्लेख नहीं है। पाकिस्तान के पास इस क्षेत्र पर दावे का कोई कानूनी या संवैधानिक आधार नहीं है। पीओजेके और लद्दाख क्षेत्र के कारण ही पाक-चीन के बीच दोस्ती हुई है। चीन कभी भारत का पड़ोसी देश नहीं था, लेकिन तिब्बत पर कब्जे के बाद चीन की सीमाएं भारत से लगीं तो उसने इसके एक बड़े भाग को तिब्बत का हिस्सा बताकर अपना दावा जताना शुरू कर दिया।
चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के कारण अधिक्रांत क्षेत्र में बड़ी संख्या में चीनी कर्मचारी और सैनिक मौजूद हैं। इस क्षेत्र में सीपीईसी सहित सड़क और ऊर्जा क्षेत्र में चीन के बड़े पैमाने पर निवेश का उद्देश्य भारत के विरुद्ध अपनी रणनीतिक बढ़त सुनिश्चित करना है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, गिलगित-बाल्टिस्तान में लगभग 10,000 चीनी सैनिक हैं, जो खदानों, सड़क निर्माण सहित अन्य बुनियादी ढांचे के विकास कार्य में लगे हुए हैं। इस क्षेत्र के बारे में कहावत है कि पाकिस्तान ने एक गाय की तरह इसे दुहने के बाद चीन नामक कसाई को बेच दिया है।
बहरहाल, हाल के प्रदर्शनों से एक बात तो साफ हो गई है कि अधिक्रांत कश्मीर की जनता अब पाकिस्तान के जोर-जुल्म के आगे झुकने से रही। यह भी तय है कि एक न एक दिन पाकिस्तान को भारत के इस हिस्से से अपना दावा छोड़ना पड़ेगा। इसे भारतीय संसद द्वारा 22 फरवरी, 1994 को सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव और वर्तमान सरकार के विभिन्न मंत्रियों द्वारा दिए बयानों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने हाल ही में कहा है कि ‘‘पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। हम आशा करते हैं कि एक दिन हम इस पर भौतिक नियंत्रण कर लेंगे।’’
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