आम आदमी पार्टी की नेता एवं राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल के मामले में अब और तेजी और स्पष्टता आ रही है। स्वाति मालीवाल ने लिखित शिकायत दे दी है और साथ ही देर रात को उनका मेडिकल भी कराया गया। अब आगे पुलिस क्या कदम उठाती है, वह देखना होगा। परंतु स्वाति मालीवाल के बहाने पूरे इंडि गठबंधन की एक बहुत ही कबीलाई सोच सामने आई, जिसमें “औरत” की जगह मर्दों के पैरों में और मर्दों के रहमोकरम पर है। यह वही सोच है जो औरतों को मर्दों की खेती बताती है, जो यह अपेक्षा करती है कि औरत घर में घर के ही नहीं बल्कि जान-पहचान के मर्दों से पिटती रहे, मगर मुंह न खोले, क्योंकि एक तो उसे यह हक नहीं है कि वह मुंह खोले और दूसरा उसके मुंह खोलने से उसके मर्दों के प्रतिद्वंदियों को फायदा हो जाएगा।
यह कैसी कबीलाई सोच है कि घर के भीतर औरत के साथ कुछ भी होता रहे, उसे निजी मामला बताया दिया जाए। आपस का मामला? क्या पार्टी के लोग आपस के लोग होते हैं? क्या पार्टी का ही अर्थ परिवार होता है और क्या परिवार के मर्दों को यह अधिकार होता है कि वह अपने परिवार की औरतों को दूसरे मर्दों से पिटवाएं? या कोई दूसरा मर्द पीट रहा है तो वह देखते रहें? यह आदिम जमाने की सोच है, जहाँ पर औरतों को आजादी नहीं थी। क्या यह समझा जाए कि आम आदमी पार्टी या कहें इंडी गठबंधन के लोग अपनी महिला कार्यकर्ताओं को अपनी पार्टी की ऐसी औरतें मानते हैं, जिनके साथ वे सब कुछ कर सकते हैं और कोई भी महिला कार्यकर्ता इस कारण मुंह न खोले, क्योंकि यह घर की/पार्टी की बात है?
क्या यह इन पार्टियों के महिला विरोधी चरित्र को नहीं दिखाता है? इस कड़ी में आम आदमी पार्टी के नेताओं के बाद जो सबसे पहला नाम आता है, वह है “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ” का नारा देने वाली कॉंग्रेस की नेता प्रियंका गांधी का। जो हर भाषण में भारतीय जनता पार्टी को महिला विरोधी बताती रहती हैं, मगर अपनी ही पार्टी में महिला कार्यकर्ताओं के साथ क्या होता है, वह हाल ही में राधिका खेड़ा के मामले से समझा जा सकता है। और उससे पहले असम की अंकिता दत्ता के मामले से समझा जा सकता है। राधिका खेड़ा का मामला नया है, लोगों की स्मृति में है कि कैसे राधिका को लगातार अपमानित किया जाता रहा। मगर शायद कॉंग्रेस के लिए यह अंदरूनी मामला था, कि जिसमें उनकी महिला नेता को पीटा जा सकता था, कोई भी आकर पीट सकता था, क्योंकि पार्टी एक परिवार है और कुनबे के मर्दों की तो आदत होती ही है, कुनबे की औरतो को पीटने की।
राधिका खेड़ा के आरोपों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है क्योंकि प्रियंका गांधी ने स्वाति मालीवाल के मामले में यह कहा कि “यह आम आदमी पार्टी का अंदरूनी मामला है!”
#WATCH | On AAP Rajya Sabha MP Swati Maliwal assault case, Congress general secretary Priyanka Gandhi Vadra says, "…If any atrocity happens to any woman anywhere, we stand with the woman. I always stand with women – irrespective of which party they belong to. Secondly, AAP will… pic.twitter.com/w1yoAbEjGm
— ANI (@ANI) May 16, 2024
प्रश्न यह उठता है कि क्या किसी महिला के साथ मारपीट किसी पार्टी का निजी मामला हो सकता है? क्या प्रियंका गांधी यह कहना चाहती हैं कि घर में जो लोग रहते हैं, वह आपस में किसी को मार सकते हैं, पीट सकते हैं, हत्या कर सकते हैं और वह पार्टी का आपस का मामला हो जाएगा? क्या पार्टी में हो रहे भ्रष्टाचार को भी यही कहकर उचित ठहराया जाएगा?
प्रियंका गांधी क्या कहना चाहती हैं? क्या प्रियंका गांधी यह कहना चाहती हैं कि पार्टी एक ऐसा ज़ोन हो गई है, जहाँ पर देश का कानून ही लागू नहीं होता? क्या वे देश से ऊपर पार्टी को बता रही हैं? किसी भी व्यक्ति के साथ शारीरिक हिंसा, किसी भी सभ्य समाज में जायज नहीं ठहराई जा सकती है, उसे प्रियंका गांधी अपनी थेथराई से सही साबित कर रही हैं? क्या प्रियंका गांधी यह कह रही हैं कि भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस के युवा नेता सुशील शर्मा ने जब अपनी पत्नी नैना साहनी की हत्या करके तंदूर मे डाल दिया था, वह भी उनका निजी मामला था? क्योंकि वह उनके घर की औरत थीं, तो घर का मर्द जो चाहे वह करे?
क्या कॉंग्रेस की महिला कार्यकर्ता भी उनके लिए केवल “अंदरूनी मामले” जैसी हैं? क्या यही कारण है कि कॉंग्रेस की महिला नेता नगमा के साथ जब छेड़छाड़ हुई थी, तो उन्होंने शिकायत नहीं की थी, उन्होंने कहा था कि ऐसा कुछ नहीं है, जबकि एक घटना में वह सभा छोड़कर चली आई थीं और एक घटना में उनके चेहरे पर असहजता के भाव देखे जा सकते थे?
अखिलेश यादव के लिए “स्वाति मालीवाल” से जरूरी मुद्दे और भी हैं?
वहीं इस मामले पर जब लखनऊ मे इंडी गठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई तो एक पत्रकार ने अरविन्द केजरीवाल से स्वाति मालीवाल के मामले में प्रश्न किया। उस पर अरविन्द केजरीवाल ने माइक अखिलेश यादव को दे दिया। अखिलेश यादव ने अत्यंत ही निर्लज्जता का परिचय देते हुए कहा कि “इससे भी जरूरी मुद्दे हैं!”
यह बहुत ही हैरानी की बात है कि इंडी गठबंधन के लिए एक महिला सांसद की एक मुख्यमंत्री के घर में मारपीट से बढ़कर और क्या जरूरी मुद्दे हो सकते हैं? क्या अखिलेश यादव यह बताएंगे कि वह जिस व्यक्ति के बगल में बैठकर अपने चुनावी अभियान में साथी बनाए हुए हैं, जिसके साथ वह चुनाव लड़ रहे हैं, वह व्यक्ति अपने ही घर में अपनी राज्यसभा सांसद के साथ मारपीट का साक्षी है और वह बैठकर देश के मुद्दों की बात कर रहे हैं?
क्या यह प्रश्न नहीं पूछा जाना चाहिए कि क्या आम आदमी पार्टी या कहें इंडी गठबंधन के नेताओं के लिए इनके द्वारा बनाई गई महिला सांसद इनकी जागीर हैं, इनकी खेती हैं, कि इन्हें घर में बंद करके वे मारपीट कर सकते हैं या फिर कल को और किसी भी प्रकार का शोषण कर सकते हैं?
यह कैसी तालिबानी मानसिकता है जिसमें वह पार्टी के परदे में कैद है और पार्टी के मर्द चाहे जैसे इस्तेमाल करें? हैरानी तो तब होती है जब कपिल सिब्बल जैसे लोग भी इसे पार्टी का आपसीं मसला बताते हैं? जो आम आदमी पार्टी की महिला विंग या नेता हैं, उनकी राजनीतिक बाध्यता समझ में आती है, क्योंकि उनके लिए तो उनके राजनीतिक आका ही उनके सब कुछ हैं और यदि अपने आका के खिलाफ कुछ बोला तो वे ऐसी ट्रोलिंग का शिकार होंगी, जो उनके चरित्र पर हमला करेगा, जैसा कि स्वाति मालीलवाल के भी साथ हुआ, जब उन्होनें यह बात उठाई थी कि उनके साथ मारपीट हुई?
स्वाति की ही पार्टी की महिला कार्यकर्ताओं के एक्स पोस्ट वायरल हुए, जिनमें उन्हें भाजपा में जाने वाला और न जाने क्या-क्या कहा गया। लोग कह रहे हैं कि स्वाति के इस कदम से बृजभूषण सिंह वाली पार्टी को फायदा होगा, परंतु हर चीज से बढ़कर यह प्रश्न कि क्या एक महिला को केवल इसलिए शांत होकर अपने शोषण के खिलाफ आवाज नहीं उठानी चाहिए कि दूसरे को फायदा होगा? क्या महिलाएं इंडी गठबंधन के लिए सत्ता पाने का हथियार हैं? जरा कल्पना करें कि एक जमानत पर आए मुख्यमंत्री के घर पर मुख्यमंत्री का पीए एक राज्यसभा सांसद के चेहरे पर थप्पड़ मारता है, उसकी छाती पर मारता है, पेट पर मारता है और निचले शरीर पर मारता है और उस समय मुख्यमंत्री केजरीवाल वहीं पर मौजूद थे!”
इस घटना को प्रियंका गांधी, कपिल सिब्बल, संजय सिंह, अखिलेश यादव, और यहाँ तक कि आम आदमी पार्टी की महिला नेताओं सहित कम्युनिस्ट मीडिया तक पार्टी का अंदरूनी मामला बता रहा है? क्या यह कम्युनिस्ट मीडिया भी अपनी महिला कर्मचारियों को यही समझता है, आदमियों की जागीर? तभी वह केजरीवाल से ही नहीं बल्कि इन सभी नेताओं से यह प्रश्न नहीं कर पा रहा है कि एक मुख्यमंत्री के घर पर एक राज्यसभा सांसद के साथ मारपीट “अंदरूनी मामला” कैसे हो सकती है?
यह औरतों को परदे में कैद करके उनका शोषण करने के बहाने खोजती है, यह पर्दा किसी का भी हो सकता है जो इंडी गठबंधन के नेताओं ने अपनी अपनी पार्टी का बना लिया है और पार्टी के भीतर हो रहे यौन शोषण पर बाहर बोलना मना है, क्योंकि उनके अनुसार आदमियों के पापों को छिपाना ही “अच्छी औरत” का काम है! और ये पार्टियां अपनी महिला कार्यकर्ताओं को “अच्छी औरत” का तमगा तभी देंगी जब भीतर की गंदगी बाहर नहीं आने देंगी।
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