देश मे इन दिनों चुनाव हो रहे हैं और चुनावों मे लगातार वादे और दावे किए जा रहे हैं। मगर इन दावों और वादों में कई बार ऐसी भी बातें सामने आती हैं, जो देश को और समाज को पीछे ले जाने वाली होती हैं। जैसे इन दिनों एआईएमआईएम असउद्दीन ओवैसी लगातार अपने भाषणों मे कह रहे हैं। हालांकि हैदराबाद मे चुनाव हो गए हैं, मगर यह मुद्दा हैदराबाद का नहीं है और हो भी नहीं सकता है। यह मामला है महिलाओं का।
ओवैसी का हिजाब के प्रति प्यार किसी से छिपा हुआ नहीं है। पिछले दिनों जब कर्नाटक मे स्कूलों मे हिजाब पहनने को लेकर जो मुस्लिम लड़कियों का आंदोलन हुआ था, तब भी ओवैसी ने समर्थन किया था। वैसे हिजाब आदि किसी भी महिला की व्यक्तिगत पसंद है, और वह अपनी मर्जी से इसे पहन सकती है, परंतु समस्या यह है कि हिजाब पहनने वाली महिला को ही महानता और सबसे पाक होने का प्रमाणपत्र देकर उन तमाम महिलाओं के संघर्षों पर पानी फेरना, जो लगातार मुस्लिम महिलाओं को परदे से बाहर निकालकर उन्हें इल्म की रोशनी मे लाने का प्रयास कर रही हैं।
मगर मुस्लिम वोटों के मसीहा कहलाने वाले नेताओं को हिजाब में ही महिला मजबूत लगती है और इतनी मजबूत कि यदि भारत मे कोई मुस्लिम महिला प्रधानमंत्री बनेगी तो वह हिजाब पहनने वाली बनेगी। रविवार को ओवैसी ने कहा कि देश मे ऐसा समय आने वाला है जब देश का नेतृत्व एक ऐसी मुस्लिम महिला करेगी जो हिजाब पहने हुए होगी।
ओवैसी का पागलपन इस सीमा तक हिजाब वाली महिला को लेकर है कि ओवैसी का कहना है कि एक दिन वह हिंदुस्तान मे आएगा जरूर कि जब हिंदुस्तान की प्रधानमंत्री एक हिजाब पहनने वाली महिला होगी, हो सकता है कि वह उस दिन तक जिंदा न रहें, मगर वह दिन आएगा जरूर!
https://twitter.com/Sanatan_Prabhat/status/1789913827204595937?
यह बहुत हैरान करने वाली बात है कि हिंदुस्तान के तख्त पर एक हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिला का राज देखने का सपना देखने वाले ओवैसी ने अपनी पार्टी का प्रतिनिधित्व एक हिजाब पहनने वाली महिला के हाथों मे क्यों नहीं दिया है? क्या उनकी तमन्ना यह नहीं होनी चाहिए कि उनकी पार्टी पर एक हिजाब वाली महिला बैठे? क्या उन्हें यह उदाहरण पेश नहीं करना चाहिए कि उनकी पार्टी की कमान एक हिजाब पहनने वाली महिला के हाथों मे हो?
ओवैसी यह दावा करते हैं कि हिंदुस्तान के तख्त पर हिजाब पहनने वाली महिला काबिज हो, मगर ये वही ओवैसी हैं जो संसद मे महिला आरक्षण का विरोध करते हैं, और जो मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाले तमाम अत्याचारों पर चुप रहते हैं। आज तक ओवैसी ने कभी भी उन महिलाओं के पक्ष मे आवाज नहीं उठाई है, जो लगातार ही हलाला, मुत्ता निकाह आदि के खिलाफ लड़ाई लड़ रही हैं। ओवैसी कभी भी उन महिलाओं के लिए सामने नहीं आते हैं, जो महिलाएं जहेज का शिकार होती हैं।
मगर ओवैसी जैसे नेता जो खुद को मुस्लिमों का मसीहा मानते हैं, वे मुस्लिम महिलाओं की उस स्थिति के विषय कुछ भी नहीं कहते हैं, जो उनके परिवार मे तमाम सामाजिक कुरीतियों के चलते होती हैं।
ईरान और अफगानिस्तान जैसे देशों मे हिजाब के चलते महिलाओं की बुरी दशा
जिस समय ओवैसी भारत में यह तमन्ना कर रहे हैं कि एक दिन हिंदुस्तान के तख्त पर हिजाब वाली महिला बैठेगी तो उसी समय विश्व मे ईरान और अफगानिस्तान जैसे देशों में हिजाब के चलते मुस्लिम महिलाओं के जीवन के साथ लगातार खेल हो रहे हैं।
पिछले वर्ष अफगानिस्तान मे भीषण भूकंप आया था, जिसमें 2000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी। भूकंप से मृत्यु सहज है, और वह भी अफगानिस्तान जैसे देश में, जहां पर आधारभूत संरचनाओं का भी अभाव है, जहाँ अस्थिरता ही आदि। परंतु मरने वालों मे बच्चों और महिलाओं का अधिक शामिल होना हैरान करता है।
यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार आपदाओं के कारण “तहजीबी शर्तों” के कारण महिलाएं अधिक पीड़ित होती हैं। उसका कहना है कि तहजीब के कारण महिलाएं दूसरे परिवारों या पड़ोसियों के साथ टेंट साझा नहीं कर सकती हैं और यहाँ तक कि यदि उनका कोई पुरुष रिश्तेदार ऐसा नहीं है कि जो उनकी ओर से जाकर सहायता ले सके तो मानवीय सहायता भी नहीं मिल पाती है।
कुछ अपुष्ट रिपोर्ट्स का यह भी कहना है कि चूंकि बिना हिजाब या बुर्के के महिलाएं बाहर नहीं आ सकती हैं, इसलिए महिलाएं इन आपदाओं का स्वाभाविक शिकार हो जाती हैं।
तो क्या ओवैसी भी भारत की कहीं मुस्लिम महिलाओं को मानसिक रूप से हिजाब की कैद मे इस सीमा तक बांध देना चाहते हैं कि किसी भी आपदा की स्थिति में वे पहले यह देखें कि उन्होनें हिजाब आदि पहना है या नहीं और फिर वे बाहर आएं? और तब तक वे शिकार हो जाएं?
या फिर वह ईरान जैसा हाल चाहते हैं कि जहां लड़कियों को जबरन हिजाब पहनने पर इस सीमा तक बाध्य किया जा रहा है, कि लड़कियां ही नहीं बल्कि एक बहुत बड़ा वर्ग विद्रोह कर रहा है। अफगानिस्तान मे काबुल मे लड़कियों को सही तरीके से हिजाब न पहनने के “दोष” के कारण गिरफ्तार कर लिया गया था।
महिलाओं को हिजाब की कैद मे रखने की सनक आखिर मुस्लिमों का रहनुमा मानने वाले लोगों मे क्यों होती है? आखिर क्यों मुस्लिम लड़कियों की मूलभूत आवश्यकताओं पर या वे किन समस्याओं का सामना कर रही हैं, उन पर बात नहीं होती? क्यों उन्हें केवल हिजाब की कैद मे आकर ही महान बताने की एक सनक है? जिसकी मर्जी है वह हिजाब पहने और जिसकी नहीं, वह न पहने, इतनी सरल बात लोगों की समझ में क्यों नहीं आती?
समस्या हिजाब या किसी परिधान से नहीं है और न ही हो सकती है, समस्या उसके ऐसे महिमामंडन से है, कि हिजाब पहने हुई मुस्लिम महिला हिंदुस्तान की गद्दी पर बैठेगी। क्या भारतीय मुस्लिम महिलाओं की पहचान हिजाब से है या फिर उन तमाम मुस्लिम लड़कियों से जो हर प्रकार की बाधाओं से पार पाकर अपने जीवन मे उपलब्धियां प्राप्त कर रही हैं।
प्रश्न मुस्लिम के रहनुमा नेताओं से यही है कि आखिर मुस्लिम महिलाओं की पहचान को हिजाब तक ही सीमित क्यों करना?
टिप्पणियाँ