भारत के पड़ोसी कंगाल इस्लामी देश पैसे के लिए जिस तरह हाथपैर मार रहा है, वह हास्यास्पद ही कहा जाएगा। आतंकवादियों को पोसने और भारत के जम्मू कश्मीर में जिहादियों को भाड़े पर भेजकर हत्याएं कराने में सारा पैसा खर्च करने वाले पाकिस्तान की आज स्थित दयनीय हो गई है।
मजहब के नाम पर अलग देश बनाकर जिन्ना ने न सिर्फ पड़ोसी भारत के लिए एक नासूर पैदा किया है बल्कि आज यह दुनियाभर में इस्लामीद जिहाद की फैक्ट्री के नाम से जाना जाने लगा है। आज वहां रोटी के ऐसे लाले पड़े हैं कि प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ को आखिर सभी सरकारी कंपनियों को बेचने का फैसला लेना पड़ा है।
इस फैसले की घोषणा करते हुए, रुआंसे स्वरों में शाहबाज ने कहा कि सरकार का काम कारोबार करना थोड़े है। दरअसल वहां की सरकार के पास कंपनियों में काम करने वालों को पगार तक देना का पैसा नहीं है। आईएमएफ से जो थोड़—बहुत कर्ज मिलता है उसे नेता अपनी बंदरबांट में लुटा लेते हैं और बचेखुचे से आम जन को आटा मुहैया करा देते हैं जिससे उनके चूल्हे जलते रहें।
प्रधानमंत्री शाहबाज का सरकारी कंपनियों को बेचने के पीछे एक तर्क यह भी है कि इससे करदाताओं से मिलने वाले पैसे को वे बचा सकेंगे। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे जिन्ना के उस इस्लामी देश में कर देने वाले भी उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। ज्यादातर लोग तो अफसरों की हथेलियां गर्म करके बच निकलते हैं।
पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय कर्ज दाताओं से इतना पैसा ले रखा है कि उसके लिए ब्याज तक चुकाने की ताकत नहीं बची है। लेकिन अब सरकारी खजाने में कुछ पैसे देखने की उम्मीद से पाकिस्तान सरकार ने लगभग सभी सरकारी कंपनियों को बेचकर खुद को उबारने का सपना देख रहा है। शाहबाज शरीफ ने यह फैसला कल निजीकरण मंत्रालय और इस्लामाबाद निजीकरण आयोग के साथ बैठक करने के बाद लिया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, शरीफ को अगर लगता है कि वे सरकारी कंपनियों को बेचकर करदाताओं का पैसा बचा सकते हैं तो यह उनकी निहायत अपरिपक्वता ही कही जाएगी। उन्हें लगता है कि इस बचे पैसे को वे आम लोगों को विभिन्न प्रकार की सेवाएं उपलब्ध करा पाएंगे।
शरीफ ने सरकार को कारोबारी झंझटों से मुक्त रखने की बात की और कहा कि इस्लामाबाद की सरकार का काम तो बस कारोबार और निवेश लायक माहौल बनाने भर का है। दिलचस्प बात है कि इस निजीकरण मुहिम की शुरुआत बरसों से तंगी में चल रही सरकारी विमान सेवा पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइन्स यानी पीआईए को बेचने से की जानी है और टेलीविजन पर इसका सीधा प्रसारण किया जाना है।
सरकारी कंपनियों को उद्योगपतियों के हाथों बेचने के इस कदम में वे कंपनियां शामिल नहीं होंगी जो शरीफ सरकार को रणनीतिक महत्व की लगती हैं। बताते हैं, प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने इस कदम पर आगे बढ़ने का हरी झंडी दिखा दी है। उन्होंने तमाम मंत्रालयों को कह दिया है कि निजीकरण के इस प्रयास में आयोग की मदद करने से पीछे न हटें।
शरीफ ने सरकार को कारोबारी झंझटों से मुक्त रखने की बात की और कहा कि इस्लामाबाद की सरकार का काम तो बस कारोबार और निवेश लायक माहौल बनाने भर का है। दिलचस्प बात है कि इस निजीकरण मुहिम की शुरुआत बरसों से तंगी में चल रही सरकारी विमान सेवा पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइन्स यानी पीआईए को बेचने से की जानी है और टेलीविजन पर इसका सीधा प्रसारण किया जाना है। बाकी कंपनियों को भी टेलीविजन पर सबके सामने बेचा जाएगा। बहुत संभव है कि पाकिस्तान की सरकारी विमान सेवा इसी महीने के आखिर तक बिक जाएगी।
सरकारी सूत्रों ने बताया है कि निजीकरण की इस मुहिम में शुरुआत उन सरकारी कंपनियों से होगी जो बहुत वक्त से घाटे में चल रही हैं। इसके लिए एक एक्सपर्ट कमेटी बना दी गई है। फिलहाल इस कमेटी ने 24 ऐसी सरकारी कंपनियों की सूची बनाई है जिनको बेचने की ओर तत्काल बढ़ा जा सकता है।
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