नेपाल में राजनीतिक उठापटक का दौर एक बार उभरता जा रहा है। 100 रु. के नए नोट से उपजा तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा है कि इस बीच उप प्रधानमंत्री उपेंद्र यादव द्वारा सरकार से इस्तीफा देते हुए समर्थन वापस खींचने के चलते काठमांडू में सियासी बयार गर्माती महसूस हो रही है। उपेन्द्र यादव ने कल प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उपाख्य प्रचंड को पद त्याग का पत्र सौंप दिया। इतना ही नहीं, उनके दल ने प्रचंड सरकार से समर्थन भी खींच लिया है।
आज की परिस्थिति में साफ है कि प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल की गठबंधन सरकार खासे संकट में आ गई है। उप प्रधानमंत्री उपेन्द्र यादव वरिष्ठ मधेशी नेता माने जाते हैं। उनके इस्तीफे और उनकी पार्टी के सरकार से समर्थन लौटा लेने का कोई छोटा—मोटा असर नहीं पड़ेगा बल्कि इसके दूरगामी परिणाम आंके जा रहे हैं। यादव स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी भी संभाले हुए थे। यादव के नजदीकी सूत्रों के अनुसार, अकेले यादव ने नहीं, बल्कि नेपाल के वन और पर्यावरण मंत्री दीपक कार्की भी इस्तीफा सौंप चुके हैं। कार्की भी यादव के दल के वरिष्ठ नेता हैं।
इधर उपेन्द्र यादव का दल जनता समाजवादी पार्टी नेपाल (जेएसपी-नेपाल), जिसके वे अध्यक्ष हैं, अब दो फाड़ हो चुकी है। यादव की जेएसपी-नेपाल के एक बड़े नेता अशोक राय ने जनता समाजवादी पार्टी (जेएसपी) के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बना ली है। इतना ही नहीं इस पार्टी को चुनाव आयोग ने मान्यता भी दे दी है।
मधेशी नेता उपेंद्र यादव के दल जेएसपी-नेपाल के सदन में 12 विधायक थे। लेकिन अब पार्टी बंट गई है सो अब सदन में उनके हिस्से वाले दल के सिर्फ पांच ही विधायक बचे हैं। जबकि अशोक राय की नई बनी पार्टी के छह विधायक सदन में हैं।
उपेन्द्र यादव का दल जनता समाजवादी पार्टी नेपाल (जेएसपी-नेपाल), जिसके वे अध्यक्ष हैं, अब दो फाड़ हो चुकी है। यादव की जेएसपी-नेपाल के एक बड़े नेता अशोक राय ने जनता समाजवादी पार्टी (जेएसपी) के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बना ली है। इतना ही नहीं इस पार्टी को चुनाव आयोग ने मान्यता भी दे दी है।
लेकिन सवाल है कि क्या उपेन्द्र यादव के दल के सरकार से समर्थन लेने से प्रचंड सरकार अल्पमत में आ जाएगी, क्या सरकार के बने रहने पर सवालिया निशान लग गया है? तो जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री प्रचंड की अगुआई वाले सत्ता में बैठे गठबंधन को फिलहाल कोई खतरा नहीं है क्यों बहुमत अब भी उनके पाले में है। प्रचंड की पार्टी के साथ सीपीएन-यूएमएल के 77 विधायक हैं तो माओवादी सेंटर के 32, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के 21, नई बनी जनता समाजवादी पार्टी के सात तथा सीपीएन-एकीकृत के 10 विधायक भी साथ हैं। सदन में बहुमत के लिए 275 सदस्यों में से 138 सीटें चाहिए होती हैं।
वर्तमान परिस्थितियों पर देश के पर्यावरण मंत्री रहे सीपीएन माओवादी सेंटर के नेता सुनील मनंधर कहते हैं कि जेएसपी-नेपाल के सरकार से समर्थन लौटाने से प्रचंड की गठबंधन सरकार पर कोई बड़ा खतरा नहीं आया है। लेकिन यह तो तय है कि सरकार अब लंबे समय तक शायद न बनी रह पाए। चर्चा यह भी चल रही है कि प्रधानमंत्री प्रचंड की सरकार को अपदस्थ करने के लिए विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस जीतोड़ प्रयास कर रही है।
नेपाल में पिछले लंबे समय से रही राजनीतिक अस्थिरता का परोक्ष रूप से कम्युनिस्ट चीन को फायदा मिल रहा है। कम्युनिस्ट ड्रैगन के दबाव के बीच प्रचंड सरकार कोशिश में थी कि सत्ता कुछ साल के लिए स्थिर रहे, लेकिन वहां की राजनीति सीधी पटरी पर चलने की बजाय प्रयोगधर्मी जैसी हो गई है। गठबंधन बनते तो हैं, लेकिन तटस्थ नहीं रहते। आने वाले वक्त में प्रचंड सरकार का क्या होगा, इस पर कुछ भी कह पाना फिलहाल असंभव है।
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