केरल में पिनाराई विजयन की अगुवाई वाली वामपंथी सरकार की गलत नीतियों के कारण राज्य में कंगाली चरण पर है। हालात ये हैं कि नए वित्तीय वर्ष के शुरू होने के डेढ़ माह बीतने के बाद भी यहां के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और मेडिकल कॉलेजों में अब दवाइयों की भारी किल्लत हो गई है। इस कारण से सरकारी अस्पतालों पर निर्भर आम जनता को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
केरल कौमुदी की रिपोर्ट के मुताबिक, इलाज के लिए दूर-दराज से आने वाले मरीजों को फॉर्मेसी के चक्कर लगाने पड़ पड़ रहे हैं। बावजूद इसके लोगों को दवाइयां नहीं मिल रही हैं। दावा किया जा रहा है कि केरल के अधिकतर सरकारी स्कूलों में शुगर के मरीजों के लिए मेटफॉर्मिन और ग्लिमेपाइराइड, थायराइड के लिए थायरोक्सिन सोडियम, कोलेस्ट्रॉल के लिए एटोरवास्टेटिन और आयरन और कैल्शियम की गोलियों समेत कई जीवनरक्षक दवाओं का भारी किल्लत है। एंटीबायोटिक के तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एमॉक्सिसिलीन टैबलेट की खासी किल्लत है। इंसुलिन भी उपलब्ध नहीं है।
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बताया जाता है कि हर वित्तीय वर्ष में जरूरी दवाओं के लिए इंडेंट तैयार कर KMSCL के जरिए इसे अस्पतालों में बांटा जाता था। इस साल के लिए दवाओं का इंडेंट पिछले साल अक्तूबर में ही ले लिया गया था, लेकिन अभी तक दवाओं का स्टॉक नहीं मिला। गौरतलब है कि फरवरी और मार्च से ही केरल में दवाओं की खासी किल्लत बनी हुई है।
दवा कंपनियों का 470 करोड़ रुपए केरल सरकार पर बकाया
केरल में दवाओं की कमी का सबसे बड़ा कारण ये है कि पिनाराई विजयन सरकार पर दवा बनाने वाली कंपनियों का 470 करोड़ रुपए से अधिक का बकाया है। अब जब तक बकाया नहीं मिलता फ्री में तो दवाएं मिलेगी नहीं। दवा कंपनियों ने भी दवाएं देने से इंकार कर दिया है। इसके अलावा नए टेंडर वाली कंपनियों के पास जरूरी दवाएं भी नहीं है। केरल सरकार का कुप्रबंधन इस समस्या के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है।
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