इस ‘रहस्योद्घाटन’ का समय देखिए! इस पर गंभीरता से विचार कीजिए। भारत का समाज अफवाह प्रेमी है। मैं पिछले एक घंटे में कई लोगों की पोस्ट पढ़ चुका हूं। टिप्पणियां भी ध्यातव्य हैं। वैक्सीन बनाने वाली कंपनी ने पलीता लगाकर कह दिया कि अत्यंत दुर्लभ है साइड इफेक्ट्स! लेकिन हो सकता हैं ‘अत्यंत दुर्लभ’ नेपथ्य में चला गया, खतरा मंच पर प्रकट हो गया। अब जिन युवा लोगों की असामान्य मृत्यु इस कालखंड में हुई, उन सबके संबंधियों ने मान लिया कि मृत्यु का कारण वैक्सीन ही है। जिसका कोई पैथोलॉजिकल या वैज्ञानिक आधार नहीं हो सकता। बहुत सारे लोगों को इस समाचार के बाद से थकावट और सांस फूलने की बीमारी का भी अनुभव होने लगा है। अब जिस किसी की सांस फूलेगी या थकावट होगी, उसका कारण कोविशील्ड वैक्सीन होगा! एकदम प्रामाणिक!!!
हर युवा मृत्यु अत्यंत पीड़ादायी है। किन्तु डेढ़ सौ करोड़ की जनसंख्या वाले देश में उन मौतों का अनुपात निकालिए। पूरी जीवनचर्या दूषित है। हवा, पानी, भोजन सब विषाक्त हैं। छोटे-छोटे बच्चों के पेट निकल रहे हैं। लड़कियां बेडौल और भयंकर मुटा रही हैं। पिज्जा, बर्गर, कोक, दारू, सिगरेट धकाधक चल रही। रोज देखता हूं। दसवीं की लड़कियां सिगरेट पी रही हैं। धुआं भीतर खींचने का दम नहीं लेकिन दिखाना है कि सिगरेट पीती हैं। कोई बताएगा कि छोटी आयु में होने वाली अकाल मृत्यु का कारण वह जीवनचर्या नहीं है? कोई वैज्ञानिक प्रमाण दे दीजिए। अब आप कल्पना कीजिए कि उस महामारी के विकराल समय में अगर यह वैक्सीन न दी गई होती तो क्या हुआ होता। तब आप लाखों मौतों के लिए सरकार को कोसते कि वैक्सीन नहीं दिलवा सके।
यह कमाल की खबर आई है। चैनल पर बैठे डाक्टर ज्ञान देकर समझा भी रहे कि देखिए, रेयरेस्ट आफ दी रेयर हैं साइड इफेक्ट्स, लेकिन पत्रकार से बड़ा ज्ञानी तो ब्रह्माण्ड में हुआ नहीं। हो सकता नहीं। इसलिए पत्रकार आपको संदेह की खबरों के साथ छोड़ जाता है। आप देखते रहिए…। वैक्सीन का दूसरा डोज लगे हुए दो वर्ष से अधिक हो चुके हैं। डाक्टर कह रहे कि साइड इफेक्ट्स इतने लंबे समय तक नहीं हो सकते। एक छोटे समय में उनका खतरा अधिक है। लेकिन अब तो इस समाचार को फैला दिया गया है। अब यह हर जगह चर्चा और भय के केन्द्र में है। आम भारतीय इस समाचार और वृहत्तर परिदृश्य में हुई नगण्य असामान्य मृत्यु की घटनाओं पर विचार नहीं करेगा। वह तो बस दोष देगा। एक बड़ा कांड कर दिया गया है।
जबकि सत्य यह है कि कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी ने ब्रिटिश कोर्ट में कई स्वतंत्र अध्ययनों के परिणाम रखे हैं जो बताते हैं कि यह वैक्सीन कोविड से बचाव में बहुत प्रभावी सिद्ध हुई।
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