इन दिनों पूरा देश 2024 के आम चुनाव में रत है एवं जनादेश का इंतजार कर रहा है। लेकिन इस बीच कर्नाटक से एक वीभत्स घटना की खबर आई। हुबली जिले में फैयाज ने प्रौद्योगिकी की छात्रा नेहा हिरेमठ की नृशंस हत्या कर दी। नेहा के पिता कांग्रेस पार्षद निरंजन हिरेमठ ने कहा कि यह ‘लव-जिहाद’ है। यह हिंदू लड़कियों को निशाना बनाने और व्यवस्थित रूप से उनका पीछा करने, उन्हें प्रेम पाश में फंसाने की एक विस्तृत साजिश है। यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है। लेकिन राज्य में कांग्रेस के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री इसे सामान्य प्रेम प्रसंग बता कर मामले पर लीपापोती करने में जुटे हुए हैं। दूसरी ओर, वामपंथी एवं पत्रकारों की एक फौज जिहादियों का बचाव कर रही है। ऐसी प्रामाणिक घटनाओं के बावजूद भारत में मतिभ्रम से पीड़ित आम जनमानस का एक वर्ग एवं वामपंथ के कर्क रोग से संक्रमित तथाकथित बुद्धिजीवियों का एक समूह ‘लव-जिहाद’ के कट्टरपंथी कृत्य की सत्यता में विश्वास नहीं करता। वह इसके सामान्यीकरण का प्रयास करता है ताकि देश की छद्म गंगा-जमुनी संस्कृति बनी रहे।
ऐसे बौद्धिक दुष्कर्मियों के प्रभाव से बचने के लिए ‘लव-जिहाद’ की समस्या का नीर-क्षीर विश्लेषण आवश्यक है। ‘जिहाद’ मूलत: अरबी शब्द ‘जुहद’ से उत्पन्न हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, ‘कोशिश करना।’ इस्लाम में इसका अर्थ है ‘जिहाद फी सबिलिल्लाह’ अर्थात् ‘अल्लाह के मार्ग में जिहाद करना।’कुरान में यह शब्द 35 बार आया है। तीन चौथाई कुरान मक्का में ‘नाजिल’ हुई थी, किन्तु यहां जिहाद संबंधित पांच आयतें ही हैं। इसकी अधिकतर महत्वपूर्ण आयतें मदीना में नाजिल हुईं, जिसकी 17 सूराओं की लगभग 250 आयतों का ‘कुरानिक कांसेप्ट आफ वॉर’ में प्रयोग हुआ है तथा गैर-मुस्लिम से जिहाद या युद्ध करने संबंधी अनेक नियमों, उपायों एवं तरीकों को प्रामाणिकता के साथ बतलाया गया है।
जिहाद का मतलब
इस्लामी फिक्ह (कानून की किताब) में जिहाद का अर्थ है, ‘गैर-मुस्लिमों को मुसलमान बनाने के लिए युद्ध करना।’ जैसे- ‘हनफी फिक्ह’ (699-767 ए.डी.) के अनुसार, ‘‘जिहाद का मतलब है अपनी जान, माल और वाणी से अल्लाह के मार्ग में लड़ने के लिए शामिल होना तथा गैर-मुसलमानों को सच्चे मजहब इस्लाम की ओर आने का निमंत्रण देना और यदि वे इस सच्चे मजहब को स्वीकारने के लिए तैयार न हों, तो उनके विरुद्ध युद्ध करना।’’ ‘मलिकी फिक्ह’ (715-795 ए.डी.) के अनुसार, जिहाद का अर्थ है, ‘‘मुसलमान अल्लाह के मजहब को बढ़ाने के लिए काफिरों से युद्ध करें।’’ ‘शफीई फिक्ह’ (767-820 ए.डी.) के अनुसार जिहाद का मतलब है, ‘‘अल्लाह के मार्ग में लड़ने के लिए जी-तोड़ कोशिश करना।’’ ‘हनबली फिक्ह’ (780-855 ए.डी.) के अनुसार, जिहाद का मतलब है ‘गैर-मुसलमानों से युद्ध करना।’ सऊदी अरब के हज मंत्रालय से हिजरी-1413 में प्रमाणित कुरान के अंग्रेजी अनुसार में जिहाद संबंधित 83 आयतों में प्रयुक्त ‘स्ट्राइब’ का शाब्दिक अर्थ है, ‘युद्ध करना या कत्ल करना।’ यानी इस विश्लेषण के हिसाब से यह बात तय है कि जिहाद वास्तव में गैर-मुस्लिमों के प्रति हिंसक अवधारणा है।
अब जिहाद और गैर-मुस्लिमों, विशेषकर महिलाओं के प्रति इस्लामिक यथार्थ को आसमानी किताब कुरान के नजरिये से समझिए। मदीना में उतारी गई सूरा अल बकर की कुछ आयतें यथा- आयत संख्या 216 और रुकूअ 26 के मुताबिक, ‘‘इन्कारियों के मुकाबले में जंग करने का अब तुम्हें हुक्म दिया जा रहा है।’’ आयत संख्या 221, रुकूअ 27 के अनुसार, ‘‘मुशरिक औरतों को निकाह में न लाओ, जब तक कि ईमान न लाएं। ईमान वाली खादिमा और कनीज ही अच्छी हैं, चाहे तुम्हें शिर्क करने वाली कितनी ही अच्छी लगे।’’ आयत 223 में कहा गया है, ‘‘तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेती हैं, जाओ अपनी खेती में जैसे चाहो।’’ मदीने में ही उतारी गई ‘आले इमरान’ की आयत संख्या 12 के मुताबिक, ‘‘इन्कारियों से कह दो कि तुम बहुत जल्द कुचल कर ढकेल दिए जाओगे, जहन्नम की तरफ और क्या ही बुरी जगह है जहां तुमको जमा किया जाना है।’’
आयत संख्या 28 कहती है, ‘‘ईमान वालों के होते हुए मुन्किरों को अपना दोस्त बना लेना, यह काम ईमान वालों का नहीं और जो कोई ऐसा करेगा उसका कोई ताल्लुक अल्लाह से नहीं। हां, यह और बात है कि फसाद का अंदेशा हो और उनसे बचाव के लिए कोई ऐसा करे और अल्लाह अजाब के फैसले से तुमको बचा लेना चाहता है और हर एक को अल्लाह के दरबार में हाजिर होना है।’’ आयत संख्या 56 के अनुसार, ‘अल्लाह कहता है, ‘बस जो काफिर हुए हैं, उन्हें सख्त अजाब दूंगा दुनिया व आखिर में और कोई भी उनकी मदद के लिए नहीं आ सकेगा।’’ आयत संख्या 149 के अनुसार, अल्लाह कहता है, ‘ऐ ईमान वालो! अगर तुम मुन्किरों का कहा मानोगे तो वह तुम्हें उल्टे पांव फेर देंगे, फिर नुकसान में जा पड़ोगे।’’
सूरा अन-निसा की आयत संख्या 3 के हिसाब से ‘‘कनीज का अर्थ होता है जिहाद में हाथ लगी औरत जिसके तुम मालिक बन गए हो।’’ इसी के अंतर्गत पैरा 5 की आयत संख्या 24 के मुताबिक, मुसलमानों के लिए निकाह में बंधी यानी शादीशुदा औरत से निकाह हराम है, लेकिन कनीजें यानी लड़ाई में हासिल दुश्मनों की औरतें, जिनके कि ये ’मालिक’ बन गए हैं, उनको अपने हरम में शामिल करने की छूट है। आयत संख्या 34 के अनुसार, ‘‘जब तुमको औरतों की नाफरमानी का अंदेशा हो, तो पहले उनको जबानी नसीहत दो और फिर न मानें तो मारो।’’ इनके अतिरिक्त कुछ अन्य आयतें देखिए, ‘‘हे नबी! काफिरों और मुनाफिकों से जिहाद करो और उनके साथ सख्ती से पेश आओ, उनका ठिकाना जहन्नम है।’’ (9:73, पृष्ठ-380)
‘‘फिर हराम के महीने बीत जाएं तो मुशरिकों को जहां कहीं पाओ कत्ल करो और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। यदि वे तौबा कर लें और नमाज कायम करें और जकात दें, तो उनका मार्ग छोड़ दो।’’ (9:5, पृष्ठ-368)
‘‘यदि तुम (जिहाद के लिए) न निकलोगे तो अल्लाह तुम्हें दु:ख देने वाली यातनाएं देगा और तुम्हारे सिवा किसी और गिरोह को लाएगा और तुम अल्लाह का कुछ न बिगाड़ पाओगे।’’ (9:39, पृष्ठ-374)
कुरान और हदीस में ऐसी कितनी आयतें हैं, जो गैर-मुस्लिमों के लिए बेहद आपत्तिजनक हैं। पहला, इस्लाम में औरतें यौन पिपासा शांत करने का जरिया हैं। मुसलमान उनका शरीर जैसे चाहें वैसे इस्तेमाल कर सकते हैं। दूसरा, इस्लाम के नजरिये से मुशरिक-काफिर महिलाएं केवल वस्तु हैं, जिन्हें वे गुलाम बना सकते हैं और उनके साथ जैसे चाहें सुलूक कर सकते हैं। तीसरा, इनकार करने वाली औरतों को पीटना जायज है। चौथा, जिहाद में शामिल न होने वाले को अल्लाह की ओर से खुली धमकी भी है। पांचवां, गैर-मुस्लिमों के लिए इस्लाम में कोई स्थान नहीं है। उन्हें न मित्र बनाया जाना चाहिए और न ही उनसे कोई संबंध रखना चाहिए। मित्रता की एक ही सूरत है, जब तक मुसलमान को उस काफिर की जरूरत है। छठवां, गैर-मुसलमानों के विरुद्ध युद्धरत रहना, उनका कत्ल करना ‘सवाब’ यानी पुण्य का काम है।
मुस्लिम महिलाएं भी पीछे नहीं
चाहे राजस्थान के कांग्रेस नेता और पूर्व राज्यमंत्री गोपाल केसावत की बेटी अभिलाषा को भगाने वाला अकरम हो, चंडीगढ़ की ममता की दुष्कर्म के बाद हत्या करने वाला मोहम्मद शरीक हो, भागलपुर में बर्बर तरीके से नीलम देवी के हाथ, कान, स्तन काट डालने वाले सगे भाई शखील और शैखुद्दीन हों, ग्रेटर नोएडा में आशीष ठाकुर बन कर हिंदू लड़की को फांसने वाला हसीन शेफी, मुंबई में मॉडल मानसी दीक्षित को काट कर सूटकेस में भरने वाला मोहम्मद मुजम्मिल, झारखंड में दूसरी पत्नी रुबिका पहाड़िन के 50 टुकड़े करने वाला दिलदार अंसारी, मध्य प्रदेश के गुना में बलात्कार करने वाला, मारपीट और पीड़ित हिंदू लड़की के गुप्तांगों में मिर्च डालने वाला अयान पठान हो, दिल्ली में श्रद्धा वालकर को टुकड़ों में काटने वाला आफताब पूनावाला हो या कर्नाटक में नेहा हिरेमठ का हत्यारा फैयाज, इन सभी ने वही किया, जैसा इनके ‘मजहबी उसूलों’ में कहा गया है।
उदयपुर में कन्हैया लाल के हत्यारे और बदायूं में दो बच्चों की हत्या कर उनका खून पीने वाला साजिद मजहब से प्रेरित था। इस ‘मजहबी सवाब’ के कार्य में मुस्लिम महिलाएं भी लिप्त हैं। इंदौर में गिरफ्तार इवेंट मैनेजर सना खान हिंदू छात्राओं पर कन्वर्जन का दबाव बनाती थी तथा उन्हें मुसलमानों से निकाह करने के लिए कई तरह के लालच देती थी। कर्नाटक में एक विवाहित हिंदू महिला का बलात्कार करने और उसे जबरदस्ती बुर्का पहनाने के अपराध में आरोपी रफीक की पत्नी ने सहयोग दिया। महाराष्ट्र में मुस्लिम बिल्डर द्वारा हिंदू इंजीनियर लड़की का जबरन कन्वर्जन करवाना या त्रिपुरा में जिहादी मुस्तफा द्वारा नाबालिग हिंदू लड़की का अपहरण, इन दोनों अपराधों में भी मुस्लिम महिलाएं सहभागी थीं।
ये तथ्य हैं, जिन्हें तर्कों से पराजित नहीं किया जा सकता और न ही शब्दों के लाक्षणिक अर्थ तय कर उनकी वास्तविक क्रूरता को छिपाया जा सकता है। जिहाद का अर्थ वास्तव में वही है, जिसका इस्लामिक कट्टरपंथी अपने दुष्कृत्यों के समर्थन में प्रयोग कर रहें हैं यानी काफिर-मुशरिकों को पूरी तरह नेस्तोनाबूद कर देना। इसी प्रकार, ‘लव-जिहाद’ प्रेम के आवरण में यौन कुंठा एवं हत्याओं का मजहबी उन्माद है। हालांकि इस्लामिक विद्वानों और उनके चारण-भाट वामपंथियों के पास बहुत तर्क होंगे, लेकिन जो स्पष्ट लिखित है उसे कैसे झुठलाया जा सकता है?
यह कह कर कि जिहाद का अर्थ अपने अंदर की बुराई मिटाना या फलां सूफी ये कहते हैं या फलां किताब में ये लिखा है, केवल भ्रम प्रसार का तरीका है। इन्हें ‘सूरा अल बकर’ की आयत संख्या 42 के इस संदेश को भी याद रखना चाहिए, ‘‘सच को झूठ के साथ मत मिलाओ और जान-बूझ कर सच को छुपाओ मत।’’ लेकिन इन तथाकथित ईमान वालों से सत्य की उम्मीद करना मूर्खता होगी। आप इस विकृत मानसिकता का यह कहकर बचाव नहीं कर सकते कि इनका दिमागी संतुलन ठीक नहीं है, क्योंकि यदि ऐसा है तो इस पागलपन की स्थिति में भी इनका लक्ष्य निर्धारित एवं अपरिवर्तित होता है। जैसे कश्मीर में एक पुलिस अधिकारी की हत्या करने वाला या गोरखधाम मंदिर में हथियार लेकर जाने वाले, दोनों इस्लामी मान्यताओं के मुरीद जिहादियों के लक्ष्य हिंदू और उनके पूजागृह ही थे, न कि कोई मुस्लिम या मस्जिद।
इन मानसिक विकृतियों का एक दूसरा पक्ष भी है। 2014 में गोवा में आयोजित साहित्यिक समारोह ‘विचारों का भारतीय मेला’ में चर्चा के दौरान बेल्जियम के प्रसिद्ध विद्वान कोएनराड एल्स्ट ने इस्लाम के विषय में कहा था, ‘‘जो लोग इस्लाम की आलोचना करते हैं, वे मुसलमानों को कभी चोट नहीं पहुंचाते, बल्कि वे तो मानते हैं कि मुसलमान स्वयं इस्लामी विचारधारा के बंदी और पीड़ित हैं। इसलिए समस्या मुसलमान नहीं, ‘इस्लाम की कुछ चीजें’ है। अत: सारी जांच-परख और चर्चा इस्लामी सिद्धांतों, परंपराओं, कानूनों आदि की होनी चाहिए।’’ ऐसे मामलों के सारे अपराधी बिना अपवाद इस्लामिक मान्यताओं से जुड़े हुए हैं। उपरोक्त पंक्तियों में से एक भी यहूदी, ईसाई या किसी अन्य मत-पंथ की बात नहीं है, ऐसा क्यों है?
इस्लामिक मान्यताएं कर रहीं कुंठित
पाश्चात्य नीतिशास्त्रीय सिद्धांत के अनुसार, मनुष्य के व्यवहार की समस्याओं की तर्कसम्मत व्याख्या को तर्कसंगत वैज्ञानिक अभिवृत्ति या दृष्टिकोण (Rational scientific attitude) कहते हैं। इस्लामिक मान्यताओं में उलझकर मुसलमान वैचारिक दृष्टि से कुंठित और आस्था के बंधक हो चुके हैं। जर्मन दार्शनिक इमैनुअल काण्ट के शब्दों में, इस्लाम ने मुस्लिम समाज से ‘Freedom of will’ अर्थात् कर्म में संकल्प की स्वतंत्रता का अपहरण कर लिया है। निजी जीवन में वही मुसलमान वास्तव में उदार है, जो मजहबी मान्यताओं के नियमित अभ्यास से दूर है।
अत: कट्टरपंथी मुस्लिमों के इन क्रूर कृत्यों के वैचारिक मजहबी प्रेरणा-स्रोत को समझना जरूरी है। स्वीकार करना होगा कि इस संबंध में ‘शांति प्रेमी मजहब’ (रिलीजन आफ पीस) की आसमानी किताब ही इन शांति दूतों के जीवन कृत्यों की मुख्य प्रेरणास्रोत है। जो मजहबी मान्यताएं अपने अनुयायियों को इस बात के लिए प्रेरित करती है कि हत्या, बलात्कार जैसे विकृत कृत्य करके भी व्यक्ति पारलौकिक उपलब्धि पा सकता है, जन्नत जा सकता है। सनातन मान्यतानुसार, ‘सा विद्या या विमुक्तये’ अर्थात् विद्या वही है जो मुक्त करे। लेकिन जब ज्ञान ही व्यक्ति को पशुता और नृशंसता की ओर धकेलने लगे, तब तो मानवता त्राहिमाम ही करेगी।
इस्लाम जहां मुशरिकों (मूर्ति पूजक) से मित्रता रखने की भी इजाजत नहीं देता, वहां काफिरों (खुदा और कुरान में यकीन नहीं करने वाले) से प्रेम जैसी पवित्र भावना की कल्पना तो निरी मूर्खता है। इस्लामिक समाज की इस बर्बर सोच का आधार उसकी मजहबी मान्यताओं में निहित है। ‘लव-जिहाद’ इस्लामिक इतिहास के लिए एक पुरानी स्वीकृत अवधारणा है और भारत का सनातन समाज अनजाने में ही इसे मध्यकाल से भुगत रहा है।
अल्लाउद्दीन खिलजी द्वारा गुजरात के राजा रायकर्ण द्वितीय की पत्नी कमला देवी का अपहरण (1297 ई.) या चित्तौड़ के राणा रतन सिंह की पत्नी महारानी पद्मिनी के विरुद्ध यौन कुंठा (1303 ई.) या देवगिरि के राजा रामचंद्र देव की पुत्री झात्यपाली की मांग (1296 ई.) बहमनी सुल्तान ताजुद्दीन फिरोज द्वारा विजयनगर के सम्राट देवराय प्रथम की पुत्री की मांग, बाबर द्वारा चंदेरी युद्ध (जनवरी 1528) में मेदिनी राय की हत्या के पश्चात कब्जे में ली गईं उनकी दो पुत्रियों को अपने दोनों बेटों हुमायूं तथा कामरान को सौंपना, मुशरिकों के विरुद्ध जिहाद का ही हिस्सा है। लेकिन यह सब इतना भी सरल नहीं है।
इसकी पृष्ठभूमि में सुनियोजित रणनीति होती है। जब एक हिंदू लड़की मजहबी दुनिया में शामिल की जाती है, तब परोक्ष रूप से उसके समाज एवं परिवार के नैतिक बल एवं आत्मसम्मान को ध्वस्त किया जाता है ताकि उनकी मर्यादा को कलुषित किया जा सके। उदाहरणस्वरूप, आधुनिक समय तक मिस्र में मुसलमानों द्वारा ईसाई लड़कियों को कन्वर्ट करने के बाद गाजे-बाजे के साथ उसका जलूस निकालकर ईसाइयों को अपमानित किया जाता रहा है।
90 के दशक में जब कश्मीर से हिंदुओं को भगाया जा रहा था, तब उनसे अपनी महिलाओं को छोड़कर जाने को कहा गया था, क्योंकि इस अपरोक्ष युद्ध में हिंदू औरतें ‘माल-ए-गनीमत’ थीं। इस्लामिक समाज काफिरों-मुशरिकों की महिलाओं और बच्चियों को ‘खुम्स’ (लूट का माल ) एवं ‘माल-ए-गनीमत’ का हिस्सा कहता था। तब से लेकर अब तक इन कट्टरपंथियों की सोच नहीं बदली है। वे आज भी मुशरिकों की महिलाओं को ‘लौंडी’, ‘कनीज’ और ‘गुलाम’ बनाकर उनसे व्यभिचार को ‘पवित्र कार्य’ मानते हैं। आतंकी संगठन आईएसआईएस द्वारा सीरिया और ईराक में यजीदी लड़कियों को यौन गुलाम की तरह खरीदने-बेचने या उनका बलात्कार करने पर किसी भी मान्यता प्राप्त इस्लामिक संस्था ने गैर-इस्लामिक या हराम कहा?
जर्मनी में क्रिसमस और न्यू ईयर पर शरणार्थी मुस्लिमों द्वारा बलात्कार की शिकार महिलाओं के विरुद्ध अपने कुकर्मों को जायज ठहराते हुए इन जिहादियों का तर्क था कि ‘एक तो वे छोटे कपड़े पहने थीं और दूसरे गैर-मुस्लिम काफिर थीं, इसलिए उनका बलात्कार जायज है।’ श्रद्धा वालकर के हत्यारे आफताब को अपने कृत्य पर अफसोस नहीं था, क्योंकि जन्नत में हूरें उसका इंतजार कर रही हैं। वह डेटिंग एप से कई हिंदू लड़कियों को शिकार बना चुका था। यानी यह तय है कि हिंदू लड़की, चाहे वह श्रद्धा की तरह किसी जिहादी को स्वीकार करे या नेहा हिरेमठ की तरह अस्वीकार, परिणाम एक ही है-क्रूरतम हत्या।
जहांगीरपुरी में जिहादी आतंक
दिल्ली की जहांगीरपुरी में गत 26 अप्रैल को एक मुस्लिम युवा ने जे-ब्लॉक में रहने वाली एक हिंदू महिला की हत्या कर दी। उस महिला का दोष केवल इतना था कि वह उस जिहादी से अपनी बेटी को बचाने का प्रयास कर रही थी। पता चला है कि वह युवक काफी समय से इस महिला की बेटी के पीछे पड़ा था। इस कारण परिवार ने उसे पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया था। इससे वह युवक गुस्से में था। 26 अप्रैल को वह उस महिला के घर पहुंचा और लड़की के बारे में पूछने लगा। इसी बात पर बहस हो गई और उसने महिला को गोली मार दी। उसके साथ दो अन्य युवक भी थे।
हालांकि पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया है। 27 अप्रैल को विश्व हिंदू परिषद, दिल्ली के एक प्रतिनिधिमंडल ने पीड़ित परिवार से भेंट की और आश्वासन दिया कि दु:ख की इस घड़ी में पूरा हिंदू समाज परिवार के साथ है। प्रतिनिधिमंडल में विहिप, दिल्ली के अध्यक्ष कपिल खन्ना, मंत्री सुरेंद्र गुप्ता और संगठन मंत्री सुबोध शामिल थे। पीड़ित परिवार ने मांग की है कि इस निर्मम जिहादी को फांसी की सजा दी जाए। परिवार ने बताया कि इस जिहादी ने झूठा आयु प्रमाणपत्र देकर खुद को नाबालिग साबित करने की कोशिश की है। अगर पुलिस-प्रशासन उचित कार्रवाई नहीं करता और यह अपराधी छूट जाता है तो भविष्य में भी वे सुरक्षित नहीं रह पाएंगे।
हिंदू समाज पर खतरा
हिंदू समाज का हर तबका चाहे वह उच्च हो, माध्यम या निम्न, लंबे समय से इस षड्यंत्र की जद में है। अपने समय की विख्यात अभिनेत्री माला सिन्हा की बेटी प्रतिभा सिन्हा को पहले से शादीशुदा संगीतकार नदीम सैफी ने प्रेमजाल में फंसाया था। वही भगोड़ा नदीम, जो अंडरवर्ल्ड के साथ मिलकर टी सीरीज के मालिक गुलशन कुमार की हत्या के षड्यंत्र में शामिल था। लेकिन माला सिन्हा ने दृढ़ता दिखाते हुए अपनी बेटी को बचा लिया था। ऐसे ही 2007 में लक्स इंडस्ट्रीज के मालिक अशोक तोड़ी ने अपनी बेटी प्रियंका तोड़ी को भगाकर शादी करने वाले उसके शिक्षक रिजवान-उर-रहमान के चंगुल से बचाया था।
2020 में कानपुर में दो माह के भीतर ‘लव जिहाद’ के 11 मामले दर्ज किए गए थे। सामाजिक संस्थाओं द्वारा संस्थागत षड्यंत्र की आशंका जताने के बाद सरकार ने एसआईटी गठित कर जांच शुरू कराई। 2021 से अप्रैल 2023 तक केवल उत्तर प्रदेश में लव जिहाद के 427 मामले दर्ज हुए। इनमें नाबालिग लड़कियों के कन्वर्जन के 65 मामले थे। 833 लोग हिरासत में लिए गए। विशेष बात यह है कि अधिकतर मामले पॉक्सो के तहत दर्ज हैं।
इसी तरह, उत्तराखंड में 2023 के शुरूआती पांच महीनों में लव जिहाद के 48, जबकि पूरे वर्ष में 76 मामले दर्ज हुए। कमोबेश दूसरे राज्यों की भी यही स्थिति है। यह षड्यंत्र अब सरकारी महकमे तक पहुंच चुका है। हिंदुओं को अपमानित करने के लिए चिड़ियाघर में शेर-शेरनी का नाम क्रमश: ‘अकबर’ और ‘सीता’ रख दिया गया। विवाद बढ़ा तो सरकार ने दोषी अधिकारी को निलंबित कर दिया। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भी इसे उकसावे की कार्यवाही माना और ऐसे विवादों से बचने की नसीहत दी थी।
प्रो. शंकर शरण अपनी किताब ‘धर्म संस्कृति और राजनीति’ में इसकी विस्तृत विवेचना करते हैं। वे बताते हैं कि लव-जिहाद की संज्ञा भले ही नई हो, किन्तु यह कार्य पुराना है। इंग्लैंड में सिख समुदाय ने दो दशक पहले इसे झेला है। मुस्लिम युवक स्वयं को सिख बताते हुए सिख लड़कियों को फांस कर उनका कन्वर्जन करते थे। ब्रिटिश अखबार ‘डेली मेल’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, कई विश्वविद्यालयों में पुलिस ऐसे जिहादी संगठनों पर नजर रख रही है, जो कन्वर्जन कराते हैं।
इन संगठनों से जुड़े जिहादी सिख-हिंदू लड़कियों के साथ छल-प्रपंच, बदनामी का डर दिखाने से लेकर मारपीट तक करते थे। इस कारण असंख्य लड़कियों ने विश्वविद्यालय छोड़ दिया। ‘व्हाई वी लेफ्ट इस्लाम’ (न्यूयॉर्क 2008) नामक किताब ऐसे ही मजहबी दुष्कृत्यों का संकलन है। इसमें पूरा विवरण है कि जिहादी कैसे कॉप्टिक ईसाई लड़कियों को फंसाते थे। महत्वपूर्ण बात यह है कि जो मुस्लिम जितने ऊंचे परिवार की लड़कियों को लव जिहाद में फंसाता था, उसे मिलने वाली इनाम की रकम भी उतनी ही बड़ी होती थी।
अदालतों ने भी माना ‘लव जिहाद’
देश की अदालतें भी लव-जिहाद के सत्य को स्वीकार कर रही हैं। दिसंबर 2009 में केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के.टी. शंकरन ने एक फैसले में सख्त टिप्पणी की थी कि प्यार के नाम पर यहां जबरन कन्वर्जन कराया जा रहा है। सरकार को ऐसी गतिविधियों को रोकने के लिए कानून बनाना चाहिए। इसी प्रकार, अक्तूबर 2023 में इलाहबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी तथा न्यायमूर्ति एम.ए.एच इदरीसी की खंडपीठ ने राधिका और सोहेल खान की लिव-इन रिलेशनशिप में रहने देने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए टिप्पणी की थी कि ऐसे रिश्ते स्थायी नहीं होते। यह केवल ‘टाइमपास’ है और इसे संरक्षण नहीं दिया जा सकता।
2017 में केरल उच्च न्यायालय ने एक मुस्लिम युवक शफीन और कन्वर्टेड हिंदू लड़की हादिया की शादी को ‘लव जिहाद’ का नमूना बताते हुए अमान्य घोषित कर दिया था। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचता तो शफीन ने नई अर्जी लगाई, जिसमें उसने शीर्ष अदालत से अपना पहले का आदेश वापस लेने का अनुरोध किया। अदालत ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी को यह पता लगाने का आदेश दिया था कि इस मामले में ‘लव जिहाद’ का व्यापक पैमाना है या नहीं, क्योंकि हिंदू और ईसाई संगठनों ने केरल में जबरन कन्वर्जन पर गंभीर चिंता जताई थी।
सोचिए, एनआईए की जांच रुकवाने के लिए याचिका दाखिल करने की जरूरत क्यों पड़ी? दरअसल, केरल उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद जो जानकारी सामने आई, उसके अनुसार प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया की छात्र इकाई ‘कैम्पस फ्रंट’ मुस्लिम युवाओं को अच्छे कपड़े, मोटरसाइकिल, मोबाइल फोन और पैसे देती है, ताकि वे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ रहीं मुशरिक-काफिर लड़कियों को ‘लव जिहाद’ के फंदे में फंसा कर उनका कन्वर्जन करा सके।
केरल में हिंदू ही नहीं, बड़ी संख्या में ईसाई लड़कियां भी कन्वर्जन का शिकार हो रही हैं। कैथोलिक बिशप काउंसिल ने इसके खिलाफ आवाज उठाई है। राज्य के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के विरोध के बाद हाल ही में ईसाई लड़कियों को जागरूक करने के लिए चर्च में लव-जिहाद पर आधारित फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ दिखाई गई। कम्युनिस्ट नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन ने भी एक बयान दिया कि एक मुस्लिम राजनीतिक दल ‘मनी एंड मैैरिज’ द्वारा जनसांख्यिक परिवर्तन में लिप्त हैं। यानी लव-जिहाद का षड्यंत्र ‘लोन-वुल्फ’ हमलों की तरह एकाकी जिहादी गतिविधि नहीं है, बल्कि इसे संस्थागत तरीके से चलाया जा रहा है।
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