भारत के प्रति शत्रुता का भाव रखने वाले कोरोना महामारी के कथित जनक चीन में भारत के छात्रों की संख्या में तेजी से उतार देखने में आ रहे हैं। एक वक्त था जब भारत से वहां पढ़ने जाने वाले छात्रों की संख्या वहां पढ़ रहे विदेशी छात्रों में दूसरे नंबर पर थी। लेकिन तीन साल पहले के मुकाबले आज यह संख्या आधी से भी कम रह गई है।
हैरानी की बात नहीं कि चीन में पढ़ रहे विदेशी छात्रों में सबसे ज्यादा छात्र पाकिस्तानी ही थे। तीन साल पहले के आंकड़े बताते हैं कि वहां करीब 28 हजार पाकिस्तानी छात्र पढ़ रहे थे। लेकिन भारतीय छात्रों के इतना कम हो जाने के पीछे वजह क्या है?
भारत से वहां पढ़ने जाने वाले युवाओं की संख्या में कमी आने की सबसे बड़ी वजह तो बेशक वहां कोरोना महामारी की उत्पत्ति होना है, जिसके बाद से भारत से वहां पढ़ने जाने वालों में उस देश के प्रति अब वैसा भाव नहीं रहा है।
इसके साथ ही 2020 में गलवान संघर्ष के बाद भारत के साथ चीन का सीमा विवाद चला आ रहा है। वहां भारतीय छात्रों के घटने के पीछे यह भी एक बड़ी वजह बताई जा रही है। भारतीय छात्र आज चीनी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के प्रति उतने आकर्षित नहीं दिख रहे हैं। साल 2020 में जब कोरोना महामारी फैलनी शुरू ही हुई थी उस वक्त चीन के विभिन्न विश्वविद्यालयों में भारत के 23 हजार से अधिक छात्र उच्च शिक्षा ले रहे थे, लेकिन आज वे सिर्फ 10 हजार ही रह गए हैं।
कोरोना काल से पहले चीन के मेडिकल कॉलेज भारतीय छात्रों के लिए आकर्षण का केन्द्र थे। अधिकांश भारतीय छात्र वहां के मेडिकल कॉलेजों में भर्ती पाने को आतुर रहते थे, इसका बड़ा कारण यह बताया जाता था कि वहां डाक्टरी की पढ़ाई भारत के मुकाबले कुछ कम फीस वाली है।
चीन में अनेक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं जहां भर्ती होने की प्रक्रिया कोई बहुत जटिल नहीं है। चीन के अनेक विश्वविद्यालयों में कोरोना की शुरुआत से पहले भारतीय छात्रों की अच्छी—खासी संख्या थी। लेकिन कोरोना और गलवान संघर्ष के बाद सीमा का विवाद अब भारत के छात्रों को चीन से दूर रख रहा है।
संभवत: इसी वजह से पाकिस्तानी छात्रों की चीन पहली पसंद रहा है। वैसे भी पाकिस्तान को उस कम्युनिस्ट देश का पिट्ठू माना जाता है, क्योंकि पाकिस्तान चीन के फरमानों के सामने सदा झुकता ही देखा गया है। वहां की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक चीन से मिलने वाले कर्जे पर टिकी है। जिन्ना के कंगाल देश को कम्युनिस्टों की सत्ता का सहारा है। इसीलिए तीन साल पहले पाकिस्तान के लगभग 28 हजार छात्र वहां पढ़ते थे तो इसमें आश्चर्य नहीं है।
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि भारतीय छात्रों के सामने चीन में पढ़ाई करने जाने के पीछे फीस वगैरह तो एक आयाम है ही, दूसरे भारत में मेडिकल की पढ़ाई के लिए कड़ी प्रतियोगिता परीक्षाएं होती हैं, जिनमें कुछ ही छात्र चुने जाते हैं। शेष दूसरे देशों में इस पढ़ाई के लिए जाने का विकल्प चुनते हैं।
एक बात और, चीन में अनेक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं जहां भर्ती होने की प्रक्रिया कोई बहुत जटिल नहीं है। चीन के अनेक विश्वविद्यालयों में कोरोना की शुरुआत से पहले भारतीय छात्रों की अच्छी—खासी संख्या थी। लेकिन कोरोना और गलवान संघर्ष के बाद सीमा का विवाद अब भारत के छात्रों को चीन से दूर रख रहा है।
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