जर्मनी की एक पत्रिका के अनुसार जर्मनी मे ईसाई विद्यार्थी डर के कारण इस्लाम कुबूल कर रहे हैं। bild के अनुसार अधिकांश मुस्लिम बच्चे यह मानते हैं कि कुरान के नियम जर्मनी के नियमों से अधिक महत्वपूर्ण हैं। इस वेबसाइट के अनुसार लोअर सैक्सोनी के क्रिमिनोलॉजीकल रीसर्च इंस्टीट्यूट ने एक सर्वे मे बताया कि लगभग 67.8 प्रतिशत मुस्लिम बच्चों का यह मानना है कि “इस्लाम के कानून जर्मनी के कानूनों से बढ़कर हैं।“ आधे के लगभग अर्थात 45.8 प्रतिशत लोगों का यह मानना है कि इस्लामी शासन ही सरकार का सबसे बेहतर रूप होता है।
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सबसे चौंकाने वाले समाचार स्कूलों से आ रहे हैं, जहां पर ईसाई अभिभावक अपने बच्चों को काउंसलिंग सेंटर मे लेकर जा रहे हैं, क्योंकि ईसाई बच्चे इसलिए इस्लाम मे जाना चाहते हैं, जिससे कि उन्हें बाहरी न माना जाए।
गौरतलब है कि जर्मनी मे काफी संख्या मे सीरिया, अफगानिस्तान और ईराक आदि ऐसे देशों से शरणार्थी आ रहे हैं, जिनके मजहबी यकीन ईसाई यकीन से एकदम अलग हैं और वे लोग उग्र होते हैं, लड़कियों को लेकर उनके विचार और दृष्टिकोण एकदम अलग होता है। पिछले दिनों जर्मनी में ही एक शहर से खिलाफत की आवाज उठी थी।
इस वेबसाइट के अनुसार स्कूलों मे मुस्लिम विद्यार्थियों की संख्या पिछले कई वर्षों में तेजी से बढ़ी है और ईसाई बच्चे मुख्यत: बड़े शहरों मे अल्पसंख्यक हो गए हैं। जर्मनी मे पिछले आठ वर्षों से जो मुस्लिम देशों से शरणार्थी आ रहे हैं, उसके कारण बच्चों और युवाओं की संख्या मे तेजी से वृद्धि हुई है और इसके साथ ही बच्चे कट्टर मजहबी परिवारों से आते हैं।
सीरिया, अफगानिस्तान और ईराक से ये हुए लोग ऐसे परिवारों से आते हैं जो कुरान के ही कानूनों का पालन करते हैं।“ स्टेट सुरक्षा अधिकारी का कहना है कि “जब मुस्लिम लड़कों को स्कूल मे ऐसा लगता है कि लड़कियां बहुत पश्चिमी हो गई हैं, हिजाब नहीं पहनती हैं या फिर लड़कों से मिलती हैं, तो लड़कों को ऐसा लगता है कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए और वे लड़कियों को सच्ची मुस्लिम की तरह व्यवहार करने के लिए चेतावनी देते हैं” और साथ ही दोस्तों का दबाव भी होता है, जिनके साथ आप दिखना चाहते हैं।
ऐसे मे प्रश्न यह उठता है कि क्या वास्तव मे जर्मनी जैसे देश मे शहरों मे मुस्लिम बच्चों की संख्या इतनी हो गई है कि वे साथी ईसाई बच्चों को नियंत्रित ही नहीं कर रहे हैं बल्कि इस्लाम मे आने का दबाव भी डाल रहे हैं। सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि मुस्लिम छात्र इसे लेकर बहुत बहुत उग्र हो जाते हैं कि लड़कियां कुरान के ही अनुसार चलें और इसके कारण स्कूल मे समानांतर सोसाइटी उभर रही हैं, जिनमें मुस्लिम विद्यार्थी समूहों का दबदबा है।
डेलीमेल के अनुसार नए अध्ययन मे शोधकर्ताओं ने लोअर सैक्सनी मे 308 मुस्लिम विद्यार्थियों से यह पूछा कि मजहब और सरकार के बारे मे वे क्या सोचते हैं? आधे से अधिक 51.5 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि इस्लाम हमारे समय की समस्याओं का हल निकालने मे सक्षम है। वहीं 36.5 प्रतिशत बच्चों का यह कहना था कि जर्मनी के समाज को इस्लामिक कानूनों के अनुसार बनना चाहिए। जब उनसे गैर मुस्लिमों पर हिंसा के बारे मे प्रश्न किए गए तो बहुत ही चौंकाने वाले उत्तर मिले। एक तिहाई लगभग 35.3 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि वे उन लोगों के खिलाफ हिंसा को समझ सकते हैं, जिन्होनें अल्लाह या इस्लाम के पैगंबर का अपमान किया है। वहीं 21.2 प्रतिशत बच्चों ने कहा दरअसल पश्चिम से इस्लाम को जो खतरा है उसके कारण मुस्लिम अपने आपको हिंसक तरीके से बचाते हैं।
इस अध्ययन को करने वाले कार्ल फिलिप श्रोडर ने स्थानीय मीडिया से बात करते हुए कहा कि मुस्लिम विद्यार्थी केवल खिलाफत को ही समाधान नहीं मानते हैं, बल्कि वे यह भी मानते हैं कि मुस्लिम विद्यार्थी खास हैं और ईसाई आदि, गैर मुस्लिम विद्यार्थी बेकार हैं। यही कारण है कि गैर-मुस्लिम विद्यार्थी जैसे ईसाई विद्यार्थी उनके साथ घुलने-मिलने के लिए इस्लाम अपना रहे हैं।
इसे लेकर राजनीतिक दलों की भी प्रतिक्रिया आई है। क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन की नेता कैरीन प्रीन ने भी बिल्ड से बात करते हुए कहा कि जर्मन स्कूलों मे जो इस्लामिक तहजीब आ रही है उसके लिए मुस्लिम समुदाय के परिवार काफी हद तक जिम्मेदार हैं। उन्होनें यह भी कहा कि टिकटॉक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की भूमिका की भी जांच इस्लामिस्ट और चरमपंथी कंटेन्ट फैलाने के मामले मे होनी चाहिए।
विशेषज्ञ इस घटना को बच्चों के दिमाग मे जहर भरने जैसी घटना बता रहे हैं।
बिल्ड के ही एक और समाचार के अनुसार इब्राहीम अल अजाजी और अबुल बरारा जैसे कट्टरपंथी इंफ्लुएंसर्स इस्लामिस्ट समूहों के नायक बनकर उभर रहे हैं और वह जर्मन बोलने वाले देशों मे छोटे-छोटे वीडियो सहित लाखों की संख्या मे लोगों तक अपनी बातों को पहुंचा रहे हैं।
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