भारत को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अत्यंत कटु टिप्पणी करते हुए भारत को जेनोफोबिक अर्थात अप्रवासियों से घृणा करने वाला बताया था। अमेरिका मे चुनावों का मौसम है और साथ ही वहां पर अवैध अप्रवासी एक बहुत बड़ा मुद्दा है। वहां के लोग इस कारण वहां पर बढ़ती हुई गुंडागर्दी से परेशान हैं। डोनाल्ड ट्रम्प मुक्त सीमा नीति का विरोध कर रहे हैं, तो वहीं जो बाइडेन इस नीति को सफल बता कर अपने चुनाव प्रचार अभियान मे लगे हुए हैं। ऐसी ही एक चुनावी चर्चा मे बाइडेन ने जनता से कहा था कि “आप जानते हैं, हमारी अर्थव्यवस्था के बढ़ने का एक कारण आप और कई अन्य लोग हैं। क्यों? क्योंकि हम आप्रवासियों का स्वागत करते हैं। हमें इसका कारण खोजना होगा, हमें इसक बारे मे सोचना होगा। चीन आर्थिक रूप से इतनी बुरी तरह क्यों रुक रहा है?
जापान को क्यों हो रही है परेशानी? रूस क्यों है? भारत क्यों है? क्योंकि वे ज़ेनोफ़ोबिक हैं। वे अप्रवासी नहीं चाहते!” उसके बाद उन्होनें कहा था कि “अप्रवासी ही हमें मजबूत बनाते हैं। मजाक नहीं, यह अतिशयोक्ति नहीं है। क्योंकि हमारे पास ऐसे श्रमिकों की आमद है जो यहां रहना चाहते हैं और सिर्फ योगदान देना चाहते हैं। “हालांकि इसे लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति की आलोचना वहीं पर हुई थी और फिर व्हाइट हाउस को बाइडेंन के वक्तव्य की सफाई देते हुए यह कहना पड़ा था कि अमेरिकी राष्ट्रपति का मकसद किसी साथी का अपमान करना नहीं बल्कि अपनी बात कहना था।
इस विषय मे अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान के बारे मे सफाई देते हुए प्रेस सचिव जीन पियरे ने अमेरिका के अप्रवासी इतिहास के विषय मे बाइडेन के संदेश की व्याख्या की थी। उन्होनें कहा था कि “”हमारे सहयोगी और साझेदार अच्छी तरह से जानते हैं कि यह राष्ट्रपति उनका कितना सम्मान करते हैं। — अमेरिका के राष्ट्रपति इस (अमेरिका) देश के बारे में बोलते हुए एक व्यापक टिप्पणी कर रहे थे, वह यह बता रहे थे कि अप्रवासियों का देश होना कितना महत्वपूर्ण है और यह हमारे देश को कैसे मजबूत बनाता है,”
अब इस मामले मे भारत की ओर से भारत के विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की इस टिप्पणी का उत्तर दिया है। उन्होनें प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि भारत जेनोफोबिक नहीं है बल्कि भारत ने सभी का स्वागत किया है।
शुक्रवार को एस. जयशंकर ने इस विषय मे यह दृढ़ता से कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा नहीं रही है। इकोनॉमिक्स टाइम्स के साथ उन्होनें बातचीत मे कहा कि “सबसे पहले तो हमारी अर्थव्यवस्था लड़खड़ा नहीं रही है और भारत हमेशा से ही बहुत अनोखा देश रहा है। मैं तो यह कहूँगा कि भारत ही विश्व के इतिहास मे एक ऐसा समाज रहा है, जो सबसे अधिक खुला रहा है और यहाँ पर अलग-अलग समुदायों के लोग आते रहे।“
फिर उन्होनें कहा कि इसी कारण भारत मे सीएए है, जिससे कि वे लोग यहाँ आ सकें, जो समस्या से जूझ रहे हैं। जो पीड़ित हैं। उन्होनें कहा कि हम सभी को उन सभी के लिए अपने दरवाजे खोलने चाहिए, जिन्हें भारत आने की आवश्यकता है, जिनका भारत आने का दावा बनता है।“
क्या होता है जेनोफोबिया का अर्थ: जब हम जेनोफोबिया का अर्थ खोजते हैं तो merriam-webster की साइट पर इसका अर्थ दिया हुआ है कि अजनबियों या विदेशियों से डर और घृणा या किसी भी उस चीज से घृणा, जो विदेशी या अनजान है।
भारत ने हमेशा ही विदेशियों का स्वागत किया है, यह भारत मे बनी विभिन्न धार्मिक विचारों की पुरानी इमारतों से देखा जा सकता है, जो भारत के हर कोने मे हैं।
और भारत की आर्थिक प्रगति मे योगदान देने वाले पारसी समूह जो पर्शिया अर्थात वर्तमान ईरान, मे इस्लाम के अनुयाइयों की हिंसा से प्रताड़ित होकर उंगली मे गिने जाने लायक ही रह गया था, तब आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व अर्थात सातवीं शताब्दी मे नाव मे बैठकर भारत की ओर चल पड़े थे और भारत मे गुजरात आकर रुके थे। यह भारत की भूमि ही थी, जिसने उन्हें शरण दी थी और आज पारसी समुदाय की देश की प्रगति मे प्रतिभागिता किसी से छिपी नहीं है। गोदरेज, अमूल आदि कंपनियां इसी समूह के लोगों की हैं।
इसलिए अमेरिका जैसे देश भारत को शरणार्थी जैसी समस्या पर भाषण न दें, तभी बेहतर है, क्योंकि जहां भारत का इतिहास अभी तक का कहीं पर भी आक्रमण न कर प्रताड़ित शरणार्थियों के लिए अपने द्वार खोलने का रहा है तो वहीं अमेरिका का इतिहास वहाँ के स्थानीय नागरिकों को मारकर कब्जा करने का इतिहास रहा है।
जो बाइडेन अपने इस बयान के कारण अपने ही देश मे आलोचना का शिकार हो रहे हैं और साथ ही जापान ने भी जो बाइडेन की टिप्पणी का विरोध करते हुए कहा है कि इस प्रकार का वर्गीकरण बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
एस. जयशंकर ने सीएए के विरोध पर भी निशाना साधते हुए कहा था कि ऐसे कई लोग हैं, जो यह दावा कर रहे थे कि भारत मे सीएए के आने के बाद भारत के मुस्लिमों की नागरिकता चली जाएगी। उन्होनें कहा कि इन तमाम दुष्प्रचारों के बाद भी भारत मे किसी की नागरिकता नहीं गई।
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