भारत में मुस्लिमों की कथित विरासत आदि के मामलों का निर्धारण शरिया कानून के अंतर्गत किया जाता है। मुस्लिम पर्सनल कानूनों के अंतर्गत मुस्लिम समुदाय के निजी मुद्दों का निस्तारण किया जाता है। इस कानून में यह तो इस्लाम मानने वाले लोगों के लिए कानून हैं, परंतु इसमें उनके लिए कोई प्रावधान नहीं है जो शरिया कानून द्वारा संचालित नहीं होना चाहता है। यदि किसी ने इस्लाम छोड़ दिया है, तो उसकी निजी संपत्ति आदि का निर्धारण किस प्रकार किया जाएगा, क्या उन पर शरिया लागू होगा या नहीं, अब यह मामला भारत के सर्वोच्च न्यायालय मे पहुँच गया है।
यह याचिका दायर की है केरल की एक्स मुस्लिम अर्थात पूर्व मुस्लिम साफिया पीएम ने। एक्स मुस्लिम ऑफ केरल संगठन की जनरल सेक्रेटरी साफिया ने मांग की है कि जो लोग मजहब छोड़ चुके हैं, उन्हें शरीयत के स्थान पर भारत के सेक्युलर कानून के अंतर्गत अनुमति दी जाए।
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क्या है शरिया कानून/मुस्लिम पर्सनल लॉ
वर्ष 1937 में भारत में लागू मुस्लिम पर्सनल लॉ अर्थात मुस्लिम स्वीय विधि में यदि दोनों ही पक्ष मुस्लिम हैं तो निर्वासीयती उत्तराधिकार, स्त्रियों की विशेष संपत्ति, जिसमें विरासत में मिली या संविदा या दान या स्वीय विधि के किसी अन्य उपबंध के अधीन मिली स्वीय संपत्ति आती है और इसी के अंतर्गत निकाह, तलाक, इला, खुला और मुबारात, भरणपोषण, मेहर, दान आदि मामले आते हैं।
VIDEO | Here's what advocate Prashant Padmanabhan said on the Supreme Court agreeing to consider a plea seeking a declaration that Sharia Law won't apply to non-believer Muslims.
"As of now, for those persons who are born as Muslims, Sharia law is applicable in all their… pic.twitter.com/wm9LQejMPL
— Press Trust of India (@PTI_News) April 29, 2024
इसी कानून में सेक्शन 2 के अंतर्गत घोषणा करने की शक्ति में यह घोषित किया जा सकता है कि वह मुस्लिम है और वह इस कानून का फायदा उठाना चाहता है अर्थात वह इस कानून के अंतर्गत प्रशासित होना चाहता है और उसके बाद उस घोषणाकर्ता, उसकी अवयस्क संतान और उसकी आने वाली पीढ़ियों पर यह कानून लागू होगा। जो कानून के अंतर्गत आना चाहता है उसकी घोषणा हो सकती है, मगर जो इस कानून के अंतर्गत नहीं आना चाहता उनके लिए कोई प्रावधान नहीं है?
इस कानून का सेक्शन 3 यह पूरी तरह से स्पष्ट करता है कि जो यह कानून मानना चाहे वह घोषणा कर सकता है, मगर जो इस्लाम के कानूनों को न मानकर भारत सरकार के सेक्युलर कानून का लाभ उठाना चाहे, उसके विषय में यह कानून पूरी तरह से मौन है। इसीलिए एक्स मुस्लिम साफिया पीएम ने यह याचिका दायर की है।
वकील प्रशांत पद्मनाभन ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय इस घोषणा के बाबत याचिका सुनने के लिए तैयार हो गए हैं कि शरिया कानून उन पर लागू नहीं होगा, जो इसमें विश्वास नहीं करते हैं। वीडियो में उन्होंने कहा कि अभी तक उनके लिए जो मुस्लिम के रूप में पैदा होते हैं, शरिया कानून उनके हर निजी मामलों पर लागू होता है, मगर यदि वह भारत के सेक्युलर कानूनों से शासित होना चाहे तो उसके लिए कोई प्रावधान नहीं है और विशेषकर संपत्ति की विरासत को लेकर।
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आरंभ में बेंच इस मामले को लेकर कुछ हिचकिचाहट में थी, क्योंकि उनके अनुसार वसीयत बनाने वाला तब तक अधिनियम के अधीन नहीं होगा जब तक कि वह मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लिकेशन अधिनियम, 1937 की धारा 3 के अनुसार कुछ भी घोषित नहीं करते हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “शरीयत अधिनियम की धारा 3 में यह कहा गया है कि जब तक आप घोषणा नहीं करते तब तक आप वसीयत, गोद लेने और विरासत पर व्यक्तिगत कानून के नियमों के अधीन नहीं होंगे। और यदि आपके पिता और आपने कोई भी घोषणा नहीं की है तो आप निजी कानूनों के अंतर्गत नहीं हैं!”
परंतु बाद में बेंच इसे सुनने के लिए तैयार हुई। बेंच में जस्टिस जे बी पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। जब साफिया के वकील प्रशांत पद्मनाभन ने कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए और उसके बाद सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है कि यदि किसी व्यक्ति ने घोषणा नहीं की है तो भी समस्या है क्योंकि सेक्युलर कानून उस समय भी लागू नहीं होगा। इसलिए हम इस पर नोटिस जारी करेंगे।
जन्म से मुस्लिम हैं याचिकाकर्ता
दरअसल याचिकाकर्ता साफिया जन्म से मुस्लिम है, परंतु उसके पिता एक ऐसे मुस्लिम हैं, जो इस्लाम की परंपराओं का पालन नहीं करते हैं, मगर उन्होनें अपना मजहब नहीं छोड़ा है। याचिका में कहा गया है कि ऐसे लोगों के लिए यह घोषणा हो कि जो लोग मुस्लिम पर्सनल कानूनों से शासित नहीं होना चाहते हैं, उन पर भारत सरकार के सेक्युलर कानून या भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 लागू हो। विशेषकर निर्वसीयत और वसीयतनामा उत्तराधिकार के मामले में।
यह भी कहा गया कि यदि याचिकाकर्ता आधिकारिक रूप से यह प्रमाणपत्र भी ले लेती है कि वह किसी धर्म का पालन नहीं कर रही है तो भी वह देश के सेक्युलर कानून के अंतर्गत नहीं आएगी।
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