भारत में इन दिनों हर पांच साल बाद होने वाला लोकसभा चुनाव का उत्सव चल रहा है। केंद्रीय सत्ता राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं की संवाहक मानी जाती है। इस एकरेखीय तथ्य के बावजूद विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों के चुनाव में केवल राष्ट्रीय मुद्दे ही कारणभूत नहीं रहते। प्रत्येक दल के प्रतिनिधि मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए मुद्दों और विचारधारा के अलावा लोकलुभावन वादों को भी अपना महत्वपूर्ण साधन मानते आए हैं। शिक्षा का भिन्न स्तर, ऐतिहासिक संस्कार, क्षेत्रीय मनोवृत्ति, सामुदायिक मुद्दे एवं तात्कालिक घटनाक्रम भी निर्वाचन को प्रभावित करते रहे हैं। इसके साथ ही प्रतिनिधियों का सामाजिक चरित्र, जिससे जनता में उनकी नैतिक साख का पता चलता है, भी मतदान की दिशा तय करता है।
लोकसभा चुनाव के दो चरण संपन्न हो चुके हैं। दक्षिण भारत के दो राज्यों, तमिलनाडु और केरल में पहले और दूसरे चरण, क्रमश: 19 और 26 अप्रैल को मतदान हो चुका है। लेकिन अन्य तीन राज्यों यथा आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में आगे के चरणों में मतदान होने जा रहा है। यानी कर्नाटक में 7 मई को 14 लोकसभा सीटों पर तथा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 13 मई को मतदान होगा। यूं तो दक्षिण भारत में लंंबे समय से क्षेत्रीय दल राजनीतिक सत्ता पर आसीन रहे। लेकिन यह भी सत्य है कि क्षेत्रीयता से अपनत्व प्रदर्शित करने वाले ये दल आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हैं तथा परिवारवाद इन पर हावी है।
आंध्र प्रदेश की बात करें तो यहां कथित राजकीय संरक्षण में ईसाई कन्वर्जन का खेल बेरोकटोक जारी है। आंध्र प्रदेश के वतर्मान मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप हैं। मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी निवेशकों से धन उगाही के मामले में 11 दिन की सीबीआई हिरासत में रह चुके हैं। तेलंगाना का दल बीआरएस (पूर्व में टीआरएस) भी भ्रष्टाचार के कारण अपनी सत्ता खो चुका है। अत: क्यों न यहां उन बिन्दुओं की चर्चा की जाए जो आंध्र प्रदेश, तेलंगाना व कर्नाटक की जनता में राजनीतिक जागरूकता का परिचय कराते है।
परिवारवाद की पराकाष्ठा
परिवारवाद लोकतांत्रिक राजनीति में सबसे बड़ा संरचनात्मक दोष है, जो लोकतंत्र को मुंह चिढ़ाता प्रतीत होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं इस व्याधि के बारे में संसद में ओजस्वी वक्तव्य दे चुके हैं। आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं। तेलंगाना का बीआरएस केसीआर का ‘व्यक्तिगत’ दल है, जिसमें उनके पुत्र केटीआर व पुत्री के. कविता मुख्य कर्ता-धर्ता हैं। वतर्मान में तेलंगाना एवं कर्नाटक में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी भी अपने प्रारंभिक काल से ही परिवारवाद से ग्रस्त रही है।
प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, उनकी पुत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी एवं प्रियंका वढेरा कांग्रेस एवं उसके सहयोगी दलों को गांधी नाम की छड़ी से हांकते आ रहे हैं। लोकतंत्र और संविधान को ‘खतरे’ में बताकर संपूर्ण भारत को गुमराह करने वाली कांग्रेस पार्टी एक परिवार के ‘पालतू’ तोते जैसी रह गई है।
कांग्रेस पार्टी के साथ इंडी ‘ठगबंधन’ में शामिल लगभग सभी दल इसी रोग से ग्रस्त हैं। ‘इंडी’ का सबसे बड़ा दुष्प्रचार है ‘संविधान खतरे में है’, ‘लोकतंत्र खतरे में है’, ‘फासीवाद आ गया है’ आदि आदि; जबकि सत्य यह है कि इन दलों का आंतरिक परिदृश्य ही इनको ‘संविधान का हत्यारा’ सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की बहन, बहनोई, चाचा इत्यादि सभी सरकार के किसी न किसी रूप में हिस्से में बने हुए हैं।
बेलगाम भ्रष्टाचार
भारत की राजनीति में भ्रष्टाचार नाम का दुर्गुण अधिकांश राजनीतिक दलों के डीएनए में शामिल हो चुका है। जैसा ऊपर कहा गया, आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री रेड्डी निवेशकों से घूस लेने के कारण सीबीआई द्वारा ग्यारह दिन की रिमांड पर लिए जा चुके है। और भी कई उद्योग-धंधों में उनके द्वारा ली गई राजनीतिक लेवी चर्चा में रही है। प्रधानमंत्री मोदी तथा भाजपा ने जगन को सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री करार दिया है। कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी जनता को मुफ्तखोरी का लालच देकर ही सत्ता में आयी है। नये निवेशकों से लेवी वसूलने के दबे-छुपे मामले सामने आते रहे हैं। ऐसे विकास विरोधी कार्यों के कारण ही कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी विकास विरोधी, उद्यमी विरोधी, ‘वेल्थ क्रिएटर’ विरोधी जैसे विशेषणों से पुकारी जा रही है।
तेलंगाना में भ्रष्टाचार की स्थिति यह है कि प्रदेश में बीआरएस दल की कविता, जो पूर्व मुख्यमंत्री केसीआर की पुत्री हैं, दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के शराब घोटाले में भ्रष्टाचार की हिस्सेदार रही हैं, जिसके कारण ही वे अभी तिहाड़ जेल में बंद हैं। बीआरएस सिंचाई परियोजना में आर्थिक भ्रष्टाचार के कारण निशाने पर रही है। हैदराबाद में चुनाव में फर्जी वोट डलवाने में भी इसका नाम सबसे ऊपर रहता है।
तुष्टीकरण का पुराना कांग्रेसी रोग
कर्नाटक में मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के रास्ते सत्ता में आयी कांग्रेस पार्टी ने राज्य में मुस्लिम तुष्टीकरण की हदें लांघ दी हैं। पिछले दिनों राज्य में एक कॉलेज छात्रा नेहा हिरेमठ की मजहबी उन्मादी फैयाज द्वारा खुलेआम चाकुओं से गोदकर हत्या करने के बाद जिस प्रकार से कांग्रेसी सरकार ने चुप्पी ओढ़ी, उसे लेकर जनता में जबरदस्त उबाल है। वहां छात्रों और आम जनता ने अनेक विरोध प्रदर्शन किए हैं, लेकिन सरकार का एक मंत्री तक स्वर्गीय नेहा के आहत परिवार से मिलने नहीं गया।
साफ है कि राज्य में मुस्लिम तुष्टीकरण की वजह से इस्लामवादियों के हौसले बुलंद हैं और हिन्दू खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव के आगामी चरण में कर्नाटक में जिन सीटों पर मत पड़ेंगे, उनमें वहां की जनता का आक्रोश प्रकट होगा। कर्नाटक में कानून व्यवस्था ध्वस्त है। नेहा की मुस्लिम उन्मादी द्वारा हत्या करने के बाद जिस प्रकार प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है और जिस प्रकार लव जिहाद के मामले बढ़ते जा रहे हैं, उससे राज्य का माहौल बहुत खराब हो चुका है।
विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद ‘पाकिस्तान जिदाबाद’ के नारे लगना कांग्रेस की वास्तविक मानसिकता को उजागर कर गया था। आतंकवादियों के पोषण की वजह से ही गत दिनों मैसूर में रामेश्वरम् कैफे में बम विस्फोट को अंजाम दिया गया। तुष्टीकरण की ही नीति की वजह से आंध्र प्रदेश की जगन मोहन रेड्डी सरकार कन्वर्जन की ओर से आंखें मूंदे हुए है। वहां चर्च के पास्टरों को सरकारी मानदेय दिया जाता है। एक और खेल यह चल रहा है कि वहां वंचित समुदाय के लोग कन्वर्ट होने पर हिन्दू विरोधी गतिविधियों और ईसाई प्रचार-प्रसार में लगे होने के बाद भी सरकारी कागजों में हिंदू ही बने रहते हैं। कहने को तो यह भी कहा जाता है कि वहां जगन मोहन रेड्डी को सत्ता में लाने के पीछे चर्च पास्टरों की बड़ी भूमिका है।
हिंदू विरोधी मानसिकता
वैसे दक्षिण भारत में चर्च हिंदू विरोधी मानसिकता का प्रसार करता रहा है। सेकुलर राजनीतिक दल इससे अप्रत्यक्ष लाभ लेते रहे है। ‘दलित हितैषी’ बनकर सनातन धर्म को बुरा-भला कहना एक चलन सा हो गया है। दक्षिण भारत में मंदिरों पर सरकार का प्रत्यक्ष नियंत्रण है। आंध्र प्रदेश में जगन सरकार ने तो अपने ईसाई बहनोई को तिरुपति तिरुमला देवस्थानम् का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। पंथनिरपेक्षता के नाम पर हैदराबाद में मुसलमानों द्वारा हिंदुओं पर अत्याचार किया जाता है, इसका उदाहरण भाजपा उम्मीदवार माधवी लता ने सप्रमाण एक साक्षात्कार में प्रस्तुत किया है।
हिंदुओं का कत्लेआम करने वाले रजाकारों के संगठन के साथ मिलकर बीआरएस ने तेलंगाना में सरकार बनाई थी। कर्नाटक के पाकिस्तानपरस्त और हिंदुओं को काफिर कहने वाले मुसलमानों के वोटों का ध्रुवीकरण करने वाली कांग्रेस पार्टी इफ़्तार के लिए सड़कों को जाम करती रही है। मुसलमानों को सिर्फ एक वोट बैंक मानने वाली कांग्रेस पार्टी के नेता हिंदुओं को दुत्कारने का दुष्कृत्य करते रहे हैं। जातीय जनगणना जैसे विभाजनकारी मुद्दों को शीर्ष नेताओं ने समर्थन भी दिया है।
औपनिवेशिक अंग्रेज सरकार द्वारा बोए गए विभाजनकारी मुद्दे अब भी यदि भारतीय राजनीति में तैर रहे हैं, तो इसका सीधा सा अर्थ है कि येन-केन प्रकारेण बाहरी विभाजनकारी शक्तियां भारत की सेकुलर राजनीति को संचालित कर रही हैं। राष्ट्रीय मुद्दों को सतही क्षेत्रीय अस्मिताओं द्वारा ढंक देने का प्रयास लगातार किया जा रहा है।
धर्मप्राण भारतीय जनमानस को ‘पंथनिरपेक्षता’ के जाल में उलझाकर कन्वर्जन, ईसाईकरण तथा इस्लामी कट्टरपंथ को पोसा जा रहा है। व्यक्तिगत फायदे के लिए आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक के दलों के साथ कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रीय अस्मिता से समझौता कर लिया है। आवश्यकता है, ये लोकसभा चुनाव दक्षिण भारत में राजनीति का स्वरूप बदलें। उम्मीद है कि इस क्षेत्र की प्रबुद्ध जनता इस बदलाव का प्रयास अवश्य करेगी।
टिप्पणियाँ