‘‘कांग्रेस यदि सत्ता में आती है तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी…।’’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान ने सियासी हलचल बढ़ा दी। चुनावी चर्चाओं और आम लोगों के बीच यह सवाल पूछा जाने लगा कि आखिर लोकसभा चुनाव में राजनीति का सांप्रदायिकरण कौन कर रहा है। कांग्रेस शासित कर्नाटक में चाहे बात ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारों की हो या मुस्लिम आरक्षण की या बात कांग्रेस के न्यायपत्र की हो। जिस तरह की बातें और वादे कांग्रेस ने अपने न्यायपत्र में किए हैं या संदेश दिया है उसने सांप्रदायिकता के मुद्दे पर कांग्रेस को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के न्यायपत्र को लेकर जो सवाल खड़े किए हैं उसने कांग्रेस और उसके नेताओं को सकते में डाल दिया है। मुस्लिम तुष्टीकरण और सांप्रदायिक राजनीति के आरोपों से घिरी कांग्रेस बचाव की मुद्रा में है। प्रधानमंत्री के सवाल उठाने के बाद कांग्रेस ने चुनाव आयोग का रुख किया और कई मुद्दों पर सफाई भी दी। कांग्रेस के घोषणापत्र और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पुराने भाषण ने 2024 के चुनाव में एक नई सियासी बहस को जन्म दे दिया है।
दरअसल, नरेंद्र मोदी ने राजस्थान में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा कि यदि कांग्रेस केंद्र की सत्ता में आती है तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी। प्रधानमंत्री मोदी ने यह बात पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक बयान का हवाला देते हुए कही, जिसमें उन्होंने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यक समुदाय का है। मोदी ने उन्होंने कांग्रेस के घोषणापत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि वे माताओं, बहनों के सोने का हिसाब करेंगे, उसकी जानकारी लेंगे और फिर उस संपत्ति को बांट देंगे।
असल में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कुछ दिनों पहले तेलंगाना में एक चुनावी रैली में ‘जितनी आबादी, उतना हक’ का नारा लगाते हुए कहा कि यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो वित्तीय और संस्थागत सर्वेक्षण कराएगी, ताकि पता चले कि देश की अधिकतम संपत्ति पर किसका नियंत्रण है। प्रधानमंत्री मोदी के बयान के बाद कांग्रेस ने जोर देकर कहा है कि उसके घोषणापत्र में किसी से कुछ लेकर बांटने की बात नहीं कही गई है और व्यापक सामाजिक, आर्थिक जाति जनगणना का समर्थन किया गया है।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने 5 अप्रैल, 2024 को अपना घोषणापत्र जारी किया था। पार्टी ने घोषणापत्र को न्यायपत्र नाम दिया है। न्यायपत्र के सामने आते ही मुस्लिम लीग के 1936 में आए घोषणापत्र और कांग्रेस के 2024 के न्यायपत्र में उठाए गए मुद्दों की तुलना शुरू हो गई। खास तौर से तीन मुद्दों को लेकर। मसलन 1936 में आए मुस्लिम लीग के घोषणापत्र में कहा गया था कि मुसलमानों के लिए शरिया की रक्षा की जाएगी। अब 2024 में कांग्रेस के न्यायपत्र में पार्टी ने वादा किया है कि अल्पसंख्यकों के पर्सनल लॉ हों।
1936 में आए मुस्लिम लीग के घोषणापत्र में भी कहा गया था कि उनकी पार्टी बहुसंख्यकवाद के खिलाफ लड़ेगी। कुछ ऐसा ही जिक्र 2024 चुनाव को लेकर आए कांग्रेस के घोषणापत्र में भी देखने को मिला है। कांग्रेस ने इसमें कहा है कि भारत में बहुसंख्यकवाद के लिए कोई जगह नहीं है। 1936 के मुस्लिम लीग की ओर से जारी घोषणापत्र में कहा गया था कि हम मुसलमानों के लिए खास छात्रवृत्ति और नौकरियों के लिए संघर्ष करेंगे। वहीं 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने जो न्यायपत्र निकाला है, उसमें वादा किया है कि मुस्लिम छात्रों को विदेश में पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मिले, इसको सुनिश्चित किया जाएगा।
स्वाभाविक है कि कांग्रेस का घोषणापत्र आने के बाद भाजपा ने उस पर कई सवाल खड़े किए हैं, कई मुद्दों पर आपत्ति जताई है। यह मुद्दा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उठाया। सबसे पहले मेरठ की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस के घोषणापत्र में मुस्लिम लीग की छाप है। जो चीजें बच गई थीं उसमें वामपंथी हावी हो गए। इसके बाद अलग-अलग राज्यों में हुई चुनावी रैलियों में भी प्रधानमंत्री ने यह मुद्दा उठाया।
इसी मुद्दे को लेकर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में स्पेशल कानून बने रहने की वकालत की है, तो क्या कांग्रेस तीन तलाक कानून को समाप्त कर इस कुरीति को पुनर्स्थापित करने वाली सोच रखती है? कांग्रेस वही वादे कर रही है जिनकी मांग मुस्लिम लीग ने की थी। कांग्रेस उसी मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन में है, जो आजादी से पहले मोहम्मद अली जिन्ना की थी। अब जो भाव मुस्लिम लीग का था, वह भाव आज कांग्रेस का है।
मुस्लिम लीग और कांग्रेस
कांग्रेस के साथ मुस्लिम लीग का क्या है रिश्ता? इसे जानने के लिए देश की आजादी से पहले और बाद की राजनीति को जानना होगा। आल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना 30 दिसंबर, 1906 को हुई थी। तब अविभाजित भारत के कई मुस्लिम नेता ढाका में इकट्ठे हुए और कांग्रेस से अलग मुसलमानों के लिए आल इंडिया मुस्लिम लीग बनाने का फैसला किया। 1930 में आल इंडिया मुस्लिम लीग के वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए अल्लामा इकबाल ने राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं को हल करने के मकसद से दक्षिण एशिया के वंचित मुसलमानों के लिए एक अलग देश का विचार प्रस्तुत किया। 23 मार्च, 1940 को मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में आल इंडिया मुस्लिम लीग ने लाहौर में एक अधिवेशन बुलाया।
इस दौरान जिन्ना ने एक स्वतंत्र देश की स्थापना के लिए संघर्ष करने का संकल्प लेते हुए पाकिस्तान प्रस्ताव को अपनाया। सात साल बाद आजादी के साथ ही भारत का बंटवारा हो गया और 14 अगस्त, 1947 को दुनिया के नक्शे पर पाकिस्तान दिखाई दिया। इसके बाद आल इंडिया मुस्लिम लीग पाकिस्तान मुस्लिम लीग बन गई। मुस्लिम लीग के नेता पाकिस्तान चले गए लेकिन भारत की आजादी के बाद मार्च, 1948 में मद्रास (अब चेन्नै) में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की स्थापना हुई। 1952 से ही इस दल के नेता भारतीय चुनावी राजनीति का हिस्सा हैं। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का केरल के मुसलमानों में काफी प्रभाव है। यह पार्टी राज्य के विपक्षी गठबंधन कांग्रेसनीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है।
वैसे हाल ही में केरल में लोकसभा चुनाव के दौरान वायनाड में मुस्लिम लीग का हरा झंडा कांग्रेस के गले की हड्डी बना था। राहुल गांधी एक फिर वायनाड से चुनाव मैदान में हैं। 3 अप्रैल, 2024 को उन्होंने प्रियंका वाड्रा और कांग्रेस के नेताओं के साथ नामांकन किया। राहुल ने रोड शो भी किया, जिसमें इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग समेत यूडीएफ की सभी सहयोगी पार्टियां मौजूद थीं। रोड शो के दौरान मुस्लिम लीग का आधे चांद और सितारे वाला हरा झंडा कहीं नहीं दिखा। कारण, मुस्लिम लीग का झंडा पाकिस्तान के झंडे जैसा दिखता है। इस मामले में भी कांग्रेस की सियासत पर वामदलों ने ही सवाल खड़े कर दिए।
लेकिन असल सवाल तो कांग्रेस की मुस्लिम आरक्षण की राजनीति को लेकर कर्नाटक में खड़ा हो गया। मुस्लिम समुदाय के लिए ओबीसी कोटे की व्यवस्था करने वाली कर्नाटक की कांग्रेस सरकार राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के निशाने पर आ गई है। आयोग ने उसके इस फैसले को सामाजिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ बताया है। पिछड़ा वर्ग आयोग ने कहा है कि कर्नाटक सरकार के इस फैसले ने अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकारों का हनन किया है।
कर्नाटक में मुस्लिमों की आबादी लगभग 13 प्रतिशत है। आयोग ने कहा है कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों और समूहों को एक पूरे मजहब के स्तर पर नहीं देखा जा सकता। कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय की सभी जातियों और समूहों को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े के रूप में दर्ज कर लिया गया है। यह सही नहीं है। इस कदम से मुसलमानों को राज्य की सेवाओं में भर्तियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए आरक्षण मिल गया है।
आयोग के अनुसार इस वर्गीकऱण से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी 17 जातियों को श्रेणी 1 और 19 जातियों को श्रेणी दो ए में आरक्षण की सुविधा मिल गई है। सिद्दरमैया सरकार ने अपने इस फैसले से अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकार छीन लिए हैं। वैसे आयोग ने यह भी माना है कि मुसलमान समुदाय में कुछ ऐसे समूह हैं जो अर्से से वंचित हैं और उन्हें समुदाय के भीतर ही भेदभाव का शिकार बनाया गया है। आयोग ने कहा है कि मुस्लिम समुदाय में जाति व्यवस्था नहीं है, लेकिन व्यवहार में यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि इस्लाम जातिवाद से मुक्त है।
मुस्लिम आरक्षण का शिगूफां
कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण को लेकर शुरू हुई राजनीति लोकसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बन गई है। इस मुद्दे को धार देते हुए 23 अप्रैल, 2024 को राजस्थान के टोंक-सवाई माधोपुर में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने देश के संविधान के साथ खिलवाड़ किया है। जब संविधान का मसौदा तैयार किया गया था तो मजहब के आधार पर आरक्षण का विरोध किया गया था ताकि एससी, एसटी और ओबीसी जातियों को आगे बढ़ने का अवसर मिल सके। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने अपने भाषण में कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है।
कांग्रेस की सोच हमेशा तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति की रही है। 2004 में कांग्रेस सरकार केंद्र की सत्ता में आई तो उसका पहला काम आंध्र प्रदेश में एससी, एसटी आरक्षण को कम करके मुसलमानों को आरक्षण देने की कोशिश करना था। यह एक ‘पायलट प्रोजेक्ट’ था जिसे कांग्रेस पूरे देश में आजमाना चाहती थी। 2004 और 2010 में कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में मुस्लिम आरक्षण लागू करने की चार बार कोशिश की, हालांकि कानूनी बाधाओं और सर्वोच्च न्यायालय की जागरूकता के कारण वे अपनी योजनाओं को पूरा नहीं कर सके।
2011 में कांग्रेस ने इसे पूरे देश में लागू करने की कोशिश की। उन्होंने वोट बैंक की राजनीति के लिए एससी, एसटी और ओबीसी को मिले अधिकार छीन कर दूसरों को दे दिए। कांग्रेस ने ये सब काम यह जानते हुए किए कि ये सब संविधान की मूल भावना के विरुद्ध हैं। लेकिन कांग्रेस को संविधान की परवाह नहीं थी। जाहिर तौर पर कांग्रेस ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति के सांप्रदायिकरण का जो दांव लोकसभा चुनाव के दौरान चला, अब उसे ही भारी पड़ रहा है।
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