कहावत है कि जो दूसरे के लिए गड्ढा खोदता है, वह खुद उसी गड्ढे में जा गिरता है। राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए गड्ढा खोदते-खोदते, देश के लिए गड्ढा खोदने लगे, फिर उसी गड्ढे में कांग्रेस समेत समा गए। ऐसा बार-बार हुआ। इस आम चुनाव में भी यही हो रहा है।
नक्सली सपनों की दुकान
राष्ट्रीय गौरव, 2047 का भारत, सुरक्षित भारत, विश्वस्तरीय राजमार्ग, प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान भारत योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना आदि का जवाब राहुल गांधी लेकर आए हैं कि कांग्रेस पार्टी किसी और की संपत्ति छीनकर आपको बांट देगी। सवाल उठता है कि किसकी संपत्ति किसको बांटी जाएगी? वास्तव में राहुल गांधी देश की जनता को माओ-स्टालिन-पोलपोट छाप वामपंथी सपना बेचने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें कहा जाता है कि जो कोई भी तुमसे ऊपर है, तुम्हारा दुश्मन है, हम सत्ता में आएंगे तो उसकी संपत्ति तुम्हारी हो जाएगी। यानी गरीबी रेखा के उस तरफ खड़ा व्यक्ति, निम्न मध्यम वर्ग की दुकान, मकान का हिसाब करे।
निम्न मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग की तरफ देखे। मध्यम वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग से और उच्च मध्यम वर्ग धनाढ्य लोगों, कंपनियों और उद्योग जगत से ईर्ष्या करे। यह है राहुल गांधी की ‘मुहब्बत की दुकान’। देश में अराजकता फैलाने पर आमादा, अपने कम्युनिस्ट उस्तादों की नकल करते-करते राहुल अब नक्सली भाषा बोल रहे हैं। इसलिए न न्याय की चिंता है, न संविधान की। आखिरकार राहुल, टैक्स आतंक और लाईसेंस माफिया की समाजवादी विरासत को संभालने वाले शहजादे हैं। उन्होंने देखा है कि तुष्टीकरण की शमशीर को कमर पर कसकर, ‘गरीबी हटाओ’ की अफीम जनता को चटाते रहकर, खानदान की सत्ता को बनाए रखा जाता है।
वोट बैंक का दलदल
अब कांग्रेस अपने ही बनाए जाल में बुरी तरह फंस चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी ने एक चुनावी रैली में कहा, ‘‘कांग्रेस वोट बैंक के दलदल में इतनी बुरी तरह फंसी हुई है कि उसे बाबा साहब आंबेडकर के संविधान की भी परवाह नहीं है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में लिखा है कि आपकी संपत्ति का सर्वे करेंगे। उनके नेता कह रहे हैं कि संपत्ति का एक्सरे किया जाएगा।’’ एक अन्य सभा में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘पहले जब उनकी सरकार थी, तब उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इसका मतलब, यह संपत्ति इकट्ठी करके किसको बांटेंगे? जिनके ज्यादा बच्चे हैं, उनको बांटेंगे। घुसपैठियों को बांटेंगे। क्या आपकी मेहनत की कमाई का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा? यह कांग्रेस का मेनिफेस्टो कह रहा है कि संपत्ति को बांट देंगे। और किसको बांटेंगे, जिनको मनमोहन सिंह जी की सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है।’’
कांग्रेस इन बातों से कैसे इनकार करेगी? क्या सफाई देगी? क्या पिछले सत्तर साल में, तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति के लिए, कांग्रेस ने देश और हिंदू समाज को दांव पर नहीं लगाया है? क्या आज भी कांग्रेस के इस रवैये में रत्ती भर परिवर्तन हुआ है? क्या बेहद अन्यायकारी वक्फ कानून बनाकर कांग्रेस ने देश की जमीन वक्फ बोर्ड को नहीं बांटी है? कांग्रेस के बनाए इस कानून के कारण मुस्लिम वक्फ बोर्ड इतना ताकतवर हो गया कि मद्रास उच्च न्यायालय को वक्फ बोर्ड से अपनी जमीन बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की शरण लेनी पड़ी, आम आदमी की तो बिसात ही क्या।
याद रहे कि संप्रग सरकार के समय ही केंद्रीय विद्यालय के प्रतीक चिन्ह में से भारतीय संस्कृति के प्रतीक कमल को हटाकर चांद-तारे तथा क्रॉस से बदला गया था। मोदी के आने से देश में सनातन संस्कृति आने का डर दिखाते कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे का बयान यूट्यूब पर मौजूद है। उनके बेटे प्रियंक खडगे और कांग्रेस के सहयोगी स्टालिन सनातन को डेंगू, मलेरिया और न जाने क्या-क्या कहते हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सहयोगी समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता रामगोपाल यादव पूजा-पाठ करने वालों को पाखंडी कहते हैं। दक्षिण के राज्यों में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने मुसलमानों को सरकारी आरक्षण दे रखा है। अभी हाल ही में कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम सरकारी कर्मचारियों को रमजान के महीने में जल्दी घर जाने की अनुमति दे दी। क्या हिंदू कर्मचारी इस तरह की कृपा की अपेक्षा कर सकता है? और इस तरह की छूट दी ही क्यों जानी चाहिए?
मोदी ने कांग्रेस और उसके साथी दलों की बांग्लादेशी घुसपैठियों पर मेहरबानियों का मुद्दा उठाया। कांग्रेस इसे ‘सांप्रदायिक बयान’ कहकर पल्ला झाड़ना चाह रही है, लेकिन सच कैसे छुपेगा। भारत में बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठियों के प्रति कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की नीति सिर्फ और सिर्फ तुष्टीकरण और देश की कीमत पर वोट बैंक बचाने की रही है। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने घुसपैठ को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया, उलटा घुसपैठ का पोषण किया। उन्हें राशन कार्ड और वोटर आईडी बनवाकर दिए। 1983 में कांग्रेस सरकार घुसपैठ रोकने के नाम पर आईएमडीटी एक्ट लेकर आई, परंतु वास्तव में यह कानून घुसपैठियों को निकालने की जगह मानो उन्हें भारत में अच्छी तरह बसाने के लिए ही बना था। यह कानून अपनी भारतीय नागरिकता सिद्ध करने की जिम्मेदारी घुसपैठियों पर नहीं, बल्कि सूचना देने वाले नागरिक पर डालता था। घुसपैठिए से कोई विवरण नहीं मांगा जाता था।
जांच करने वाले अधिकारी को आरोपित घुसपैठिए के निवास स्थान की जांच करने का भी अधिकार नहीं था। न ही वह उस पर सूचना देने के लिए कोई दबाव डाल सकता था। शिकायत करके अपना राष्ट्रीय कर्तव्य निभाने वाले नागरिक को भी यह कानून किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं देता था, बल्कि इस पर शिकायत पत्र के साथ शुल्क भी देने की जिम्मेदारी डालता था। इतना ही नहीं, यदि शिकायतकर्ता अपनी बात को सिद्ध नहीं कर पाया तो उलटे उस पर ही मुकदमा चलाने का भी प्रावधान था। 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस कानून को रद्द कर दिया। इस कानून को रद्द करते समय न्यायालय ने चाणक्य को उद्धृत करते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार को याद दिलाया था कि बाहरी आक्रमणों और देशद्रोही गतिविधियों से राज्य को सुरक्षित रखना शासन की जिम्मेदारी है।
दया नहीं आई मासूम बच्चियों पर
जहां एक ओर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी, सपा, राजद, डीएमके आदि दलों ने बांग्लादेशी घुसपैठ पर चुप्पी साथ कर अपने-अपने राज्यों में घुसपैठियों को संरक्षण दिया, वहीं पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी और ईसाई पीड़ितों को भारत की नागरिकता देने वाले सीएए कानून का विरोध किया। जब शाहीन बाग और देश में दूसरे सैकड़ों स्थान पर जिहाद की आग सुलगाई जा रही थी, तब ये सभी तथाकथित सेकुलर दल उस पर राजनीति की रोटियां सेक रहे थे। जबकि यह कानून 1948 में कांग्रेस द्वारा किए गए वादे को ही पूरा करता है। लेकिन दो जून की रोटी के फेर में लगे समाज को बहलाकर, कुछ समय बाद यह वादा ‘सेकुलरिज्म’ की भेंट चढ़ा दिया गया।
इसीलिए बाटला हाउस मुठभेड़ और फिलिस्तीन पर आंसू बहाने वाले सेकुलरों का दिल पाकिस्तान में अपहृत की जाने वाली 8, 10 और 12 साल की उन हिन्दू बच्चियों के आंसुओं से नहीं पिघला, जिन्हें उनके मां-बाप से छीन कर जबरिया इस्लाम कबूल करवा कर उनका निकाह करवा दिया गया। हर सभा में मतदाताओं से उनकी जाति पूछने वाले राहुल गांधी को इस बात से भी कोई मतलब नहीं कि इन पीड़ित पाकिस्तानी हिंदुओं में से 90 प्रतिशत अनुसूचित जाति और जनजाति के हैं। चाहे वह हिंदू हित हो या महिला हित, कांग्रेस और उसके जैसे सेकुलरिज्म के ठेकेदारों ने वोट बैंक को हमेशा ऊपर रखा। वे तीन तलाक के साथ खड़े रहे, हलाला का मौन समर्थन करते रहे।
हर बात में वोट बैंक
अनुच्छेद 370 मुस्लिम तुष्टीकरण के अलावा और क्या था? देश के स्वाधीन होने पर भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम नामक जिस कानून के अंतर्गत 562 रियासतों का भारत में विलय हुआ ठीक उसी कानून और इस प्रक्रिया के तहत जम्मू- कश्मीर का भी भारत में विलय हुआ, लेकिन चूंकि कश्मीर घाटी मुस्लिम बहुल थी, इसलिए जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान अनुच्छेद 370 के रूप में किया गया। अनुच्छेद 370 को तथाकथित ‘कश्मीरियत’ के संरक्षण के लिए आवश्यक बताया जाता रहा। यह ‘कश्मीरियत’ पंजाब की पंजाबियत या महाराष्ट्र की महाराष्ट्रियत से कितनी अलग थी? इस कश्मीरियत में हिंदू बहुल जम्मू के लिए कोई जगह नहीं थी।
अनुच्छेद 370 की आड़ में जम्मू के साथ घोर भेदभाव किया जाता रहा। आबादी और क्षेत्रफल अधिक होने के बावजूद जम्मू को 11 विधानसभा सीटें कम दी गर्इं। एक लोकसभा सीट भी कम रही। शिक्षा, चिकित्सा, प्रशासनिक तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व, जम्मू के साथ हर प्रकार का भेदभाव किया गया। कश्मीरी हिंदुओं के साथ जो हुआ, वह सर्व ज्ञात है। इसके अलावा पाकिस्तान की सेना और कबाइलियों की मारकाट से जान बचाकर राज्य में आए 2 लाख हिंदू शरणार्थियों, छंब से विस्थापित एक लाख लोगों और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से आए 8 लाख विस्थापितों को भी 70 साल तक मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा गया। उन्हें संविधान प्रदत्त अनुसूचित जाति-जनजाति आरक्षण से भी वंचित रखा गया। घाटी से विस्थापित कश्मीरी हिंदू दर-दर की ठोकरें खाते रहे और कश्मीरी हिंदुओं का हत्यारा यासीन मलिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ हाथ मिलाते हुए फोटो खिंचवाता रहा। कश्मीरी हिंदुओं के प्रति यह बेदर्दी आज भी नहीं बदली। पहली बार कश्मीरी हिंदुओं के ऊपर हुए अत्याचारों के बारे में बताने वाली एक फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ जब आई तो कांग्रेस समेत ‘इंडी’ नेताओं ने उसे झूठ का पुलिंदा बताया।
पाकिस्तान सगा क्यों हो गया?
2005-06 आते-आते कांग्रेस की नीतियां पाकिस्तान के प्रति नरम से नरम होती चली गईं। सोनिया-मनमोहन की सरकार ने पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह परवेज मुशर्रफ और सेना प्रमुख अशफाक कियानी के साथ ‘ट्रैक-2 कूटनीति’ को आगे बढ़ाया। इस समझौते के मुख्य बिंदु थे-
1. नियंत्रण रेखा यानी एलओसी को ही अंतरराष्ट्रीय सीमा मान लेना
2. भारत-पाकिस्तान सीमा को बंधन एवं नियंत्रण मुक्त बनाना
3. कश्मीर घाटी में सेना घटाना और भारत के लिए सामरिक दृष्टि से
अति महत्वपूर्ण सियाचिन से भारत का सैन्य कब्जा छोड़ देना
4. साझा नियंत्रण, 5. सीमा के दोनों ओर जम्मू-कश्मीर क्षेत्र को अधिक स्वायत्तता देना।
इस गुप्त बातचीत की भनक जब सेना और राष्ट्रीय विचार के लोगों व संगठनों तक पहुंची और इसका विरोध शुरू हुआ तो संप्रग सरकार इससे पीछे हट गई। हद तो तब हो गई जब मुंबई पर 26/11 का भीषण आतंकी हमला हुआ और उसमें पाकिस्तान का स्पष्ट हाथ सामने आया। ऐसे समय पाकिस्तान पर किसी तरह की कोई कार्रवाई करने के स्थान पर केवल बयानबाजी की गई और अजीज बर्नी नामक पत्रकार ने ‘आरएसएस की साजिश 26 /11’ नामक किताब लिखी, जिसमें पाकिस्तान को क्लीनचिट देते हुए आतंकी हमले के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ भारत की सुरक्षा एजेंसियों को भी जिम्मेदार ठहराया गया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने उस पुस्तक का लोकार्पण किया था। कांग्रेसी नेता ‘ओसामा जी’ और ‘हाफिज सईद साहेब’ जैसे संबोधन दिया करते थे। कांग्रेस और उसके ‘इंडी’ गठबंधन के सहयोगियों ने सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाए। कुछ लोग इस हद तक चले गए कि उन्होंने पुलवामा हमले को भारत सरकार द्वारा करवाया गया हमला बताने की कोशिश की। कांग्रेसी नेता संदीप दीक्षित ने सेना प्रमुख को सड़कछाप गुंडा तक कह डाला था।
सूली लेकर घूमते सेकुलर
कांग्रेस और तथाकथित सेकुलर दलों के तुष्टीकरण की हरकतों की यह सारी चर्चा अधूरी रह जाएगी यदि सोनिया-मनमोहन सरकार के ‘सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक 2011’ की चर्चा ना की जाए। तथाकथित अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के नाम पर लाया गया यह विधेयक यदि कानून बन जाता तो भारत के हिंदुओं के गले की फांस बन जाता। यह विधेयक इसमें वर्णित ‘समूह’ के सदस्यों को विशेष अधिकार देता था। इसकी ‘समूह’ की परिभाषा के अंतर्गत मजहबी अल्पसंख्यक जैसे मुस्लिम, ईसाई तथा भाषाई अल्पसंख्यक तथा अनुसूचित जाति व जनजाति को रखा गया था। वास्तव में, विधेयक में भाषाई अल्पसंख्यक तथा अनुसूचित जाति व जनजाति को मुखौटे के रूप में रखा गया था, क्योंकि भाषाई अल्पसंख्यक जैसी चीज या इस प्रकृति के विवाद भारत के समाज में नहीं हैं, और अनुसूचित जाति व जनजाति के ऊपर किसी भी प्रकार के अत्याचार को रोकने के लिए कानून बना हुआ है।
पुलिस में भी इस हेतु विशेष व्यवस्था है। व्यावहारिक पक्ष को देखें तो इस विधेयक में हिंदुओं के भावी ‘अपराधों’ की सूची पहले से तैयार कर दी गई थी जैसे ‘समूह’ के सदस्यों के व्यापार या व्यवसाय का बहिष्कार करना या उसके जीवन को दूभर बनाना। ‘समूह’ के सदस्यों का सार्वजनिक सेवाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा आदि में बहिष्कार करना। ‘समूह’ के सदस्यों को मौलिक अधिकारों से वंचित करना या उसके लिए धमकी देना, उसका अपमान करना या ऐसा कोई कार्य जो ‘समूह’ के सदस्य के प्रति कटुतापूर्ण वातावरण बनाता हो। अब ये सारे ऐसे प्रावधान थे कि किसी भी राह चलते व्यक्ति को सूली पर चढ़ाया जा सकता था।
यह विधेयक पुलिस और नौकरशाही पर एकतरफा कार्रवाई करने के लिए अनुचित दबाव बनाता था। इसमें सांप्रदायिक दंगे की व्याख्या भी इस प्रकार से की गई थी कि व्यावहारिक रूप में, कोई दंगा केवल तभी सांप्रदायिक दंगा माना जाता यदि उसमें अल्पसंख्यक वर्ग का नुकसान होता। यदि बहुसंख्यक वर्ग का नुकसान होता तो विधेयक उसे सांप्रदायिक नहीं मानता था। किसी महिला के साथ अत्याचार होने पर यह विधेयक उनमें भी मजहब के आधार पर फर्क करता था।
हिंदू मन पर लगातार चोट
आज से 6 वर्ष पहले केरल कांग्रेस के सदस्यों ने सड़क पर गाय के गले पर छुरी चलाते हुए ‘यूथ कांग्रेस जिंदाबाद’ के नारे लगाए थे, और गोमांस का भोज किया था। आज कांग्रेस अपने घोषणापत्र में ‘अल्पसंख्यकों को खाने-पीने की आजादी’ देने की बात कर रही है। यह वोट बैंक और तोड़फोड़ की राजनीति का भरोसा है। इसी वोट बैंक के भरोसे कांग्रेस राम सेतु को तोड़ने, श्रीराम को काल्पनिक कहने और राम मंदिर के लोकार्पण कार्यक्रम का बहिष्कार करने का साहस रखती है। यह साधारण बात नहीं कि एक तरफ राजनीतिक हितों और वोट बैंक की राजनीति के लिए अदालत में राम जन्मभूमि के मामले को दशकों तक लटकाया जाता रहा और यहां हिंदू समाज के जले पर नमक छिड़कते हुए कहा जाता रहा, ‘मंदिर वहीं बनाएंगे पर तारीख नहीं बताएंगे।’और जब 500 साल की प्रतीक्षा के बाद राम मंदिर के लोकार्पण का अवसर आया तो सेकुलर राजनीति के नाम पर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के आमंत्रण को ठुकरा दिया गया।
इसी के भरोसे इफ्तार पार्टियों में जालीदार टोपी लगाकर पहुंचने वाले ‘जो मंदिर जाते हैं, बाद में वही लड़की छेड़ते हैं’ जैसा बयान देते हैं। ‘न्याययात्रा’ के दौरान राहुल गांधी का बयान खूब वायरल हुआ था, जिसमें वे चीख रहे थे..‘जय श्रीराम, जय श्रीराम, जय श्रीराम… इन लोगों को कोई काम नहीं, मंदिर जाना है और भूखे मरना है।’ क्या राहुल गांधी कभी ऐसा भी कह सकते हैं, ‘इन लोगों को और कोई काम नहीं, नमाज पढ़ना है, और…….’! इंडी गठबंधन के दल हिंदू मंदिरों पर टैक्स लगाकर मुस्लिम संस्थाओं को बांटते रहे, हज हाउस बनवाते रहे। ममता बनर्जी मौलवियों और मुअज्जिनों को वेतन देती रहीं। सीएए कानून का इसलिए विरोध, क्योंकि पीड़ित हिंदू हैं। समान नागरिक संहिता का विरोध, क्योंकि मुस्लिम मतों के ठेकेदार ऐसा नहीं चाहते। गोधरा में ट्रेन में जिंदा जलाए गए कारसेवकों पर एक शब्द नहीं। कश्मीरी हिंदुओं के लिए एक आंसू नहीं। ये गट्ठा वोट बैंक का भरोसा है।
झूठ को झूठ का सहारा
जब राहुल ने देश के नागरिकों की संपत्ति का हिसाब-किताब करने की बात की तो अमेरिका में बैठे उनके उस्ताद सैम पित्रोदा ने राहुल की बात में अमेरिकी वजन डालने के लिए बयान दे डाला कि अमेरिका में पैतृक संपत्ति पर 55 प्रतिशत विरासत टैक्स लगता है और अमेरिकी लोग अपनी संपत्ति का केवल 45 प्रतिशत अपने बच्चों को दे सकते हैं। इससे बवाल मच गया। अब बात बिगड़ती देख कांग्रेस पार्टी सैम पित्रोदा के बयान से पल्ला झाड़ रही है और राहुल गांधी के बयान पर चुप है। राहुल तथ्यहीन, झूठे बयान देने के लिए प्रसिद्ध हैं।
अपने बयानों पर देश की सर्वोच्च अदालत में जाकर माफी भी मांग चुके हैं। चीन की तानाशाह कम्युनिस्ट पार्टी से गुप्त समझौता (जिस समझौते की विषयवस्तु आज भी देश को पता नहीं है) करने वाले राहुल गांधी बयान देते रहे कि ‘चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा कर लिया है।’ अब कहते घूम रहे हैं कि हमारे सैनिक अग्निवीर चीन की सेना के सामने टिक नहीं पाएंगे। पिछले चुनाव में उन्होंने राफेल लड़ाकू विमानों पर इतना रायता फैलाया कि सर्वोच्च न्यायालय को दखल देना पड़ा। लेकिन सैम पित्रोदा, जो कांग्रेस के थिंक टैंक और राहुल के मार्गदर्शक कहलाते हैं, भी राहुल की तरह ही बयान दे रहे हैं। सैम पित्रोदा ने अमेरिका के जिस पैतृक संपत्ति कानून की बात की है, उसकी सचाई कुछ और है।
अमेरिका में 50 राज्य हैं, उनमें से सिर्फ 6 में यह कानून है, और टैक्स की दर 20 प्रतिशत है न कि 55 प्रतिशत, जैसा कि सैम पित्रोदा ने बयान दिया है। इन 6 अमेरिकी राज्यों में से एक आयोवा 2025 में इस कानून को समाप्त भी करने जा रहा है। इतना ही नहीं, इन 6 राज्यों में भी, निकटतम संबंधियों को इस कर से छूट भी दी जाती है। पति या पत्नी पर भी यह कर नहीं लगता। इस सबके अलावा भारत और अमेरिका की परिवार व्यवस्था, आर्थिक-सामाजिक ढांचे, कृषि, उद्योग-व्यापार में भी बहुत भिन्नता है। लेकिन राहुल को इस सबसे क्या? वे हॉलीवुड की ‘वाइल्ड वेस्ट’ फिल्मों के उस चरित्र की तरह हैं, जो ‘गन फाइट’ में बड़ी अदा के साथ कमर पर बंधी पिस्तौल निकालते हैं, लेकिन ट्रिगर दबने पर गोली किसको लगेगी, या उनके खुद के ही पैर पर लगेगी, इसका कोई ठिकाना नहीं होता।
वे अपनी सीमाओं को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं, और सब कुछ जानते बूझते, देश को मजहबी उन्माद, तुष्टीकरण और नक्सली एजेंडे की आग में झोंकने पर आमादा हैं। तुष्टीकरण की राजनीति की जनक कांग्रेस अपनी जैसी सोच वाले सियासतदाओं के साथ नक्सली सोच और जिहादी मंसूबे लिए, खोया हुआ तख़्त पाने को बेचैन है।
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