भारत मे अराजकता की हद तक अभिव्यक्ति की आजादी का समर्थन करने वाला अमेरिका इन दिनों अपने यहाँ अराजकता की अभिव्यक्ति की आजादी का रूप देख रहा है। यह सभी ने देखा था कि जब भारत मे नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर शाहीन बाग मे आंदोलन चल रहा था और किसान आंदोलन को लेकर भारत मे करोड़ों लोग परेशान हो रहे थे, उस समय अमेरिका समेत कथित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नारा लगाने वाले देश भारत को नसीहतें दे रहे थे। अमेरिका से बार-बार यह कहा जा रहा था कि अभिव्यक्ति की आजादी और शांतिपूर्ण प्रदर्शन की आजादी होनी चाहिए।
यह भी सभी को याद होगा कि कैसे प्रदर्शनों की आजादी के पीछे भारत और हिंदुओं को नष्ट करने की भी बातें लगातार की जा रही थीं। भारत की तस्वीर ऐसे देश के रूप मे प्रस्तुत की जा रही थी, जहां पर बात करने की, अपना मत रखने की आजादी नहीं है। मगर अमेरिका सहित पश्चिमी देश अभिव्यक्ति की आजादी और अराजकता के बीच अंतर या तो समझ नहीं पा रहे थे या फिर जानबूझकर समझना नहीं चाहते थे। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अराजकता का वीभत्स रूप भारत ने देखा था और उस अराजकता का विरोध करने पर भारत को तानाशाह देश या अभिव्यक्ति की आजादी न होने वाला देश बताया जा रहा था।
परंतु समय का पहिया बहुत तेजी से चलता है। भारत मे जिस अराजकता का समर्थन अमेरिका जैसे देश कर रहे थे, अब वही आजादी की अराजकता वहाँ पर अपने चरम रूप मे आ रही है। जो आजादी के नारे भारत के टुकड़े-टुकड़े करने के लिए आमदा थे, वही टुकड़े-टुकड़े आजादी के नारे अमेरिका मे पहुंचे, जैसा हमने पिछले दिनों देखा था।
मगर अब यह आजादी की आंच और भी तेज हुई है और अब वहाँ की कई यूनिवर्सिटी मे फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले छात्र इजरायल विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं। कई वीडियो दिखाते हैं कि वहाँ पर कैसे फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले छात्रों को गिरफ्तार किया जा रहा है। यह भी हैरानी की बात है कि भारत मे पुलिस बल के प्रयोग की बात न करने वाला अमेरिका अपने यहाँ विद्यार्थियों को हिरासत मेन ले रहा है और भारत मे शाहीन बाग मे महीनों-महीनों तक सड़क जाम करके “फक हिन्दुत्व” के नारों को अभिव्यक्ति की आजादी मानने वाला अमेरिका अपने यहाँ से उन टेंटों को पुलिस बल द्वारा उखड़वा रहा है, जो विद्यार्थियों ने प्रदर्शन करने के लिए लगाए थे।
दरअसल यह सारे विरोध प्रदर्शन इजरायल के खिलाफ और गाजा के पक्ष मे हो रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इजरायल गाजा के साथ युद्ध कर रहा है, और अत्याचार कर रहा है, इसलिए इस युद्ध को रोका जाना चाहिए और इसी को लेकर वे शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं।
मगर ये प्रदर्शन कितने शांतिपूर्ण है, यह इससे पता चलता है कि येल यूनिवर्सिटी मे जब यह कथित शांतिपूर्ण आंदोलन आरंभ हुए थे, तब एक यहूदी विद्यार्थी पत्रकार सहर तरतक, जो येल फ्री प्रेस की एडिटर है, और जो उस समय चल रहे विरोध प्रदर्शनों को कवर कर रही थीं, उनपर प्रदर्शनकारियों द्वारा हमला कर दिया गया था।
तरतक का कहना था कि चूंकि उन्होनें यहूदियों वाली पोशाक पहनी हुई थी, तो उन्हें अलग किया गया, और भीड़ ने उन्हें शूटिंग नहीं करने दी और उन पर झंडे के डंडे से आँख पर हमला किया था, जिससे उनकी आँख मे चोट आई।
येल यूनिवर्सिटी मे उन्होनें एक लिबरेशन ज़ोन या गाजा ज़ोन का निर्माण कर लिया था, जहां पर किसी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं थी। दूसरे शब्दों मे कहा जाए कि बंधक बना लिया गया था। भारत मे शाहीन बाग के बहाने दिल्ली बंधक बनी रही थी और यही फॉर्मूला था, कथित शांतिपूर्वक प्रदर्शन का। और लोग परेशान होते रहे थे। पूरे हिन्दू समाज के प्रति घृणा का वातावरण तैयार कर दिया गया था। यह भी याद होगा कि कैसे पोस्टर्स मे हिन्दू देवियों को ही हिजाब मे दिखा दिया गया था।
यह सब उसे अभिव्यक्ति और प्रदर्शन की आजादी के नाम पर हो रहा था, जो इन दिनों अमेरिका मे चल रहा है। जहां पर यूनिवर्सिटीज मे कथित शांतिपूर्ण प्रदर्शन गाजा को बचाने के लिए किये जा रहे हैं। बुधवार को इस आजादी के नारे का भयंकर रूप तब दिखाई दिया जब इजरायल के गाजा के युद्ध को लेकर अमेरिका की कई यूनिवर्सिटी इस आजादी की अराजकता की भेंट चढ़ने लगीं।
टेक्सस ऑस्टिन कैंपस मे प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शन करना आरंभ किया और मांग की कि इजरायल जो युद्ध गाजा के साथ कर रहा है, उसमें इजरायल को हथियार आपूर्ति बंद की जाए। और यह विरोध प्रदर्शन जिम से आरंभ हुआ था, और देखते ही देखते 200 के करीब विद्यार्थी जमा हो गए।
परंतु शाहीन बाग से लेकर येल, कोलम्बिया और टेक्सस ऑस्टिन तक ऐसा क्या है जो आम है? जो सामान्य है? क्या है जो कड़ियाँ जोड़ता है? दरअसल पिछले कई वर्षों से यह देखा जा रहा है कि यूनिवर्सिटी वोक्स, कम्युनिस्ट एवं कट्टर इस्लामिस्ट विचारों की सबसे बड़ी शरणास्थली बन गई हैं। भारत मे भी शाहीन बाग हो या फिर किसान आंदोलन, जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के कुछ छात्र संगठनों के नाम और सहभागिता स्पष्ट नजर आई थी। वहीं जब से इजरायल ने 7 अक्टूबर 2023 को स्वयं के नागरिकों के हमास के आतंकियों द्वारा मारे जाने और बंधक बनाए जाने को लेकर हमास पर पलटवार आरंभ किया है, तब से अमेरिका मे कई यूनिवर्सिटी मे इजरायल के विरोध मे और गाजा के समर्थन मे प्रदर्शन हो रहे हैं। यह भी याद होगा कि कैसे उस समय पैरा-ग्लाइडर से उतरते हमास के आतंकी की फ़ोटो एक क्रांतिकारी तस्वीर के रूप मे प्रस्तुत की गई थी। और यह भी कई यूनिवर्सिटी के छात्र संगठनों ने कहा था कि इजरायल पर हमला अकारण नहीं था।
परंतु अब यह प्रदर्शन संभवतया कथित आजादी की सीमा पार कर गए हैं, ऐसा प्रतीत होता है, और अब विरोध प्रदर्शनों से निपटने के लिए पुलिस का सहारा लिया जा रहा है। कोलम्बिया यूनिवर्सिटी ने न्यूयॉर्क पुलिस विभाग से मदद मांगी कि वे कैंपस से फिलिस्तीन समर्थक विद्यार्थियों को हटाएं। और उसके बाद पुलिस ने कार्यवाही करते हुए 100 से अधिक प्रदर्शनकारियों को हिरासत मे लिया, जिसमें इसरा हिरसी भी शामिल है।
इसरा हिरसी कट्टर इस्लामिस्ट और हमास की हमदर्द तथा भारत का विरोध करने वालाई इलहान ओमार की बेटी है। इलहान ओमार ने पुलिस की कार्यवाही की निंदा की है। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी , येल यूनिवर्सिटी , इलिनोइस यूनिवर्सिटी , और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी , बर्कले, और दक्षिणी कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी सहित कई शैक्षणिक संस्थानों मे यह आग फैल गई है।
और अब दंगा रोधी उपायों के साथ पुलिस इनसे निपटने के लिए आगे आई है
वहीं मिनेसोटा यूनिवर्सिटी मे इलहान ओमार भी फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले विद्यार्थियों के पक्ष मे खड़ी नजर आईं और उन्होनें मीडिया और राजनेताओं की आलोचना करते हुए कहा कि मीडिया और राजनेता गाजा मे हो रही घटनाओं के स्थान पर अमेरिकी यूनिवर्सिटी मे चल रहे विरोध प्रदर्शनों पर ध्यान दे रहे हैं।
जब इलहान ओमार की संलग्नता इस अभियान मे है तो इसकी दिशा क्या होगी यह पूरी तरह से समझ मे आता है।
यह आग मैनहट्टन के फैशन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मे भी पहुंची और वहाँ पर फिलिस्तीन समर्थकों ने हल्ला बोल दिया।
भारत ने कहा स्थिति पर नजर है
भारत की ओर से भी इस स्थिति को लेकर प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है। भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से गुरुवार 25 अप्रेल को अमेरिका की विभिन्न यूनिवर्सिटी मे चल रहे विरोध प्रदर्शनों की ओर से प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। मंत्रालय ने कहा कि प्रत्येक लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जिम्मेदारी की भावना और सार्वजनिक सुरक्षा एवं व्यवस्था के बीच सही संतुलन होना चाहिए। लोकतंत्रों को विशेष रूप से अन्य साथी लोकतंत्रों के संबंध में यह समझ प्रदर्शित करनी चाहिए। आख़िरकार, हम सभी का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाता है कि हम घर पर क्या करते हैं, न कि हम विदेश में क्या कहते हैं
भारत का यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसमें यह कहा गया है कि हम सभी का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाता है कि हम घर पर क्या करते हैं, न कि हम विदेश में क्या कहते हैं”। यह बहुत ही मजबूत वक्तव्य है जो अमेरिका जैसे देशों और वहाँ की मीडिया को अपने दायरे मे रहने के लिए कहता है।
पश्चिम का औपनिवेशिक मीडिया जहां भारत को लेकर तमाम तरह की अभिव्यक्ति की आजादी की बात करता है, उसे अमेरिका मे हो रही घटनाओं को देखकर अभिव्यक्ति की आजादी और अराजकता मे अंतर समझ मे आ रहा होगा। भारत मे शाहीन बाग मे अभिव्यक्ति की आजादी ने किस प्रकार से पूरे देश को बंधक बनाकर रखा हुआ था, यह उन्हें समझ आ रहा होगा और कैसे किसान आंदोलन के नाम पर पूरे के पूरे रास्ते बंद पड़े रहे, जिससे उद्योगों का नुकसान हुआ और आम जन को कष्ट, और वह भी मात्र प्रदर्शन की आजादी के नाम पर?
यह बहुत ही विख्यात कहावत है कि आपकी मुट्ठी घुमाने की आजादी की सीमा वहाँ पर समाप्त हो जाती है जहां से मेरी नाक आरंभ होती है। अर्थात आजादी असीमित नहीं होती है। जो आजादी यह नहीं समझे कि मुट्ठी तभी तक आजाद घूम सकती है, जब तक उसके सामने किसी की नाक नहीं आती, तो वह आजादी आजादी नहीं दूसरे को घायल करने की सनक है।
यह आशा की जानी चाहिए कि अब अमेरिका और पश्चिमी मीडिया को यह समझ आएगा कि आजादी की सीमा क्या होती है और बिना उत्तरदायितवबोध के आजादी-आजादी नहीं, मात्र अराजकता होती है और जिसे जितना जल्दी समाप्त कर दिया जाए उतना ही बेहतर होता है। भारत इस अराजकता की आजादी या आजादी की अराजकता का सामना लगातार कर रहा है और घाव भी खा चुका है, कुछ घाव तो बहुत ताजे हैं।
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