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लाल आतंक : कांग्रेस का नक्‍सलवाद से प्रेम बहुत पुराना है

छत्‍तीसगढ़ के कांकेर में मारे गए नक्सली सिरीपेल्ली सुधाकर उर्फ शंकर राव के घर कांग्रेस की एक वरिष्ठ नेता और तेलंगाना की कांग्रेस सरकार में मंत्री अनुसुइया दनसारी कुछ दिन पहले पहुंची थीं

by डॉ. मयंक चतुर्वेदी
Apr 25, 2024, 04:38 pm IST
in विश्लेषण
शंकर राव को श्रद्धांजलि देने पहुंची कांग्रेस नेता अनुसुइया दनसारी

शंकर राव को श्रद्धांजलि देने पहुंची कांग्रेस नेता अनुसुइया दनसारी

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केंद्र की मोदी सरकार और उनकी पार्टी भाजपा शुरू से ही नक्‍सलवाद पर आक्रामक रहती आई है, लेकिन दूसरी और भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस के नेता कई बार जिस तरह का व्‍यवहार करते दिखे और उनके बयान सामने आए, उससे लगता है कि कांग्रेस जरूर नक्‍सलियों से विशेष प्रेम रखती है। इसलिए जब कोई नक्‍सली पुलिस मुठभेड़ में मारा जाता है तो उसके नेता नक्‍सली के घर जाकर उसे श्रद्धांजलि देने में भी परहेज नहीं करते । सोचने वाली बात है कि जब देश की मुख्‍य विपक्षी पार्टी एवं कई राज्‍यों में जिसकी सरकार हो, वह कांग्रेस इस तरह का कृत्‍य करे या उस संगठन के लोग प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष तौर पर नक्‍सलियों से मिले हों अथवा उनके समर्थन में आगे आएं, तब फिर यह निर्णय जनता की अदालत पर छोड़ देना चाहिए कि लोकतंत्रात्‍मक व्‍यवस्‍था में वह उसके लिए क्‍या निर्णय लेती है।

छत्‍तीसगढ़ के बस्‍तर रीजन के कांकेर में मारे गए माओवादी (नक्सली) नेता सिरीपेल्ली सुधाकर उर्फ शंकर राव के घर कांग्रेस की एक वरिष्ठ नेता और तेलंगाना की कांग्रेस सरकार में मंत्री अनुसुइया दनसारी उर्फ सीताक्का अभी कुछ दिन पहले ही पहुंची थीं। उनका इससे जुड़ा वीडियो भी वायरल है। यह सर्वविदित है कि नक्सली आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति सुधाकर कई हिंसक घटनाओं में शामिल था और सुरक्षा बलों को उसकी तलाश थी।

अब आप ही सोचिए; कांग्रेस पार्टी के किसी वरिष्‍ठ नेता और एक राज्‍य तेलंगाना में जोकि महत्‍वपूर्ण विभाग का मंत्री भी हो, वह किसी नक्‍सली के घर जाकर उसके परिवार के सामने संवेदना व्‍यक्‍त करे तो उसके इस कृत्‍य को क्‍या माना जाए? क्‍या यह देशभक्‍ति है या देशद्रोह ? ऐसे में कई लोग आज कह रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी के एक जिम्‍मेदार नेता का यह आचरण केवल चरमपंथियों, वामपंथियों के कार्यों को महिमामंडित करने और उसे वैध बनाने के काम आता है। साथ ही यह क्षेत्र में कानून व्यवस्था बनाए रखने के सुरक्षा बलों के प्रयासों को कमजोर करते हैं। क्‍योंकि शंकर राव कोई सामान्‍य व्‍यक्‍ति नहीं था, जिसकी श्रद्धांजलि सभा में मंत्री गई थीं, वह एक माओवादी नक्‍सल संगठन का उत्तर बस्तर डिवीजनल कमेटी का खूंखार आतंकी था।

प्रश्‍न यह है कि क्‍या यह पहली घटना है, जब किसी नक्‍सली के प्रति कांग्रेस के नेता द्वारा हमदर्दी जताई गई। वस्‍तुत: छत्तीसगढ़ के जंगल में सुरक्षाबलों ने चार घंटे तक चली मुठभेड़ में जब 29 नक्सलियों को ढेर कर दिया जाता है, तब इसके लिए सुरक्षाबलों की पीठ थपथपाने की जगह कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत नक्‍सलियों को महिमामंडित करने का काम करती दिखती हैं, वह मारे गए नक्‍सलियों को ‘शहीद’ बताती हैं। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता शहजाद पूनावाला की इस पर प्रतिक्रिया भी आई, उन्‍होंने कहा भी कि ”यह वही नक्सली हैं जिन पर 25 लाख का इनाम है लेकिन कांग्रेस कहती है जो शहीद हुए हैं उनकी जांच होनी चाहिए।”

एक बयान छत्‍तीगढ़ के पूर्व मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल का भी खूब चर्चाओं में रहा, उन्‍होंने तो हद ही कर दी! कह रहे हैं कि ‘जब से भाजपा की सरकार छत्‍तीसगढ़ में बनी है, प्रदेश में फर्जी मुठभेड़ बढ़ गई है। अभी चार महीने में फिर से फर्जी एनकाउंटर में वृद्धि हुई है। नक्सली बताकर वनवासियों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस के द्वारा उन्हें डराया-धमकाया जाने लगा है। बस्तर और कांकेर जैसे क्षेत्र में ये चल रहा है। इस प्रकार की घटनाओं की वृद्धि हो रही है।’ विचार करें; क्‍या इस प्रकार के प्रमुख कांग्रेस नेताओं के बयान से नक्‍सलियों का मनोबल नहीं बढ़ता होगा?

अगले साल छत्तीसगढ़ में झीरम घाटी नरसंहार को 11 साल पूरे हो जाएंगे। इस सबसे बड़े नक्सली हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस की प्रथम पंक्ति के कई नेता मारे गए थे। कई जवान भी बलिदान हुए थे। इस मामले में अब तक की जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है । ऐसे में हमले में मारे गए कांग्रेस नेता और बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा के बेटे छविंद्र कर्मा ने कांग्रेस पर बड़ा सवाल खड़ा किया है। उन्होंने हमले में जीवित बचे नेताओं का नार्को टेस्ट कराने की मांग की है। साथ ही कहा कि नक्सलियों का ऐसा क्या प्रेम, जो कवासी लखमा बचकर आ जाते हैं। कर्मा ने सवाल उठाते हुए कहा, कोंटा से कवासी लखमा विधायक हैं। उनके विधानसभा क्षेत्र से यात्रा निकाल रही थी। ऐसे में उनकी जवाबदारी सुरक्षित यात्रा की थी लेकिन आश्‍चर्य है कि नक्‍सली हमला करते हैं और लखमा जी बचके आ जाते हैं, बाकी लोग बलिदान होते हैं। क्यों ! नक्सलियों का ऐसा क्या प्रेम है लखमा जी से। मेरे पिता नहीं रहे। मेरा नुकसान हुआ। मैं अभी भी डंके की चोट पर कहता हूं कि इस हमले में बचकर आए सभी नेताओं का नार्को होना चाहिए। इस नक्‍सली हमले की ह्दयविरादकता इतनी अधिक थी कि नक्सलियों ने बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा को करीब 100 गोलियां मारीं और चाकू से उनका शरीर पूरी तरह छलनी कर दिया था। नक्सलियों ने उनके शव पर चढ़कर डांस भी किया था।

इसी प्रकार कांग्रेस से राज्यसभा सांसद रंजीत रंजन का नक्‍सली समर्थक बयान सामने आ चुका है। जिस पर पिछले वर्ष भाजपा के वरिष्‍ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल ने पलटवार करते हुए पूरी की पूरी कांग्रेस पार्टी को ही नक्सल समस्या की जननी और संरक्षक बताया था। साथ ही कहा कि देश और प्रदेश के विकास को नक्सलियों ने अवरुद्ध किया। शहरों में रहने वाले नक्सलियों के समर्थकों ने विकास को रोका। कांग्रेसियों में नक्सलियों के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर है जो‍कि देश के लिए बहुत घातक है। दरअसल, सांसद रंजीत रंजन ने कहा था कि सभी नक्सली लोग गलत नहीं होते। बहुत लोगों को गलत तरीके से फायदा उठाया जाता जाता है। बहुत लोग उनके नाम से दुकानें चला रहे होते हैं। वह भी इंसान हैं। हम भी इंसान हैं तो डर कैसा। जो लोग यह पैदा कर रहे हैं वह नहीं चाहते कि शांति बहाल हो। यानी कि एक तरह से सांसद रंजीत रंजन ने नक्‍सलियों को भोला-भाला इंसान करार दिया था, जोकि कई भोलेभाले आमजन, नेताओं और पुलिस फोर्स, सैनिकों के हत्‍यारे हैं।

यह भी एक तथ्‍य है कि वर्ष 2018 मे प्रतिबंधित नक्सलियों से साठगांठ के आरोप में गिरफ्तार और नजरबंद तत्‍कालीन 10 लोगों के पास मिले दस्तावेजों से देश में अस्थिरता फैलाने की बड़ी साजिश का संकेत मिला था। चौंकाने वाली बात यह है कि नक्सलियों की मदद कर रहे ‘शहरी नक्सली’ इस मामले में कांग्रेस की सहायता मिलने का भी दावा कर रहे थे । भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार रोना विल्सन के लैपटॉप में एक बड़े नक्सली नेता की ईमेल मिली। ईमेल में ‘कामरेड एम’ ने दलित आंदोलन की आड़ में देश में अस्थिरता फैलाने में कांग्रेस का साथ मिलने का दावा किया गया था। विल्सन को भेजी ईमेल में लिखा गया कि शहर में रहने वाला शीर्ष नक्सल नेतृत्व कांग्रेस में हमारे कुछ दोस्तों के साथ संपर्क में है। वे दलित आंदोलन को और भी आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाने का सुझाव दे रहे हैं।

भीमा कोरेगांव हिंसा के दो दिन बाद ही लिखी ईमेल में वहां चले आंदोलन को काफी सफल बताया गया। इसके साथ ही हिंसा में एक व्यक्ति की मौत को मुद्दा बनाते हुए आगे भी आंदोलन चलाने और इसके लिए दुष्प्रचार सामग्री तैयार करने का निर्देश दिया गया था। ‘कामरेड एम’ के अनुसार नक्सल नेतृत्व ने भीमा कोरेगांव हिंसा के लिए कामरेड सुधीर को दो बार फंड भेजा था। इसके साथ ही आगे के आंदोलन के लिए जरूरी फंड की जिम्मेदारी कामरेड शोमा और कामरेड सुरेंद्र को सौंपी गई । ‘कामरेड एम’ ने रोना विल्सन को बताया है कि किस तरह नक्सल नेतृत्व भीमा कोरेगांव की तर्ज पर अन्य भाजपा शासित राज्यों में उग्र दलित आंदोलन खड़ा करने की तैयारी में जुटा है। इस काम में जुटे विश्वरूपा, सुदीप, सुशील और देवजानी का मोबाइल नंबर भी दिया गया । इसमें में यह साक्ष्‍य महत्‍वपूर्ण है कि रोना विल्सन ने ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश का सुझाव अपनी ईमेल में नक्सली नेतृत्व को दिया था। इसकी जानकारी मिलने के बाद रोना विल्सन को जून में ही गिरफ्तार कर लिया गया था ।

वस्‍तुत: आज हमें यह ध्‍यान रखने की आवश्‍यकता है कि देश के 11 राज्य नक्सल से प्रभावित हैं। कुल 90 जिलों में नक्सली हिंसा देखने को मिलती है। सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित राज्य हैं- छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना। छत्तीसगढ़ में लगातार हो रही घटनाएं इसकी तस्दीक करती हैं, जहां नक्सली हर साल कई बार सुरक्षाबलों को निशाना बनाते हैं। हजारों जानें ऐसे हमलों में जा चुकी हैं और साल दर साल जा रही हैं। ये नक्सलवादी दावा करते हैं कि वे वनवासियों, छोटे किसानों और गरीबों की लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि ये सच नहीं है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार द्वारा जनकल्‍याण की योजनाओं तक को आरंभ नहीं होने देते हैं। अपने डर के साए में लोगों को रखते हैं और उन्‍हें विकास की मुख्‍य धारा से जान-बूझकर दूर रखते हैं ताकि उनके मन में शासन के प्रति विद्रोह की भावना भरना आसान हो जाए।

भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा भी कांग्रेस पर नक्‍सलियों की मदद करने का आरोप लगाते हैं। वह पूछते हैं कि कांग्रेस के नेताओं का नक्‍सलवादियों पर पुलिस फोर्स की कार्रवाई के पश्‍चात उस पर प्रश्‍न खड़े करना आखिर क्‍या दर्शाता है? वास्‍तव में कांग्रेस ने अपने कार्यकाल के दौरान नक्सलवाद को मुख्यधारा में ला खड़ा किया। उन्होंने सलाह दी कि पार्टी को अपना नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (माओवादी) या माओवादी कांग्रेस पार्टी कर लेना चाहिए। “राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुद्दा है और सिर्फ राजनीति अवसरवादिता के लिए इसके साथ खेलना कुछ ऐसा ही है, जैसा कांग्रेस हमेशा करती आई है। “हम कह सकते हैं कि भ्रम, साजिश और कांग्रेस एक-दूसरे के समानार्थी हैं।” इसके साथ संबित पात्रा यह भी जोड़ देते हैं कि कांग्रेस ने नक्सलवाद पर हमेशा दोहरा रवैया अपनाया है। 2010 में देशद्रोह के लिए दोषी ठहराए गए बिनायक सेन को योजना आयोग और सर्वाधिक महत्वपूर्ण निकाय -स्वास्थ्य संबंधित संचालन समिति में शामिल किया गया था। उन्‍होंने कांग्रेस से पूछा है कि आखिर कांग्रेस को दोषी ठहराए गए नक्सलियों से प्यार क्यों है?

अंत में यही कहना होगा कि आज गृहमंत्री अमित शाह सही कहते हैं, ”नक्सलवाद विकास, शांति और युवाओं के उज्ज्वल भविष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हम देश को नक्सलवाद के दंश से मुक्त करने के लिए संकल्पित हैं। सरकार की ऑफ़ेंसिव नीति और सुरक्षा बलों के प्रयासों के कारण आज नक्सलवाद सिमट कर एक छोटे से क्षेत्र में रह गया है। जल्द ही छत्तीसगढ़ और पूरा देश पूर्णतः नक्सल मुक्त होगा।” किंतु इसके साथ कांग्रेस जैसी देश की प्रमुख विपक्षी राजनीतिक पार्टी, जिसकी कि देश में अब भी कई राज्‍यों में सरकार हैं, उसे भी यह समझना होगा कि नक्‍सलियों के प्रति उसकी हमदर्दी ठीक नहीं, उसकी यह नीति देश में नक्‍सलवाद को बढ़ावा देती है। अच्‍छा हो, वह इसे जितनी जल्‍दी हो सके पूरी तरह त्‍याग दे, यही देश हित में है।

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