पाकिस्तान से एक बहुत ही चौंकाने वाला वीडियो सामने आया है, इसमें एक कबड्डी खिलाड़ी, प्रतिस्पर्धा से पहले बिना खेले ही हार मान लेता है। कहता है कि वह इस मैच मे अपनी हार स्वीकार करता है, क्योंकि वह किसी सैयद के साथ प्रतिस्पर्धा की बात नहीं सोच सकता। वह खेल मे भी सैयद जाति के लोगों से नहीं लड़ सकता।
A Kabaddi player in Punjab discovers just before the match that his opponent belongs to the Syed family. He refuses to compete against him, declaring his own defeat, stating that he cannot fight someone from the Syed caste even in the game. pic.twitter.com/gHhOIha3FB
— Syed Zaighum Kazmi (@syedzaighum110) April 18, 2024
इस वीडियो पर लोगों की तरह तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। इनमें कई लोग इस कदम को ठीक ठहरा रहे हैं तो कई लोग ऐसे हैं, जो यह प्रश्न उठा रहे हैं कि आखिर पाकिस्तान मे इतने सैय्यद आए कहाँ से? एक यूजर ने लिखा कि सबसे मजेदार तो यह है कि सभी सैय्यद सऊदी अरब, ईरान, फिलिस्तीनी, सीरिया और तुर्किए की जगह पाकिस्तान में आ गए। इस यूजर ने लिखा कि इनमें से अधिकतर नकली हैं।
अपने आपको सोशल एक्टिविस्ट लिखने वाले एक यूजर जहानजैब खान ने भी यही लिखा कि पाकिस्तान में सभी ऐतिहासिक इस्लामिक क्षेत्रों से अधिक सैय्यद हैं। सैय्यद का अर्थ होता है इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद के वंशजों से ताल्लुक रखने वाले।
जब भी नस्ल के आधार पर भेदभाव की बात आती है तो बार-बार यही कहा जाता है कि इस्लाम मे ऊँचनीच नहीं होती है, मगर अहमदिया मुस्लिम और शिया आदि फिरकों के अलावा भी कई प्रकार की परतें लगातार दिखाई देती हैं। यदि देखा जाए तो इस्लाम मे ऊँचनीच पाकिस्तान जैसे इस्लामी मुल्क में ही नहीं बल्कि, भारत के मुस्लिमों में भी दिखती है। पसमांदा मुस्लिमों की बात करने वाले डॉ. फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ लगातार मुस्लिमों में व्याप्त इस नस्लीय भेदभाव पर अपनी बात करते रहते हैं।
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उन्होनें हाल ही एक बार फिर कहा था, “कभी भी कोई पसमांदा(ST,SC,OBC) ना तो वो शाही मस्जिद का इमाम बन सकता है ना ही किसी जमात(तब्लीगी जमात, जमीयतुल उलेमा, दावते इस्लामी,जमाते इस्लामी, मिल्ली काउंसिल, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आदि) का अध्यक्ष/सचिव बन सकता है, लेकिन, प्रधान, मुखिया,चेयरमैन, MP, MLA, मंत्री, यहां तक की राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री बन सकता है, अगर ऐसा कभी हुआ भी तो इस्लामी विधि(शरिया/फिक्ह इस्लामी) के कारण नहीं बल्कि भारतीय संविधान के कारण होगा।
2015 में यह बात कहीं थी आज भी उतना ही सच है
===========कभी भी कोई पसमांदा(ST,SC,OBC) ना तो वो शाही मस्जिद का इमाम बन सकता है ना ही किसी जमात(तब्लीगी जमात, जमीयतुल उलेमा, दावते इस्लामी,जमाते इस्लामी, मिल्ली काउंसिल, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आदि) का अध्यक्ष/सचिव बन सकता है,…
— Faiyaz Ahmad Fyzie (@FayazAhmadFyzie) April 21, 2024
पाकिस्तान में हुई इस घटना को पाकिस्तान रिपब्लिक नामक यूजर ने फ़ेसबुक पर साझा किया। तो उस पर भी लोगों ने बहुत मजेदार टिप्पणी की हैं। एक यूजर ने लिखा कि सैयद पाकिस्तान कैसे आ सकते हैं, जब उससे पहले हर कोई यहाँ पर सिख या हिन्दू था।
सैयद वाली मानसिकता का गुणगान भारत के कई प्रगतिशील लेखकों की रचनाओं में मिलता है। कुछ वर्ष पहले तक रजिया सज्जाद जहीर की कहानी नमक के माध्यम से सैयद की नस्लीय श्रेष्ठता को बच्चों के दिमाग मे भरा जा रहा था कि हम सैयद हैं। सैयद वादा कैसे तोड़ सकते हैं। यह कहानी इस वर्ष पाठ्यक्रम में नहीं है। परंतु सैयद के प्रति एक अजीब प्रकार का मोह भारत और पाकिस्तान के मुस्लिम समुदाय में देखा जा सकता है।
स्थानीय मुस्लिमों के प्रति हीनता का भाव है। स्थानीय पहचान के प्रति हीनता का भाव है, तभी पाकिस्तान की अवधारणा देने वाले अल्लामा इकबाल भी खुद को हिजाजी बताते हैं। हिजाजी का अर्थ होता है हिजाज का निवासी, हिजाज सऊदी अरब का प्रांत है और इसके साथ ही हिजाजी का अर्थ होता है ईरानी संगीत में एक राग। पाकिस्तान के धारावाहिकों में भी जो चित्रण होता है, उसमें भी बिरादरी से बाहर शादी करने पर पाबंदी है। आए दिन वहाँ पर आनर किलिंग की भी घटनाएं सामने आती रहती हैं।
मगर एक बड़ा वर्ग है जो इस श्रेष्ठता बोध की असलियत को नकारता है। भारत में भी कई घटनाएं निरंतर होती रहती हैं, जो इस भेदभाव को बताती हैं, परंतु दुर्भाग्य से इस भेदभाव पर बात नहीं होती है। इस्लाम में जाति नहीं होती, या नस्लीय भेदभाव नहीं होता कहने वाले कभी भी भारत में उन हत्याओं पर बात नहीं करते हैं, जो इसी नस्लीय भेदभाव के कारण होती हैं। पिछले वर्ष ही अक्टूबर में बिरादरी अलग होने के कारण आमिर और साजिदा ने आत्महत्या कर ली थी क्योंकि उनका निकाह नहीं हो सकता था।
ऐसी ही एक और घटना सामने आई थी जब पठान जाति की फरहाना ने अपनी मर्जी से फकीर बिरादरी के शाहिद से कोर्ट मैरिज कर ली थी और उसके भाई इसलिए खुश नहीं थे क्योंकि उनकी बिरादरी अलग थी और इसी कारण फरहाना की हत्या कर दी गई थी। ऐसी ही एक घटना और सामने आई थी जब नवंबर 2022 में सैयद जाति की महजबी ने फकीर जाति के आरिफ़ से प्यार करने की हिमाकत की थी तो उन दोनों की हत्या कर दी गई थी।
भारत और पाकिस्तान मे बिरादरी और नस्लीय श्रेष्ठता के आधार होने वाले भेदभाव की आए दिन कई घटनाएं सामने आती रहती है। मगर इन पर बात नहीं होती है। इस घटना पर जो टिप्पणियाँ आम लोगों की आ रही हैं, वे रोचक हैं और यह बताने के लिए पर्याप्त है कि लोग अब ऐसी बातों से ऊब चुके हैं।
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