कनाडा में इस वर्ष का बजट प्रस्तुत किया गया है। इस बजट में अन्य बातों के अतिरिक्त जो महत्वपूर्ण बात है वह है मुस्लिमों के लिए वैकल्पिक वित्त व्यवस्था अर्थात हलाल तरीके से गिरवी रखने की व्यवस्था या कहें ऋण व्यवस्था की गई है। वित्त वर्ष 2024 के जब बजट बनाया गया तो उसमें कथित रूप से मुस्लिमों को आर्थिक व्यवस्था में सम्मिलित करने के लिए हलाल ऋण/हलाल मॉर्गिज की व्यवस्था का प्रस्ताव लाया गया।
इस बजट प्रस्ताव में लिखा गया है, “कनाडा कई प्रकार के वित्तीय उत्पादों के लिए एक बढ़ता हुआ बाजार है, जिनमें हलाल ऋण/मॉर्गिज सम्मिलित है, और जिसके कारण कनाडा के मुस्लिम नागरिक आवास बाजार में भाग ले सकें।” इसमें आगे लिखा है कि बजट 2024 में घोषणा की गई है कि सरकार हलाल बंधक जैसे वैकल्पिक वित्तपोषण उत्पादों को आसानी से उपलब्ध कराने के लिए नए उपाय तलाश रही है। इसमें पर्याप्त उपभोक्ता सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए इन उत्पादों के कर बर्ताव में परिवर्तन या फिर वित्तीय सेवा प्रदाताओं के लिए नया नियामक सैंडबॉक्स हो सकता है।
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कनाडा की सरकार ने वित्तीय सेवा प्रदाताओं एवं विविध समुदायों से यह समझने के लिए बात करना भी आरंभ कर दिया है कि कैसे देश की नीतियों को इस प्रकार बनाया जा सके कि सभी के लिए आवास का सपना पूरा हो जाए।
मीडिया में आई रिपोर्ट्स की यदि बात की जाए तो कनाडा में वर्ष 2021 की जनगणना के अनुसार 5 प्रतिशत मुस्लिम हैं। कनाडा सरकार के इस कदम पर अब चर्चा हो रही है और यह भी सांसद प्रश्न उठा रहे हैं कि क्या एक पंथनिरपेक्ष सरकार में ऐसे नियम बनाए जा सकते हैं?
क्योंकि यदि एक समुदाय के लिए ऋण के लिए वित्तीय व्यवस्था अलग बनाई जाएगी तो वह एक समानांतर व्यवस्था हो जाती है और साथ ही फिर देश की व्यवस्था के स्थान पर उस समुदाय की निष्ठा अपने समुदाय के प्रति बनी गई व्यवस्था के प्रति हो जाएगी। हालांकि, इस प्रस्ताव को लेकर सेक्युलर ब्लॉक क्यूबेकॉइस के सांसद मार्टिन चैंपौक्स (ड्रमंड) ने आलोचना करते हुए गुरुवार को हाउस ऑफ कॉमन्स में कहा, “कनाडा एक धर्मनिरपेक्ष देश है। हम भी धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर हैं। हम क्यूबेकर्स हैं। वे झगड़ा मोल लेने की कोशिश कर रहे हैं। यह वही पुरानी कहानी है।”
क्या होता है हलाल गिरवी रखना/मॉर्गिज
यह कहा जाता है कि इस्लाम में सूदखोरी की इजाजत नहीं है अर्थात ब्याज नहीं लिया जा सकता है। अर्थात ऋण तो लिया जा सकता है, मगर उस पर ब्याज नहीं। तो फिर हलाल मॉर्गिज में कैसे काम होता है? क्या इससे लोगों को सस्ता ऋण आदि मिलता है? इस विषय में जानकारों का कहना है कि ऐसा नहीं है। कनाडा में पहले से ही कुछ वित्तीय संस्थान यह सुविधा लोगों को प्रदान कर रहे हैं, मगर सरकार के स्तर पर ऐसी कोई सुविधा आदि नहीं है।
कनाडा में हलाल मॉर्गिज प्रदान करने वाली कंपनी के सह-संस्थापक एवं सीईओ ने इसे हलाल प्रमाणपत्र के साथ दी जाने वाली सुविधा बताया है।
उनका कहना है कि केवल प्रक्रिया और कागजात ही हैं, जो हलाल मॉर्गिज को अलग बनाते हैं, क्योंकि जो उत्पाद है उसकी कीमत तो उतनी ही पड़ती है। सवाफ की कंपनी मंजिल दो प्रकार की हलाल मॉर्गिज की सुविधा प्रदान करती है। एक है मुरबहा मॉडल और दूसरा है मुश्करा मॉडल। मुरबहा मॉडल में सवाफ के अनुसार मंजिल अपने क्लाइंट की ओर से घर खरीदती है और फिर उसे दोबारा अपने ग्राहक को बेच देती है। और इसमें ग्राहक के पास किश्तों मे भुगतान का विकल्प होता है। जो अतिरिक्त राशि ली जाती है, वह किसी शुल्क के रूप में ली जाती है, ब्याज के रूप मे नहीं। मुश्करा मॉडल में विक्रेता और खरीदार दोनों ही इक्विटी के आधार पर समझौता करते हैं और जैसे ही खरीदार मॉर्गिज का भुगतान कर देता है, वैसे ही उस संपत्ति से विक्रेता की इक्विटी कम होती जाती है।
इन दोनों प्रक्रियाओं मे दस से लेकर तीस वर्ष तक लग जाते हैं। अर्थात जैसा कि सफाव का कहना है कि केवल प्रक्रिया अलग है, उपभोक्ताओं को कुछ भी सस्ता नहीं मिलता है। जहां कनाडा में इसे लेकर आलोचना हो रही है तो वहीं यह भी ध्यान रखना होगा कि भारत में भी रघुराम राजन ने इस्लामी बैंकिंग आरंभ करने के लिए पूरी कोशिश की थी। रघुराम राजन ने यह कहते हुए इसे शामिल करने की कोशिश की थी, जिससे वे लोग भी वित्तीय व्यवस्था का हिस्सा बन पाएं, जो अपने मजहबी यकीनों के कारण ऋण आदि नहीं ले पाते हैं। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक एवं भारत सरकार ने इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया था।
लेकिन भारत में शरिया सूचकांक अवश्य उपलब्ध है। निफ्टी 500 शरिया इंडेक्स, एसएंडपी बीएसई 500 शरिया, निफ्टी 50 इंडेक्स एवं एसएंडपी बीएसई शरिया 50: ये चार सूचकांक भारत में उपलब्ध हैं। भारत में शरिया आधारित सूचकांक का आरंभ वर्ष 2008 से हुआ था।
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