बिहार में पहले चरण में चार लोकसभा क्षेत्र-गया, औरंगाबाद, नवादा, जमुई में मतदान हो गया है। इन चारों पर राजग का कब्जा है। 4 अप्रैल को जमुई में और 7 अप्रैल को नवादा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सभाएं हो चुकी हैं। नरेंद्र मोदी के राष्ट्रभाव के संदेश उनके काम के सामने राजद की जातीय गोलबंदी बौनी नजर आ रही है।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में स्थानीय मुद्दों के साथ भ्रष्टाचार, पाकिस्तान, आर्थिक विकास, राम मंदिर, अनुच्छेद 370, तीन तलाक, सनातन धर्म की भी चर्चा की। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए कहा कि जिन लोगों ने रेलवे में भर्ती के नाम पर गरीब युवाओं से जमीन लिखवा ली, वे बिहार का भला नहीं कर पाएंगे। एक ओर राजग सरकार सोलर पावर-एलईडी की बात करती है, तो घमंडिया गठबंधन वाले बिहार को लालटेन युग में रखना चाहते हैं। लालू-राबड़ी काल के जंगलराज में बेटियों को सड़कों से उठा लिया जाता था। मोदी ने कहा कि कांग्रेस के घोषणापत्र में ‘मुस्लिम लीग’ की छाप दिखती है। इंडी वाले सनातन को खत्म करने और देश तोड़ने की बात करते हैं।
दूसरी ओर राजद नेता तेजस्वी यादव जंगलराज की ओर से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए हाल में नीतीश सरकार में शामिल रहने के दौरान दी गई नौकरियों को अपनी उपलब्धि बताते हुए वोट मांग रहे हैं। जवाब में नीतीश कुमार इसे अपनी उपलब्धि बता रहे हैं और लालू-राबड़ी काल के जंगलराज की याद दिला रहे हैं। जागरूक मतदाताओं का मानना है कि राजद का जो प्रचार है, उसका लोकसभा चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव पर कुछ असर दिखा सकता है। पहले चरण में जिन लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव होने हैं, उनमें एक प्रमुख क्षेत्र है औरंगाबाद। राजपूत बहुल औरंगाबाद क्षेत्र को बिहार का चित्तौड़गढ़ माना जाता है। यह बिहार के बड़े राजपूत नेता व राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा की परंपरागत सीट रही है। यही कारण है कि उनके बाद उनके पुत्र व पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार और बहू श्यामा सिंह को भी यहां जीत मिली। 2009 के चुनाव से यहां इस परिवार का दबदबा समाप्त हो गया है। इस बार कांग्रेस अपनी इस परंपरागत सीट के लिए लालू यादव पर दबाव बनाती रही, इसके बावजूद लालू यादव ने यहां से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया।
भाजपा उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह राजपूत हैं। वे 2009 से लगातार जीत रहे हैं। उन्होंने 2009 में राजद के शकील अहमद को 72,000, 2014 में कांग्रेस के निखिल कुमार को 66,000 और 2019 में हम के उपेंद्र प्रसाद को 70,552 मतों से हराया। इस बार जीतनराम मांझी की हम पार्टी राजग में है। राजद ने अभय कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया है। जातीय गणित को देखते हुए कहा जा रहा है कि अभय कुशवाहा का रास्ता बहुत ही कठिन है, क्योंकि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सह उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और राजग में शामिल उपेंद्र कुशवाहा के कारण कुशवाहा (कोईरी) का पूरा झुकाव राजग के पक्ष में दिख रहा है।
दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र है गया (सुरक्षित)। यहां मुख्य मुकाबला राजग उम्मीदवार और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और राजद के कुमार सर्वजीत के बीच है। पिछले चुनाव में जीतनराम मांझी को जदयू के विजय कुमार मांझी ने लगभग डेढ़ लाख मत से हराया था। तब जीतनराम महागठबंधन में थे। 2014 में यहां से भाजपा के हरि मांझी को जीत मिली थी, लेकिन 2019 में यह सीट जदयू कोटे में चली गई। गया सीट को भाजपा का गढ़ माना जाता है। जब जनसंघ के गिने-चुने सांसद जीतते थे तब 1971 में जनसंघ के ईश्वर चौधरी ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली थी। 1977 में जनता पार्टी और 1989 में भाजपा के टिकट पर ईश्वर चौधरी जीते। 1991 में चुनाव प्रचार के दौरान ईश्वर चौधरी की हत्या हो गई थी। उन दिनों लालू यादव मुख्यमंत्री थे और नक्सली हिंसा चरम पर थी। बाद में यहां से कभी जनता दल, कभी भाजपा जीतती रही।
एक और प्रमुख क्षेत्र है नवादा। भूमिहार और यादव प्रभाव वाला नवादा लोकसभा क्षेत्र पहले अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित था। पिछले परिसीमन में इसे सामान्य कर दिया गया। माकपा यहां से दो बार 1989 और 1991 में जीत चुकी है। 1996 में पहली बार भाजपा के कामेश्वर पासवान यहां से जीते थे। 1999 में भाजपा के संजय पासवान ने जीत दर्ज की और वाजपेयी सरकार में मंत्री बने। 2009 में भोला सिंह, फिर 2014 में गिरिराज सिंह ने जीत दर्ज कर भाजपा का कब्जा बरकरार रखा। 2019 में यह सीट लोजपा के कोटे में चली गई और उसके प्रत्याशी चंदन सिंह ने जीत दर्ज की। इस बार भाजपा ने सीट को वापस लेते हुए विवेक ठाकुर को यहां से उम्मीदवार बनाया है। उनका मुकाबला राजद के श्रवण कुशवाहा और राजद के ही बागी उम्मीदवार विनोद कुमार यादव से है। 2014 में गिरिराज सिंह (भाजपा) को 1,40,157 और 2019 में चंदन सिंह (लोजपा) को 1,48,072 मतों से जीत मिली थी। इस बार त्रिकोणीय संघर्ष में विवेक ठाकुर (भाजपा) का रास्ता आसान दिख रहा है। यहां भी लालू यादव ने सजातीय दावेदारी को नजरअंदाज कर एक कुशवाहा को टिकट दिया है, लेकिन यादवों की नाराजगी उन्हें भारी पड़ सकती है।
जमुई (सुरक्षित) लोकसभा क्षेत्र का महत्व इस बात से पता चलता है कि बिहार में प्रधानमंत्री की पहली चुनावी सभा यहीं हुई। पिछले दो चुनाव में यहां से लोजपा के चिराग पासवान को जीत मिली थी। इस बार वे अपने पिता रामविलास पासवान की परंपरागत सीट हाजीपुर से चुनाव लड़ रहे हैं। यहां उन्होंने अपने रिश्तेदार अरुण भारती को मैदान में उतारा है। इनका सीधा मुकाबला राजद की अर्चना रविदास से है। शुरुआती दिनों में जमुई लोकसभा क्षेत्र का अस्तित्व था, लेकिन बाद के वर्षों में इसे समाप्त कर मुंगेर लोकसभा में जोड़ दिया गया था। नए परिसीमन में फिर यह सुरक्षित सीट है। झारखंड की सीमा से सटे और नक्सली प्रभाव वाले जमुई लोकसभा क्षेत्र में मुंगेर, शेखपुरा व जमुई जिले के कुछ हिस्से आते हैं। जमुई लोकसभा क्षेत्र पर लगातार राजग का न सिर्फ कब्जा है, बल्कि जीत का अंतर भी बढ़ता गया है। 2009 में 29,797, 2014 में 85,947, 2019 में 2,41,049 के अंतर से राजग को जीत मिली है। 2009 में जदयू के भूदेव चौधरी ने राजद के श्याम रजक को, 2014 में चिराग पासवान ने राजद के सुधांशु शेखर व 2019 में चिराग ने रालोसपा के भूदेव चौधरी को पराजित किया।
बिहार के मतदाताओं में जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति दीवानगी दिख रही है, वह यह बताने के लिए काफी है कि इस बार भी बिहार में राजग की राह आसान है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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