शरीर के पाचन तंत्र का महत्वपूर्ण अंग लिवर पाचन, प्रतिरक्षा, चयापचय और शरीर के भीतर पोषक तत्वों के भंडारण से जुड़े विभिन्न महत्वपूर्ण कार्य करता है। हम दवाईयों सहित जो भी कुछ खाते-पीते हैं, सब लिवर से ही होकर गुजरता है। वास्तव में लिवर मानव शरीर का ऐसा अंग है, जिसकी सही तरीके से देखभाल नहीं किए जाने से यह आसानी से क्षतिग्रस्त हो सकता है। हालांकि लिवर की बीमारी का प्रायः तब तक कोई स्पष्ट संकेत या लक्षण नहीं दिखाई नहीं देता, जब तक कि यह काफी जटिल न हो और लीवर या यकृत क्षतिग्रस्त न हो जाए। इसीलिए लिवर (यकृत) से संबंधित बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 19 अप्रैल को ‘विश्व लिवर दिवस’ मनाया जाता है। यह दिवस लोगों को रोग की गंभीरता, शीघ्र पहचान और यकृत रोगों की रोकथाम के बारे में शिक्षित करने से संबंधित गतिविधियों पर केंद्रित है।
लिवर की समस्या भारत में मृत्यु का 10वां सबसे आम कारण है, इसलिए लोगों को लीवर की सुरक्षा के लिए जागरूक करने में विश्व लिवर दिवस की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। लिवर दिवस चिकने और तैलीय भोजन से परहेज करके स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर लोगों को अपने लिवर की देखभाल करने के लिए जागरूक करने में मदद करने के लिए समर्पित है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान के अनुसार लिवर मानव शरीर का दूसरा सबसे बड़ा अंग है, जो हमारे मस्तिष्क के बाद शरीर का दूसरा ऐसा सबसे जटिल अंग भी है, जिसके बिना जीवित नहीं रहा जा सकता। लिवर कड़ी मेहनत करता है और संक्रमण तथा बीमारियों से लड़ना, शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना, कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करना, रक्त को थक्का जमने में मदद करना, पित्त का विमोचन कर पाचन में सहायता करना जैसे अनेक जटिल कार्य करता है। यह दाहिने ऊपरी पेट में पसलियों के नीचे मौजूद पित्त का उत्पादन करने वाला मानव शरीर का एक ऐसा आवश्यक अंग है, जो वसा को पचाने और आवश्यक अपशिष्ट को ले जाने में मदद करता है। फैटी लिवर मोटापा (अधिक वजन), इंसुलिन प्रतिरोध (मधुमेह) और शराब की अधिक खपत जैसे जोखिम वाले कारकों के अलावा भी किसी को भी प्रभावित कर सकता है।
विभिन्न आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में प्रतिवर्ष करीब 20 लाख लोग लिवर संबंधी बीमारियों के कारण मर जाते हैं, जिनमें से सिरोसिस से संबंधित कारण केवल आधे होते हैं और शेष आधे मामले वायरल हेपेटाइटिस और हेपैटोसेलुलर (यकृत) कैंसर के कारण होते हैं। वैश्विक स्तर पर होने वाली इन मौतों में से करीब 4 लाख मौतें केवल भारत में होती हैं। दुनियाभर में होने वाली सभी मौतों में 3.5 प्रतिशत संख्या सिरोसिस और लिवर कैंसर के मरीजों की होती है। यही नहीं, सिरोसिस दुनियाभर में होने वाली मौतों का 11वां सबसे बड़ा कारण है और वैश्विक स्तर पर लीवर कैंसर मौतों का 16वां जबकि भारत में 10वां प्रमुख कारण है। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार 2005 की तुलना में 2030 तक वैश्विक स्तर पर लिवर रोगों के नए मामलों में 35 प्रतिशत तक की वृद्धि ही संभावना है। विश्वभर में लिवर संबंधी रोगों का प्रतिशत बढ़ना गलत खानपान का सबसे बड़ा नतीजा माना जाता है, जिसकी वजह से करीब एक तिहाई व्यस्क गैर अल्कोहलिक फैटी लिवर की समस्या से जूझ रहे हैं।
भारत में विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि 75 प्रतिशत गैर-मादक वसायुक्त यकृत रोग (बहुत कम या शराब बिल्कुल नहीं पीने वाले) कम बॉडी मास इंडेक्स वाले रोगियों में देखा जाता है। हालांकि लिवर में स्व-उपचार की अनूठी विशेषता होती है, जहां यह 60-70 प्रतिशत तक क्षतिग्रस्त होने के बाद पुनः विकसित या पुनः उत्पन्न हो सकता है लेकिन इसके बावजूद लिवर में किसी भी असामान्यता से गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएं हो सकती हैं। भारत में लिवर खराब होने और प्रत्यारोपण का दूसरा सबसे बड़ा कारण मधुमेह है। देश में प्रतिवर्ष करीब ढ़ाई हजार लिवर ट्रांसप्लांट होते हैं। यदि किसी व्यक्ति को मधुमेह है तो उसे अपने लिवर की अतिरिक्त देखभाल करने की जरूरत होती है। मधुमेह शरीर को इंसुलिन के लिए प्रतिरोधी बनने का कारण बनता है, जिससे रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। लिवर रक्त प्लाज्मा के लिए प्रोटीन के उत्पादन, ग्लूकोज के ग्लाइकोजन में रूपांतरण, अमीनो एसिड विनियमन के अलावा भी कई महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार है।
कुछ अध्ययनों के मुताबिक दुनियाभर में मोटे अथवा अधिक वजन वाले व्यस्कों की संख्या करीब 200 करोड़ है और 40 करोड़ मधुमेह के मरीज हैं, जिन्हें गैर अल्कोहल फैटी लीवर रोग (एनएएफएलडी) और हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा के लिए जोखिम कारक माना जाता है। विश्वभर में अल्कोहलिक आबादी करीब 200 करोड़ है, जिनमें से 7.5-10 करोड़ लोगों को शराब से संबंधित यकृत रोग का खतरा है। अल्कोहलिक फैटी लिवर की समस्या ज्यादा शराब का सेवन करने से होती है जबकि गैर अल्कोहल फैटी लीवर रोग के अधिकांश मामले गलत खानपान, शारीरिक श्रम या व्यायाम नहीं करने तथा मोटापे के कारण सामने आते हैं। वायरल हेपेटाइटिस का वैश्विक प्रसार तो उच्च स्तर पर बना हुआ है। लिवर में संक्रमण या सूजन की स्थिति को ही हेपेटाइटिस कहा जाता है, जो एक वायरस संक्रमण है। मोटापा या बॉडी मास इंडेक्स 25 से ज्यादा होने, पेट पर शरीर के दूसरे अंगों की तुलना में ज्यादा चर्बी जमा होना, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड ज्यादा रहने से एनएएफएलडी का खतरा बढ़ जाता है। कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड का स्तर अनियंत्रित रहना तो लिवर के साथ-साथ हृदय की सेहत पर भी बुरा प्रभाव डालता है।
हमारे आहार में ज्यादा शर्करा और उच्च कैलोरी युक्त वसा के कारण गैर अल्कोहल फैटी लीवर रोग का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे खानपान के कारण लिवर पर वसा की परत जमने लगती है, जिसकी अनदेखी करने पर लिवर सिरोसिस या लिवर कैंसर भी हो सकता है। यदि लिवर पर पांच प्रतिशत से ज्यादा वसा कोशिकाएं जमा हो जाती हैं तो उस स्थिति में लिवर को ‘फैटी लिवर’ कहा जाता है। वैश्विक स्तर पर जहां दुनिया की 20 से 25 फीसदी आबादी फैटी लिवर की बीमारी से पीड़ित है, वहीं चिंता की बात यह है कि भारत में प्रत्येक तीन में से एक व्यक्ति फैटी लीवर की समस्या से ग्रस्त है। वैसे अधिकांश स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि खानपान संबंधी थोड़ी सी सावधानियां बरतकर ही फैटी लीवर की समस्या से बचा जा सकता है। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि लिवर संबंधी बीमारियों के लक्षण प्रायः तब तक नहीं दिखते, जब तक कि बहुत देर न हो जाए। इसलिए पौष्टिक और स्वस्थ आहार के सेवन के अलावा किसी भी घातक बीमारी की संभावना को खत्म करने के लिए समय-समय पर बॉडी चेकअप कराया जाना भी महत्वपूर्ण है।
लिवर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए अनाज, ताजे फल, सब्जियां इत्यादि प्रोटीन और फाइबर से भरपूर स्वस्थ और संतुलित आहार लें, समय पर टीकाकरण कराएं, स्व-दवा से बचें, शराब और धूम्रपान से परहेज करें। कोला, सोडा, कार्बोनेटेड पेय पदार्थ, मिठाई, वसायुक्त और चिकने भोजन, जंक फूड, डिब्बाबंद फलों के रस और कैंडी से लीवर की बीमारी हो सकती है। इसलिए, ऐसी वस्तुओं का सेवन करने से यथासंभव बचें। इसके अलावा तनाव कम करने के लिए नियमित व्यायाम और ध्यान करें तथा वजन को नियत्रित रखने का प्रयास करें। तैराकी, साइकिल चलाना, पैदल चलना, योग जैसी शारीरिक गतिविधियों में स्वयं को शामिल करें। जर्नल ऑफ फूड साइंस एंड टैक्नोलॉजी में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक मोटापे से पीड़ित व्यक्ति भी यदि व्यायाम, शारीरिक श्रम तथा कम कैलोरी युक्त खानपान के जरिये अपने वजन में दस प्रतिशत तक की कमी करने में सफल होते हैं तो ऐसे व्यक्तियों को भी लिवर संबंधी बीमारियों के बचने में कुछ हद तक मदद मिल सकती है।
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