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होम भारत अरूणाचल प्रदेश

पूर्वोत्तर में परचम लहराने को तैयार भाजपा

पूर्वोत्तर भारत के आठ सीमावर्ती राज्यों में चुनावी सरगर्मियां जोरों पर हैं। एक तरफ भाजपानीत राजग गठबंधन पूर्वोत्तर में अपनी विकास और जनहितकारी नीतियों के बूते लोगों तक पहुंच रहा है, तो वहीं विपक्षी दल खंडित और कमजोर नेतृत्व के चलते बिखरे दिखा रहे

by दिब्या कमल बोरदोलोई
Apr 17, 2024, 07:17 am IST
in अरूणाचल प्रदेश, असम, विश्लेषण, मेघालय, सिक्किम
असम की एक रैली में जनता का अभिनंदन करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। साथ में हैं मुख्यमंत्री हिमंत विस्व सरमा

असम की एक रैली में जनता का अभिनंदन करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। साथ में हैं मुख्यमंत्री हिमंत विस्व सरमा

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पूर्वोत्तर भारत लोकसभा चुनावों में निर्णायक मुकाबले के लिए तैयार है। 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदाता लोकसभा के साथ अरुणाचल प्रदेश व सिक्किम में विधानसभा चुनाव के लिए भी मत डालेंगे। इस चुनावी लड़ाई में सबसे आगे भाजपा के नेतृत्व वाला राजग है, जिसकी पूर्वोत्तर शाखा, उत्तर पूर्व लोकतांत्रिक गठबंधन (एनईडीए) पांच साल पहले पिछले आम चुनाव में अपनी सफलता को दोहराते हुए सीटों का महत्वपूर्ण हिस्सा हासिल करने के लिए तैयार है।

पूर्वोत्तर में आठ सीमावर्ती राज्य हैं- अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा। इस क्षेत्र में लोकसभा की कुल 25 सीटें हैं। 2019 के आम चुनाव में राजग ने पूर्वोत्तर में 18 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा ने असम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और मणिपुर जैसे राज्यों से अकेले 14 सीटें हासिल की थीं। उत्तर-पूर्व लोकतांत्रिक गठबंधन के संयोजक और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने राजग की संभावनाओं पर भरोसा जताया है और पूरे क्षेत्र में 22 सीटों पर जीत की भविष्यवाणी की है।

विशेष रूप से उन्होंने दावा किया कि राजग मणिपुर में दोनों संसदीय सीटों को सुरक्षित करने के लिए तैयार है। पूर्वोत्तर में सर्वाधिक आबादी वाला असम 14 संसदीय सीटों के साथ महत्वपूर्ण प्रभाव रखता है। 2019 में भाजपा ने 9 सीटें जीती थीं। इस बार पार्टी ने 11 प्रत्याशी उतारे हैं, जबकि सहयोगी असम गण परिषद (एजीपी) और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) शेष तीन पर चुनाव लड़ रही हैं। परिसीमन के बाद असम में राजग के मजबूत होने का अनुमान है। मुख्यमंत्री सरमा का दावा है कि राजग कम से कम 12 सीटें जीतेगा। असम के अलावा, इस क्षेत्र के अन्य राज्य भी महत्वपूर्ण है। 2019 में भाजपा ने अरुणाचल में दो सीटें जीती थीं। मेघालय, त्रिपुरा और मणिपुर में दो-दो सीटें हैं, जबकि नागालैंड, मिजोरम और सिक्किम में एक-एक सीट है।

भाजपा की ताकत

भाजपा ने एक दशक में जो विकास किए हैं, उस पर वोट मांग रही है। भाजपा असम में सेमीकंडक्टर उद्योग से लेकर अरुणाचल में मजबूत सीमा विकास पहल को बढ़ावा देने और मणिपुर में सबसे ऊंचा पियर रेल पुल बनाने तक, क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को मजबूत करने के उद्देश्य से परिवर्तनकारी परियोजनाओं की एक शृंखला पेश करती है। इसके विपरीत, विपक्षी बंटा हुआ और कमजोर दिखाई देता है। विशेष रूप से असम में, जहां कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त विपक्षी मंच असम (यूओएफए) सीट आवंटन को लेकर आंतरिक कलह से जूझ रहा है। विपक्ष की अव्यवस्था को और बढ़ाते हुए आआपा ने डिब्रूगढ़ और शाणितपुर जैसे महत्वपूर्ण सीटों और माकपा ने बरपेटा में उम्मीदवार उतारे हैं। वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित पार्टी के प्रमुख नेता असम और अरुणाचल प्रदेश में व्यापक अभियान के माध्यम से समर्थन जुटाने के लिए पूरे क्षेत्र में घूम रहे हैं।

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह (बाएं से दूसरे) राज्य में शांति बहाल करने के साथ इनर मणिपुर सीटपर जीत की उम्मीद बांधे हैं

क्या हैं चुनावी मुद्दे

नागरिकता संशोधन अधिनियम और चुनावी बॉन्ड जैसे मुद्दे उठाने के विपक्ष के प्रयासों के बावजूद इन कारकों से आगामी चुनावों में मतदाताओं के महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित होने की संभावना नहीं है। असम में नगांव और करीमगंज में मुख्य रूप से मुस्लिम मतदाताओं को देखते हुए भाजपा कठिन मुकाबले के लिए तैयार है। आॅल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के बदरुद्दीन अजमल मुस्लिम बहुल धुबरी से चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस हाल के वर्षों में पूर्वोत्तर के किसी भी विधानसभा चुनाव में जीत नहीं पाई है। वहीं, भाजपा और उसके सहयोगियों की आठ में से छह राज्यों में पकड़ मजबूत है। खासकर, पहाड़ी राज्यों में जहां मतदाता शासन में निरंतरता के पक्ष में होते हैं।

मेघालय में सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी का दबदबा है, इनर लाइन पॉलिसी, सीएए के कार्यान्वयन और असम के साथ सीमा विवाद पर चिंताएं चर्चा में हैं। वह विपक्ष के भीतर दरार और क्षेत्रीय खिलाड़ियों के उभरने के बीच दोनों सीटों पर जीत की उम्मीद कर रही है। इसी तरह, नागालैंड और मिजोरम में म्यांमार के साथ फ्री मूवमेंट रिजीम की समाप्ति और लंबे समय से चले आ रहे नागा राजनीतिक मुद्दे को प्राथमिकता दी जाती है।

नागालैंड सरकार में भाजपा की भागीदारी व नागा शांति वार्ता में प्रगति राजग को इन जटिल मुद्दों को संबोधित करने में रणनीतिक लाभ प्रदान करती है। इस बीच, मिजोरम में सत्तारूढ़ जोरम पीपुल्स मूवमेंट एकमात्र संसदीय सीट को सुरक्षित करने के लिए तैयार है। हालांकि यह राजग का भागीदार नहीं है, लेकिन उसने केंद्र की सत्ता में भाग लेने के लिए समर्थन देने की बात कही है। सिक्किम में सत्तारूढ़ सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के साथ भाजपा के गठबंधन के विघटन ने एक प्रतिस्पर्धी चुनावी लड़ाई के लिए मंच तैयार किया है, जिसमें दोनों दल एकमात्र संसदीय सीट के लिए होड़ कर रहे हैं।

सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा की संभावित जीत इसे राज्य के कल्याण के लिए अनुकूल किसी भी केंद्र सरकार का समर्थन करने के जोराम पीपुल्स मूवमेंट के रुख के साथ जोड़ सकती है। मणिपुर में भाजपा इनर मणिपुर सीट पर आशावादी बनी हुई है, जबकि इसका राजग सहयोगी, नागा पीपुल्स फ्रंट, बाहरी मणिपुर में, विशेष रूप से पहाड़ी जिलों में प्रभाव रखता है। मई 2023 से हिंसा का सामना कर रहे इस राज्य में शांति बहाली प्रमुख मुद्दा है। यहां से राजग को जीत की उम्मीद है। अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा दोनों भाजपा शासित हैं, जहां भाजपा के चारों संसदीय क्षेत्रों में जीत की पूरी संभावना है।

बहरहाल, जैसे-जैसे चुनावी सरगर्मियां बढ़ रही हैं, क्षेत्रीय मुद्दे व गठबंधनों का जटिल अंतर्संबंध पूर्वोत्तर में चुनावी राजनीति की जटिलताओं को रेखांकित कर रहा है। निश्चित ही यह चुनाव समूचे पूर्वोत्तर में बसे लाखों लोगों की आकांक्षाओं व भविष्य को आकार देने वाला साबित होगा।

इस खबर को भी पढ़ें – बदलाव की बाट जोह रहा दक्षिण भारत

Topics: मिजोरमपाञ्चजन्य विशेषPrime Minister Narendra Modiमुख्यमंत्री हिमंत विस्व सरमाAssamशाणितपुरअरुणाचल प्रदेशChief Minister Himanta Viswa SarmaArunachal PradeshSikkim and TripuraमेघालयNagalandमणिपुरप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीManipurअसमडिब्रूगढ़नागालैंडDibrugarh
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