भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य सुधांशु त्रिवेदी की विद्वता की चर्चा देश-दुनिया में होती है। उनकी हाजिरजवाबी के सामने बड़े-बड़े नेता ठिठक जाते हैं। वे राजनीति के जितने चतुर खिलाड़ी हैं, उतने ही धर्म और संस्कृति के ज्ञाता। पाञ्चजन्य की सलाहकार संपादक तृप्ति श्रीवास्तव ने उनसे लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं वार्ता के प्रमुख अंश-
आप लोग नारा लगा रहे हैं ‘इस बार 400 पार’, लेकिन यह होगा कैसे?
विश्वास मानिए, इस बार भाजपा के नेतृत्व में राजग की सीटें 400 के पार जाएंगी। महाभारत का जब उद्घोष हुआ था तो श्रीकृष्ण ने ‘पाञ्चजन्य’ शंख फूंककर युद्ध का निर्णय किया था। इसी तरह चुनावी युद्ध का उद्घोष हो चुका है। इससे पूर्व भी हमने जब-जब कहा है उससे ज्यादा ही भाजपा को सीटें मिली हैं। एक उदाहरण से इसे समझ सकते हैं। अभी कुछ ही समय पहले कुछ राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए हैं। लोग कह रहे थे, ‘‘राजस्थान में कांटे का मुकाबला है, मध्य प्रदेश में भाजपा पीछे है और छत्तीसगढ़ में भाजपा तो हारी हुई है।’’ लेकिन परिणाम सबके सामने है। इन तीनों राज्यों में भाजपा को प्रचंड बहुमत से जीत मिली। मध्य प्रदेश में 18 हजार ऐसे मतदान केंद्र चिन्हित किए गए थे, जहां भाजपा पिछले चार लोकसभा और विधानसभा में निरंतर हार रही थी। निष्कर्ष यह निकला कि इनमें से 12 हजार पर कड़ी मेहनत करके भाजपा जीत सकती है और ऐसा ही हुआ। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने जिस ढंग से व्यवस्था की उसका परिणाम यह हुआ कि हम जीत सके। इसलिए कहा गया है कि मोदी है तो मुमकिन है।
पश्चिम बंगाल में ममता से निजात दिलाने के लिए भाजपा पर भरोसा कर सकते हैं?
पिछली बार गृह मंत्री अमित शाह जी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में 20 सीटें जीतेंगे और 18 जीतकर दिखार्इं। पश्चिम बंगाल वह स्थान है, जहां आज से ठीक 12 साल पहले यानी 2011 तक चीन के बाद कम्युनिस्टों की पकड़ थी। आज वहां वामपंथ पूरी तरह से समाप्त हो गया है। दूसरी ओर विधानसभा में भाजपा की सीटें 3 से बढ़कर 78 हो गई हैं। मत 38 प्रतिशत तक पहुंचा है। पश्चिम बंगाल से कांग्रेस भी लगभग गायब हो चुकी है। विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी चंडी पाठ करतीं दिखीं। तृणमूल कांग्रेस के राज में लोगों पर अत्याचार हो रहे हैं, कानून-व्यवस्था ध्वस्त हो रही है, खतरनाक तरीके से तुष्टीकरण की राजनीति हो रही है। जो लोग संदेशखाली की घटना को एक सामान्य घटना के रूप में देख रहे हैं, मैं उन्हें याद दिलाना चाहता हूं कि ऐसी ही घटनाएं आगे चलकर नोवाखाली का रूप लेती हैं। (स्वतंत्रता के समय नोवाखाली में हिंदुओं का नरसंहार हुआ था।) इन घटनाओं से लोग परेशान हैं। ऐसे लोग भाजपा के साथ आ रहे हैं। विश्वास मानिए इस बार भाजपा तृणमूल कांग्रेस को पछाड़ देगी।
दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा सनातन परंपरा के मंदिर हैं। इसके बावजूद दक्षिण भारत के नेता सनातन विरोधी बयान दे रहे हैं। ऐसे में वहां भाजपा की कैसी तैयारी है?
देखिए, हम तो चारों दिशाओं में ‘सबका साथ, सबका विकास’ के मंत्र के साथ चल रहे हैं। यह दुष्प्रचार किया जाता है कि दक्षिण भारत में भाजपा कमजोर है। सच तो यह है कि दक्षिण भारत में कांग्रेस से ज्यादा हमारे सांसद हैं। वह दौर अलग था जब दक्षिण भारत में भाजपा का प्रभाव नहीं था। आज असम में हम दूसरी बार सरकार बनाने में सफल रहे हैं। पश्चिम बंगाल में मुख्य विपक्षी दल हैं। आज दक्षिण भारत में हमारे कार्यकर्ता जिस तरीके से काम कर रहे हैं, उसे देखते हुए लग रहा है कि वहां हमें अच्छी संख्या में सीटें मिल सकती हैं। आंध्र प्रदेश में भाजपा अच्छा करने जा रही है। तमिलनाडु में राजग जो कर रहा है, वह तमिलनाडु की राजनीति को एक अलग दिशा में ले जाएगा। कच्चातिवु के मुद्दे को आज तक किसी ने नहीं उठाया। इसे पहली बार मोदी जी उठा रहे हैं। नई दिल्ली में दुनिया का सबसे बड़ा हॉल ‘भारत मंडपम’ बना। उसके बाहर नटराज की मूर्ति लगी है, जो तमिलनाडु के तंजावुर से लाई गई है। दक्षिण भारत का जो स्थान था, उसे कभी स्थापित नहीं होने दिया गया। हमारे यहां पर्यटकों को तरह-तरह के भवन दिखाए जाते रहे हैं, परंतु दक्षिण के मंदिर रामेश्वरम जैसे को कभी नहीं दिखाया जाता था। इस मंदिर के ऊपर जो पत्थर रखा हुआ है, उसके बारे में आज तक पता नहीं लगा है कि उसे वहां पर कैसे रखा गया होगा। आज दक्षिण भारत में सांस्कृतिक स्वत्व का उद्घोष होता हुआ नजर आ रहा है। इसीलिए दो विचारधाराओं का संघर्ष चल रहा है। एक कहती है कि सनातन धर्म का समूल नाश हो। दूसरी तरफ है उभरता हुआ भारत। हमारे कार्यकाल में आई फोन की सबसे बड़ी फैक्ट्री दक्षिण भारत में लगी। एचसीएल, जिसका मुख्यालय बेंगलूरु में है। ऐसे ही अमेरिकी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट का पहला कार्यालय बेंगलूरु में बना है।
कांग्रेसी नेता डी.के. सुरेश कहते हैं कि दक्षिण को एक अलग देश बनाना चाहिए। इस पर आप क्या कहेंगे?
यह उनकी मानसिकता है। स्वतंत्रता के समय मजहब के नाम पर देश के दो-तीन टुकड़े कर दिए गए थे। आज भाषा, क्षेत्र के नाम पर तोड़ने की बात हो रही है। इसका यथार्थ मैं बताना चाहता हूं। उत्तर भारत में कृषि और इसका प्रभाव अधिक दिखता है, परंतु किसान के रूप में मछुआरों को मान्यता नहीं थी। हमारी सरकार ने मछुआरों को किसान की मान्यता दी है। सबसे ज्यादा मछुआरे दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में हैं। किसान की मान्यता मिलने से उन्हें उनकी तरह ही सुविधाएं मिलेंगी। अब देखिए सागरमाला प्रोजेक्ट को। इसके अंतर्गत पूरे तटीय क्षेत्रों में सड़क का जाल बिछा है। राष्ट्रीय राजमार्ग का जाल बिछा है। इससे विकास को नई गति मिली है। इंडी गठबंधन की मानसिकता अंग्रेजों की बनायी हुई मानसिकता की प्रतीक है।
इंडि गठबंधन आरोप लगाता है कि भाजपा में जो भी जाए उसके ‘पाप’ धुल जाते हैं। आप क्या कहेंगे?
‘वाशिंग मशीन’ की बात करने वाले शायद मैल की गठरी लेकर चल रहे हैं। इससे ज्यादा अपना मजाक उड़ाते हुए आपने किसी को नहीं देखा होगा। हां, मैं ईमानदारी से कहता हूं कि जो लोग भाजपा में आए हैं उनमें से किसी का आरोप वापस नहीं लिया गया है। हम आरोप पर कायम हैं। कांग्रेस के अंदर की स्थिति विचारणीय है। उसके युवा नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। गौरव वल्लभ एवं संजय निरुपम ने कांग्रेस का पूरा का पूरा पंचनामा कर दिया है। जब श्रीराम जन्मभूमि की प्राण-प्रतिष्ठा हो रही थी, तब कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि मुहूर्त ठीक नहीं है। विचारणीय बात यह है कि राहुल गांधी ने किस मुहूर्त में न्याया यात्रा शुरू की थी कि यात्रा शुरू होने के साथ ही उसके नेता पार्टी छोड़ने लगे थे। जब यात्रा गुवाहाटी पहुंची तो चैपाटी में देवड़ा जी ने पार्टी छोड़ दी। राहुल पश्चिम बंगाल पहुंचे तो दीदी ने मुंह मोड़ लिया। झारखंड पहुंचे तब उनका मुख्यमंत्री चला गया। बिहार पहुंचे तो इंडी गठबंधन के सूत्रधार नीतीश कुमार ने झटका दे दिया। उत्तर प्रदेश पहुंचे तो जयंत चौधरी इंडी गठबंधन से बाहर हो गए। कांग्रेस का साथ छोड़ने वाले लोग यही कहते हैं कि धर्म विरोधी वामपंथ तो प्राय: सभी जगह से समाप्त हो गया है, वही भूत कांग्रेस में समा गया है।
राहुल गांधी मोदी जी को हराने की बात कर रहे हैं, लेकिन वे दक्षिण भारत के वायनाड से चुनाव लड़ रहे हैं। इस पर आपकी क्या राय है?
राहुल गांधी का कहना है कि मुझे भाजपा से लड़ना है, लेकिन वे चुनाव वहां से लड़ते हैं जहां अपेक्षाकृत भाजपा मजबूत नहीं मानी जाती। मोदी जी गुजरात से निकलकर उत्तर प्रदेश के वाराणसी से चुनाव लड़ रहे हैं। एक समय यहां पर हमारा मत प्रतिशत 20 प्रतिशत से नीचे चला गया था। इसके बाद मोदी जी ने शीर्ष तक पहुंचाया। एक यह नेतृत्व है और दूसरी ओर वह नेतृत्व है। राहुल गांधी अमेठी से दूर वायनाड चले गए। इससे आगे वे जा नहीं सकते हैं, क्योंकि उसके आगे समुद्र आ जाता है। फिर उन्होंने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) का नाम बदलकर इंडि गठबंधन रख लिया। काका हथरसी की एक पंक्ति है- ‘‘नाम बदलने से न बदले हैं तकदीर, युद्ध छोड़कर भागते नाम भले रणधीर। इसलिए भाग्यचंद की आज तक सोयी है तकदीर।’’
इंडी गठबंधन वाले कहते हैं कि मोदी जी केजरीवाल से डरते हैं। इसलिए उन्होंने उनको शराब घोटाले की आड़ में जेल में डाल दिया है। क्या कहना चाहेंगे?
पिछले 12 वर्ष में आम आदमी पार्टी विचित्र प्रकार के आरोप लगा चुकी है। उसकी किस बात पर यकीन किया जाए? यह तो वही पार्टी है न जिसके मुख्यमंत्री ने कहा था कि अगर तुमसे कोई रिश्वत मांगे तो मना मत करना, रिकॉर्ड कर लेना। मुझे आकर बताना। आज उनके विधायक और मंत्री का रिकॉर्ड क्यों नहीं किया? पहले जो अण्णा हजारे के चरणों में थे और आज लालू प्रसाद यादव के चरणों में जाकर बैठे हैं। आम आदमी पार्टी के चरित्र में जिस प्रकार का बदलाव आया है, उसे देखते हुए यही कह सकते हैं, ‘‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान।’’
क्या इस बार भाजपा के घोषणापत्र में वे बातें रहेंगी, जिनकी अपेक्षा उसके समर्थक कर रहे हैं?
भारत की राजनीति मेें भाजपा एकमात्र ऐसी पार्टी है, जिसने किसी भी सैद्धांतिक मुद्दे पर आज तक अपना रुख नहीं बदला है। हम किसी भी गठबंधन में रहे पर सभी में हमारा घोषणापत्र रहा है। जिन मुद्दों के लिए कहा जाता था कि ये कभी नहीं होगा। कहा जाता था कि होगा तो पता नहीं क्या क्या हो जाएगा। आज उन सभी समस्याओं को शांतिपूर्ण तरीके से हल कर लिया गया है। मुझे लगता है कि मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा ने राजनीति में विश्वसनीयता की प्रमाणिकता को स्थापित किया है। विपक्षी दलों में विश्वसनीयता का संकट है। विपक्ष का एक भी मुद्दा ऐसा नहीं जिसमें उसने अपना रुख न बदला हो। इस मुद्दे पर भाजपा शेष सभी राजनीतिक दलों से बिल्कुल अलग है और मोदी जी ने उस विशिष्टता को शिखर तक पहुंचाने का काम किया है। आगे के लिए एक विशिष्ट घोषणापत्र बनाने के लिए समिति गठित की गई है। इसके लिए निरंतर बैठकें हो रही हैं। हमने जनता से भी सुझाव मांगे हैं। हम तो जन- भावना के अनुसार घोषणपत्र बनाते हैं। भाजपा का लक्ष्य केवल एक चुनाव नहीं है। प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि 25 वर्ष का काल अमृतकाल और कहा कि इन 25 वर्ष में समृद्ध भारत का जो आधार बनेगा वह अगले 1,000 वर्ष तक के लिए भारत का आधार बनाएगा। अर्थात् हमारी सोच एक चुनाव तक नहीं, बल्कि 1,000 साल आगे तक की है। हमारी सोच चुनाव-मूलक नहीं, सभ्यता-मूलक है।
भारत एक बड़े परिवर्तन की तरफ आगे बढ़ रहा है। यह चुनाव उसके तीसरे चरण के रूप में अभियान को आगे बढ़ाता हुआ नजर आएगा। इसे हम एक पंक्ति में कह सकते हैं- ‘‘अरुण गगन पर महाप्रगति का अब ये मंगल गान उठा। करवट बदला, अंगड़ाई ली, सोया हिन्दुस्थान था। गौरव की निद्रा से भी सदियों से जगता हुआ हिन्दुस्थान अब उठना शुरू हुआ है। विश्व को दबाने के लिए नहीं, विश्व को जागृत करने के लिए।’’
टिप्पणियाँ