लड़ाकू स्क्वाड्रनों की कमी से जूझ रही वायुसेना की ताकत बढ़ाने के लिए रक्षा मंत्रालय द्वारा 97 स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस एमके-1ए खरीदने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ एक बड़ा करार किया गया है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) द्वारा करीब चार महीने पहले तेजस एमके-1ए लड़ाकू विमानों की खरीद के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी और अब इसके टेंडर को स्वीकृति प्रदान की गई है। किसी स्वदेशी सैन्य उपकरण की खरीद के लिए भारत सरकार की ओर से दिया गया यह अब तक का सबसे बड़ा ऑर्डर है। इन 97 तेजस विमानों की खरीद प्रक्रिया पूरी होने के बाद भारतीय वायुसेना की क्षमता कई गुना मजबूत हो जाएगी। वायुसेना के लिए 97 और एलसीए मार्क-1ए लड़ाकू विमान खरीदने की योजना की घोषणा सबसे पहले वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी द्वारा स्पेन की धरती पर उस समय की गई थी, जब वह स्वदेशी लड़ाकू विमान सौदों को बढ़ावा देने की योजना के बारे में बता रहे थे।
करीब 67 हजार करोड़ रुपये का तेजस विमानों की खरीद का यह नया करार तेजस विमानों की खरीद का दूसरा बड़ा सौदा है। इससे पहले भारतीय वायुसेना द्वारा फरवरी 2021 में 48 हजार करोड़ रुपये का 83 एमके-1ए लड़ाकू विमानों का ऑर्डर दिया गया था, जिनकी पूरी खेप 2028 तक वायुसेना में शामिल किए जाने की संभावना है। उसके बाद 97 नए तेजस विमानों की आपूर्ति शुरू होगी। इन विमानों के आने के बाद भारतीय वायुसेना को मिग-21, मिग-23 और मिग-27 के अपने बेड़े को बदलने में मदद मिलेगी, जिन्हें या तो चरणबद्ध तरीके से हटा दिया गया है या फिर निकट भविष्य में हटाया जाना है। ऐसे में एलसीए तेजस आने वाले दशकों में भारतीय वायुसेना की लड़ाकू ताकत की मजबूत रीढ़ के रूप में उभरने वाला है। फिलहाल नए ऑर्डर के तहत भारतीय वायुसेना की लड़ाकू जेट विमानों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए एचएएल द्वारा नासिक में एलसीए एमके-1ए के लिए एक नया कारखाना स्थापित कर दिया गया है। दरअसल एचएएल बेंगलुरु में प्रतिवर्ष केवल 16 एलसीए एमके-1ए का ही निर्माण कर सकती है और नासिक का नया कारखाना तेजस के उत्पादन को बढ़ाकर 24 विमानों तक करने में मदद करेगा।
उल्लेखनीय है कि रक्षा अधिग्रहण परिषद ने 30 नवम्बर 2023 को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में 2.23 लाख करोड़ रुपये की राशि के विभिन्न पूंजीगत अधिग्रहण प्रस्तावों के लिए आवश्यकता की स्वीकृति (एओएन) के संबंध में अपनी मंजूरी दी थी। रक्षा मंत्रालय के अनुसार इन प्रस्तावों में 2.2 लाख करोड़ रुपये (कुल एओएन राशि का 98 फीसद) की राशि घरेलू उद्योगों से जुटाई जाएगी, जिससे भारतीय रक्षा उद्योग को ‘आत्मनिर्भरता’ के लक्ष्य हासिल करने की दिशा में काफी बढ़ावा मिलेगा। डीएसी द्वारा एचएएल से भारतीय वायुसेना और भारतीय सेना के लिए लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (एलसीएच) और वायुसेना के लिए लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) एमके-1ए की खरीद के लिए इंडियन-आईडीडीएम के तहत एओएन प्रदान किया गया था। एचएएल से स्वदेशी तौर पर सुखोई-30 एमकेआई विमान के उन्नयन के लिए भी डीएसी द्वारा एओएन प्रदान किया गया है। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक इन उपकरणों की खरीद से एक ओर जहां भारतीय वायुसेना को बड़ी मजबूती मिलेगी, वहीं इस अधिग्रहण से घरेलू रक्षा उद्योगों की क्षमता भी नई ऊंचाई पर पहुंचेगी और विदेशी मूल के उपकरण निर्माताओं (ओईएम) पर निर्भरता काफी हद तक कम हो जाएगी। डीएसी ने स्वदेशीकरण को अधिकतम करने के लिए रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) 2020 में एक बड़े संशोधन को भी अपनी मंजूरी देते हुए निर्णय लिया है कि अब खरीद के मामलों की सभी श्रेणियों में न्यूनतम 50 फीसद खरीदारी सामग्री, घटक और सॉफ्टवेयर के रूप में स्वदेशी घटक की ही होगी, जो भारत में ही निर्मित होंगे। विशेषज्ञों के अनुसार यह देशभर में रक्षा व्यवसाय में लगे छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा।
जहां तक नए एलसीए मार्क-1ए लड़ाकू विमानों की बात है तो इनमें 65 फीसद से अधिक स्वदेशी सामग्री का इस्तेमाल किया जाएगा। ‘एलसीए मार्क-1ए’ तेजस विमान का ही उन्नत संस्करण है, जिसमें वायुसेना को आपूर्ति किए जा रहे शुरुआती 40 एलसीए की तुलना में अधिक उन्नत एवियोनिक्स और रडार होंगे। एचएएल द्वारा तैयार किए गए तेजस एमके-1ए की गति 2220 किलोमीटर प्रति घंटा है। इसमें लगा एडवांस रडार इसे और भी घातक बनाता है। तेजस विमान हवाई युद्ध और आक्रामक हवाई सहायता मिशन के लिए बेहद शक्तिशाली माना जाता है जबकि टोही और जहाज-रोधी अभियान इसके सैकेंडरी रोल हैं। तेजस के पराक्रम को भारतीय वायुसेना द्वारा 2021 में दुबई एयर शो, 2022 में सिंगापुर एयर शो जैसे प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में प्रदर्शित किया जा चुका है और 2017 से 2023 तक एयरो इंडिया शो सहित कई अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में भी इस विमान की ताकत को दुनिया के समक्ष दिखाया गया है। यह काफी हल्का और ताकतवर कॉम्बैट विमान है, जिसकी प्रशंसा अमेरिका सहित कुछ अन्य प्रमुख देश भी कर चुके हैं और अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, मलेशिया सहित कई देश भारत के इस ताकतवर स्वदेशी लड़ाकू विमान को खरीदने में अपनी दिलचस्पी दिखा चुके हैं। यह हल्का लड़ाकू विमान इलैक्ट्रानिक रडार, बीवीआर (दृश्य सीमा से परे) मिसाइल, इलैक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट और हवा से हवा में ईंधन भरने (एएआर) जैसी महत्वपूर्ण परिचालन क्षमताओं से लैस है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस विमान को टेकऑफ के लिए ज्यादा बड़े रनवे की जरूरत नहीं होती और यह विमान एक साथ 10 टारगेट को ट्रैक करते हुए उन पर हमला कर सकता है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार तेजस अपने साथ 8-9 टन भार ले जा सकता है और सुखोई की तरह ही यह कई तरह के हथियार और मिसाइल भी ले जा सकता है। यही कारण है कि भारत का यह स्वदेशी लड़ाकू विमान न केवल भारतीय वायुसेना के लिए बेहद अहम है बल्कि दुनिया के कई प्रमुख देशों का भरोसा भी इस पर लगातार बढ़ रहा है, जिसके चलते दुनियाभर में इसकी मांग बढ़ रही है।
जहां तक रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए जा रहे महत्वपूर्ण कदमों की बात है तो रक्षा मंत्रालय ने इसी साल एक मार्च को मेक-इन-इंडिया पहल को बढ़ावा देने के लिए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और रक्षा सचिव गिरिधर अरमाने की उपस्थिति में 39125.39 करोड़ रुपये के पांच प्रमुख पूंजी अधिग्रहण अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए थे। इन पांच अनुबंधों में से एक मिग-29 विमान के लिए एयरो-इंजन की खरीद के लिए एचएएल के साथ किया गया जबकि दो अन्य अनुबंध क्लोज-इन वेपन सिस्टम (सीआईडब्ल्यूएस) की खरीद तथा हाई-पावर रडार (एचपीआर) की खरीद के लिए लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड (एलएंडटी) के साथ किए गए। दो अन्य समझौते ब्रह्मोस मिसाइलों और भारतीय रक्षा बलों के लिए जहाज से संचालित ब्रह्मोस प्रणाली की खरीद के लिए मैसर्स ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड के साथ हुए थे। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि ये सौदे रक्षा बलों की स्वदेशी क्षमताओं को तो और ज्यादा सुदृढ बनाएंगे ही, इससे विदेशी मुद्रा की भी बड़ी बचत होगी और भविष्य में विदेशी मूल के उपकरण निर्माताओं पर निर्भरता भी काफी कम हो जाएगी। पांच प्रमुख पूंजी अधिग्रहण अनुबंधों में से एचएएल के साथ मिग-29 विमानों के लिए आरडी-33 एयरो इंजन के लिए 5249.72 करोड़ रुपये की लागत का अनुबंध किया गया। इन एयरो इंजनों का उत्पादन एचएएल के कोरापुट डिवीजन द्वारा रूसी ओईएम से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (टीओटी) लाइसेंस के तहत किया जाएगा। इन एयरो इंजनों से पुराने हो रहे मिग-29 बेड़े की परिचालन क्षमता को बनाए रखने के लिए भारतीय वायुसेना की जरूरतें पूरी होने की उम्मीद है।
एलएंडटी के साथ सीआईडब्ल्यूएस की खरीद के लिए 7668.82 करोड़ रुपये की लागत से अनुबंध किया गया है, जो देश के चुनिंदा स्थानों पर टर्मिनल एयर डिफेंस प्रदान करेगा। यह परियोजना भारतीय एयरोस्पेस, रक्षा और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम सहित संबंधित उद्योगों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करेगी और इस परियोजना से आगामी पांच वर्षों में प्रतिवर्ष करीब 2400 रोजगार सृजित होंगे। एलएंडटी के साथ हाई पावर रडार की खरीद के लिए भी 5700.13 करोड़ रुपये की लागत से अनुबंध हुआ है। यह उन्नत निगरानी सुविधाओं के साथ आधुनिक सक्रिय एपर्चर चरणबद्ध सरणी आधारित एचपीआर के साथ भारतीय वायुसेना के मौजूदा लंबी दूरी के रडार को बदलेगा और छोटे रडार क्रॉस सेक्शन लक्ष्यों का पता लगाने में सक्षम परिष्कृत सेंसर के एकीकरण के साथ भारतीय वायुसेना की जमीनी वायु रक्षा क्षमताओं में काफी वृद्धि करेगा। इससे स्वदेशी रडार निर्माण प्रौद्योगिकी को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि यह भारत में निजी क्षेत्र द्वारा निर्मित अपनी तरह का पहला रडार होगा। इस परियोजना से आगामी पांच वर्षों में प्रतिवर्ष करीब एक हजार लोगों को रोजगार मिलेगा।
ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (बीएपीएल) के साथ ब्रह्मोस मिसाइलों की खरीद के लिए किए गए 19518.65 करोड़ रुपये के करार के तहत इन मिसाइलों का उपयोग भारतीय नौसेना की लड़ाकू और प्रशिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जाएगा। इस परियोजना से देश के संयुक्त उद्यम इकाई में नौ लाख मानव दिवस और सहायक उद्योगों (एमएसएमई सहित) में लगभग 135 लाख मानव दिवस का रोजगार सृजित होने की आशा है। बीएपीएल के साथ जहाज द्वारा संचालित ब्रह्मोस प्रणाली की खरीद के लिए 988.07 करोड़ रुपये की लागत का एक और अनुबंध भी किया गया है। यह प्रणाली विभिन्न फ्रंटलाइन युद्धपोतों पर लगाए गए समुद्री हमले के संचालन के लिए भारतीय नौसेना का प्राथमिक हथियार है। यह प्रणाली सुपरसोनिक गति पर पिन प्वाइंट सटीकता के साथ विस्तारित रेंज से भूमि या समुद्री लक्ष्यों पर प्रहार करने में सक्षम है। इस परियोजना से 7-8 वर्षों की अवधि में लगभग 60 हजार श्रम दिवस रोजगार सृजित होने की आशा है। कुल मिलाकर रक्षा मंत्रालय के इन महत्वपूर्ण निर्णयों से न केवल सेना के तीनों अंगों को काफी मजबूती मिलेगी बल्कि भारत के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को भी तेज गति मिलेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं)
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