गत दिनों कोवलम (तिरुअनंतपुरम) में आयोजित एक कार्यक्रम में शैव दर्शन के ज्ञाता डॉ. मार्क डिक्जकोव्स्की और विद्वान प्रो. नवजीवन रस्तोगी को प्रथम ‘राजनाका पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दोनों विद्वानों को यह सम्मान प्रदान किया।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति की पत्नी सुदेश धनखड़, केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे. नंदकुमार सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित थे। प्राचीन युग में ‘राजानक’ की उपाधि कश्मीर में ऐसे लोगों को दी जाती थी, जो ज्ञान, आध्यात्मिकता और कौशल के क्षेत्र में असाधारण योगदान देते थे।
‘ईश्वर आश्रम ट्रस्ट’ के सहयोग से अब यह सम्मान ‘अभिनवगुप्त इंस्टीट्यूट आफ एडवांस्ड स्टडीज’ ने देना शुरू किया है। प्राचीन कश्मीर के अनेक विद्वानों जैसे जयरथ, क्षेमराज, उत्पलदेव, अभिनवगुप्त आदि प्रख्यात शैवाचार्य ‘राजानक’ की उपाधि से सम्मानित हुए थे। बाद में धार्मिक-सांस्कृतिक परिदृश्य के क्षरण के साथ इस उपाधि का महत्व कम हो गया। हालांकि यह शब्द ‘रैना’ और ‘राजदान’ जैसे उपनामों के रूप में अभी भी जीवित है।
उपराष्ट्रपति ने समारोह में कहा कि हमारे देश का सभ्यतागत लोकाचार हमेशा विविधताओं से परे आध्यात्मिक एकता से ओत-प्रोत रहा है। जे. नंदकुमार ने कहा कि यह पुरस्कार मूल रूप से हमारे राष्ट्र के स्वत्व की अभिव्यक्ति है। भारत की निर्विवाद सांस्कृतिक एकता भौगोलिक आयाम से परे फैली हुई है, जिसके केंद्र में सनातन धर्म है।
आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि त्रिका या कश्मीरी शैववाद आत्मा और पदार्थ को अविभाज्य रूप से एक मानता है। डॉ. आर. रामानंद ने कहा कि कश्मीर और केरल के बीच गहरा आध्यात्मिक संबंध है। इस अवसर पर अनेक गणमान्य जन उपस्थित थे।
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