14 अप्रैल को भारतीय लोकतंत्र के एक महत्वपूर्ण स्तम्भ डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की जयंती मनाई जाती है। बाबासाहेब आंबेडकर भारतीय संविधान के शिल्पकार माने जाते हैं। कई विषयों पर उन्होंने हमेशा अपने विचार एकदम निष्पक्ष होकर रखे। वर्ष 1921 मे केरल में मालाबर में हिंदुओं का जीनोसाइड मोपला मुस्लिमों के हाथों हुआ था। जिसे अभी तक कम्युनिस्ट एवं इस्लामिस्ट लेखक किसान विद्रोह कहते हैं। मगर यह पूरी तरह से हिंदुओं के प्रति की गई सुनियोजित हिंसा थी। बाबासाहेब आंबेडकर इस विषय में पूरी तरह से स्पष्ट थे कि यह हिंदुओं का जीनोसाइड ही है।
मालाबार में वर्ष 1921 में हिन्दुओं के साथ मोपला मुस्लिमों ने जो किया था, उस हिंसा की तुलना इतिहास में शायद ही कहीं मिलेगी। क्योंकि हिन्दुओं के साथ यह जीनोसाइड दोतरफ़ा था। सबसे पहले तो उन्हें एक छलावे के विमर्श के चलते उनके धर्म के नाम पर निशाना बनाया गया। जिसके विषय में तत्कालीन वायसराय ने भी कहा था कि हिंसा की पराकाष्ठा थी। परन्तु यह भी याद रखना होगा कि आखिर यह जीनोसाइड हुआ कैसे था? उसके पीछे क्या कारण था या थे? क्योंकि मोपला मुस्लिमों के विषय में यह भी तथ्य ऐतिहासिक हैं कि वह बहुत कट्टर तो थे ही, साथ ही मालाबार मैनुअल लिखने वाले विलियम लोगन ने उनके आम आचरण के विषय में लिखा था कि “तालीम से वह कोसों दूर रहते थे, तालीम के नाम पर अरबी में कुरआन रटते थे, जिसका अर्थ भी उन्हें नहीं पता होता था।”
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लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात विलियम लोगन लिखते हैं कि वैसे उनके साथ जब भी कोई उदारता से व्यवहार करता था तो वे उससे जुड़ जाते थे और वह सामान्य अवसरों पर विश्वसनीय होते थे। मगर उन्हें नियंत्रित करने वाला एक कठोर और मजबूत हाथ होता था और जब उचित हो तो उन्हें सजा भी कठिन से कठिन मिलनी चाहिए। सजा के मामले में उदारता से उनका कोई लेना-देना नहीं होता था और उसे वह कमजोरी के रूप में कहते थे।
उन्होंने लिखा था कि यद्यपि मोपला मुस्लिम हुनरमंद होते हैं, मगर वह अपने मजहबी विचारों को लेकर बहुत कट्टर हैं। मजहब के प्रति उनकी कट्टरता के कई उदाहरण थे। परन्तु अंग्रेजों के खिलाफ जब खिलाफत आन्दोलन के दौरान महात्मा गांधी ने मोपला मुस्लिमों पर विश्वास जताया और मालाबार के हिंदुओं से मुस्लिमों के साथ एकता करने को कहा।
यहाँ तक कि 1921 में जब मालाबार के हिन्दुओं को मोपला कट्टर मुस्लिम अपने मजहबी उन्माद का शिकार बना रहे थे, तब भी महात्मा गांधी ने मोपला मुस्लिमों की निंदा नहीं की थी। उन्होंने मोपला मुस्लिमों के विषय में कहा था, “ऊपर वाले से डरने वाले बहादुर मोपला हैं जो उसके लिए लड़ रहे हैं जिसे वह मजहब समझते हैं और उस तरीके से लड़ रहे हैं, जैसा उन्हें मजहब के अनुसार लगता है!”
मोपला पर महात्मा गांधी के खिलाफ रहे बाबा साहेब
महात्मा गांधी की इस नीति के विरुद्ध बाबा साहेब अम्बेडकर ने मुखर होकर लिखा। अपनी पुस्तक “थॉट ऑन पाकिस्तान” में वह इस काल्पनिक हिन्दू-मुस्लिम एकता के विषय में लिखते हैं। वह हिन्दुओं की कीमत पर मुस्लिमों के साथ एकतरफा जबरन एकता बनाए रखने की महात्मा गांधी की नीति की आलोचना करते हैं। मोपला मुस्लिमों द्वारा मालाबार के हिन्दुओं के साथ किए गए अमानवीय व्यवहार पर चुप्पी पर वह लगातार प्रश्न उठाते हैं।
वह प्रश्न करते हैं कि मिस्टर गांधी हिंसा की किसी भी घटना के होने पर निंदा अवश्य करते हैं और कांग्रेस से भी कहते हैं कि वह निंदा करे। मगर उन्होंने कभी भी ऐसे कत्लों के खिलाफ कभी भी विरोध प्रदर्शन नहीं किया है। न ही मुस्लिमों ने कभी निंदा की है। क्या वह कभी अग्रणी मुस्लिमों से कहेंगे कि वह उनकी निंदा करें? वह उन पर शनत रहे हैं। ऐसा व्यवहार केवल इसी आधार पर समझा जा सकता है कि श्री गांधी हिन्दू मुस्लिमों एकता बचाए रखने के लिए बहुत बेचैन थे और उन्हें कुछ हिन्दुओं की हत्या से भी कोई फर्क नहीं पड़ता था, यदि उनके जीवन के बलिदान से यह (हिन्दू-मुस्लिम एकता) हासिल हो सके!
उन्हें मोपला मुस्लिमों द्वारा हिन्दुओं के कत्लेआम, जबरन मतांतरण और हिन्दू लड़कियों के साथ बलात्कार, सामूहिक बलात्कार जैसी घटनाओं पर महात्मा गांधी की चुप्पी कहीं न कहीं बहुत बेचैन करती है और वह लिखते हैं कि किसी भी व्यक्ति के लिए हिन्दू-मुस्लिम एकता बनाए रखने के लिए यह बहुत भारी कीमत हो सकती थी। मोपला अत्याचारों पर मुस्लिम वर्ग की चुप्पी पर बोलते हुए महात्मा गांधी ने हिन्दुओं से कहा था कि “हिन्दुओं के पास वह साहस और विश्वास होना चाहिए, जिससे उन्हें विश्वास हो सके कि ऐसी कट्टर स्थितियों में भी वह अपने धर्म की रक्षा कर सकते हैं।
मोपला पागलपन की मुसलमानों द्वारा मौखिक अस्वीकृति मुसलमानों के साथ दोस्ती की परीक्षा है। मुसलमानों को स्वाभाविक रूप से मोपला आचरण के प्रति शर्म महसूस होनी चाहिए कि कैसे जबरन मतांतरण और लूट की गयी और उन्हें अपना काम इतनी शांति एवं कुशलता से करना चाहिए कि सबसे उन्मादी भी ऐसी घटना अब न कर सकें। मेरा विश्वास यह है कि हिन्दुओं ने एक इकाई के रूप में मोपला नरसंहार को गंभीरता से लिया है और सभ्य मुसलमान मोपलाओं द्वारा पैगम्बर की तालीम को विकृत करने को लेकर खेद है।
बाबा साहब मोपला मुस्लिमों द्वारा हिन्दुओं के साथ की गयी हिंसा को Bartholomew की संज्ञा देते हैं। जब इस शब्द की तह में जाते हैं तो पता चलता है कि आखिर यह शब्द क्यों प्रयोग किया है? यह फ्रांस में वर्ष 1572 में हुए उस जीनोसाइड का सन्दर्भ है, जिसमें दो महीने तक चली हिंसा और कत्लेआम में कैथोलिक्स के हाथों फ्रांसीसी प्रोटेस्टेंट मारे गए थे। उस समय यह आंकड़ा 5,000 से लेकर 25,000 तक का रहा था। बाबा साहेब अम्बेडकर अपनी पुस्तक Pakistan or Partition of India में लिखते हैं, “यह हिन्दू मुस्लिम दंगे नहीं थे। यह एक Bartholomew था। कितने हिन्दू मारे गए, घायल हुए या फिर मतांतरित हुए, यह ज्ञात नहीं हैं। परन्तु संख्या अत्यंत विशाल हो सकती है।”
इस जीनोसाइड पर कांग्रेस द्वारा निंदा प्रस्ताव और भी अधिक विचलित करने वाला था। परन्तु थॉट्स ऑन पाकिस्तान में बाबा साहेब अम्बेडकर यह प्रश्न उचित उठाते हैं कि क्या कोई व्यक्ति हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए इस सीमा तक जा सकता है? वह कांग्रेस और महात्मा गांधी द्वारा मजहबी कट्टरता के तुष्टिकरण के खिलाफ प्रतीत होते हैं, जिसका खामियाजा भारत कहीं न कहीं अभी तक भुगत रहा है।
स्रोत:
1- मालाबार मैन्युअल – विलियम लोगन
2- थॉट्स ऑन पाकिस्तान – डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
3- PAKISTAN OR THE PARTITION OF INDIA – डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
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