कानून के विद्यार्थियों के लिए केजरीवाल केस शोध और अनुसंधान के नए रास्ते खोजने वाला बनेगा , आगे विधि आयोग के लिए भी कई प्रश्न विचार के लिए आएंगे। केंद्र शासित राज्यों विशेषतया राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अनेक सामरिक, सास्कृतिक और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य भी होते हैं , ऐसे राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सरकार के कार्यकलाप राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय नीतियों पर प्रभावकारी होते हैं।
दिल्ली में कथित शराब नीति घोटाला मामले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग केस में (प्रवर्तन निदेशालय) में विधिक दृष्टि से यह विचारणीय तथ्य है कि अगर कोई मुख्यमंत्री यदि किसी आपराधिक मामले में जेल में है या देश छोड़कर भाग जाए तो क्या वह जेल से या विदेश से शासन चला सकता है? क्योंकि विधानसभा में तो उसका बहुमत बना हुआ है और कोई कानून भी नहीं है ऐसे मुख्यमंत्री को हटाने का तो क्या मुख्यमंत्री वहीं से पत्नी को शासकीय कार्यकलापों के लिए ह्वाट्सऐप संदेश पहुंचाता रह सकता है ? क्या अब जेल से भी व्हाट्सएप सन्देशों से देश में सरकारें चलेंगी ? किसी प्रत्यक्ष कानून की अनुपस्तिथि में ये सब प्रश्न अब न्यायालयों के विवेकाधिकार की परीक्षा हैं ।
संविधान निर्माताओं ने कब सोचा था कि भविष्य में भारत के किसी राज्य में कोई ऐसा कथित अराजक मुख्यमंत्री भी आएगा जो जेल जाने से पहले या हाइकोर्ट के निर्णय से गिरफ्तारी की वैधता सिद्ध हो जाने के बाद भी इस्तीफा नहीं देगा। या दूसरे शब्दों में उच्च न्यायालय द्वारा गिरफ्तारी को वैध ठहराने और कठोर टिप्पणियों के बाद भी त्यागपत्र नहीं देगा।
हमारे संविधान निर्माताओं को ऐसी कल्पना भी नहीं आई होगी कि राजनीति में नैतिकता का इतना ह्रास हो सकता है , शायद इसलिए संविधान में साफ-साफ नहीं लिखा। लेकिन बहुत गंभीर सवाल है, जेल से सरकार चलाए जाने के बाद इसकी नौबत आ ही सकती है।
हरियाण के सीएम चौटाला , झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन, बिहार के मुख्यमंत्री लालूप्रसाद , तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता भ्रष्टाचार के मामलों में तथा मध्य प्रदेश में सुश्री उमा भारती हुबली में राष्ट्रध्वज फहराने के राजनीतिक मामले में यानि केजरीवाल से पहले सभी आरोपी मुख्यमंत्रियों ने जेल जाने से पहले ही त्यागपत्र दिया है।
स्वयं केजरीवाल ने भी मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन का मंत्री पद से इस्तीफा लिया है । इन्होंने ही दिल्ली के दो दलित मंत्रियों का छोटी सी बात पर इस्तीफा लिया है। सबने इस्तीफा दे दिया था पर केजरीवाल जी को कुर्सी का मोह है।
12 साल पहले केजरीवाल की नजर में कांग्रेस भारत की सबसे भ्रष्ट पार्टी थी। आज उसी कांग्रेस पार्टी के नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी, जिनके नैतिक मानदंडों के बारे में सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा। आज अरविंद केजरीवाल के वकील हैं समय चक्र इसे ही कहा गया है। दिल्ली हाईकोर्ट का कथित शराब नीति घोटाला मामले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में केजरीवाल के शराब घोटालें पर दिया गया पूरा ऑर्डर पढ़ने योग्य है।
कोर्ट ने साफ कहा है कि केजरीवाल प्रथमदृष्टया शराब घोटाले में, रिश्वत लेने में, हवाला लेन-देन के अपराध में शामिल हैं ,पार्टी भी सह अपराधी है। कोर्ट ने ये भी कहा कि शराब घोटालें में केजरीवाल की गिरफ्तारी कानूनन एक सही कदम है। कोर्ट ने कहा कि केजरीवाल बार-बार बुलाने के बाद भी ED के सामने नहीं गये। इसके कारण शराब घोटाले के अन्य आरोपियों को लंबे समय तक जेल में रहना पड़ रहा है , जांच में देरी हुई, अक्टूबर से उसे बुलाया जा रहा था ,इसलिए चुनाव के टाइम गिरफ्तारी की बात महत्वहीन है।
कोर्ट ने कहा कि कानून एक आम आदमी और एक सीएम के लिए समान है और केजरीवाल को ये बात समझनी होगी। कोर्ट ने केजरीवाल के वकीलों के हर तर्क का जवाब दिया और नसीहत भी दी। कोर्ट ने कहा कि शराब घोटाले का पैसा नहीं मिला ये तर्क झूठ है, पैसा हवाला के माध्यम से राजनीतिक इस्तेमाल हुआ ऐसा दिखाई देता है, जिसके प्रमाण हैं।
कोर्ट ने ये भी कहा कि आम आदमी पार्टी द्वारा गवाहों की विश्वसनीयता पर उठाए सवाल आधारहीन हैं और ऐसा लगता है कि साथ मिलकर घोटाला करने बाद अब गवाही देने वालों को धोखेबाज साबित करने की कोशिश की जा रही है। हाई कोर्ट ने सब लिखित ऑर्डर में दिया है ,अब इस्तीफा देने के अलावा केजरीवाल के पास कोई विकल्प नहीं बचा है।
केजरीवाल को पद से हटाने की याचिकाएं माननीय न्यायालय ने इस आधार पर निरस्त की हैं कि केजरीवाल को पद से हटाने का काम कोर्ट का नहीं है। यह काम या तो स्वयं आम आदमी पार्टी करेगी या दिल्ली के गवर्नर को नियमानुसार करना चाहिए।
अब मेरा जो अनुमान है वो यह है कि ये अंतिम समय तक कुर्सी से चिपके रहेंगे। राष्ट्रपति शासन पर अंतिम नोटशीट बनने के बाद ये अपनी पत्नी को कुर्सी पर बैठाएंगे, चूंकि वो अभी विधायक नहीं है , तो छह महीने बाद उपचुनाव में जाना पड़ेगा। लेकिन 4 जून के बाद आम आदमी पार्टी में कोई नया नेतृत्व उभर सकता है या आम आदमी पार्टी भी चूंकि कोर्ट में शराब दलाली में पार्टी है तो निर्वाचन आयोग उसकी मान्यता भी खत्म कर सकता है।
अब सुप्रीम कोर्ट के भी आदेश की प्रतीक्षा है, जहां पता नहीं केजरीवाल की हाईकोर्ट के निर्णय के विरुद्ध अपील पर मीलार्ड किन नियमों से निर्वचन या व्याख्या कर इसका निपटारा करेंगे। कुल मिलाकर पूरा केस अनेक नैतिक विधिक प्रश्नों के न्यायिक हल के लिए आने वाले समय में लोकनीति, राजनीति और न्यायनीति के लिए कोई न कोई मार्ग प्रशस्त अवश्य करेगा।
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