जैविक खेती के जाने-माने विशेषज्ञ सुभाष पालेकर से प्रेरणा लेकर अलीगढ़ के उन्नतिशील किसान सुरेंद्र सिंह ने समाज के सामने सफलता की बेमिसाल कहानी प्रस्तुत की है। गो-आधारित जैविक कृषि से समृद्धि का रास्ता तय करने वाले सुरेंद्र अलीगढ़ तो क्या, आसपास के जिलों के किसानों को भी खुशहाली के मंत्र सिखाते हैं।
अलीगढ़ जिले में गोंडा प्रखंड में एक छोटा-सा गांव है नगला गोवर्द्धन जसुआ। इसी गांव के रहने वाले सुरेंद्र करीब डेढ़ दशक से जैविक खेती कर रहे हैं। उन्होंने पारंपरिक खेती की जगह प्राकृतिक तरीके से कृषि का रास्ता चुना था तो शुरू में कुछ परेशानियां सामने आई थीं, लेकिन धीरे-धीरे समस्या खुद समाधान में बदलती चली गई।
सुरेंद्र बताते हैं कि जैविक खेती में किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या कीटों और बीमारियों से फसलों के बचाव की होती है। कीटनाशक महंगे भी होते हैं और फसलों के साथ इंसानों के शरीर पर भी विपरीत प्रभाव डालते हैं। जैविक खेती में कीटनाशक और खादों की जगह सब कुछ प्राकृतिक इस्तेमाल होता है। गो-आधारित कृषि करने के लिए उन्होंने देसी बीज और गोबर खाद का प्रयोग शुरू किया। साथ ही फसलों को पोषण देने के लिए खुद जीवामृत बनाकर जमीन को अधिक उपजाऊ बनाया। फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाव के लिए अरंडी के तेल का इस्तेमाल बहुत कारगर साबित हुआ है।
सुरेंद्र के अनुसार, ज्यादा पैदावार और अधिक आमदनी के लिए उन्होंने मिश्रित फसलों पर काम शुरू किया था, जो बहुत फायदे का सौदा साबित हुआ। इस समय वे 10 एकड़ जमीन में जैविक खेती कर रहे हैं, जिसमें वार्षिक लागत करीब 5,00,000 रु. आती हैं और मुनाफा खर्चे के मुकाबले कई गुना ज्यादा होती है। उन्हें जैविक खेती से न सिर्फ मानसिक संतुष्टि मिलती है, बल्कि खुशहाल जीविकोपार्जन के लिए पर्याप्त धन की व्यवस्था भी हो रही है।
कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर के साथ आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर को अपना प्रेरणा-स्रोत मानने वाले सुरेंद्र सिंह मेहनत और दूरदर्शिता से दूसरे किसानों को तरक्की का रास्ता दिखा रहे हैं। जैविक फसलों के बारे में जानकारी होने पर दूर-दूर से किसान भाई सुरेंद्र के गांव आकर प्राकृतिक कृषि के तरीके समझते हैं और उनकी तरह खुशहाली का सपना साकार करने की प्रेरणा लेते हैं।
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