सामान्यत: घर के बड़े-बूढ़े कहा ही करते हैं कि यदि आपके पास खेत हैं, तो कहीं नौकरी करने से अच्छा है खेती करना। विनोद ज्याणी ने बुजुर्गों की इस सलाह को माना। 60 वर्षीय विनोद गांव कटेहड़ा, जिला फाजिल्का (पंजाब) के रहने वाले हैं। वे पिछले 30 वर्ष से खेती कर रहे हैं। प्रारंभ के 10 वर्ष तक वे सामान्य खेती करते रहे। इस कारण उन्हें कोई विशेष आमदनी नहीं होती थी। इसके बाद उन्होंने अनूठे ढंग से खेती करना शुरू किया।
अब वे गो-आधारित प्राकृतिक खेती करते हैं। किसी भी बीज को बोने से पहले वे उसे गोबर के पानी और राख से निकालते हैं। इससे उस बीज की गुणवत्ता और क्षमता बढ़ जाती है। सिंचाई के लिए उन्होंने बूंद-बूंद प्रणाली को अपनाया है। विनोद कहते हैं, ‘‘पंजाब में गिरते जल स्तर और खेती में रसायनों के ज्यादा उपयोग से खेती की लागत बढ़ रही थी। इस कारण मैंने प्राकृतिक खेती करने का फैसला लिया। इससे फसल तो अच्छी होती ही है, साथ ही पानी की बचत भी होती है। जमीन में पानी का स्तर बना रहता है।’’
ज्याणी ने अपने खेत में मोटे अनाज, औषधीय पौधों और फलों के बगीचे लगाकर खेती का विकास किया है। उन्होंने देश-विदेश के अनेक किसानों को प्राकृतिक कृषि का प्रशिक्षण भी दिया है। विनोद के पास खेती के साथ ही खाद्य प्रसंस्करण इकाई भी है। वे अपने उत्पादों को सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण का उपयोग करते हैं। इससे उनकी आय और व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि होती है, जो उनके परिवार की समृद्धि का कारण भी बनती है।
विनोद अपनी पत्नी, बच्चों और परिवार के अन्य लोगों के सहयोग से 120 एकड़ में कृषि कार्य करते हैं। विशेष बात यह है कि वे 30 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। वे सालाना 30,00,000 रुपए कृषि कार्य के लिए खर्च करते हैं और लगभग 60,00,000 रुपए यानी महीने में 5,00,000 रु. कमा लेते हैं।
किसी सामान्य परिवार के गुजर-बसर के लिए इतना पैसा काफी होता है। यही कारण है कि विनोद का पूरा परिवार आनंद में रहता है। वे कहते भी हैं, ‘‘जहां मेहनत से समृद्धि आती है, वहां खुशहाली छाई रहती है।’’
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