राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने प्रतिबंधित आतंकी संगठन पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) के आतंकी वित्तपोषण तंत्र का खुलासा किया है। उसकी जांच में यह भी सामने आया है कि प्रतिबंध के बावजूद यह आतंकी संगठन अपनी गतिविधियां चला रहा है। जांच एजेंसी ने हाल ही में गिरफ्तार केरल के कोल्लम निवासी रऊफ शेरिफ से पूछताछ के बाद धनशोधन के आरोप में पीएफआई के तीन गुर्गों को गिरफ्तार किया है। ये हैं अब्दुल खादर पुथुर, अंशद बदरुद्दीन और फिरोज खान। इन्हें धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तार किया गया है। रऊफ के बारे में एनआईए को सिद्दीक कप्पन से जानकारी मिली थी, जिसे उत्तर प्रदेश पुलिस ने हाथरस दंगे का षड्यंत्र रचने के मामले में गिरफ्तार किया था।
ईडी का आरोप है कि अब्दुल, बदरुद्दीन और फिरोज पीएफआई के गुर्गों को हथियार और आतंकी गतिविधियों के लिए प्रशिक्षण दे रहे थे तथा इसके लिए गैरकानूनी संगठन से वेतन भी ले रहे थे। रिपोर्ट के अनुसार, रऊफ कैम्पस फ्रंट का महासचिव था और उसने ओमान में एक शेल कंपनी के जरिये पीएफआई के लिए वित्त पोषण प्रवाह की व्यवस्था की थी। रऊफ अब सरकारी गवाह बन गया है और हाल ही में उसे जमानत मिली है। लखनऊ जेल में रऊफ से कई बार पूछताछ के बाद एनआईए ने देशभर में छापेमारी कर कई लोगों को गिरफ्तार किया है।
एनआईए के समक्ष रऊफ ने कबूल किया कि वह पीएफआई से 2013 और कैम्पस फ्रंट से 2015 में जुड़ा। इसके बाद 2018-19 में वह पीएफआई की छात्र इकाई कैम्पस फ्रंट का महासचिव बन गया। कैम्पस फ्रंट का कार्यालय दिल्ली के शाहीनबाग की एफएफ-23 बिल्डिंग में था, जिसे कन्नूर निवासी और फ्रंट के पूर्व अध्यक्ष ए.वी. शोएब के नाम पर किराये पर लिया गया था। इसी इमारत में ऊपरी तल पर पीएफआई नेता अब्दुल रहमान रहता था। पीएफआई का दिल्ली कार्यालय बगल की एफ-30 इमारत में था, जहां रऊफ नियमित रूप से आता रहता था।
2016 में सीए की परीक्षा पास करने के दो वर्ष बाद रऊफ को रईस इंटरनेशनल कंपनी में महाप्रबंधक की नौकरी मिल गई। वह खाड़ी देश चला गया। लेकिन उसका भारत आना-जाना लगा रहा। वह खाड़ी देशों में पीएफआई का सक्रिय कार्यकर्ता था और मुसलमानों से पैसा इकट्ठा कर उसे हवाला के जरिये भारत भेजता था। वह कभी-कभी कुछ संगठनों और खास लोगों के बैंक खातों में भी पैसे भेजता था। खाड़ी कार्यकारी परिषद खाड़ी देशों में पीएफआई की गतिविधियों का समन्वय करती है।
केरल सहित कुछ राज्यों में इसकी जिला कार्यकारी परिषदें हैं। कार्यकारी परिषद का काम मुसलमानों से पैसा इकट्ठा करना है। दोहा के नौफल शेरिफ, मोहम्म्द फैजल बशीर और मस्कट का रेमीज, इन तीनों पर पीएफआई के लिए खाड़ी में धन जुटाने का प्रभार है। कहने को कैम्पस फ्रंट अलग छात्र इकाई है, लेकिन इसका संचालन पीएफआई ही करता है। इसके अलावा, पीएफआई की रिहैब फाउंडेशन, ग्रीन वैली, एडवोकेट्स काउंसिल, एनसीएचआरओ, जूनियर फ्रंट, महिला मोर्चा और हिट स्क्वाड जैसी शाखाएं भी हैं।
रऊफ के मुताबिक, रिहैब इंटरनेशनल चैरिटी गतिविधियों के नाम पर खाड़ी देशों से जो फंड जुटाता है, उसे पीएफआई गतिविधियों पर खर्च किया जाता है। ग्रीन वैली अकादमी में मुफ्त शिक्षा के नाम पर मुस्लिम बच्चों को मजहबी घुट्टी पिलाई जाती है। ग्रीन वैली के सक्रिय पीएफआई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने पर वे ‘विक्टिम कार्ड’ खेलकर बच जाते हैं। वहीं, एडवोकेट्स काउंसिल और एनसीएचआरओ कानूनी सहायता प्रदान करते हैं। ‘थेजस’ और अन्य मीडिया संस्थानों के कई मीडियाकर्मी भी पीएफआई के कार्यकर्ता हैं, जबकि जूनियर मोर्चा बच्चों और महिला मोर्चा महिलाओं के बीच काम करता है।
पीएफआई की हिट स्क्वाड जैसी गुप्त सैन्य शाखाओं में शारीरिक और हथियार चलाने का प्रशिक्षण देकर मुस्लिम युवाओं को हमलों के लिए तैयार किया जाता है। उन्हें खासतौर से दंगा भड़काने और हत्या करने के लिए तैयार किया जाता है। खास बात यह है कि पीएफआई की विभिन्न शाखाओं के कार्यकर्ता एक-दूसरे से नहीं मिलते। इसलिए उन्हें कोई नहीं जानता, केवल पीएफआई के शीर्ष नेता और ‘प्रबंधक’ ही उन्हें जानते हैं। पीएफआई का मीडिया सेल भी है, जिसमें आईटी पेशेवर होते हैं। इनका काम देश और केंद्र सरकार को बदनाम करना और सांप्रदायिक भावनाएं भड़काना है। सोशल मीडिया सेल यह प्रचारित करता है कि ‘अल्पसंख्यकों’ और वंचितों पर ‘अत्याचार’ हो रहा है।
पीएफआई ने हाथरस में एक दलित लड़की की मौत की खबर को मुद्दा बनाकर सोशल मीडिया पर फैलाया था। जब सरकार ने सीएए विरोधी प्रदशनों को दबाया, तो यह पीएफआई के लिए एक बड़ा झटका था। इसलिए पीएफआई हाथरस की घटना को भड़काने में जुट गया और इसके लिए एक टीम भेजी। रऊफ ने हाथरस जाने के लिए अतीक उर रहमान को 5,000 रुपये ट्रांसफर किए थे। पीएफआई से जुड़े के.पी. कमल ने इसके लिए सिद्दीक कप्पन के खाते में पैसे हस्तांतरित किए थे। उस टीम को जो मिशन दिया गया था, वह था दलित-जातीय हिंदू दंगे भड़काना।
एफआई ने बहुत तेजी से दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और बंगाल में अपनी पैठ बनाई।सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान भी बहुत सारे लोग पीएफआई में शामिल हुए थे और इस दौरान पीएफआई को विदेशों से मोटी रकम भी मिली थी। चूंकि कोरोना महामारी और पुलिस की सख्ती के कारण सीएए आंदोलन खत्म हो गया, इसलिए पीएफआई ने हाथरस की घटना को तूल दिया। साथ ही, सिद्दीक कप्पन और टीम के भेजने के बाद हिट स्क्वाड के सदस्यों अनशाद, बदरुद्दीन और फिरोज को पेट्रोल बम और हथियारों के साथ हाथरस भेजा गया। कप्पन और टीम की गिरफ्तारी के समय अगर हाथरस मिशन रोक दिया गया होता और हाथरस में दंगे हो जाते, तो पीएफआई अपने मंसूबों में सफल हो जाता।
रऊफ के अनुसार, के.पी. कमल ही टीमों की तैनाती के साथ उनकी गतिविधियों को नियंत्रित करता था। वह दिल्ली कार्यालय का प्रबंधक भी था। हिट स्क्वाड के मोबाइल डेटा से पता चला कि कमल एक ही मिशन के लिए कई दस्ते भेजता है। ओ.एम.ए. सलाम, पी. कोया, ई.एम. अब्दुल रहमान, अनीस अहमद, ए.एम. इस्लाम, के.पी. कमल, एम.के. फैजी, अब्दुल वाहिद सैत, मोहम्मद यूसुफ, वी.पी. नजरुद्दीन और नौफल पीएफआई के शीर्ष कर्ता-धर्ता हैं। इनमें पी. कोया सहित कुछ लोग प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी के पूर्व पदाधिकारी रह चुके हैं।
पीएफआई का गठन 2006 में केरल में हुआ था। इसका मुख्यालय दिल्ली में है। यह अपनी स्थापना से ही अनेक आतंकवादी, राष्ट्र-विरोधी और मजहबी कट्टरपंथी गतिविधियों में शामिल रहा है। यह अपनी राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिए तस्करी, धनशोधन, हवाला जैसे गैर-कानूनी तरीके से पैसे जुटाता है। भाजपा और संघ-प्रेरित आंदोलनों को छोड़कर पीएफआई के प्रति सभी संगठनों का रुख नरम ही रहा है, क्योंकि उनकी निगाह मुस्लिम वोट बैंक पर रही।
केंद्र सरकार ने 28 सितंबर, 2022 को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत पीएफआई पर प्रतिबंध लगाया था। लेकिन इसकी राजनीतिक शाखा एसडीपीआई अभी भी काम कर रही है। यानी प्रतिबंध के बावजूद पीएफआई न केवल अपनी गतिविधियां, बल्कि अपने संगठन भी चला रहा है। यह बात अलग है कि केंद्र सरकार की सख्ती के कारण यह आतंकी गतिविधियों को अंजाम नहीं दे पा रहा।
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