यदि कोई व्यक्ति कुछ करने की ठान ले और उसके अनुसार मेहनत करने लगे, तो उसे सफलता मिलती ही है। कुछ ऐसा ही किया है संजीव कुमार ने। वे गांव निसुर्खा, जिला बुलंदशहर (उ.प्र.) के निवासी हैं। संजीव ने आई.टी.आई. करने के बाद लोहे का कार्य शुरू किया। 2009-10 में उन्हें इस काम में नुकसान होने लगा।
यहां तक कि उन पर 4,50,000 रु. का कर्ज भी चढ़ गया। इस कारण उन्हें वह कार्य छोड़ना पड़ा। वे कुछ दिन नौकरी के लिए भटके, लेकिन सफलता नहीं मिली। थक-हार कर उन्होंने अपनी 3.5 एकड़ जमीन पर खेती करना शुरू किया। दो वर्ष तक उन्होंने केंचुआ खाद का प्रयोग किया, लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं मिला। 2012 में उन्होंने प्राकृतिक खेती शुरू की। 2013 में सहारनपुर के भायला गांव में पद्मश्री सुभाष पालेकर ने प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को प्रशिक्षण देने के लिए एक शिविर लगाया।
संयोग से उस शिविर में संजीव को भी जाने का अवसर मिला। इसमें संजीव ने प्राकृतिक खेती की बारीकियों को समझा और फिर उसी अनुसार खेती करने लगे। इसका लाभ यह हुआ कि कम लागत में ही फसल की पैदावार बढ़ गई। संजीव एक एकड़ खेत से 250 कुंतल गन्ना और 20 कुंतल हल्दी उगा रहे हैं। समृद्धि बढ़ी तो 2015 में उन्होंने गन्ने से गुड़, शक्कर और राब बनाने की एक छोटी इकाई स्थापित की। वे अब गन्ने से कई प्रकार के उत्पाद तैयार कर बेचते हैं।
संजीव गुड़-युक्त चना के साथ हल्दी पाउडर, सहजन पाउडर, करी पत्ता पाउडर, केला पाउडर जैसे उत्पाद भी तैयार करते हैं। उन्हें हर वर्ष खेती करने के लिए लगभग 3,00,000 रु. खर्च करने पड़ते हैं और कमाई करीब 12,00,000 रु. की हो जाती है। यानी वे महीने में 1,00,000 रु. कमा लेते हैं। पांच लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। संजीव कहते हैं, ‘‘नौकरी के पीछे भागता तो शायद कभी महीने में 1,00,000 रु. कमा पाता। घर भी नहीं बनता और बच्चे भी पढ़ नहीं पाते। अब घर भी बन गया है। एक बेटे को कंपनी सेक्रेटरी की पढ़ाई करवाई और दूसरा पढ़-लिखकर खेती और अन्य कार्यों में सहयोग करता है।’’
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने भी उनकी खेती की प्रशंसा की है। वे प्राकृतिक खेती देखने के लिए 2020 में संजीव के खेत तक पहुंचे थे। अब संजीव ‘चौपाल फाउंडेशन’ की स्थापना करके किसानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।
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