राजकुमार हरियाणा में कुरुक्षेत्र के लाडवा में रहते हैं। उनके पास 12 एकड़ का खेत है। वे 1994 से खेती कर रहे हैं। शुरुआत में राजकुमार पारंपरिक तरीके से खेती करते थे, जिसमें वे रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते थे। इसमें पैसा, मेहनत अधिक लगती थी, पर उत्पादन और लाभ उतना नहीं मिलता था। इसलिए आर्थिक तंगी बनी रहती थी। 2006 तक यह सिलसिला चला।
इसके बाद उन्होंने अगले 2 वर्ष यानी 2006 से 2008 तक जैविक खेती की। इसके बाद राजीव दीक्षित और स्वामी रामदेव से उन्हें प्राकृतिक खेती की प्रेरणा मिली। इसके लिए उन्होंने प्रशिक्षण लिया और तकनीक का समावेश करते हुए प्राकृतिक तरीके से खेती शुरू की। इन प्रयोगों से उन्हें बहुत फायदा हुआ और उत्पादन भी बड़ा। पहले जहां पारंपरिक तरीके से खेती में उन्हें नुकसान होता था, वहीं लागत के मुकाबले मुनाफा भी अच्छा मिला और खेती पर लागत भी कम आई। प्राकृतिक खेती से उन्हें और भी दूसरे फायदे हुए।
कृषि लागत कम होने के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ी। इसके अलावा, प्रकृति की सुरक्षा हुई और पानी की बर्बादी रुकी। भूमि की सुरक्षा हुई तो उनके खेतों के आसपास विभिन्न प्रजाति के पक्षी भी रहने लगे। यही नहीं, पहले सिंचाई में पानी की जो बर्बादी होती थी, नई तकनीक से वह भी रुकी और खेतों के आसपास भूजल स्तर भी बढ़ गया। जब सब कुछ अच्छा होने लगा तो राजकुमार का आत्मविश्वास भी बढ़ा।
राजकुमार 2008 से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। वे जिस तकनीक से खेती कर रहे हैं, उसे सुभाष पालेकर कृषि (एसपीके) विधि कहते हैं। इस विधि से फसल लागत मात्र 35,000 रुपये आती है और प्रति एकड़ डेढ़ लाख रुपये का उत्पादन होता है।
इस तरह, खेती में मुनाफा हुआ तो उन्होंने कुछ लोगों को नौकरी भी दी। आज उनके पास 12 लोग काम कर रहे हैं, जिनमें 10 महिलाएं और दो पुरुष हैं। वे गन्ना, चावल, गेहूं, दाल, तिलहन, बाजरा और सब्जियों के अलावा मवेशियों के लिए चारा भी उपजाते हैं। अभी वे 300 से 400 क्विंटल गन्ना, 14 क्विंटल गेहूं, 6-8 क्विंटल दाल, 24-32 क्विंटल चावल, 8 क्विंटल सरसों और बड़े पैमाने पर सब्जियां भी उगाते हैं।
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