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#कृषि विशेष : रसायन-मुक्त खेती से मिली पहचान

शाजापुर जिले के जयराम पाटीदार अन्य साथी किसानों की तरह ही कभी रासायनिक खाद प्रयोग करते थे, लेकिन रा.स्व.संघ के कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रमों ने उनकी आंखें खोल दीं और अब वे जैविक खेती कर रहे

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Apr 8, 2024, 06:24 pm IST
in भारत, मध्य प्रदेश
गो सेवा करते जयराम पाटीदार

गो सेवा करते जयराम पाटीदार

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मध्य प्रदेश के जयराम पाटीदार एक ऐसे किसान हैं, जिन्होंने ‘पाञ्चजन्य’ में प्रकाशित एक रपट को पढ़कर अलग ढंग से खेती करने का निर्णय लिया। उस रपट में बताया गया था कि राजस्थान के एक किसान जगदीश पारीक नई तकनीक से 12 किलो की गोभी, 85 किलो का कद्दू, 7 फीट की लौकी, 3 फीट का बैगन एवं 4 फीट की तुरई पैदा कर रहे हैं। ग्राम चाकरोद, जिला शाजापुर के रहने वाले जयराम का पूरा परिवार खेती में लगा है। 1974 में नौवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे भी खेती करने लगे। और लोगों की तरह वे भी रासायनिक खाद का उपयोग करते थे। बाद में राष्ट्रीय स्यवंयेवक संघ के स्वयंसेवक बने तो कृषि प्रशिक्षण संबंधी कार्यक्रमों में जाने लगे। इससे उन्हें यह पता चला कि रासायनिक खाद के बिना भी खेती हो सकती है।
इसके बाद उन्होंने गो-आधारित जैविक कृषि प्रारंभ की। वे कहते हैं, ‘‘खेती और गोपालन किसान की गाड़ी के दो पहियों की तरह आय के स्रोत हैं। गांव, गाय, किसान, खेती सब एक-दूसरे के पूरक हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर नौ एकड़ जमीन पर जैविक कृषि के साथ गोपालन शुरू किया। अब जैविक खेती करते 15 वर्ष हो गए हैं। मक्का, मूंगफली, अरहर, हल्दी, सोयाबीन, गेहूं, चना, प्याज, लहसुन, धनिया आदि का अच्छा उत्पादन होता है। सालाना प्रति एकड़ 45,000 रु. की कमाई हो जाती है। इसी से परिवार सहित कुल 12 लोगों का गुजारा हो जाता है।’’

वे देसी पद्धति से गो-आधारित अनेक प्रकार की खाद का निर्माण करते हैं और उसी से अच्छी पैदावार कर लेते हैं। उन्होंने 20 वर्ष पहले सात गोवंश के साथ एक गोशाला शुरू की थी, ताकि गो-उत्पाद आसानी से मिल सके। वर्तमान में गोशाला में 180 गोवंश हैं। वे कहते हैं, ‘‘गोमाता और धरती माता की सेवा करके पूरा परिवार सुखी है और पूर्ण रूप से कर्ज मुक्त है। हमारे यहां प्रतिमाह जैविक खेती एवं पंचगव्य औषध निर्माण को देखने एवं प्रशिक्षण हेतु लोग आते हैं और उनसे प्रेरणा लेकर जैविक खेती शुरू करते हैं।’’
जयराम का मानना है कि खेती पूरी तरह जैविक या फिर प्राकृतिक होनी चाहिए। इससे पर्यावरण के साथ-साथ लोगों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा।

Topics: पाञ्चजन्य विशेषराष्ट्रीय स्यवंयेवक संघगोमाता और धरती माता की सेवाकृषि प्रशिक्षणNational Planning Associationservice to mother cow and mother earthagricultural training
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