झारखंड के कई अनाथ आश्रमों में बच्चों की अच्छी देखभाल न हो पाने की कई बार शिकायतें आ चुकी हैं। कभी उन्हें शारीरिक यातनाएं दी जाती हैं, तो कभी उनसे जबरन काम कराया जाता है। इस बार रांची के एक आश्रय गृह पर दो बालिग युवतियों पर कन्वर्जन का दबाव डालने का आरोप लगा है। इस मामले पर रांची के सांसद संजय सेठ और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने भी चिंता व्यक्त की है। हालांकि रांची के उपायुक्त ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और जांच के आदेश दे दिए हैं।
इस मामले का खुलासा चाइल्ड राइट्स फाउंडेशन के सचिव बैद्यनाथ कुमार के द्वारा किया गया है। बैद्यनाथ कुमार ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को 1 अप्रैल को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उन्होंने बताया था कि खुशी कुमारी एवं आभा कुमारी को बालिग होने के बावजूद प्रेमाश्रय शेल्टर होम रांची से मुक्त नहीं किया जा रहा है और तो और जबरन उन्हें ईसाई बनाने की कोशिशें की जा रही हैं। इस पत्र में बैद्यनाथ कुमार ने मांग की है कि सभी बालगृहों में जांच कर 18 वर्ष से ऊपर जितनी भी लड़कियां हैं, उन्हें मुक्त किया जाए और उन बच्चियों को कन्वर्जन से बचाया जाए।
क्या है पूरा मामला
वर्ष 2012 में खुशी कुमारी के माता-पिता के देहांत होने के बाद एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा सेवा भारती के माध्यम से रांची के आंचल शिशु आश्रम में भेज दिया गया था। खुशी के बालिग होने के बाद आश्रम से मुक्ति के लिए 15 जुलाई, 2023 को बाल कल्याण समिति रांची लाया गया जहां पर आधार कार्ड में उसकी जन्मतिथि को अमान्य कर उसे जबरन प्रेमआश्रय आश्रम भेज दिया गया और यह बताया गया कि मेडिकल जांच कर कर छुट्टी दे दी जाएगी। अब लगभग 1 साल होने चला है, लेकिन इस युवती को अभी तक मुक्त नहीं किया गया है। युवती से जबरन आश्रय के अंदर बर्तन, झाड़ू-पोंछा और कपड़े धोने जैसे कार्य करवाए जाते हैं। इसके साथ ही शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित भी किया जाता है। इन सब में गंभीर बात यह है कि उस युवती को कोई भी व्रत या पूजा करने नहीं दिया जाता है। खुशी के अनुसार गुड फ्राइडे के दिन जबरन चर्च ले जाकर उसे ईसाई बनने के लिए नौकरी का प्रलोभन दिया गया था।
इसी प्रेमाश्रय आश्रम में मखन महली की सुपुत्री आभा कुमारी बाल कल्याण समिति रांची के संरक्षण में 24 जून, 2017 को भेजी गई थी। बाद में मखन महली अपनी पुत्री से जब मिलने के लिए गए तो बाल कल्याण समिति द्वारा इन्हें अपनी पुत्री से मिलने नहीं दिया गया। मखन ने कई बार अपनी पुत्री को अपने साथ ले जाने की मांग की लेकिन उनके साथ दुर्व्यवहार कर उन्हें भगा दिया गया। इतना ही नहीं, समिति के सदस्यों द्वारा उनकी पुत्री को सौंपने के लिए पैसों की मांग की जाती है। आभा के परिवार वालों ने बताया कि उनकी पुत्री की उम्र 18 वर्ष से ऊपर है। आभा के साथ भी गुड फ्राइडे के दिन कन्वर्जन कर ईसाई बनने का दबाव दिया जा रहा था।
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने भी बीते वर्ष निरीक्षण के दौरान कई गड़बड़ियां पकड़ी थीं और उस पर मामला दर्ज कर इस आश्रम को बंद करने का निर्देश दिया था। प्रियंक कानूनगो ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि झारखंड सरकार स्वयं ही अवैध कन्वर्जन को बढ़ावा देने में लगी हुई है, इसलिए कोई कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने आगे कहा कि दुष्ट लोग सरकारी संरक्षण में बच्चों की मासूमियत का व्यापार कर रहे हैं। सरकार के मुख्य सचिव अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं, उनकी जिम्मेदारी तय की जाएगी।
राँची के इस मिशनरी संस्था में मैंने गतवर्ष निरीक्षण किया था,निरीक्षण के दौरान कई गड़बड़ियाँ पकड़ीं थी जिसके बाद FIR करवाने और होम को बंद करने के निर्देश दिये थे।
चूँकि झारखंड सरकार स्वयं ही अवैध धर्मांतरण को बढ़ावा देने के काम में लगी हुई है इसलिए कोई कार्यवाही नहीं की गई।
दुष्ट… pic.twitter.com/n3Npd7LJYk— प्रियंक कानूनगो Priyank Kanoongo (@KanoongoPriyank) April 2, 2024
आपको बता दें कि यही स्थिति कई बाल आश्रय गृहों में भी देखने को मिलती रही है। 2022 में रांची के रेनबो फाउंडेशन इंडिया की ओर से संचालित रेनबो चिल्ड्रन होम की एक बच्ची के साथ वहां के गार्ड ने यौन उत्पीड़न किया था। इस मामले में बच्ची को न्याय दिलाने के बजाय चिल्ड्रन होम के मैनेजर ने इस घटना को दबाने की कोशिश की थी। इस मामले को भी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंका कानून ने उठाया था और खुद रांची पहुंचकर मामला दर्ज करवाया था।
कुछ वर्ष पूर्व भी रांची के मिशनरीज का चैरिटी के अंतर्गत चलाए जा रहे निर्मल हृदय नाम के संस्थान से कई नवजात बच्चों के बेचने का मामला प्रकाश में आया था। उसी दौरान कई बालगृहों की जांच के बाद 5 बालगृह को काली सूची में भी डाल गया था।
अब देखना यह है कि सरकार इन मामलों पर कितनी गंभीर होती है। अवैध तरीके से कन्वर्जन करने वाले इन बालगृहों पर सरकार कोई कार्रवाई करती भी है या फिर चुनावी माहौल में इस मामले पर चुप्पी साध लेती है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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