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ढीले पड़े अमेरिकी तेवर, भारत के सख्त रवैए से संभला बाइडन प्रशासन!

'नए भारत' के सख्त रवैए से बाइडेन प्रशासन को समझ आया है कि अब भारत की कूटनीति धारदार है और वह किसी के दबाव में नहीं आता है

by WEB DESK
Apr 1, 2024, 02:43 pm IST
in विश्व
अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी

अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी

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भारत में जैसे जैसे आम चुनाव नजदीक आ रहे हैं, अमेरिका के भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देने की हरकतें बढ़ती जा रही हैं। पहले सीएए पर अमेरिका ने ‘चिंता’ व्यक्त की थी। फिर आआपा नेता और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर निष्पक्षता बरतने जैसा ज्ञान दिया, उसके बाद खालिस्तानी आतंवादी गुरपतवंत पन्नू के मामले में बेवजह टांग अड़ाई। हर बार भारत ने कड़ा विरोध जताया है। केजरीवाल के मामले में तो अमेरिकी राजदूत को बुलाकर विरोध भी दर्ज कराया है।

‘नए भारत’ के इस सख्त रवैए से बाइडेन प्रशासन को, लगता है समझ आया है कि अब भारत की कूटनीति धारदार है और वह किसी के दबाव में नहीं आता है। संभवत: यही वजह है कि भारत में अमेरिकी राजदूत ने व्यवहार में नरमी आने के संकेत दिए हैं। भारत की सख्ती का ही शायद परिणाम है कि अमेरिका ने अब अपना सुर बदला है।

विशेषज्ञों का मानना है कि गार्सेटी के सुर में यह बदलाव दरअसल भारत की सख्त टिप्पणियों की वजह से आया है। गत माह सीएए को लेकर अमेरिका ने जो कुछ कहा उसे भारत ने ‘अनुचित तथा गलत सूचना पर आधारित’ बताया था। भारत के विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया थी कि “भारत की परंपराएं बहुलतावादी हैं जिनकी सीमित समझ” रखने वाले को भारत के ‘अंदरूनी मामलों’ पर कुछ कहना नहीं चाहिए।”

अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी का ताजा बयान है कि नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच कभी कभार सहमति या असहमति देखने में आ सकती है। हमें इसे नकारात्मकता के साथ नहीं देखना चाहिए। गार्सेटी ने कहा कि ”पांथिक स्वतंत्रता हर लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग होती है।” यहां ध्यान हैं कि हाल में अमेरिका के विदेश विभाग ने बयान दिया था कि वह भारत में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लागू करने को लेकर चिंता में है, कि इस पर नजदीकी नजर रखी जा रही है। अमेरिका का यह बयान आने के बाद भारत की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई थी।

एक सुप्रसिद्ध समाचार एजेंसी को दिए साक्षात्कार में राजदूत एरिक गार्सेटी ने आगे कहा कि दरअसल उन्होंने यह कहा था कि यह मामला ऐसे विषयों में से एक जिन पर हमारी नजर रहती है। यह महत्वपूण है कि अल्पसंख्यकों की रक्षा की जाए। लेकिन इस चीज को नकारात्मकता नजरिए से देखना ठीक नहीं। राजदूत गार्सेटी ने आगे कहा कि निगरानी करना ही तो एक राजदूत तथा विदेश विभाग का काम है। इन विषयों पर नजर रखना और रिपोर्ट करना ही उनका काम है।

हालांकि गार्सेटी ने यह स्वीकारा कि कमियां तो अमेरिका में भी हैं। फिर संभलते हुए बोले कि भारत और अमेरिका के मध्य गहरी मित्रता है। कई बार कुछ चीजों पर असहमति रखते हुए भी हम अपना काम आगे करते रह सकते हैं। कई बातों को सोच-समझकर देखना चाहिए। इसमें व्यक्तिगत मानने जैसा कुछ नहीं है। अमेरिका की कमियों को लेकर हम आलोचना के लिए भी खुले हैं। हम आलोचना सुनने को तैयार हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि गार्सेटी के सुर में यह बदलाव दरअसल भारत की सख्त टिप्पणियों की वजह से आया है। गत माह सीएए को लेकर अमेरिका ने जो कुछ कहा उसे भारत ने ‘अनुचित तथा गलत सूचना पर आधारित’ बताया था। भारत के विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया थी कि “भारत की परंपराएं बहुलतावादी हैं जिनकी सीमित समझ” रखने वाले को भारत के ‘अंदरूनी मामलों’ पर कुछ कहना नहीं चाहिए।”

Topics: भारतअमेरिकाBidenamericadiplomacyEric GarcettiIndiaforeign affairsCAAगार्सेटी
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