देहरादून। देश के जलवायु और भू-गर्भ विशेषज्ञों ने रिपोर्ट में केंद्र सरकार को बताया है कि जलवायु और भू-गर्भीय हलचलों के कारण हिमालय की 188 झीलों ,ग्लेशियरों पर नजर रखने की जरूरत है। इस बारे में केंद्रीय आपदा प्रबंधन बल (एनडीआरएफ) को भी जानकारी देकर सचेत किया गया है कि वह इन ग्लेशियरों और झीलों पर बराबर नजर रखे। हिमालय क्षेत्र के ऊपरी इलाकों में स्तिथ इन हिमनद में से 13 उत्तराखंड में हैं। इन्हें तीन श्रेणियों में बांटा गया है।
उत्तराखंड की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी और एसडीआरएफ के प्रमुख रंजीत सिंह के साथ अन्य अधिकारियों की वर्चुअल बैठक में केंद्र सरकार की तरफ से एनडीआरएफ और अन्य एजेंसियों ने बैठक कर दूरगामी रणनीति बनाए जाने की बात कही है। उत्तराखंड में चमोली, पिथौरागढ़ को सबसे अधिक संवेदनशील माना गया है। जानकारी के मुताबिक चमोली की वासुधरा ताल, धौली गंगा, पिथौरागढ़ की दारमा घाटी की अनाम झील, लसर यांगती, कुंथी यांगति और युंगरू झील को ए श्रेणी में रखा गया है। बी श्रेणी के हिमनद में विष्णुगंगा, टिहरी की भिलंगना, पिथौरागढ़ की गौरगंगा और व्यास घाटी की झील को रखा गया है। सी श्रेणी की झीलों में केदारताल, देवी कुंड और गंगा बेसिन की दो झील हैं।
देश के जलवायु और भू-गर्भ वैज्ञानिकों ने हिमालय श्रृंखला की सेटेलाइट तस्वीरें, बैथमैंट्री सर्वे की रिपोर्ट केंद्र सरकार को दी है। भारत सरकार ने पुणे की सीडेक को इस मामले में आगे तकनीकी नोडल एजेंसी बनाते हुए काम शुरू करने को कहा है, जोकि वाडिया इंस्टीट्यूट, आईआईआरएस, यूएसडीएमए जैसी शीर्ष संस्थाओं की रिपोर्ट के आधार पर विशेषज्ञ के रूप में काम करेगी।
एनडीआरएफ, एसडीआरएफ इन हिमनदों पर लगातार निगरानी रखेगी और एक एलार्म सिस्टम की तरह काम करेगी। हिमालय क्षेत्र में केदारनाथ ,चमोली ,उत्तरकाशी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के पीछे ग्लेशियरों और बादल का फटना प्रमुख कारण रहा है। बादल फटने जैसी घटनाओं के पीछे बड़ी वजह हिमालय की घाटियों में प्रदूषण का बढ़ना भी है। केंद्र और राज्य सरकारों के ऊपर वाहनों का प्रदूषण कम करने का दबाव भी है। बहरहाल केंद्र ने उत्तराखंड सरकार को 13 हिमनद झीलों पर बराबर निगरानी रखने को कहा है, जिनका स्वरूप बदलने की दशा में प्राकृतिक आपदा आ सकती है।
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