वैदिक रीत का पल

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राजेश्वर त्रिवेदी

अभी कुछ दिन पहले उज्जैन में देश की पहली वैदिक घड़ी की स्थापना की गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका वर्चुअल लोकार्पण किया। इसके साथ ही पूरी दुनिया में इस घड़ी की चर्चा हो रही है। यह दुनिया की पहली ऐसी डिजिटल वैदिक घड़ी है, जो ‘इंडियन स्टैंडर्ड टाइम’ और ‘ग्रीनविच मीन टाइम’ को बताने के साथ ही, पंचांग और तीस मुहूर्त की भी जानकारी देती है।

सूर्योदय-सूर्यास्त से लेकर सूर्य और चंद्र ग्रहण कब लगेगा, यह भी बताएगी। उज्जैन के जंतर-मंतर में स्थापित इस वैदिक घड़ी का ‘एप’ भी है, ताकि आमजन इसे मोबाइल पर ‘इंस्टॉल’ कर इसका उपयोग कर सकें। विक्रमादित्य शोधपीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी बताते हैं, ‘‘उज्जैन को कालगणना (टाइम कैलकुलेशन) का केंद्र माना जाता रहा है। उज्जैन से कर्क रेखा गुजरती है। दुनियाभर में उज्जयिनी से निर्धारित और प्रसारित कालगणना नियामक रही है। भारतीय खगोल सिद्धांत और ब्रह्मांड के ग्रह-नक्षत्रों की गति पर आधारित भारतीय कालगणना में समय के न्यूनतम अंश को भी समाविष्ट किया जाता है। इसकी गणना में परमाणु से लेकर कल्प तक का विचार है। मुहूर्त, घटी, पल, कास्ता, प्रहर, दिन-रात, पक्ष, अयन, संवत्सर, दिव्य वर्ष, मन्वन्तर, युग, कल्प, ब्रह्मा मुख्य आधार हैं। हमारे द्रष्टा ऋषियों ने काल की चक्रीय अवधारणा को प्रतिपादित किया है जिसमें सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग की व्यवस्था निरंतर है और यह चक्र शाश्वत रूप से आते-जाते हैं तथा इनकी आवृत्ति-पुनरावृत्ति होती रहती है।’’

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव एक बार फिर से उज्जैन को कालगणना का केंद्र बनाना चाहते हैं। उन्होंने मध्य प्रदेश विधानसभा सत्र के दौरान कहा था, ‘‘प्रदेश सरकार प्राइम मेरिडियन को इंग्लैंड के ग्रीनविच से उज्जैन तक स्थानांतरित करने के लिए काम करेगी। इसके लिए उज्जैन की वेधशाला में शोध होगा।’’ उनके इन्हीं प्रयासों से उज्जैन में वैदिक घड़ी की स्थापना हुई है।

विशेषज्ञों का कहना है कि 300 वर्ष पहले तक उज्जैन से ही दुनियाभर का ‘स्टैंडर्ड टाइम’ निर्धारित किया जाता था। समय का पता लगाने के लिए उज्जैन में एक मशीन मौजूद है। समय के बारे में सनातन दृष्टिकोण को वैदिक समय प्रणाली के रूप में जाना जा सकता है। काल (समय) को अतीत से भविष्य की ओर तेजी से बढ़ते तीर की तरह रैखिक या एकल-दिशात्मक गति नहीं माना जाता। हिंदू विरासत में समय का विचार ही काफी उन्नत था।

हिंदू अवधारणा लय या सार्वभौमिक व्यवस्था की बात करती है, जो समय के रूप में प्रकट होती है। समय की लय परमाणु की तेज टिक-टिक से लेकर संपूर्ण ब्रह्मांड के विस्तार तक होती है। भारतीय विरासत में काल (समय) स्वयं भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। शिव को महाकाल (महान् समय) कहा जाता है और देवी काली समय की ऊर्जा की प्रतीक हैं।

उज्जैन में खगोल विज्ञान का विकास हुआ और यह खगोलीय अनुसंधान का केंद्र बना। प्रसिद्ध खगोलशास्त्री और बहुश्रुत वराहमिहिर की चर्चित रचनाएं हैं- ‘बृहत्संहिता’ और ‘पंच सिद्धांतिका’। बृहत्संहिता एक ऐसा विश्वकोश है, जिसमें ग्रहों की गति, ज्योतिष, समय-पालन, ग्रहण से लेकर वास्तुकला और कृषि तक जैसे विषय शामिल हैं। ‘पंच सिद्धांतिका’ एक गणितीय खगोल विज्ञान ग्रंथ है, जो पांच प्राचीन ग्रंथों सूर्य, रोमक,पौलिस,वशिष्ठ तथा पितामह सिद्धांत का सारांश है।

अति प्राचीन काल में मनुष्य ने सूर्य की विभिन्न अवस्थाओं के आधार प्रात:, दोपहर, संध्या एवं रात्रि की कल्पना की। ये समय स्थूल रूप से प्रत्यक्ष हैं। तत्पश्चात् घटी पल की कल्पना की होगी। इसी प्रकार उसने सूर्य की कक्षा गतियों से पक्षों, महीनों, ऋतुओं तथा वर्षों की कल्पना की होगी। समय को सूक्ष्म रूप से नापने के लिए पहले शंकुयंत्र तथा धूपघड़ियों का प्रयोग हुआ।

रात्रि के समय का ज्ञान नक्षत्रों से किया जाता था। तत्पश्चात् पानी तथा बालू के घटी-यंत्र बनाए गए। ये भारत में अति प्राचीनकाल से प्रचलित थे। इनका वर्णन ज्योतिष की अति प्राचीन पुस्तकों जैसे ‘पंचसिद्धांतिका’ तथा ‘सूर्यसिद्धांत’ में मिलता है। पानी का घटी-यंत्र बनाने के लिए किसी पात्र में छोटा-सा छेद कर दिया जाता था, जिससे पात्र एक घंटी में पानी में डूब जाता था। उसके बाहरी भाग पर पल अंकित कर दिए जाते थे।

इसलिए पलों को पानीय पल भी कहते हैं। बालू का घटी-यंत्र भी पानी के घटी-यंत्र सरीखा था, जिसमें छिद्र से बालू के गिरने से समय ज्ञात होता था। किंतु ये सभी घटी-यंत्र सूक्ष्म न थे तथा इनमें व्यावहारिक कठिनाइयां भी थीं। विज्ञान के प्रादुर्भाव के साथ लोलक घड़ियां तथा तत्पश्चात् नई घड़ियां, जिनका हम आज प्रयोग करते हैं, आविष्कृत हुईं। समय का ज्ञान सूर्य की दृश्य स्थितियों से किया जाता है। सामान्यत: सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन तथा सूर्यास्त से पुन: सूर्योदय तक रात्रि होती है, किंतु तिथिगणना के लिए दिन-रात मिलकर दिन कहलाते हैं।

किसी स्थान पर सूर्य द्वारा याम्योत्तर वृत्त के अधोबिंदु की एक परिक्रमा को एक दृश्य दिन कहते हैं तथा सूर्य की किसी स्थिर नक्षत्र के सापेक्ष एक परिक्रमा को नक्षत्र दिन कहते हैं। परमाणु विश्व का सबसे छोटा तत्व है। हमारे प्राचीन विद्वानों ने भी कालचक्र का वर्णन करते समय काल की सबसे छोटी इकाई के रूप में परमाणु को ही स्वीकारा किया है। वायु पुराण में दिए गए विभिन्न कालखंडों के विवरण के अनुसार, दो परमाणु मिलकर एक अणु का निर्माण करते हैं और तीन अणुओं के मिलने से एक त्रसरेणु बनता है। तीन त्रसरेणुओं से एक त्रुटि, 100 त्रुटियों से एक वेध, तीन वेध से एक लव तथा तीन लव से एक निमेष (क्षण) बनता है।

इसी प्रकार तीन निमेष से एक काष्ठा, 15 काष्ठा से एक लघु, 15 लघु से एक नाडिका, दो नाड़िका से एक मुहूर्त, छह नाड़िका से एक प्रहर तथा आठ प्रहर का एक दिन और एक रात बनते हैं। दिन और रात्रि की गणना साठ घड़ी में भी की जाती है। तद्नुसार प्रचलित एक घंटे को ढाई घड़ी के बराबर कहा जा सकता है। एक मास में 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। सूर्य की दिशा की दृष्टि से वर्ष में भी छह-छह माह के दो पक्ष माने गए हैं- उत्तरायण तथा दक्षिणायन।

वैदिक घड़ी का अवलोकन करते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव
  • इस वैदिक घड़ी को लखनऊ की संस्था ‘आरोहण’ के आरोह श्रीवास्तव ने बनाया है तथा एलिगेंट स्टूडियो, भोपाल ने इसे स्थापित करने मे विशेष योगदान दिया है।
  • इसमें जी.एम.टी. के 24 घंटों को 30 मुहूर्त (घटी) में बांटा गया है। हर घटी का धार्मिक नाम और खास मतलब होता है।
  • घड़ी में समय के साथ ही मुहूर्त, ग्रहण, संक्रांति और पर्व की जानकारी भी मिलेगी।
  • इंटरनेट और जी.पी.एस. से जुड़ होने के कारण दुनिया में कहीं भी इसका उपयोग किया जा सकेगा।
  • घड़ी को मोबाइल और टी.वी. पर भी सेट किया जा सकेगा।
  • ‘विक्रमादित्य वैदिक घड़ी’ नाम से मोबाइल एप भी है।
  • टॉवर के ऊपर टेलीस्कोप भी लगेगा, ताकि खगोलीय घटनाओं का नजारा देखा जा सके।
  • वैदिक घड़ी में वैदिक समय,आई.एस.टी., जी.एम.टी. के साथ भारतीय कालगणना विक्रम संवत् की जानकारी मिलेगी।
  • विक्रम संवत् पंचांग (भारतीय प्राचीन कैलेंडर) शामिल रहेगा।
  • सूर्योदय से सूर्यास्त के साथ ग्रह, योग, भद्रा, चंद्र स्थिति, नक्षत्र, चौघड़िया, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण की जानकारी देगा। अभिजीत मुहूर्त, ब्रह्म मुहूर्त, अमृत काल और मौसम से जुड़ी सभी जानकारी मिल सकेगी।

वैदिक काल में वर्ष के 12 महीनों के नाम ऋतुओं के आधार पर रखे गए थे। बाद में इन नामों को नक्षत्रों के आधार पर परिवर्तित कर दिया गया, जो अब तक यथावत हैं चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन। इसी प्रकार दिनों के नाम ग्रहों के नाम पर रखे गए रवि, सोम (चंद्रमा), मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि। इस प्रकार कालखंडों को निश्चित आधार पर निश्चित नाम दिए गए और पल-पल की गणना स्पष्ट की गई।

कालगणना से संबंधित हमारे प्राचीन साहित्य में मानव वर्ष और दिव्य वर्ष में भी अंतर किया गया है। मानव वर्ष, मनुष्यों का वर्ष है, जो सामान्यत: 360 दिन का होता है। आवश्यकता के अनुसार उसमें घट-बढ़ होती रहती है। दिव्य वर्ष देवताओं का वर्ष है। वहां छह मास का दिन और छह मास की रात्रि होती है। मनुष्यों के 360 वर्ष मिलाकर देवताओं का एक दिव्य वर्ष होता है।

श्रीमद्भागवत में प्रसंग आता है कि जब राजा परीक्षित महामुनि शुकदेव से पूछते हैं, काल क्या है? उसका सूक्ष्मतम और महत्तम रूप क्या है? तब इस प्रश्न का शुकदेव मुनि जो उत्तर देते हैं वह आश्चर्यजनक है, क्योंकि आज के आधुनिक युग में हम जानते हैं कि काल अमूर्त तत्व है। घटने वाली घटनाओं से हम उसे जानते हैं। आज से हजारों वर्ष पूर्व शुकदेव मुनि ने कहा था- ‘विषयों का रूपान्तर (बदलना) ही काल का आकार है। उसी को निमित्त बना वह काल तत्व अपने को अभिव्यक्त करता है।’ यह अव्यक्त से व्यक्त होता है।

तीस मुहूर्त

रुद्र, आहि, मित्र, पितृ, वसु, वाराह, विश्वेदेवा, विधि, सतमुखी, पुरुहूत, वाहिनी, नक्तनकरा, वरुण, अर्यमा, भग, गिरीश, अजपाद, अहिर, बुध्न्य, पुष्य, अश्विनी, यम, अग्नि, विधातृ, क्ण्ड, अदिति जीव/अमृत, विष्णु, युमिगद्युति, ब्रह्म और समुद्रम। एक मुहूर्त 2 घटी अर्थात् 48 मिनट के बराबर होता है। 24 घंटे में 1440 मिनट होते हैं। मुहूर्त सूर्योदय से शुरू होता है।

वैदिक ऋषियों के अनुसार वर्तमान सृष्टि पंच मंडल क्रम वाली है। चंद्र मंडल, पृथ्वी मंडल, सूर्य मंडल, परमेष्ठी मंडल और स्वायंभू मंडल। ये उत्तरोत्तर मंडल का चक्कर लगा रहे हैं। सूर्य मंडल के परमेष्ठी मंडल (आकाश गंगा) के केंद्र का चक्र पूरा होने पर उसे मन्वन्तर काल कहा गया। इसका माप तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस हजार वर्ष है। एक से दूसरे मन्वन्तर के बीच 1 संध्यांश सतयुग के बराबर होता है। अत: संध्यांश सहित मन्वन्तर का माप हुआ 30 करोड़ 84 लाख 48 हजार वर्ष।

आधुनिक मान के अनुसार सूर्य 25 से 27 करोड़ वर्ष में आकाश गंगा के केंद्र का चक्र पूरा करता है। सारे विश्व में सप्ताह के दिन व क्रम भारत वर्ष में खोजे गए क्रम के अनुसार ही हैं। भारत में पृथ्वी से उत्तरोत्तर दूरी के आधार पर ग्रहों का क्रम निर्धारित किया गया, यथा शनि, गुरु, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध और चंद्रमा। इनमें चंद्रमा पृथ्वी के सबसे पास है तो शनि सबसे दूर। इसमें एक-एक ग्रह दिन के 24 घंटों या होरा में एक-एक घंटे का अधिपति रहता है। अत: क्रम से सातों ग्रह एक-एक घंटे अधि पति, यह चक्र चलता रहता है और 24 घंटे पूरे होने पर अगले दिन के पहले घंटे का जो अधिपति ग्रह होगा, उसके नाम पर दिन का नाम रखा गया। सूर्य से सृष्टि हुई। अत: प्रथम दिन रविवार मानकर ऊपर क्रम से शेष वारों का नाम रखा गया।

यदि दुनिया में कोई वैज्ञानिक कैलेंडर या समय मापन निर्धारण की पद्धति है तो वह है भारत के प्राचीन वैदिक ऋषियों की पद्धति। इसी पद्धति को ईरानियों और यूनानियों ने अपनाया और इसे ही बाद में अरब और मिस्र के वासियों ने अपनाया। किंतु कालांतर में अन्य देशों में बदलते धर्म और संस्कृतियों के प्रचलन ने इसके स्वरूप में परिवर्तन कर दिया गया। उस काल में दुनियाभर के कैलेंडर में मार्च का महीना प्रथम महीना होता था, लेकिन उन सभी कैलेंडरों को हटाकर आजकल अंग्रेजी कैलेंडर प्रचलन में है।

वैदिक ऋषियों ने इस तरह का कैलेंडर या पंचांग बनाया, जो पूर्णत: वैज्ञानिक हो, उससे धरती और ब्रह्मांड का समय निर्धारण किया जा सकता हो। धरती का समय निर्माण अर्थात् धरती पर इस वक्त कितना समय बीत चुका है और बीत रहा है और ब्रह्मांड अर्थात् अन्य ग्रहों पर उनके जन्म से लेकर अब तक कितना समय हो चुका है इसे निर्धारित करने के लिए उन्होंने एक सटीक समय मापन पद्धति विकसित की थी। देश और दुनिया में बलपूर्वक आरोपित ग्रीनवीच मीन टाइम, ग्रेगोरियन कैलेण्डर की दुरभिसंधि से अंतरराष्ट्रीय समय की गणना में कोई व्यवधान न करते हुए विक्रमादित्य वैदिक घड़ी भारतीय कालगणना की परंपरा के पुनस्स्थापन का छोटा-सा प्रयास है।

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