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रंगभूमि आए दोउ भाई…

पूर्व काल में मिथिलापुरी का निर्धारण चार प्रसिद्ध शिवालयों के द्वारा हुआ करता था। ये शिवालय आज भी हैं मगर बसावट और भौगोलिक सीमाएं बदलने से नगर के दक्षिण-पूर्व में अवस्थित कल्याणेश्वर महादेव मंदिर बिहार के मिथिलांचल में मधुबनी जिले में है, जबकि बाकी के तीन शिवालय नेपाल के अंदर हैं

by अमिय भूषण
Mar 29, 2024, 04:41 pm IST
in भारत, धर्म-संस्कृति
लोक कला शैली में बने चित्र में सीता स्वयंवर में धनुष भंग करते हुए प्रभु राम

लोक कला शैली में बने चित्र में सीता स्वयंवर में धनुष भंग करते हुए प्रभु राम

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गतांक से जारी

अपने हृदय में जनकनंदिनी की छवि का ध्यान करते हुए प्रभु राम गुरुजन के पास लौट जाते हैं। उधर भगवती सीता पुन: एक बार गिरिजा मंदिर में देवी पार्वती के समक्ष अपने मनोभाव रखती हैं। जानकी मन ही मन कहती हैं-हे मां, यदि आप मेरी उपासना से प्रसन्न हैं तो यह सलोना धनुर्धारी ही मेरा वरण करे, ऐसा आशीष दें। तभी देवी पार्वती की मूर्ति पर चढ़ी पुष्प मालिका से एक फूल टूट कर देवी सीता के हाथों में आता है। यहां उनके द्वारा किये पूूजन की सविस्तार चर्चा गोस्वामी तुलसीदास ने मानस में की है। संयोग से यह मंदिर और उपवन दोनों एक ही गांव, फुलहर में हैं। यहीं पास में वह स्थान है जहां श्रीराम गुरुजनों संग इस यात्रा क्रम में ठहरे थे। उस अतिथिशाला को अब ऋषि विश्वामित्र आश्रम के नाम से जाना जाता है। इस गांव का नाम विसौल है जो विश्वामित्र ग्राम के लिए प्रयुक्त एक स्थानीय नाम है। संयोग से ये तीनों स्थल बिहार के मधुबनी जिले के अंतर्गत भारत-नेपाल सीमा पर अवस्थित हैं।

अमिय भूषण

पूर्व काल में मिथिलापुरी का निर्धारण चार प्रसिद्ध शिवालयों के द्वारा हुआ करता था। ये शिवालय अब भी हैं मगर बसावट और भौगोलिक सीमाएं बदलने से नगर के दक्षिण-पूर्व में अवस्थित कल्याणेश्वर महादेव मंदिर बिहार के मिथिलांचल में मधुबनी जिले में है, जबकि बाकी के तीन शिवालय नेपाल के अंदर हैं। कल्याणेश्वर महादेव मंदिर पर प्रतिवर्ष फाल्गुन मास में जनकपुर से एक धार्मिक यात्रा आती है। यह यात्रा मिथला के फाग उत्सव से संबंधित है।

वास्तव में मिथिला में होली उत्सव की शुरुआत इस यात्रा के साथ ही होती है। यह परिक्रमा राम-सीता की होली संबंधित स्मृतियों से जुड़ा है। इस यात्रा के दौरान श्रद्धालु ऐसे करीब पंद्रह स्थानों की पदयात्रा करते हैं। इनमें से कुछ स्थान बिहार में तो कुछ नेपाल में अवस्थित हैं। इनमें से कई स्थान मिथिलापुरी के पुरातन देवस्थान हैं, जहां श्रीराम और भगवती सीता का भी जाना हुआ था। कुछ स्थान राम-सीता विवाह में आए ऋषियों-महर्षियों के पड़ाव स्थल हैं। इनमें से कई मनीषी केवल इस विवाह की चर्चा सुनकर यहां दर्शन की अभिलाषा लिये आये थे। बहुत से स्थान विवाह उपरांत राम सीता के रमण से संबंधित स्थली हैं। इस सूची में राम-सीता की प्रथम भेंट का प्रत्यक्षदर्शी फुलहर ग्राम भी है।

नेपाल में अवस्थित सीता-राम परिपथ पर आने वाले सभी स्थल जनकपुरी से संबंधित हैं। यहां का मटिहानी ग्राम वह स्थान है जहां से विवाह वेदिका की मिट्टी लाई गई थी तो कमला नदी विवाह की पूर्व संध्या पर हुए मटकोर उत्सव की साक्षी है। मटकोर मातृका पूजन, प्रकृति पूजन एवं उनके आमंत्रण का एक स्थानीय लौकिक विधान है। इसमें लोकदेव, ग्रामदेव, स्थान देव आदि का आवाहन होता है। राम-सीता विवाह की स्मृतियों के साक्षी के तौर पर मटिहानी ग्राम में एक पुरातन विशाल मठ बना है।

भगवान श्री लक्ष्मीनारायण को समर्पित यह देवस्थान नेपाल का सबसे बड़ा मठ है, जबकि नेपाल में तराई से लेकर उत्तर बिहार तक फैले तिरहुत मिथिला क्षेत्र में विवाह मटकोर गीत कमला नदी और सीता-राम विवाह प्रसंग चर्चा के बिना पूर्ण नहीं होते। इसी जनकपुर नगर में एक बसहिया नामक स्थान भी है। मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान के बांस से राम विवाह का मंडप बना था।

इसकी स्मृति में यहां एक पुराना नृसिंह देव मठ स्थित है। जनकपुर का जानकी मंदिर एक विशाल महल की तरह है जिसे भगवती सीता की स्मृति में टीकमगढ़, ओरछा की रानी वृषभानु कुंवर ने बनवाया था। यह जनकपुर की पहचान है। इसके आसपास कई स्थल हैं, जो श्रीराम की इस यात्रा के चिरसाक्षी हैं। ऐसे स्थलों में प्रथमत: वह रंगभूमि है जहां हुई सभा में राम ने प्रवेश किया था। रामचरित मानस में गोस्वामी जी लिखते हैं-

रंगभूमि आए दोउ भाई।
असि सुधि सब पुरबासिन्ह पाई॥
चले सकल गृह काज बिसारी।
बाल जुबान जरठ नर नारी॥

अर्थात, दोनों भाई जब रंगभूमि में आए तो यह खबर पाकर नगर के सभी निवासी सब काम छोड़कर दौड़ पड़े। यही वह स्थल है जहां बड़े बड़े वीर धनुष यज्ञ में असफल हुए थे और सभी की आखिरी उम्मीद बस राम ही थे। तुलसीकृत रामचरित मानस के अनुसार यह धनुष यज्ञ स्पष्टत: सीता स्वयंवर ही था। नेपाली भानुभक्त रामायण से लेकर सभी देशज राम कथाओं में कहानी लगभग एक सी ही है।

मलेशियाई रामायण ‘हिकायत सेरी रामा’ के अनुसार, धनुष यज्ञ की शर्तथी कि जो वहां एक पंक्ति में खड़े चालीस ताल वृक्षों को एक ही बाण से भेदेगा वही सीता का वरण करेगा। उधर फिलीपींस की रामायण ‘महालदिया लावण’ के अनुसार यहां बेंत के गेंद और छल्ले से संबंधित मुकाबला था। मतलब दूसरी मंजिल के कक्ष में रखी गेंद को भवन के बाहर फेंककर छल्ले में फांसना था। इसमें छल्ला दूसरी मंजिल की खिड़की से होकर कक्ष में जाने वाला था।

बिहार के मधुबनी जिले में हैं कल्याणेश्वर महादेव

कथा में भले अंतर हो पर कुल मिलाकर यह एक अत्यंत कठिन स्पर्धा थी। यहीं पास में मणिमंडप नामक स्थान है जहां राम-सीता विवाह संपन्न हुआ था, जिसकी चर्चा अन्यान्य रामायणों में है। इस मणिमंडप तक जाने के मार्ग में एक तालाब है जो इस विवाह से संबंधित लौकिक परमपराओं का साक्षी है। दुर्भाग्यवश यह उचित रखरखाव एवं अपभ्रंश हुए नाम का शिकार है। लोगबाग गंदगी से भरे इस तालाब को गोरधोआ पोखर के नाम से पुकारते हैं, जबकि इसका नाम पांव पखारन पोखर होना चाहिए, क्योंकि यहां राजा जनक, सीरध्वज एवं उनके अनुज कुशध्वज ने होने वाले जमाइयों श्रीराम और अन्य तीन भाइयों के विवाह पूर्व पांव धोए थे।

इसके बाद श्रीराम का सीता संग तो भरत का मांडवी, लक्ष्मण का उर्मिला और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति संग विवाह संपन्न हुआ था। मणिमंडप से कुछ दूर धनुषा धाम नाम का एक स्थान है। यहां से संबंधित मान्यताओं के अनुसार, प्रभु राम द्वारा संधान किए धनुष का मध्य भाग यही गिरा था। यहां भूमि पर एक धनुषाकार आकृति है जो लगातार थोड़ी थोड़ी बढ़ती रहती है। यहां भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर बैंगन भेंट के तौर पर चढ़ाते हैं। यह जनकपुरी प्रभु श्रीराम की यात्रा की साक्षी है। यहां ऐसे दर्जनों स्थल हैं जो राम और सीता से संबद्ध हैं। इन पावन स्मृति स्थलों के रूप में यहां अग्नि कुंड, रत्नसागर, विहार कुंड एवं दुधमती गंगा इत्यादि हैं।

अग्नि कुंड का सुंदर भवन कभी भगवती सीता का निज निवास हुआ करता था। वहीं रत्नसागर वह स्थल है जहां अयोध्या से लाई भेंट आदि जन सामान्य के दर्शनार्थ रखी गई थी। यही नहीं, विवाह के बाद वधु पक्ष से मिली भेंट भी यहीं दर्शनार्थ रखी गई थी। विहार कुंड वह स्थल है जहां विवाह उपरांत नव दंपतियों ने आमोद-प्रमोद किया था। यह स्थान आज भी बेहद रमणीय है। इसके अलावा यहां स्थित दुधमती गंगा को लेकर मान्यता है कि नन्हीं सीता के दुग्धपान हेतु गंगा इस रूप में स्वयं प्रकट हुई थीं। जनश्रुतियों के अनुसार, इसके दूधिया जल से ही राम-सीता विवाह में भोजन-पकवान बने थे। आज इस लघु एवं जर्जर हाल किंतु निरंतर प्रवाहमान नदी के किनारे संतों की कई कुटिया हैं, जहां संकीर्तन चलते रहते हैं।

इसी प्रकार नगर के बाहर एक कंचन वन है। रामायण कथा के अनुसार, यहीं पर प्रभु राम और सीता ने प्रथम होली खेली थी जिसके प्रभाव से मान्यता है कि वहां प्रवाहित दो नदियों में से एक का जल अब भी गुलाबी आभा लिए है। आज भी यहां होली पर जबरदस्त धूम होती है। मिथिला की परंपरा एवं कई राम कथाओं के अनुसार, प्रभु राम की बारात विवाह के छह माह बाद अयोध्या लौटी थी। प्रभु राम और सीता के इन विवाह प्रसंगों का विभिन्न रामायणों में बहुत सुंदर वर्णन है। (क्रमश:)

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