संप्रग सरकार को विरासत में एक मजबूत अर्थव्यवस्था मिली थी, लेकिन अपने 10 वर्ष के शासनकाल में इसका लाभ उठाना तो दूर, उसने इसे रसातल में पहुंचा दिया। वर्तमान सरकार ने अर्थव्यवस्था को पाताल से निकाल कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की राह पर बढ़कर सबको चौंका दिया है
भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपनी विकास की गति से विश्व को चौंका दिया है। आज जहां विश्व के कथित विकसित देशों के लिए विकास दर को बनाए रखना एक चुनौती बन गया है, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था बीते एक दशक से लगातार कुलांचें भर रही है। महंगाई और कमजोर पड़ती अर्थव्यवस्था से परेशान विश्व के कई देश भारत की अर्थव्यवस्था पर न सिर्फ भरोसा जता रहे हैं, बल्कि आर्थिक सहयोग के लिए आगे भी आ रहे हैं।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास द्वारा 2023-24 के लिए सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि का अनुमान बढ़ाकर लगभग 8 प्रतिशत करने के ठीक अगले दिन दुनिया की जानी-मानी रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भी भारत के बारे में अपना आकलन दिया और कहा कि चालू वित्त वर्ष में देश की आर्थिक वृद्धि दर 8 प्रतिशत के करीब रह सकती है। मूडीज का यह अनुमान नवंबर 2023 के 6.6 प्रतिशत के अनुमान से 1.40 प्रतिशत अधिक है। मूडीज को उम्मीद है कि भारत जी-20 देशों में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था होगी।
इसकी विकास दर 2024 में समाप्त हो रहे वित्त वर्ष में लगभग 8 प्रतिशत रहेगी, जबकि 2022-23 में यह आंकड़ा लगभग 7 प्रतिशत स्तर पर था। मूडीज ने अपन इस अनुमान को देश में पूंजीगत व्यय और घरेलू खपत में तेजी को देखते हुए संशोधित किया है। इसके अलावा, भारत की जमीनी आर्थिक स्थितियों में भी गुणात्मक सुधार आया है। अब भारत चीन से बाहर निकल कर अन्य देशों में ठिकाना तलाशने वाली विदेशी कंपनियों के लिए बेहतर विकल्प बन चुका है। इस तरह से अब इस तरह की विदेशी कंपनियों की नई रणनीतियों से बने वैश्विक व्यापार और निवेश के अवसरों से लाभ उठाने को भारत तैयार हो चुका है। मुख्य रूप से ये मूल कारण ही देश की आर्थिक गति को मजबूती प्रदान करने के कारक बने हैं।
एनएसओ का सटीक अनुमान
आरबीआई और मूडीज के आकलन से पहले देश की सरकारी संस्था राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने चालू वर्ष की दिसंबर तिमाही में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया है। साथ ही, एनएसओ ने चालू वित्त वर्ष की पहली और दूसरी तिमाही के लिए विकास दर के अनुमान को संशोधित कर क्रमश: 8.2 प्रतिशत और 8.1 प्रतिशत कर दिया है। इससे पहले विकास दर के 7.8 प्रतिशत और 7.6 प्रतिशत रहने की बात कही गई थी। विकास दर की बढ़ोतरी में महंगाई पर नियंत्रण काफी अहम भूमिका निभाता है। 2022-23 में महंगाई दर 6.7 प्रतिशत थी, 2023-24 में इसके घटकर 5.5 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है।
संप्रग सरकार की तुलना में राजग सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था में तेजी से विकास शुरू हुआ है। इस बात को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बीते दिनों लोकसभा में श्वेत-पत्र भी जारी किया था। इसमें उन्होंने संप्रग सरकार के 10 वर्ष के कार्यकाल की नाकामियों और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार की उपलब्धियों को जनता के सामने रखा। संप्रग के कार्यकाल में आर्थिक नीतियां सटीक नहीं थीं या उनका सही क्रियान्वयन नहीं नहीं होने से भारत की अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई।
2014 से पहले तक मॉर्गन स्टेनली ने इसे दुनिया की पांच सबसे कमजोर अर्थव्यवस्था की श्रेणी में रखा था। 2004 में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे, तब भारत विश्व की 12वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था, जो 2014 में दो पायदान लुढ़क कर 14वें स्थान पर आ गया। निश्चित रूप से इस गिरावट के कारण बेशुमार रहे। इसमें प्रमुख थीं कमजोर आर्थिक नीतियां। बहरहाल, जो नीतियां बनीं उनका क्रियान्वयन न केवल कमजोर रहा, बल्कि भ्रष्टाचार का चौतरफा बोलबाला भी था। इसके अलावा, दूरदर्शिता का अभाव भी था। 2014 में भाजपा के नेतृत्व वाले राजग के सत्ता में आने से भारतीय अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक सुधार हुए। इससे अर्थव्यवस्था के व्यापक आर्थिक बुनियादी सिद्धांत मजबूत हुए। जितने कदम उठाए गए, उन देश में निवेश के प्रति आकर्षण बढ़ा।
संप्रग ने डुबाया, राजग ने उबारा
दरअसल, संप्रग को विरासत में एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था मिली थी। उस समय देश आर्थिक सुधारों के लिए तैयार था, लेकिन इसका सदुपयोग करने के बजाए संप्रग सरकार ने उसे रसातल में पहुंचा दिया। 2014 में जब राजग सत्ता में आया, तब बैंकिंग संकट विकराल रूप धारण कर चुका था और दांव पर लगी राशि बहुत बड़ी थी। 2013 में जब अमेरिकी डॉलर तेजी से बढ़ा, संप्रग सरकार ने बाहरी और व्यापक आर्थिक स्थिरता से समझौता किया, जिससे मुद्रा में गिरावट आई। 2011 और 2013 के बीच अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 36 प्रतिशत गिर गया। प्रवासी भारतीयों के लिए फॉरेन करेंसी नॉन रेजीडेंट (एफसीएनआर-बी) डिपॉजिट विंडो खोला गया, जो एक तरह से मदद की गुहार था। उस समय विदेशी मुद्रा भंडार में जबरदस्त गिरावट आई थी।
जुलाई 2011 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 294 अरब अमेरिकी डॉलर से घटकर अगस्त 2013 में लगभग 256 अरब डॉलर हो गया। सितंबर 2013 तक तो यह स्थिति हो गई थी कि आयात के लिए विदेशी मुद्रा भंडार 6 महीने से कुछ अधिक समय के लिए ही बचा था, जबकि मार्च 2004 तक यह 17 महीने के लिए था।
संप्रग सरकार द्वारा तेल विपणन कंपनियों, उर्वरक कंपनियों और भारतीय खाद्य निगम को नकद सब्सिडी के बदले जारी की गई तेल बॉण्ड (विशेष प्रतिभूतियां) वित्त वर्ष 2006 से 2010 तक पांच वर्ष में कुल 1.9 लाख करोड़ रुपये से अधिक थी।
हर वर्ष सब्सिडी बिल में उन्हें शामिल करने से राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा बढ़ जाता, लेकिन इस आंकड़े को जान-बूझकर छुपाया गया। राजकोषीय कुप्रबंधन के परिणामस्वरूप संप्रग सरकार का राजकोषीय घाटा उसकी अपेक्षा से काफी अधिक हो गया। इसके कारण उसे 2011-12 की तुलना में बाजार से 27 प्रतिशत और अधिक उधार लेना पड़ा। अर्थव्यवस्था के लिए घाटे का बोझ सहना बहुत भारी हो गया। वैश्विक वित्तीय और आर्थिक संकट के प्रभाव को निर्मूल करने के बहाने संप्रग सरकार ने न केवल बाजार से और कर्ज लिया बल्कि जुटाई गई धनराशि का उपयोग अनुत्पादक तरीके से किया। इस दौरान बुनियादी ढांचे के निर्माण की गंभीर उपेक्षा की गई, जिससे औद्योगिक और आर्थिक विकास में गिरावट आई।
बुनियादी ढांचे से संबंधित एक जनहित याचिका के जवाब में सर्वोच्च न्यायालय को दिए गए हलफनामे में संप्रग सरकार ने कहा था कि राष्ट्रीय राजमार्ग में लगभग 40,000 किलोमीटर जोड़े गए। लेकिन सच्चाई यह है कि 1997 से 2002 तक के राजग के कार्यकाल में 24,000 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग जोड़े गए थे, जबकि संप्रग के शासनकाल में 2004 से 2014 (लगभग 10 वर्ष) में मात्र 16,000 किलोमीटर ही जोड़े गए। रिजर्व बैंक ने भी संप्रग के कुप्रबंधन की ओर इशारा किया है। रपटों में बताया गया कि खराब नीति नियोजन और कार्यान्वयन के कारण संप्रग के काल में सामाजिक क्षेत्र की कई योजनाओं के लिए जो राशि आवंटित की गई थी, उसका बड़ा हिस्सा खर्च ही नहीं किया गया। स्वास्थ्य व्यय भारतीय परिवारों के लिए चिंता का विषय बना रहा।
वित्त वर्ष 2014 में आउट-आफ-पॉकेट व्यय (ओओपीआई) का 64.2 प्रतिशत था। इसका मतलब है कि स्वास्थ्य व्यय भारतीय नागरिकों की जेब खाली करता रहा। रक्षा तैयारियों का महत्वपूर्ण मुद्दा भी नीतिगत पंगुता के कारण बाधित हो गया था। इस काल में 2जी और कोयला घोटाले जैसे बड़े घोटाले हुए। यही नहीं, संप्रग के कालखंड में 2012 में देश में ऐतिहासिक रूप से बिजली कटौती भी हुई, जिससे न केवल 62 करोड़ लोग अंधेरे में रहे, बल्कि इस कटौती ने राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरे में डाल दिया था। कोयला और गैस की कमी से 24,000 मेगावाट बिजली की उत्पादन क्षमता बेकार पड़ी रही।
दूरसंचार क्षेत्र की बात करें तो 2जी घोटाले और नीतिगत दृष्टि के अभाव में एक दशक बेकार चला गया। स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव था। इसके कारण 2008—09 तक इसका दुरुपयोग हुआ और परिणामस्वरूप 2जी घोटाला हुआ। यही नहीं, अवैध आर्थिक लाभ पाने के लिए और विशेष हितों की आपूर्ति के लिए सरकारी प्रणालियों व प्रक्रियाओं को तबाह किया गया, जिसका ज्वलंत उदाहरण 80:20 स्वर्ण निर्यात-आयात योजना है। इस प्रकार, संप्रग का कार्यकाल गतिहीनता के उदाहरणों से भरा रहा। 2013 में कैबिनेट सचिव ने भी इसकी चर्चा की थी।
कुल मिलाकर संप्रग सरकार साझा उद्देश्यों को समझ नहीं पाई। इसके अलावा, बार-बार नेतृत्व का संकट तथा नीतियों के दायरे, उद्देश्य और कार्यान्वयन की जिम्मेदारी को लेकर मंत्रालयों में भी मतभेद थे। दुनियाभर के निवेशक व्यापार में आसानी यानी इज आफ डूइंग बिजनेस चाहते थे, लेकिन इसके उलट संप्रग सरकार ने नीतिगत अनिश्चितता और परेशानी दी। इन कारणों से देश में निवेश का माहौल बदतर होता गया और घरेलू निवेशक भी बाहर का रुख करने लगे। हालांकि संप्रग सरकार ने पूर्ववर्ती राजग सरकार द्वारा किए गए सुधारों का लाभ तो उठाया, लेकिन उन महत्वपूर्ण सुधारों को पूरा करने में असफल रही। भारत में डिजिटल सशक्तिकरण के प्रतीक ‘आधार’ को भी संप्रग के काल में नुकसान उठाना पड़ा। वित्त वर्ष 2011 से 2014 के दौरान कौशल विकास के लिए 57 से 83 प्रतिशत भागीदार अपना लक्ष्य पूरा करने में असफल रहे।
बढ़ता भारत, निखरती अर्थव्यवस्था
आज मोदी सरकार में विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है, तो इसके पीछे गहन चिंतन, नियम और नियमन, क्रियान्वयन का अभूतपूर्व योगदान है। मोदी सरकार ने जो भी लक्ष्य तय किए, जिसे कुछ विरोधी ‘जुमला’ भी कहते हैं, उसे पूरा करने में सारा तंत्र लग गया और अपेक्षित परिणाम भी आने लगे हैं। कोरोना के कठिन काल में स्वदेशी टीकों और बेहतर प्रबंधन से न सिर्फ देश को उबारा, बल्कि यह सरकार कई देशों के लिए तारणहार भी बनी। खुले में शौच को खत्म करना बहुत बड़ी उपलब्धि रही है।
मोदी सरकार के परिवर्तनकारी दृष्टकोण ने एक दशक में ही भारत को शीर्ष पांच देशों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है और अब 2027 तक भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर अग्रसर है। वर्तमान सरकार की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इसने न तो किसी भी वर्ग की उपेक्षा की और न ही विकास के किसी भी क्षेत्र को अछूता छोड़ा। देश के भीतर या बाहर दुनियाभर में देश का राजनयिक विस्तार हुआ और सभी मोर्चे पर भारत का मान बढ़ा, जिसका परिणाम यह है कि आज भारत की सभी सुनते हैं। दुनिया के पटल पर आज भारत कुछ कहता है, कोई मुद्दा रखता है तो उसके कुछ मायने हैं।
अब आंकड़ों की दुनिया से बाहर निकल कर सामने की दुनिया के बारे में बात करें। हम सभी भारतीय देश के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं। कुछ वैसी जगह रहते हैं जो पहले से कुछ विकसित था, तो कुछ वैसी जगह जहां विकास की पहुंच नहीं हो पाई थी। आज सब महसूस करते हैं कि बदलाव आया है। जो जहां रह रहे हैं, उन्हें बदलाव का अहसास कुछ कम होगा, जैसे किसी बढ़ते बच्चे को रोज देखने पर उसका विकास नजर नहीं आता, लेकिन जब कुछ समय बाद कोई दूसरा व्यक्ति जब उसे देखता है तो उसका विकास समझ में आता है। यही स्थिति देश में क्षेत्रीय विकास की भी है।
देश के अधिकांश हिस्से में जहां आप पहले जा चुके हैं और अब जाते हैं तो अनायास मुंह से निकलता है- अरे यह कितना बदल गया है! इस विकास के पीछे गहन सोच और क्रियान्वयन की तपस्या है। उद्योग क्षेत्र एक सुखद अहसास कराता है कि अब हम आयुध निर्माण के क्षेत्र में भी कितना आगे निकल गए हैं। विकास के इन सभी फलकों में राष्ट्र प्रथम के साथ आम आदमी के चहुंमुखी विकास को केंद्र में रखा गया है। संयुक्त राष्ट्र के विकास की परिकल्पना में व्यक्ति के खान-पान, आवास, वस्त्र, शिक्षा और स्वास्थ्य को केंद्र में रखा गया है। मोदी सरकार के आम आदमी के विकास की अवघारणा इन्हीं स्तंभों के चारों ओर घूमती है। इस काल में सफलतापूर्वक जितनी योजनाएं चल रही हैं, उन्हें गिनाना आसान नहीं है।
वर्तमान सरकार आम आदमी के विकास के साथ पर्यावरण की सुरक्षा, स्थानीय पहचान को अक्षुण्ण रखने जैसी चुनौतियों को साथ लेकर चल रही है। हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज की परिकल्पना को साकार करने जैसी चुनौती के पूर्णरूप से साकार होने का निहितार्थ बहुत बड़ा है। महंगी दवा के विकल्प के रूप में जन औषधि केन्द्रों ने एक सस्ता और अच्छा विकल्प दिया है। अब देशवासी 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प ले चुके हैं।
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