भोजशाला: हिन्दू समाज में जगी आस
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

भोजशाला: हिन्दू समाज में जगी आस

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से कहा है कि वह आधुनिकतम तकनीकों से भोजशाला का सर्वेक्षण कर छह सप्ताह में अपनी रपट दे। इसे हिंदू पक्ष अपने लिए एक शुभ संकेत मान रहा

by श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर
Mar 19, 2024, 12:13 pm IST
in भारत, विश्लेषण, मध्य प्रदेश
भोजशाला में पूजा करते हुए हिन्दू

भोजशाला में पूजा करते हुए हिन्दू

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

न्यायालयों के कुछ निर्णय न्याय के साथ-साथ समाज के एक बड़े हिस्से पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ जाते हैं। ऐसे निर्णय ही ऐतिहासिक निर्णय कहलाते हैं। कुछ ऐसा ही एक निर्णय 11 मार्च, 2024 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ द्वारा भोजशाला परिसर के बारे में सुनाया गया।

न्यायमूर्ति एस. ए. धर्माधिकारी एवं देवनारायण मिश्र की पीठ के समक्ष प्रस्तुत इस वाद के पीछे दशकों का इतिहास और देश के बहुसंख्यक समाज की भावनाएं छिपी हुई हैं। यह विवाद भी राम जन्मभूमि और ज्ञानवापी मस्जिद की तरह प्राचीन मंदिर को तोड़ कर उस पर बनाई गई मस्जिद के संबंध में रहा है। धार (पूर्व में धारानगरी) परमार साम्राज्य की राजधानी थी। परमारों ने नवीं-दसवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी के प्रारंभ तक 300 वर्ष से भी अधिक समय तक मालवा पर शासन किया। राजा भोज के कार्यकाल में परमार साम्राज्य ज्ञान, वैभव एवं पराक्रम के शिखर पर था।

भोज स्वयं प्रतापी योद्धा एवं प्रकांड विद्वान थे। उन्होंने युद्धों में विजय प्राप्त कर साम्राज्य की सीमाओं और संपन्नता को बढ़ाया, तो दूसरी ओर विद्वानों, कवियों, कलाकारों आदि को राज्याश्रय देकर संस्कृति को भी समृद्ध किया। धारानगरी में ही उन्होंने एक विशाल परिसर में भोजशाला विकसित की, जहां विभिन्न कलाओं, शास्त्र आदि की उच्च शिक्षा दी जाती थी। राजा भोज ने विद्या की देवी मां सरस्वती की अत्यंत सुन्दर मूर्ति, मां वाग्देवी की स्थापना कर एक भव्य सरस्वती मंदिर भी बनवाया था।

कालांतर में मुस्लिम आक्रांताओं ने हमला कर परमारोंं को पराजित किया और मालवा पर अपना आधिपत्य जमा लिया। अपनी प्रथा के अनुरूप उन्होंने भोजशाला को ध्वस्त कर वाग्देवी की मूर्ति को खंडित कर दिया। इतिहास के प्रवाह में इस स्थान पर एक मस्जिद बनाकर नमाज अदा करने का सिलसिला प्रारंभ हो गया। स्वतंत्रता के पहले से ही हिंदू समाज इस परिसर पर अपना अधिकार जताता रहा, परंतु न्याय से वंचित ही रहा। आज भी हिंदू समाज इस मांग को लेकर सक्रिय है कि भोजशाला पूर्ण रूप से मां वाग्देवी का प्राचीन मंदिर है और इस परिसर पर उनका ही न्यायोचित अधिकार है।

इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन द्वारा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका प्रस्तुत की गई, जिस पर 11 मार्च को न्यायालय निर्णय सुनाया।

याचिका में कहा गया है कि भारतीय पुरातत्व विभाग भोजशाला परिसर का सर्वेक्षण करने के लिए कर्तव्यबद्ध है और यह कि उसे यह सर्वेक्षण तब ही कर लेना चाहिए था जब पहली बार इस परिसर के मंदिर या मस्जिद होने को लेकर विवाद सामने आया था। याचिकाकर्ता द्वारा यह भी प्रस्तुत किया गया कि प्राचीन स्मारक, पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 की धारा 16 तथा 21 के अंतर्गत पुरातत्व विभाग का वैधानिक कर्तव्य है कि किसी भी प्राचीन स्मारक के मूल चरित्र का पता लगाया जाए। याचिकाकर्ता ने यह प्रार्थना भी की कि उच्च न्यायालय विभाग को आदेश देकर उनसे कर्तव्यपूर्ति करवा ले, जिससे कि यह स्पष्ट हो सके कि विवादित परिसर मंदिर का है या मस्जिद का तथा यह कि परिसर में किस परिमाण में मंदिर एवं देवताओं के चिन्ह उपलब्ध हैं।

याचिकाकर्ता द्वारा ऐतिहासिक साक्ष्य के आधार पर यह भी दावा किया गया कि वाग्देवी का मंदिर इस स्थान पर मस्जिद बनने के सदियों पहले से स्थित था और यह भी कि मंदिर को ध्वस्त-भ्रष्ट कर उसी स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया गया था। मस्जिद का प्रथम निर्माण अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में तेरहवीं और चौदहवीं शती के बीच करवाया गया और आगे चल कर महमूद खिलजी के शासनकाल के दौरान 1514 में यहां ‘कमाल मौला  दरगाह’ का निर्माण किया गया। समय-समय पर हुए पुरातत्व सर्वेक्षणों में भी इस तथ्य का उल्लेख मिलता है कि इस्लामी शासकों द्वारा मूल मंदिर को नष्ट कर उस पर मस्जिद का निर्माण किया गया।

उपरोक्त तथ्यों के परिपे्रक्ष्य में याचिकाकर्ता द्वारा मांग की गई कि स्मारक अधिनियम 1958 के अंतर्गत पुरातत्व विभाग को चाहिए कि वह सदर परिसर के वास्तविक चरित्र और प्रकृति की पहचान करे।

बचाव पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अजय बागड़िया द्वारा पैरवी की गई। उनका कथन था कि पूर्व में भी इसी आशय की याचिका प्रस्तुत की गई थी जिसे न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया था। इस निर्णय के विरुद्ध जबलपुर की मुख्य पीठ के समक्ष मामला दर्ज है, इसलिए किसी प्रकार का हस्तक्षेप उचित नहीं होगा। बागड़िया द्वारा यह भी कहा गया कि पुरातत्व विभाग एवं राज्य सरकार वर्तमान सरकार के दबाव में कार्य कर रही है तथा न्यायालय को चाहिए कि वे इस आवरण के परे जाकर इस तथ्य को देखे कि मुस्लिम पक्ष उस स्थान पर वर्षों से नमाज अदा करता आ रहा है। उन्होंने जोर देकर यह भी कहा कि यह मामला राम मंदिर मामले से पूर्णत: भिन्न है, क्योंकि राम मंदिर के मामले में देवता के नाम को लेकर कोई संदेह नहीं था।

यह कहा न्यायालय ने

  • भोजशाला मंदिर परिसर तथा उसके बाहर के 50 मीटर तक कि परिधि का जी.पी.आर.-जी.पी.एस. सहित उपलब्ध आधुनिकतम तकनीक का उपयोग करते हुए सर्वेक्षण किया जाए।
  •  दीवारों, स्तंभों, फर्श, सतह, ऊपरी छत, गर्भ गृह सहित जमीन के ऊपर और नीचे स्थित सभी स्थाई, अस्थाई, चलित एवं अचलित सभी निर्माणों का वैज्ञानिक अन्वेषण एवं कार्बन डेटिंग प्रक्रिया से इन निर्माणों की उम्र का पता लगाया जाए।
  •  इस आदेश की प्रमाणित प्रति मिलने के दिन से छह सप्ताह के अंदर पुरातत्व विभाग के कम से कम पांच वरिष्ठतम अधिकारियों, जिनमें विभाग के संचालक या अतिरिक्त संचालक भी शामिल होंगे, की विशेषज्ञ समिति एक व्यापक एवं विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।

  •  सर्वेक्षण की संपूर्ण कार्यवाही की वीडियोग्राफी की जाएगी तथा प्रमाण स्वरूप चित्र भी खींचा जाएं।
  •  सभी तालाबंद गलियारे, कमरे आदि खोले जाएं एवं परिसर में उपस्थित सभी मूर्तियों, देवी-देवताओं, कलाकृतियों आदि की सूची तैयार की जाए तथा उनके चित्रों के साथ प्रस्तुत की जाए। इन सभी मूर्तियों, कलाकृतियों आदि का भी वैज्ञानिक अन्वेषण किया जाए व कार्बन डेटिंग तकनीक से उनकी उम्र पता की जाए।
  •  यदि उक्त विशेषज्ञ समिति को परिसर के वास्तविक चरित्र को स्थापित करने हेतु कोई अन्य अन्वेषण या पूछताछ आवश्यक लगे तो वह भी की जाए।

इस संबंध में पुरातत्व विभाग की ओर से तथ्य प्रस्तुत करते हुए अधिवक्ता हिमांशु जोशी द्वारा बताया गया कि 2003 में पुरातत्व विभाग के आदेश में 1902-03 के उस पुरातत्व सर्वेक्षण पर गौर नहीं किया गया, जिसमें यह स्पष्टत: कहा गया था कि भोजशाला परिसर में पहले वाग्देवी मंदिर और गुरुकुल था, जहां वेदाभ्यास होता था। इस सर्वेक्षण में यह भी कहा गया था कि प्राचीन मंदिर को इस्लामिक आक्रांताओं ने पूर्णत: ध्वस्त कर दिया था और वहीं पर मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। परंतु किसी भी प्रकार के संशय को समाप्त करने के लिए पुरातत्व विभाग यह चाहता है कि परिसर का नए सिरे से पुन: सर्वेक्षण किया जाए।

राज्य सरकार द्वारा भी अपने शपथपत्र में कहा गया कि 1935-36 तक राजस्व विभाग के दस्तावेजों में इस परिसर का जिक्र भोजशाला और मंदिर के रूप में ही हो रहा था। चूंकि भोजशाला 1904 से ही स्मारक अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित स्मारकों में शामिल रही है, इसका नियंत्रण और प्रबंधन पूर्ण रूप से भारत सरकार द्वारा पुरातत्व विभाग के माध्यम से किया जा रहा है। दूसरी बात यह भी कि राजस्व के दस्तावेजों में जामा मस्जिद का कहीं भी उल्लेख नहीं है।

राज्य सरकार द्वारा यह भी कहा गया कि यह परिसर राज्य सरकार की भूमि पर स्थित होकर स्वतंत्रता के पूर्व से ही इसका प्रबंधन पुरातत्व विभाग द्वारा किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में इस परिसर के वक्फ बोर्ड का होने की कोई संभावना ही नहीं बनती। यह भी कि हजरत कमालुद्दीन चिश्ती की दरगाह जिस खसरे पर स्थित है, वह खसरा ही भिन्न है और भोजशाला परिसर से पृथक है। राज्य सरकार द्वारा यह भी कहा गया है कि 1935 से पूर्व परिसर में नमाज अदा किए जाने का भी कोई उल्लेख नहीं है, तथा धार सरकार द्वारा दिया गया 1935 का आदेश भी अवैधानिक है, क्योंकि उस समय भी परिसर पुरातत्व विभाग के अधिकार क्षेत्र में था। राज्य सरकार द्वारा मुख्य याचिकाकर्ता की इस याचना का समर्थन किया गया कि परिसर का पुन: सर्वेक्षण आवश्यक है जिससे कि तमाम संशय दूर हो सके।

निश्चय ही उच्च न्यायालय का यह आदेश अपने आप में विस्तृत एवं पूर्ण है तथा भोजशाला विवाद को अर्थपूर्ण, तर्कपूर्ण एवं न्यायोचित निष्कर्ष तक पहुंचाने में मील का पत्थर साबित होगा।

Topics: प्राचीन स्मारकअधिवक्ता विष्णु शंकर जैनन्यायमूर्ति एस. ए. धर्माधिकारीHigh CourtAncient Monumentहिंदू समाजJustice S. A. Chair of Dharmadhikariपुरातत्व विभागAdvocate Vishnu Shankar Jainउच्च न्यायालयarcheology departmentमध्य प्रदेश हाईकोर्टपाञ्चजन्य विशेष
Share1TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

Marathi Language Dispute

‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

विरोधजीवी संगठनों का भ्रमजाल

वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम

देश की एकता और अखंडता के लिए काम करता है संघ : अरविंद नेताम

मतदाता सूची पुनरीक्षण :  पारदर्शी पहचान का विधान

स्वामी दीपांकर

1 करोड़ हिंदू एकजुट, अब कांवड़ यात्रा में लेंगे जातियों में न बंटने की “भिक्षा”

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

नहीं हुआ कोई बलात्कार : IIM जोका पीड़िता के पिता ने किया रेप के आरोपों से इनकार, कहा- ‘बेटी ठीक, वह आराम कर रही है’

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies