केरल के तिरुवंतपुरम में भारत की प्राचीन संस्कृति और ज्ञान परंपरा व त्रिक दर्शन (शैववाद) का अध्ययन करने वाले विद्वानों को सम्मानित किया गया। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कश्मीर की ज्ञान परंपरा के अध्ययन में असाधारण योगदान के लिए इस वर्ष का पहला ‘राजनका’ पुरस्कार डॉ मार्क डिक़्ज़कोव्स्की और प्रो. नवजीवन रस्तोगी को प्रदान किया।
कोवलम में 8 मार्च को महाशिवरात्रि के मौके पर अभिनवगुप्त एडवांस्ड स्टडीज और ईश्वर आश्रम ट्रस्ट की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान इस समारोह का वितरण किया गया। इस मौके पर उपराष्ट्रपति ने सनातन धर्म और हमारी पुरातन ज्ञान परंपराओं के खिलाफ फैलाए गए पूर्वाग्रहों का मुकाबला करके उनका पता लगाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि कुछ लोग सनातन परंपराओं के बारे में जाने बिना ही उसे अवैज्ञानिक और पुरातन बताकर खारिज कर रहे हैं।
उप राष्ट्रपति ने युवाओं, उद्योग जगत और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों से हमारी सांस्कृतिक संपदा को संरक्षित करने और उन्हें बढ़ावा देने की अपील की। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को तात्कालिक मामलों पर फोकस करना चाहिए, न कि सांस्कृतिक संपदा की अनदेखी करनी चाहिए। राम मंदिर का जिक्र करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर ने दो चीजों को प्रदर्शित किया किहम अपनी सांस्कृतिक पहचान में विश्वास करते हैं और इसी के साथ-साथ हम कानूनी व्यवस्था में भी विश्वास करते हैं। भारत की निर्विवाद सांस्कृतिक एकता भौगोलिक आयाम से परे फैली हुई है, जिसके केंद्र में सनातन धर्म है।
क्या है राजनका पुरस्कार
गौरतलब है कि राजनका पुरस्कार, शक्ति और ज्ञान के मिलन का प्रतीक है। यह पुरस्कार, कश्मीर शैव मत के विद्वानों को दिया जाता है। यह पुरस्कार, कश्मीर के शास्त्रीय युग में असाधारण विद्वानों और राजनेताओं को दी जाने वाली प्राचीन उपाधि ‘राजनका’ को पुनर्जीवित करने के लिए दिया जाता है। इसके तहत विजेता को एक प्रमाणपत्र और एक लाख रुपए की राशि दी जाती है।
कौन है पुरस्कार विजेता दोनों विद्वान
उल्लेखनीय है राजनका पुरस्कार विजेता डॉ. मार्क डाइक्ज़कोव्स्की तंत्र और कश्मीरी त्रिका शैववाद में विशेषज्ञता रखते हैं। वह लेखक भी हैं। उनके पास भारत और नेपाल में किए गए अध्ययनों के साथ एक समृद्ध शैक्षणिक पृष्ठभूमि है। उन्होंने 1976 में कश्मीरी शैव गुरु स्वामी लक्ष्मणजू से दीक्षा प्राप्त की। तंत्र के विद्वान और अभ्यासी होने के नाते, डॉ. डाइक्ज़कोव्स्की ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। इसके अलावा वह सितार वादक भी हैं।
वहीं डॉ नवजीवन रस्तोगी केसी पांडे के छात्र रहे हैं। वह फिलहाल अपनी एक्टिव सर्विस से रिटायर हो चुके हैं। लेकिन उससे पहले वह विश्वविद्यालय के अभिनवगुप्त सौंदर्यशास्त्र और शैव दर्शन संस्थान के मानद निदेशक और संस्कृत और प्राकृत भाषाओं के एचओडी रहे हैं। उन्होंने ‘द क्रमा टैंट्रिकिज्म ऑफ कश्मीर’, इंट्रोडक्शन टू द तंत्रालोक: ए स्टडी इन स्ट्रक्चर,’ ‘कश्मीरा शिवद्वयवदा की मूला अवधारणयेन,’ और ‘तंत्रालोक’ किताबें भी लिखी हैं।
कार्यक्रम के दौरान उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़, उनकी पत्नी सुदेश धनखड़, केरल के उप राज्यपाल आऱिफ मोहम्मद खान, अभिनव गुप्त संस्थान के डायरेक्टर आर रामानंद समेत कई अन्य लोग उपस्थित रहे।
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