लंबे इंतजार के बाद पश्चिम बंगाल में देश की पहली अत्याधुनिक अंडरवाटर मेट्रो की शुरूआत हो गई। हुगली के पश्चिमी तट पर स्थित हावड़ा को पूर्वी तट पर साल्ट लेक से जोड़ती अंडरवाटर मेट्रो 15 मार्च से जमीन के 33 मीटर नीचे और हुगली नदी के तल से करीब 13 मीटर नीचे बने ट्रैक पर दौड़ने लगी है। अंडरवाटर मेट्रो के कुल 6 कोच में 1750 यात्रियों को एक साथ सफर करने की क्षमता है और इसकी गति 80 किलोमीटर प्रतिघंटा है। कोलकाता की अंडरवाटर मेट्रो की विशेषता यही है कि इसका निर्माण करीब 15400 करोड़ रुपये की लागत से हुगली नदी के नीचे कराया गया है।
भारत की इस पहली अंडरवाटर मेट्रो को देश के बुनियादी ढ़ांचे के विकास में महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है। दरअसल पानी के अंदर बनी मेट्रो सुरंग इंजीनियरिंग की ऐसी शानदार उपलब्धि है, जो हुगली नदी के नीचे से गुजरती है। नदी के नीचे सुरंग निर्माण पर करीब 4965 करोड़ रुपये लागत आई है। नदी के नीचे की सुरंगों को विशेष रूप से प्रकाशमान किया गया है और जलीय जीवों के साथ चित्रित भी किया गया है ताकि यात्रियों स्पष्ट रूप से पता चल सके कि मेट्रो कोच नदी के हिस्से के नीचे से गुजर रहा है। कोलकाता की अंडरवाटर मेट्रो सेवा कोलकाता मेट्रो के ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर के हावड़ा मैदान-एस्प्लेनेड सेक्शन का हिस्सा है, जिसके तहत हुगली नदी के नीचे सुरंग से होते हुए कुल 16.6 किलोमीटर का सफर तय किया जाएगा। इस मेट्रो लाइन पर कुल छह स्टेशन हैं, जिसमें से तीन स्टेशन हावड़ा मैदान, हावड़ा स्टेशन और महाकरण अंडरवाटर होंगे और अंडरवाटर की 520 मीटर की दूरी महज 45 सैकेंड में तय की जा सकेगी।
अंडरवाटर मेट्रो के जरिये नदी के दोनों सिरों पर बसे दो बड़े शहरों हावड़ा और कोलकाता को जोड़ा गया है। भारत की यह पहली ऐसी परिवहन परियोजना है, जिसमें मेट्रो नदी के नीचे बनी सुरंग से गुजरेगी। कुल 16.6 किलोमीटर लंबी मेट्रो लाइन का 10.8 किलोमीटर हिस्सा भूमिगत है और हुगली नदी के दोनों छोर पर बसे दो शहरों को जोड़ने के लिए 3.8 किलोमीटर की दो अंडरग्राउंड सुरंग तैयार की गई, जिसमें 520 मीटर का हिस्सा पानी के नीचे है। हुगली नदी के नीचे बनाई गई 520 मीटर लंबी यह सुरंग नदी की सतह से 13 मीटर नीचे है। जमीन से करीब 30 मीटर नीचे खुदाई करके हावड़ा मेट्रो स्टेशन तैयार किया गया है और पानी के भीतर सुरंग बनाने के लिए कंक्रीट को फ्लाई ऐश तथा माइक्रो-सिलिका के साथ डिजाइन किया गया है।
इस सुरंग का आंतरिक व्यास 5.55 मीटर और बाहरी व्यास 6.1 मीटर है जबकि ऊपर और नीचे 16.1 मीटर की दूरी है। सुरंग की अंदरूनी दीवारों को उच्च गुणवत्ता के 50 ग्रेड सीमेंट से बनाया गया है, प्रत्येक सेगमेंट की मोटाई 275 मिलीमीटर है। सुरंग के अंदर पानी के फ्लो और लीकेज को रोकने के लिए सुरक्षा के कई पुख्ता उपाय किए गए हैं, जिसके लिए सीमेंट में फ्लाई ऐश और माइक्रो सिलिका को मिलाया गया है। अंडरवाटर मेट्रो निर्माण कार्य से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक सुरंग में पानी की एक बूंद भी नहीं आ सकती। पानी की सतह में ही वेंटिलेशन और निकासी के शाफ्ट लगाए गए हैं।
कोलकाता की मेट्रो टनल का कार्य 2017 में शुरू हुआ था और साल्ट लेक सेक्टर वी तथा साल्ट लेक स्टेडियम को जोड़ने वाले कोलकाता मेट्रो के पूर्व-पश्चिम मेट्रो कॉरिडोर के पहले चरण का उद्घाटन तत्कालीन रेलमंत्री पीयूष गोयल ने फरवरी 2020 में किया था और कोरोना महामारी के दौरान तीन वर्षों के भीतर इस मेट्रो परियोजना के काम को पूरा किया गया।
कोलकाता में इस मेट्रो का निर्माण एक बड़ी चुनौती थी। दरअसल हुगली नदी एक गहरी और तेज बहाव वाली नदी है, जिसके कारण सुरंग का निर्माण करना बहुत मुश्किल था। अंडरवाटर मेट्रो का निर्माण करने के लिए कई तकनीकी चुनौतियों का सामना किया गया। यह प्रक्रिया विशेष रूप से उस शहर की भूमि और जल संरचना के अनुरूप डिजाइन की जाती है। अंडरवाटर मेट्रो के लिए एक विशेष प्रकार की सामरिक और तकनीकी योजना तैयार की गई, जो इस प्रकार के परिवहन के लिए उपयुक्त होती है। इसके अलावा अंडरवाटर मेट्रो की सुरक्षा, अनुकूलन और बचाव की व्यवस्था भी की गई। भूमिगत रेल टनल बनाने के लिए रूस की कम्पनी ‘ट्रांसटनेलस्ट्रॉय’ के साथ ज्वाइंट वेंचर किया गया था, जिसे ईरान में अंडरवाटर सड़क तैयार करने का अनुभव है।
कोलकाता में अंडरवाटर मेट्रो तैयार करने में इसी कम्पनी ने मदद की और अब हावड़ा मेट्रो स्टेशन भारत का सबसे गहरा मेट्रो स्टेशन बन गया है। मेट्रो सुरंग के निर्माण में कई आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया गया, इसे टनल बोरिंग मशीन का उपयोग करके बनाया गया। किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए अंडरवाटर सुरंग में तमाम जरूरी उपाय किए गए हैं और सुरंग के अंदर 760 मीटर लंबा इमरजेंसी एग्जिट बनाया जा गया है। चूंकि कोलकाता मेट्रो के हावड़ा मैदान-एस्प्लेनेड सेक्शन में मेट्रो ट्रेन पानी के अंदर दौड़ेने लगी है, इसलिए यह सेक्शन बेहद खास बन गया है।
वहीं यात्रियों की सुरक्षा के लिए मेट्रो टनल में सेंसर, कैमरे और आपातकालीन निकास द्वार इत्यादि तमाम तरह के उपाय किए गए हैं, साथ ही लोगों को 5जी इंटरनेट की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है। अंडरवाटर मेट्रो में ऑटोमेटिक ट्रेन ऑपरेशन सिस्टम लगा है यानी मोटरमैन के बटन दबाते ही ट्रेन अपने आप अगले स्टेशन के लिए मूव करेगी और अधिकतम 80 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ेगी। यात्रियों की सुरक्षा के लिए ट्रेन के कोच में बेहतर ग्रैब हैंडल और हैंडल लूप के साथ-साथ एंटी-स्किड फर्श और अग्निशामक यंत्र भी लगाए गए हैं। आपातकालीन स्थिति में यात्री ‘टॉक टू ड्राइवर’ यूनिट के माध्यम से मोटरमैन के साथ बातचीत भी कर सकेंगे। प्रत्येक कोच की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। अंडरवाटर मेट्रो के निर्माण से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है क्योंकि यह कामकाजी जगहों के लिए सुविधाजनक और सहज पहुंच प्रदान करती है। भारत की पहली अंडरवाटर मेट्रो ऐसी महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसके बाद भविष्य में देश में कई और अंडरवाटर मेट्रो का निर्माण होने की उम्मीदें बलवती हो गई हैं, जिससे शहरी यातायात को सुगम और सुरक्षित बनाने में मदद मिल सकेगी।
सवाल यह है कि आखिर पानी के नीचे मेट्रो जैसी परिवहन प्रणाली विकसित करने की जरूरत क्यों महसूस की जा रही है? दरअसल यातायात और परिवहन के क्षेत्र में तेजी से प्रौद्योगिकी की नवीनतम उपलब्धियों ने आधुनिक युग में भले ही लोगों के जीवन को सरल और बेहद सुविधाजनक बना दिया है लेकिन दूसरी ओर विभिन्न भूभागों में यातायात की संख्या में लगातार होती बढ़ोतरी के साथ ही शहरी क्षेत्रों में यातायात के अवरोध की समस्या उत्पन्न होती जा रही है। इसी समस्या का समाधान करने के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी के सहारे ऐसे उपाय किए जा रहे हैं। सड़क मार्ग पर बढ़ते यातायात की चुनौती का मुकबला करने के उद्देश्य से ही अंडरवाटर मेट्रो की शुरुआत की गई है, जो एक प्रकार का अंतर्जलीय परिवहन है। भारत की पहली अंडरवाटर मेट्रो की यह पहल पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और शहरी यातायात को सुगम बनाने के उद्देश्य को प्रकट करती है। अंडरवाटर मेट्रो प्रोजेक्ट का लक्ष्य शहरी क्षेत्रों में यातायात की सुविधा को बढ़ाने के साथ पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाना भी है। वैसे अंडरवाटर मेट्रो के संचालन के कई और भी लाभ हैं। यह न केवल दोनों शहरों के बीच यात्रा के समय को काफी कम करने में अहम भूमिका निभाएगी, साथ ही यातायात की भीड़भाड़ को भी कम करने के अलावा वायु गुणवत्ता में सुधार करने में भी मददगार साबित होगी। दरअसल अंडरवाटर मेट्रो का उपयोग कार्बन उत्सर्जन को कम करता है, जिससे शहरी परिवहन के प्रदूषण स्तर में कमी आती है। इस प्रकार की परिवहन प्रणाली निरंतरता और सुरक्षा के माध्यम से लोगों को अधिक सुरक्षित और सुविधाजनक यात्रा की सुविधा भी प्रदान करती है।
इससे पहले पिछले साल प्रधानमंत्री द्वारा केरल में भारत की पहली वाटर मेट्रो रेल सेवा का लोकार्पण किया गया था और 25 अप्रैल 2023 से लोगों के लिए सुरक्षित, सस्ती और आरामदायक जलयात्रा की शुरूआत हो गई थी। उससे पहले देश के कुछ प्रमुख शहरों में पटरियों पर ही मेट्रो रेल दौड़ती थी और पानी पर मेट्रो का दौड़ना एक स्वप्न के समान लगता है लेकिन अब तो कोलकाता में पानी के नीचे भी मेट्रो चलने लगी है।
एक ओर जहां पिछले साल कोच्चि देश का पहला ऐसा शहर बना था, जहां पानी पर मेट्रो दौड़ रही है, वहीं कोलकाता ऐसा शहर बन गया है, जहां मेट्रो पानी के नीचे सरपट दौड़ रही है। जहां तक केरल वाटर मेट्रो की बात है तो अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस यह वाटर मेट्रो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना तेज गति से यात्रा का शानदार अनुभव करा रही है, जिसकी सबसे बड़ी विशेषता सस्ती और आरामदायक यात्रा और समय की बचत है।
करीब 1136.83 करोड़ रुपये की इस परियोजना को केरल के लिए ड्रीम प्रोजेक्ट कहा गया था क्योंकि यह परियोजना शहर में सार्वजनिक परिवहन और पर्यटन के जरिये आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने में बहुत महत्वूर्ण भूमिका निभाएगी। कोच्चि और उसके आसपास के 10 द्वीपों को जोड़ने वाले केरल के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘वाटर मेट्रो प्रोजेक्ट’ के लिए 23 वाटर बोट्स और 14 टर्मिनल हैं और यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाने के बाद इसमें 78 फास्ट इलैक्ट्रिकली प्रोपेल्ड हाइब्रिड वाटर बोट्स और 38 टर्मिनल होंगे।
कोच्चि वाटर मेट्रो की शुरूआत पहले चरण में 8 इलैक्ट्रिक बोट के साथ केवल दो रूटों पर हुई थी लेकिन यह प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद वाटर मेट्रो 16 रूट पर चलेंगी। माना जा रहा है कि कोच्चि जल मेट्रो परियोजना से एक लाख से ज्यादा द्वीपवासियों को लाभ मिलेगा। इस परियोजना के पूरा होने के बाद एक ओर जहां प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी, वहीं कोच्चि झील के किनारे बसे लोगों का मुख्य बाजारों तक पहुंचना आसान हो जाएगा। कोच्चि वाटर मेट्रो से कोच्चि के इर्द-गिर्द कई द्वीपों पर रहने वाले लोगों को सस्ता और आधुनिक यातायात का साधन तो मिलेगा ही, इससे कोच्चि की यातायात समस्या भी कम होगी और बैक वाटर पर्यटन को भी नया आकर्षण मिलेगा।
सोलर पैनल और प्रदूषण नहीं फैलाने वाली बैटरियों से चलने वाली वाटर मेट्रो पूरी तरह इको फ्रैंडली है, जो ऑटोमेटिक बोट लोकेटिंग सिस्टम और पैंसेजर कंट्रोल सिस्टम से लैस है। इस्तेमाल की गई नई तकनीक वाली लिथियम टाइटनेट ऑक्साइड बैटरी की क्षमता 122 किलो वाट ऑवर है, जिन्हें केवल 10-15 मिनट में ही चार्ज किया जा सकता है और कुछ स्थानों पर फ्लोटिंग जेटी में सुपर चार्जर लगाए गए हैं। इसके लिए वाटर मेट्रो में जनरेटर बैकअप की सुविधा भी है।
आम मेट्रो ट्रेन की ही भांति कोच्चि वाटर मेट्रो भी पूरी तरह वातानुकूलित है और प्रत्येक मेट्रो में 50-100 यात्री बैठ सकते हैं। परियोजना के पूरा हो जाने पर यात्रियों की सुविधा के लिए कुल 78 इको फ्रैंडली वाटर मेट्रो होंगी, जिनमें से 23 की क्षमता 100 यात्रियों को ले जाने की होगी जबकि 55 की क्षमता 50 यात्रियों की होगी।
फिलहाल देश के परिवहन और बुनियादी ढ़ांचे का विकास अब इस प्रकार किया जा रहा है कि शहरों की विशिष्टताओं और जरूरत के अनुसार वहां परिवहन प्रणाली विकसित की जाए। इसी कड़ी में जम्मू, श्रीनगर, गोरखपुर जैसे टियर-2 और छोटे शहरों के लिए पारम्परिक मेट्रो से करीब 40 प्रतिशत कम लागत वाली मेट्रो लाइट चलाने की योजना है, जो एक समय में अधिकतम 15 हजार लोगों को सेवाएं देने में सक्षम होंगी और इसमें अनुभव, आराम, सुविधाएं, समयबद्धता, विश्वसनीयता और सुरक्षा पारम्परिक मेट्रो जैसा ही होगा।
नासिक में इलैक्ट्रिक बस ट्रॉली जैसी मेट्रो नियो चलाने की तैयारी है, जिसमें पारम्परिक मेट्रो जैसी ही सुविधाएं मिलेंगी और यह एक समय में अधिकतम 8 हजार यात्रियों को ले जाएगी। रबर के पहियों वाली यह मेट्रो सेवा ओवरहेड ट्रैक्शन लाइन से बिजली लेकर रोड स्लैब पर चलाई जाएगी। देश में पहली बार स्थानीय स्तर पर एनसीआर-मेरठ के लिए तीव्र परिवहन प्रणाली अथवा आरआरटीएस के जरिये दो शहरों को मेट्रो से जोड़ने की योजना भी बनाई गई है, जिससे यात्रियों को बेहतर परिवहन सेवाएं मिल सकें।
बहरहाल, केरल में वाटर मेट्रो का प्रयोग सफल होने के बाद यह देश के अन्य राज्यों के लिए भी मॉडल बनेगा क्योंकि यह सेवा ऐसे शहरों के लिए बेहद उपयोगी मानी जा रही है, जो नदियों या समुद्रों से घिरे हैं और जहां पारम्परिक मेट्रो रेल में कई बाधाएं हैं। वहीं, भारत की पहली अंडरवाटर मेट्रो ने भी शहरी यातायात और परिवहन के क्षेत्र में संभावनाओं के नए द्वार खोल दिए हैं। इस प्रौद्योगिकी के विकास के साथ देश को सुविधाजनक और पर्यावरण के प्रति उत्तरदायित्वपूर्ण यातायात प्रणाली का लाभ मिलेगा।
(लेखक 34 वर्षों से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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