देहरादून। मुजफ्फरनगर रामपुर तिराहे पर 1 अक्टूबर 1994 को उत्तराखंड आंदोलनकारियों की बस में घुसकर महिलाओं के साथ बर्बरता करने वाले पीएसी के दो सिपाहियों को 18 मार्च को अदालत सजा सुनाएगी। इस मामले में कोर्ट ने इन दो सिपाहियों को दोषी माना है।
घटना के बाद 25 जनवरी 1995 को सीबीआई ने जांच शुरू की थी। तीन दशक बीत जाने के बाद ये मामला कोर्ट में किसी नतीजे पर पहुंचा है। इसमें आरोपी पीएसी के सिपाही मिलाप सिंह और वीरेंद्र सिंह को सजा सुनाई जाएगी। अधिवक्ता अनुराग वर्मा के मुताबिक इस घटना के दोषी झम्मन सिंह,महेश शर्मा, नेपाल सिंह आदि की मौत हो चुकी है। जबकि दोनो जिंदा आरोपी पीएसी से रिटायर हो चुके हैं। इस घटना के एक दोषी सब इंस्पेक्टर विक्रम सिंह तोमर फरार है, जिसे भगोड़ा घोषित किया जा चुका है। में पीड़ित महिलाओं और पुरुषों की कोर्ट में गवाही हुई और लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद अब फैसले की घड़ी आई है।
इस मामले को यूपी सरकार ने कई सालो तक दबाए रखा था। यूपी में योगी सरकार आने पर उत्तराखंड सरकार के अनुरोध पर इस मामले की जांच में तेजी आई और इसमें केंद्र सरकार के द्वारा भी सीबीआई को फटकार लगाई गई थी।
दिल्ली जा रही थी बस
1994 में उत्तराखंड राज्य आंदोलन चरम पर था। दिल्ली चलो के आह्वान पर उत्तराखंड आंदोलनकारी बसों में सवार होकर कुमायूं गढ़वाल से दिल्ली जा रहे थे। पौड़ी से जाने वाली बसों को एक अक्टूबर की रात्रि में मुजफ्फरनार के रामपुर तिराहे के पास मुलायम सरकार की पुलिस पीएसी ने रोक कर आंसू गैस के गोले छोड़े और गोलियां दागी। इसी दौरान एक बस में सवार तीस लोगों में जिनमें 18 महिलाएं थीं। पुलिस पीएसी के जवानों ने बर्बरता की, महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया और उनके गहने लूट लिए थे। इस दिल दहला देने वाली घटना से पूरे उत्तराखंड में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी।
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