मुफ्ती शमून कासमी
गजवा उस जंग को कहते हैं, जिस जंग के सेनापति हजरत मुहम्मद साहब स्वयं थे। अब मुहम्मद साहब इस दुनिया में मौजूद नहीं हैं, तो गजवा-ए-हिंद के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। इसलिए अब जो लोग गजवा-ए-हिंद की बात करते हैं, वे निराधार हैं। जिस विद्वान के हवाले से हदीस बयान की गई है, वे मुहम्मद साहब के दुनिया से जाने के 350 साल बाद पैदा हुए थे। यानी मुहम्मद साहब से उनका सीधा संवाद नहीं हुआ था।
भारत निरंतर प्रगति कर रहा है। भारत की यह स्थिति कुछ असामाजिक तत्वों को स्वीकार्य नहीं है। इसलिए वे अपने गुप्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए गजवा-ए-हिंद की झूठी कहानी पर भरोसा कर रहे हैं, अफवाहें और गलत जानकारी फैला रहे हैं। इसलिए गजवा-ए-हिंद पर मुसलमानों को भ्रमित नहीं होना चाहिए और वे विद्वान, जो अति महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं, उन्हें किसी विचार को समाज में लाने से पहले उसके अस्तित्व को जांचना व परखना चाहिए।
आज लगभग समस्त विश्व में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। बहुत कम मुल्कों में राजशाही या लोकशाही है। समस्त विश्व से हमारे राजनयिक रिश्ते हैं, चाहे वे मुस्लिम देश हों या गैर-मुस्लिम। हमारा देश एक संविधान से चलता है। हर व्यक्ति को अपनी पूजा-पद्धति और रस्मो-रिवाज को मानने की स्वतंत्रता संविधान देता है। इसलिए किसी असंवैधानिक गतिविधि को या कोई भ्रम पैदा करके उसे मुहम्मद साहब से जोड़ देना आधुनिक दौर का गलत इस्तेमाल करना है। कुरान में गजवा-ए-हिंद का जिक्र नहीं है।
मानवता-विरोधी विचारधारा के लोगों, विशेषकर पाकिस्तानी मानसिकता द्वारा गजवा-ए-हिंद की जो व्याख्या की जाती है, वह निराधार है।
वर्तमान सरकार भेदभाव रहित एवं समानता के सिद्धांत पर कार्य कर रही है। भारत निरंतर प्रगति कर रहा है। भारत की यह स्थिति कुछ असामाजिक तत्वों को स्वीकार्य नहीं है। इसलिए वे अपने गुप्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए गजवा-ए-हिंद की झूठी कहानी पर भरोसा कर रहे हैं, अफवाहें और गलत जानकारी फैला रहे हैं। इसलिए गजवा-ए-हिंद पर मुसलमानों को भ्रमित नहीं होना चाहिए और वे विद्वान, जो अति महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं, उन्हें किसी विचार को समाज में लाने से पहले उसके अस्तित्व को जांचना व परखना चाहिए।
(लेखक – मदरसा शिक्षा परिषद, उत्तराखंड, के अध्यक्ष हैं)
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