रूस और यूक्रेन के बीच बीते 3 वर्षों से युद्ध चल रहा है। इस युद्ध में यूक्रेन को नाटो के 31 देशों का साथ मिला हुआ है, बावजूद इसके अभी तक को महाबली रूस को डिगा तक नहीं सका है। ऐसे में पोप फ्रंसिस ने उसे ‘सफेद झंडा’ उठाने का साहस रखने की सलाह दी तो वो भड़क गया। यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लॉदिमीर जेलेंस्की ने आत्मसमर्पण से साफ इंकार करते हुए कहा कि पोप ‘वर्चुअल मध्यस्थता’ कराने की कोशिशें कर रहे हैं। वे अपनी प्रार्थनाओं अपनी चर्चा और कार्यों से हमारा समर्थन करते हैं। वास्तव में एक चर्च यहीं तक सीमित है।
वहीं यूक्रेनी विदेशमंत्री दिमित्री कुलेबा ने पोप पर आरोप लगाते हुए कहा कि वेटिकन ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नाजी जर्मनी का विरोध तक नहीं किया। वहीं यूक्रेन के इन आरोपों पर वेटिकन का कहना है कि उसने पर्दे के पीछे रहकर यहूदियों के लिए काम किया था। हालांकि, कुलेबा यहीं नहीं रुके उन्होंनें यूक्रेनी झंडे का जिक्र करते हुए कहा, “हमारा झंडा पीला और नीला है। यह वह झंडा है जिसके द्वारा हम जीते हैं, मरते हैं और जीतते हैं। हम कभी भी कोई अन्य झंडा नहीं उठाएंगे।”
उन्होंने पोप को सलाह दी कि अतीत की गलतियों से सबक लेते हुए वेटिकन को यूक्रेन और उसके लोगों की जान बचाने के लिए कोशिशें करें। वहीं यूक्रेन के बयान का समर्थन करते हुए पोलिश विदेशमंत्री रैडोस्लाव सिकोरस्की ने पोप फ्रांसिस पर तंज कसते हुए कहा, “संतुलन के लिए, पुतिन को यूक्रेन से अपनी सेना वापस बुलाने का साहस करने के लिए प्रोत्साहित करना कैसा रहेगा?” इसके साथ ही लातविया ने भी पोप के सुझावों की निंदा की।
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क्या कहा था पोप फ्रांसिस ने
बीते 3 साल से रूस के साथ चल रहे युद्ध का कोई नतीजा नहीं निकल रहा है। ऐसे में पोप फ्रांसिस ने सुझाव दिया था कि यूक्रेन सरकार को रूस के साथ बातचीत के माध्यम से चल रहे विवाद को खत्म करने के लिए साहस जुटाना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा, “जब आप देखते हैं कि आप हार गए हैं, चीजें ठीक नहीं चल रही है तो आपको बातचीत करने का साहस रखना होगा। बातचीत कभी भी आत्मसमर्पण करने के बारे में नहीं है, बल्कि देश को बचाने के बारे में है।” पोप फ्रांसिस का कहना था, “आपको शर्म आ सकती है, लेकिन आखिरकार कितनी मौंते हुई है। सही समय पर बातचीत करें और मध्यस्थता के लिए अन्य देशों की मदद लें।”
नाटो में शामिल होने को लेकर हुआ युद्ध
गौरतलब है कि यूक्रेन नाटो में शामिल होना चाहता है। इसी को लेकर उसने धीरे-धीरे अमेरिका के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ानी शुरू की। रूस को लगा कि ये तो उसकी सुरक्षा के लिए खतरा है, जिसके बाद उसने यूक्रेन पर हमला कर दिया।
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