अभी ठीक से गर्मी भी शुरू नहीं हुई है कि बेंगलूरु में लोगों को पीने का पानी नहीं मिल रहा है। 2018 से दक्षिण अफ्रिका की राजधानी केपटाउन में पानी का वितरण सेना की देखरेख में हो रहा है। कहीं बेंगलूरु भी केपटाउन की राह पर तो नहीं है!
इस समय कर्नाटक की राजधानी बेंगलूरु में पानी के लिए हाहाकार मचा है। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के आवास में भी पाइप से पानी नहीं पहुंच पा रहा है। मुख्यमंत्री आवास के लिए पानी टैंकर से मंगाया जा रहा है। व्हाईटफील्ड, येलहंका और कनकपुरा क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित हैं। कई आवासीय संघों ने अपने—अपने क्षेत्र में पानी बर्बाद करने वालों पर 5,000 रुपए जुर्माना लगाना आरंभ कर दिया है। कुछ सोसायटी ने तो पानी की रखवाली के लिए निजी सुरक्षाकर्मी तैनात किए हैं। व्हाइटफील्ड स्थित पाम मीडोज हाउसिंग सोसायटी ने अपने निवासियों को जारी एक नोटिस में कहा है कि उसे जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड से पानी नहीं मिल रहा है और हम अपने बोरवेल से प्रबंध कर रहे हैं, परन्तु बहुत जल्दी भूजल के खत्म होने का खतरा है। इस सोसायटी ने पानी की खपत में 20 प्रतिशत की कमी करने का निर्णय लिया है। यदि कोई व्यक्ति अपने घर में पानी की खपत में 20 प्रतिशत की कटौती नहीं करेगा, तो उस पर 5,000 रुपए का अतिरिक्त जुर्माना लगाया जाएगा। कई आवसीय संगठनों ने लोगों से कहा है कि वे अपने घरों को धोने की बजाय पौचा लगाएं। यह भी कहा है कि जो व्यक्ति निर्देशों का पालन नहीं करेगा, उस पर जुर्माना लगाया जाएगा। सरकार की ओर से पानी की चोरी रोकने के लिए पानी के टैंकरों का विशेष पंजीकरण किया जा रहा है और पंजीकरण न करवाने वाले टैंकर को जब्त करने के निर्देश दिए हैं।
बेंगलूरु का यह हाल एक दिन में नहीं हुआ है। यहां काफी समय से जल संकट है। बेंगलूरु दुनिया के उन 11 शहरों में शामिल है, जहां पानी की घोर कमी है। स्थिति यह है कि इन सभी 11 शहरों में पानी ‘डार्क जोन’ को भी पार कर गया है। इन शहरों को ‘डे जीरो’ की श्रेणी में रखा गया है। इसका मतलब है कि इन शहरों में पानी की उपलब्धता खतरनाक स्थिति में पहुंच गई है।
यूनिटी आफ नेशनज क्लाईमेट चेज कौंसिल के वैश्विक निदेशक रमेश गोयल के अनुसार जलवायु परिर्वतन के कारण वर्षा कम हो रही है, जिससे नदियों में जल घटता जा रहा है। नदियों में पानी की कमी के कारण भूजल दोहन बढ़ रहा है जिससे भूजल स्तर 200 से 400 फुट तक नीचे चला गया है। उन्होंने कहा कि पानी किसी मिल या फैक्ट्री में नहीं बनाया जा सकता। सरकार एक स्थान से दूसरे स्थान पर पानी टैंकरों से पहुंचा रही है परन्तु कब तक! जब तक हम पानी को बर्बाद करना बन्द नहीं करेंगे तथा बचत करने की आदत नहीं बनाएंगे, यह स्थिति बिगड़ती जाएगी। उन्होंने कहा कि यह चिन्तनीय है कि पानी की बढ़ती कमी के बावजूद लोग पानी की बर्बादी कर रहे हैं। जहां पानी है, वहां लोग उसकी कीमत नहीं समझ रहे हैं और पानी बर्बाद करते हैं। शहरों में पानी नल से आता है, लेकिन लोग पाइप लगाकर गाड़ी धोते हैं। नलों को खुला छोड़ देते हैं। उन्होंने महाराष्ट्र के लातूर का उदाहरण देते हुए बताया कि कुछ वर्ष पहले वहां रेल के माध्यम से पानी पहुंचाया गया था। पानी की बर्बादी के कारण ही दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन में 12 अप्रैल, 2018 से पानी राशन में मिल रहा है और वहां की सारी जल संबंधी व्यवस्था सेना को सुपुर्द कर दी गई है। अप्रैल, 2023 से राशन में मिल रहे पानी की मात्रा कम कर दी गई है। अब वहां पानी का नल बंद करने के लिए कोई नहीं कहता, क्योंकि 24 घंटे नल खोलकर रखने के बाद भी उसमें पानी नहीं आता है।
उन्होंने कहा कि जो लोग अब भी पानी बर्बाद कर रहे हैं, वे केवल अपने परिवार का ही अहित नहीं कर रहे, बल्कि समाज और देश के शत्रु भी हैं। उन जैसे लोगों के कारण ही 2035-40 में भारत के हर शहर, गांव में भावी पीढ़ी पानी के लिए कतार में खड़ी हो सकती है।
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